भोपाल : ‘जुर्म’ पर भारी है ‘चीख’
भोपाल में राष्ट्रवाद,
विकास और राजनीतिक
जागिर के बीच
जुर्म और चीख
चुनावी एजेंडा बन गया
है। रामअवतार कहते
है ‘साध्वी प्रज्ञा
सिंह ठाकुर पर
किया गया कांग्रेसी
जुर्म का इस
जनता में जनता
बदला लेगी। आतंकियों
की हिमाकत करने
और हिन्दुओं को
भगवा आतंकवाद के
नाम पर बदनामी
अब नहीं सहन
होगा। जबकि सलाउद्दीन
कहते है अगर
दिग्विजय सिंह आतंकी
है तो उन्हें
छूट क्यों दी
जा रही है,
जेल में क्यों
नहीं डाल दिया
जाता। सच तो
यह इस धर्म
मजहब से इतर
इस बार विकास
के लिए मतदान
होगा। बाजी किसके
हाथ लगेगी यह
तो 23 मई को
पता चलेगा। लेकिन
शहीद हमेंत करकरे
से लेकर श्रीराम
मंदिर पर दिए
बयान से भोपाल
में सियासी भूचाल
चरम पर है।
भगवा आतंकवाद पर
मुखर होकर अपनी
बात रखने वाले
दिग्विजय जो साध्वी
के सामने मैदान
में हैं, उनकी
बोलती बंद है
सुरेश गांधी
फिरहाल, भोपाल की
फिजा में सिर्फ
और सिर्फ आतंकवाद
और भगवा आतंकवाद
इस कदर घुल
मिल गया है
कि इससे इतर
कुछ चर्चा ही
नहीं हैं। बता
दें, तमाम आरोपों
से इतर बीजेपी
डंके की चोट
पर उस साध्वी
को पूरे मान-सम्मान के साथ
चुनाव मैदान में
ले उतारा है
जिसे कांग्रेसियों ने
भगवा आतंकवाद के
नाम अधमरा कर
छोड़ दिया था।
लेकिन अब सबूतों
के अभाव में
न्यायालय से क्लीन
चिट पा चुकी
प्रज्ञा ठाकुर अपने उपर
हुए जुर्म का
बदला लेना चाहती
है। वो कांग्रेस
उम्मींदवार दिग्विजय सिंह को
हराने के लिए
हर हथकंडे अपना
रही है। जबकि
मुस्लिम वोटर्स खुलकर कांग्रेस
के पक्ष में
होते दिखाई देने
लगे है। वहीं
हिंदुओं में बीजेपी
की साध्वी के
लिए ध्रुवीकरण होता
दिख रहा है।
दरअसल, कांग्रेस के लिए
सबसे बड़ी सिरदर्द
यही है। यहां
का समीकरण ऐसा
है जिसने 30 साल
से इस सीट
को बीजेपी के
लिए सबसे सुरक्षित
बना रखा है।
भोपाल में कुल
21 लाख वोटर्स हैं। इसमें
मुस्लिम वोटर्स 5 लाख हैं,
ओबीसी वोटर्स 4 लाख
75 हजार, ब्राह्मण वोटर्स 4 लाख,
राजपूत वोटर्स 1 लाख 50 हजार,
वैश्य वोटर्स 1 लाख
25 हजार और अन्य
वोटर्स 1 लाख हैं।
मतलब भोपाल में
मुसलमान निर्णायक तो हैं
लेकिन तब जब
उनके साथ ओबीसी
का वोट मिले।
इसी ओबीसी वोटर्स
को अपने पाले
में लाने के
लिए बीजेपी ने
एड़ी से चोटी
का जोर लगा
दिया है। इसके
लिए चुनाव की
रणनीतिक कमान अब
संघ के वरिष्ठ
नेता व भारत
रक्षा मंच के
संयोजक सूर्यकांत केलकर से
लेकर खुद शिवराज
सिंह चौहान ने
संभाल ली है।
दोनों नेता भोपाल
में डेरा डाल
रखा है। इसके
अलावा जो सवर्ण
वोटर्स 6 लाख हैं
वो बीजेपी के
पाले में चला
जाता है लेकिन
इस बार दोनों
उम्मींदवारों के सवर्ण
होने से बंटता
दिखाई दे रहा
है। भोपाल का
ये मूड दोनों
तरफ के लिए
चुनौती है।
कांग्रेस के लिए
इस धर्मयुद्ध के
नारे में ध्रुवीकरण
को भोपाल में
ही रोकने की
चुनौती है तो
बीजेपी सारा दिमाग
इस पर खपा
रही है कि
इस ध्रुवीकरण को
भोपाल से बाहर
कैसे ले जाया
जाए? फिलहाल भोपाल
में भगवा की
जय होगी या
फिर से दिग्विजय
होंगे ये 12 मई
को वोटिंग और
23 मई को नतीजे
के बाद पता
चलेगा। लेकिन साध्वी प्रज्ञा
के उपर हुए
कांग्रेसी जुर्म को लेकर
जनता में जबरदस्त
आक्रोश देखा जा
रहा है। यही
