न्यू
इंडिया की
उड़ान, चांद
के पार
‘हिन्दुस्तान’
लॉन्चिंग के
बाद चांद
की ओर
ऐतिहासिक यात्रा
की शुरुआत
हो गयी
है। मतलब
साफ है
भारत फिर
एक बार
चांद के
पार जाने
को बेताब
है। चंद्रयान-2
अंतरिक्ष यान
22 जुलाई से
लेकर 13 अगस्त
तक पृथ्वी
के चारों
तरफ चक्कर
लगाएगा। इसके
बाद 13 अगस्त
से 19 अगस्त
तक चांद
की तरफ
जाने वाली
लंबी कक्षा
में यात्रा
करेगा। देश
के सबसे
ताकतवर बाहुबली
रॉकेट का
दम पूरी
दुनिया देख
रही है।
या यूं
कहे अंतरिक्ष
की दुनिया
में हिंदुस्तान
ने आज
एक बार
फिर इतिहास
रच दिया
है। चांद
पर कदम
रखने वाला
ये हिंदुस्तान
का दूसरा
सबसे बड़ा
मिशन है।
अगर सबकुछ ठीक रहा
तो ऐसा
भारत करने
वाला दुनिया
का चौथा
देश बन
जाएगा। फिलहाल
अमेरिका, रूस
और चीन
को ही
यह महारत
हासिल है
सुरेश
गांधी
तकरीबन 16 साल
पहले जब
चंद्रमा पर
अंतरीक्षयान भेजने की योजना नवजात
अवस्था में
थी, पूर्व
राष्ट्रपति वैज्ञानिक डॉ अब्दुल कलाम
ने चंद्रयान
2 में एक
खास रोबोट
भेजने की
सलाह दी
थी ताकि
वह चांद
पर पानी
खोज सके।
सालभर बाद
इसरो के
वैज्ञानिकों की एक टीम चंद्र
अभियान पर
चर्चा के
लिए कलाम
से मिली।
मकसद था
100 किमी की
दूरी से
चंद्रमा की
परिक्रमा करना
था। डॉ
कलाम ने
सुझाव दिया
कि सिर्फ
परिक्रमा ही
क्यों? क्यों
न चांद
पर उतरे?
आज चांद
के दक्षिणी
ध्रुव तक
पहुंचने के
लिए चंद्रयान-2
की 48 दिन
की यात्रा
शुरू हो
गई है।
चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान 22 जुलाई से
लेकर 13 अगस्त
तक पृथ्वी
के चारों
तरफ चक्कर
लगाएगा। इसके
बाद 13 अगस्त
से 19 अगस्त
तक चांद
की तरफ
जाने वाली
लंबी कक्षा
में यात्रा
करेगा। 19 अगस्त को ही यह
चांद की
कक्षा में
पहुंचेगा। इसके बाद 13 दिन यानी
31 अगस्त तक
वह चांद
के चारों
तरफ चक्कर
लगाएगा। फिर
1 सितंबर को
विक्रम लैंडर
ऑर्बिटर से
अलग हो
जाएगा और
चांद के
दक्षिणी ध्रुव
की तरफ
यात्रा शुरू
करेगा। 5 दिन
की यात्रा
के बाद
6 सितंबर को
विक्रम लैंडर
चांद के
दक्षिणी ध्रुव
पर लैंड
करेगा। लैंडिंग
के करीब
4 घंटे बाद
रोवर प्रज्ञान
लैंडर से
निकलकर चांद
की सतह
पर विभिन्न
प्रयोग करने
के लिए
उतरेगा। यानी
चंद्रयान-2 को चांद पर पहुंचने
में 48 दिन
ही लगेंगे।
चंद्रयान-2 चांद
पर 6 सितंबर
को ही
पहुंचेगा। जहां तक इसरो के
लिए चंद्रयान-2
मिशन की
महत्ता का
सवाल है
तो इससे
न सिर्फ
भारत के
वैज्ञानिकों की क्षमता दिखेगी, बल्कि
इस मिशन
की सफलता
से यह
साफ हो
जाएगा कि
हमारे वैज्ञानिक
किसी के
मोहताज नहीं
हैं। वे
कोई भी
मिशन पूरा
कर सकते
हैं। इसरो
का यह
छोटा सा
कदम, भारत
की छवि
बनाने की
लंबी छलांग
है। मिशन
चंद्रयान-2 के साथ अंतरिक्ष विज्ञान
की दुनिया
में हो
सकता है
कि छोटा
कदम रख
रहा हो,
लेकिन यह
भारत की
छवि बनाने
के लिए
एक लंबी
छलांग साबित
हो सकती
है। क्योंकि
अभी तक
दुनिया के
पांच देश
ही चांद
पर सॉफ्ट
लैंडिंग करा
पाए हैं।
ये देश
हैं - अमेरिका,
रूस, यूरोप,
चीन और
जापान। इसके
बाद भारत
ऐसा करने
वाला छठा
देश होगा।
हालांकि, रोवर
उतारने के
मामले में
चौथा देश
है। इससे
पहले अमेरिका,
रूस और
चीन चांद
पर लैंडर
और रोवर
उतार चुके
हैं। बड़ा
सवाल तो
यही है
क्या चांद
पर मानव
बस्ती बन
पाएगी? क्या
चंद्रयान जैसे
मून मिशन
भेजने का
मकसद चांद
पर इंसानी
बस्ती बनाने
की शुरुआत
है? ये
चर्चा 2008 में भी हुई थी
जब चंद्रयान-1
चांद पर
गया था।
तब भी
विख्यात वैज्ञानिक
प्रो. यशपाल
ने कहा
था कि
निकट भविष्य
में तो
यह संभव
नहीं है,
लेकिन 50 से
75 साल में
इंसान चाहे
तो चांद
पर बस्ती
बसा सकता
है। लेकिन
उसके लिए
तो लाखों
करोड़ों रुपयों
की जरूरत
पड़ेगी. अमेरिका,
रूस, चीन
जैसे देश
ये कर
सकते हैं
लेकिन भारत
को ऐसा
करने में
कम से
कम 100 से
150 साल लग
जाएंगे। लेकिन
अब सिर्फ
एक बात
जहन में
आती है
कि आखिर
चांद पर
इंसान जाना
ही क्यों
चाहता है?
