भारतीय आत्मा की पुनः खोज है ‘श्रीराम कथा’
सत्य, धर्म और कर्तव्य के शाश्वत सूत्रों से समाज को जोड़ती रामकथा : डॉ. दयाशंकर मिश्र
काशी की
धरा
पर
साहित्य,
साधना
और
सनातन
चेतना
का
विराट
संगम
सुरेश गांधी
वाराणसी. काशी—जहाँ शब्द
साधना बनते हैं और
विचार लोकमंगल का मार्ग प्रशस्त
करते हैं—उसी पावन
भूमि पर “भारतीय अस्मिता
की संजीवनी : श्रीराम कथा” विषयक अन्तर्राष्ट्रीय
संगोष्ठी ने सनातन चेतना
को नई ऊर्जा दी।
तारक सेवा संस्था, अन्तर्राष्ट्रीय
रामायण एवं वैदिक शोध
संस्थान, अयोध्या तथा वृंदावन शोध
संस्थान के संयुक्त आयोजन
में रथयात्रा स्थित स्वस्तिक सिटी सेंटर का
सभागार विचार, विमर्श और वैचारिक गरिमा
से आलोकित रहा।
दीप प्रज्ज्वलन के
साथ आरंभ हुई संगोष्ठी
में देश के विभिन्न
कोनों से आए साहित्यकारों
का सम्मान केवल व्यक्तियों का
नहीं, बल्कि उस परंपरा का
अभिनंदन था, जिसने युगों
से भारतीय चेतना को दिशा दी
है। मुख्य अतिथि डॉ. दयाशंकर मिश्र
‘दयालु’ ने कहा कि
श्रीराम कथा केवल अतीत
की स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान का मार्गदर्शन और
भविष्य की आशा है।
सत्य, धर्म, न्याय, प्रेम, त्याग और कर्तव्यनिष्ठा जैसे
मूल्य इसमें केवल उपदेश नहीं,
जीवन–पद्धति बनकर उपस्थित होते
हैं। उन्होंने कहा कि भगवान
राम का चरित्र आज
के जटिल और संघर्षपूर्ण
समय में भी धैर्य,
मर्यादा और नैतिक साहस
का दीपक है।
उन्होंने कहा कि आज
जब देशभर में सनातन चेतना
का पुनर्जागरण हो रहा है,
तब काशी में ऐसी
संगोष्ठी का आयोजन विशेष
अर्थ रखता है। यही
वह भूमि है जहाँ
तुलसीदास ने लोकभाषा में
रामकथा को जन–जन
की आत्मा से जोड़ा। कार्यक्रम
की अध्यक्षता करते हुए प्रो.
बल्देव भाई शर्मा ने
कहा कि राम समन्वय
के प्रतीक हैं—विचार, व्यवहार
और संवेदना के। आज मनुष्य
बहुत कुछ प्राप्त कर
रहा है, पर मनुष्यता
से दूर होता जा
रहा है। रामकथा का
सार तभी जीवंत होगा,
जब वह ग्रंथों से
निकलकर जीवन में उतरे।
इस सत्र में अनेक
विद्वानों ने श्रीराम कथा
की सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक प्रासंगिकता
पर अपने विचार रखे
और इसे भारतीय अस्मिता
की अक्षुण्ण धरोहर बताया।
साधना और साहित्य का सम्मान
संगोष्ठी के प्रारंभ में
गायक–संगीतकार इशान घोष को
‘तन्मय साधक सम्मान–2025’ से
अलंकृत किया गया। वहीं
डॉ. अखिलेश मिश्र ‘रामकिंकर’ को आचार्य पं.
राजपति दीक्षित स्मृति सम्मान प्रदान कर साहित्यिक साधना
का सम्मान किया गया।
शब्दों का उत्सव : पुस्तकों का लोकार्पण
कार्यक्रम के दौरान “हिंदुत्व”,
“अनसुने स्वर, अनकही भक्ति”, “पर्यावरणीय चेतना” और “मंडूक स्तवन”
जैसी पुस्तकों का लोकार्पण हुआ,
जो विचार और संवेदना के
नए द्वार खोलती हैं।
वैश्विक मंच पर रामकथा
दूसरे सत्र में ऑनलाइन
माध्यम से विश्व के
अनेक देशों के विद्वान जुड़े।
भारत के राजदूत श्री
अखिलेश मिश्र की उपस्थिति में
अमेरिका, चीन, नेपाल, श्रीलंका,
म्यांमार सहित कई देशों
से वक्ताओं ने रामकथा को
भारतीय जीवन–मूल्यों की
वैश्विक भाषा बताया। यह
संगोष्ठी केवल एक कार्यक्रम
नहीं, बल्कि उस चेतना का
उत्सव थी, जो कहती
है—राम कथा केवल
सुनी नहीं जाती, जी
जाती है। अतिथियों का
स्वागत कार्यक्रम संयोजक एवं तारक सेवा
संस्था के अध्यक्ष प्रो.
उमापति दीक्षित ने किया, जबकि
धन्यवाद ज्ञापन संस्था के सचिव श्रीपति
दीक्षित ने किया। संगोष्ठी
का कुशल संचालन राहुल
अवस्थी ने किया। इस
अवसर पर प्रो. अमित
कुमार राय, सुमित कुमार
सिंह, कमल नयन त्रिपाठी,
डॉ. ज्ञानेश चंद्र पांडेय, संकल्प दीक्षित, विमर्श मिश्र, डॉ. राहुल द्विवेदी,
डॉ. जय सिंह, प्रीति
यादव, दिव्या शुक्ला सहित अनेक गणमान्य
लोग उपस्थित रहे।

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