वजह है कि
अबकी बार पूरे
देश की नज़रें
मध्य प्रदेश के
भोपाल पर टिक
गई हैं। जहां
से बीजेपी की
उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह
ठाकुर ने कांग्रेस
के कद्दावर नेता
दिग्विजय सिंह के
खिलाफ ताल ठोक
दी है। बीजेपी
ने जिस दिन
प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल
के मैदान-ए-जंग में
उतारा उसी दिन
से ये कहा
जा रहा है
कि 2019 के चुनाव
में हिंदुत्व की
नई प्रयोगशाला भोपाल
बनने वाला है
क्योंकि मुकाबला भगवा ब्रिगेड
की सबसे तीखी
ज़ुबानों में शुमार
साध्वी प्रज्ञा और कभी
अल्पसंख्यकों के सबसे
बड़े पैरोकार रहे
कांग्रेस नेता दिग्विजय
सिंह के बीच
है।
मध्य प्रदेश
की राजधानी भोपाल
की स्थापना 11वीं
शताब्दी में परमार
राजा भोज ने
की थी। इसे
नवाबों के शहर
और झीलों की
नगरी के नाम
से भी जाना
जाता है। सर्राफा
चौक, मोती मस्जिद,
ताज उल मस्जिद,
गौहर महल और
एक से बढ़कर
एक स्थापत्य के
नमूने इस शहर
की समृद्ध विरासत
और संस्कृति की
शानदार मिसाल हैं। पर्यटन
की दृष्टि से
भी भोपाल का
विशेष महत्व है।
2011 की जनगणना के अनुसार
भोपाल की जनसंख्या
18 लाख है। हालांकि
एक अनुमान के
मुताबिक भोपाल की जनसंख्या
23 लाख से ज्यादा
है। अर्थव्यवस्था के
लिहाज से भोपाल
में भारत हेवी
इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) का
एक कारखाना है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र
ने यहां अपना
दूसरा ’मास्टर कंट्रोल फ़ैसिलिटी’ भी स्थापित किया है।
भोपाल में भारतीय
वन प्रबंधन संस्थान
भी है, जो
भारत में वन
प्रबंधन से जुड़ा
एकमात्र संस्थान है। पर्यटन
की दृष्टि से
भी भोपाल का
विशेष महत्व है।
यह भारत के
पसंदीदा पर्यटन स्थलों में
से एक है।
लोकसभा चुनाव 2014 के मुताबिक
यहां मतदाताओं की
कुल संख्या 19 लाख
56 हजार 936 है, जिसमें
10 लाख 39 हजार 4 पुरुष और
9 लाख 17 हजार 932 महिलाएं हैं।
भोपाल भारत के
मध्य भाग में
स्थित है और
यह विंध्य पर्वत
श्रृंखला के पूर्व
में है। यह
एक पहाड़ी इलाके
पर स्थित है,
किंतु इसका तापमान
अधिकतर गर्म रहता
है। इसका भू-भाग ऊंचा-नीचा एवं
इसके दायरे में
कई छोटे पहाड़
हैं। भोपाल नगर
निगम की सीमा
289 वर्ग किलोमीटर है।
2014 में भाजपा
नेता आलोक संजर
16वीं लोकसभा के
सांसद हैं। 1952 से
1977 तक यहां कांग्रेस
ने लगातार जीत
हासिल की। 1989 से
यहां से भाजपा
लगातार चुनाव जीत रही
है। लोकसभा चुनाव
के आंकड़ों पर
नजर डालें तो
1957 में यहां से
कांग्रेस की मैमूना
सुल्तान सांसद चुनी गईं।
उन्हें 1962 में भी
कांग्रेस के उम्मीदवार
के रूप में
जीत मिली। इसके
बाद 1967 में यहां
से भारतीय जनसंघ
के जेआर जोशी
जीते लेकिन 1971 में
शंकरदयाल शर्मा ने यह
सीट फिर कांग्रेस
की झोली में
डाल दी। कांग्रेस
विरोधी लहर के
चलते 1977 में जनता
दल के आरिफ
बेग यहां से
जीते तो 1980 में
शंकरदयाल शर्मा दो बार
लोकसभा पहुंचे। वर्ष 1984 में
कांग्रेस के केएन
प्रधान सांसद बने। इस
सीट पर 1989 से
भाजपा का कब्जा
है। वर्ष 1989 से
1999 तक चार बार
यहां से भाजपा
के सुशीलचंद्र वर्मा
सांसद रहे। साल
1999 में यहां से
भाजपा की उमा
भारती सांसद चुनी
गईं। वर्ष 2004 में
भाजपा ने यहां
से कैलाश जोशी
पर दांव खेला,
जो 2014 तक भोपाल
के सांसद रहे।
भोपाल मध्य प्रदेश
के महत्वपूर्ण लोकसभा
निर्वाचन क्षेत्रों में से
एक है। मध्य
प्रदेश की राजधानी
होने के कारण
यह शहर बेहद
खास है। इस
क्षेत्र को झीलों
की नगरी भी
कहा जाता है।
1984 में हुआ भोपाल
गैस कांड यहां
का सबसे दुभाग्य
पूर्ण घटनाक्रम है।
गैस रिसाव से
लगभग बीस हजार
लोग मारे गये
थे। भोपाल की
स्थापना परमार राजा भोज
ने की थी।
इस क्षेत्र का
पुराना नाम भोजपाल
था। यहां पर
अफगान सिपाही दोस्त
मोहम्मद का शासन
रहा, इसलिये इसे
नवाबी शहर भी
कहा जाता है।
आज भी यहां
मुगल संस्कृति देखी
जा सकती है।
2014 के लोकसभा चुनाव में
इस सीट से
भारतीय जनता पार्टी
के आलोक संजार
ने 7 लाख 14 हजार
178 वोट हासिल किये थे।
उन्होंने अपने निकटतक
प्रतिद्वंदी प्रकाश मांगी लाल
शर्मा को 3 लाख
70 हजार 696 वोटों के भारी
अंतर से हराकर
जीत दर्ज की
थी। इन्हें कुल
3 लाख 43 हजार 482 वोट मिले
थे। आम आदमी
पार्टी के रचना
ढींगरा 21 हजार 298 वोट पाकर
तीसरे तो बहुजन
समाज पार्टी के
सुनील बोरसे 10 हजार
152 वोट पाकर चौथें
स्थान पर रहे
थे।
गौरतलब है कि
मालेगांव महाराष्ट्र का वो
शहर है जो
पिछले 11 बरस से
रह-रहकर सुर्खियों
में आता है।
सितंबर 2008 में इस
शहर ने धमाकों
का वो जख्म
झेला था जिसमें
6 लोगों की जान
चली गई थी
और इन्हीं धमाकों
के बाद पहली
बार हिंदू आतंकवाद
शब्द सामने आया
था। साध्वी प्रज्ञा
सिंह ठाकुर इसमें
गिरफ्तार हुईं थीं।
अब 11 बरस बाद
कोर्ट के फैसले
के बाद हिंदू
आतंकवाद का मुद्दा
फिर से उठा
है। बीजेपी ने
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को
भोपाल से उम्मीदवार
उन्हीं के सामने
बनाया है, जिस
दिग्विजय सिंह ने
भगवा आतंकवाद का
नाम दिया था। मध्य
प्रदेश के मुख्यमंत्री
रहे दिग्विजय सिंह
आरएसएस और बीजेपी
पर तीखे हमले
करने के लिए
जाने जाते रहे
हैं। बीजेपी अध्यक्ष
अमित शाह ने
कहा भी है
जो हिंदू आतंकवाद
शब्द के जन्मदाता
हैं हमने उन्हीं
के खिलाफ साध्वी
प्रज्ञा ठाकुर को उतारा
है।
दिग्विजय सिंह की
कभी कांग्रेस में
तूती बोलती थी
वह 1993 से लेकर
2003 तक लगातार मध्य प्रदेश
के मुख्यमंत्री रहे।
उससे पहले बीजेपी
के सुंदरलाल पटवा
मध्य प्रदेश के
मुख्यमंत्री थे। दिग्विजय
सिंह ने मध्य
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते
हुए पूरे प्रदेश
की पदयात्रा की
थी और बीजेपी
को सत्ता से
बेदखल करने में
कामयाब रहे थे।
10 साल सीएम रहने
के बाद साध्वी
उमा भारती से
हार गए थे।
भोपाल से साध्वी
प्रज्ञा के उतरने
के बाद यह
कयास लगाए जाने
लगे हैं कि
क्या एक बार
फिर साध्वी के
हाथों ही दिग्विजय
की हार होगी
या इस बार
वह अपना वजूद
बचाने में कामयाब
होंगे? साध्वी प्रज्ञा ठाकुर
भी उसी तरह
की फायर ब्रांड
नेता मानी जाती
हैं जैसी उमा
भारती मानी जाती
रही हैं। उमा
भारती भी भगवा
वस्त्र धारण करती
हैं और साध्वी
प्रज्ञा ठाकुर का पहनावा
भी ठीक वैसा
ही है। कटे
हुए बाल और,
भगवा वस्त्र और
गले में रूद्राक्ष
की माला उनकी
पहचान है।
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