साल 1950 में
किसी ने
नहीं सोचा
था कि
कि अगले
दो दशकों
में लोग
चांद की
सतह पर
पहुंच जाएंगे।
स्पेस मिशन
के करीब
60 वर्ष हो
चुके हैं।
एक तरह
से देखे
तो हमें
इसका जवाब
मिलता दिखता
है। हम
बस्ती बनाने
का प्रयास
कर सकते
हैं क्योंकि
हमारे पास
संचार प्रणाली
है। हम
मौसम का
पूर्वानुमान लगा सकते हैं। जलवायु
परिवर्तन समझ
सकते हैं।
हमारे पास
जीपीएस है।
धरती और
इसके पर्यावरण
के बारे
में गहन
जानकारी और
आपदाओं की
चेतावनी हैं।
टेक्नोलॉजी दिनोदिन आधुनिक हो रही
है। इन्फ्रा-रेड इयर
थर्मामीटर और एलईडी आधारित उपकरण
चांद पर
मददगार साबित
होंगे। इंसान
6 बार पहले
ही चांद
पर पांव
के निशान
छोड़ आया
है। अपोलो
17 मिशन सबसे
अधिक तीन
दिनों तक
चाँद पर
रहा था,
जहां 3.8 करोड़
वर्ग किलोमीटर
जमीन है।
अमेरिका ने
जितनी बार
चांद पर
मानव मिशन
भेजा उसका
खर्च साल-दर-साल
बढ़ता चला
गया। आज
की तारीख
में दो
लोगों को
चांद पर
भेजकर, कुछ
दिन वहां
बिताकर लौटने
में कम
से कमा
2.40 लाख करोड़
रुपयों का
खर्च आएगा।
इससे ज्यादा
पैसा लगेगा
चांद पर
हवा और
पानी बनाने
में। हमें
पता है
कि चांद
पर बड़ी
मात्रा में
बर्फीला पानी
है। चट्टानों
में ऑक्सीजन
कैद है।
इसलिए चांद
के भावी
नागरिकों के
लिए हवा
और पानी
की जरूरतें
पूरी हो
सकती है।
लेकिन अभी
तक हवा
और पानी
की सही
मात्रा का
अंदाजा नहीं
लगाया जा
सका।
हालांकि
भविष्य में
संभावनाएं अच्छी हैं। चाँद पर
जाने की
अन्य वजहें
हैं - वहां
हीलियम की
बड़ी मात्रा,
जिसका उपयोग
ऊर्जा के
लिए हो
सकता है
और पर्यटन।
रोवर लैंडर
के अंदर
ही मैकेनिकल
तरीके से
इंटरफेस किया
गया है।
यानी लैंडर
के अंदर
इन्हाउस रहेगा
और चांद
की सतह
पर लैंडर
के सॉफ्ट
लैंडिंग के
बाद रोवर
प्रज्ञान अलग
होगा और
14 से 15 दिन
तक चांद
की सतह
पर चहलकदमी
करेगा और
चांद की
सतह पर
मौजूद सैंपल्स
यानी मिट्टी
और चट्टानों
के नमूनों
को एकत्रित
कर उनका
रसायन विश्लेषण
करेगा और
डेटा को
ऊपर ऑर्बिटर
के पास
भेज देगा।
जहां से
ऑर्बिटर डेटा
को इसरो
मिशन सेंटर
भेजेगा।
बता दें,
नवंबर 2007 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी
रॉसकॉसमॉस ने कहा था कि
वह इस
प्रोजेक्ट में साथ काम करेगा।
वह इसरो
को लैंडर
देगा। 2008 में इस मिशन को
सरकार से
अनुमति मिली।
2009 में चंद्रयान-2
का डिजाइन
तैयार कर
लिया गया।
जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय थी,
लेकिन रूसी
अंतरिक्ष एजेंसी
रॉसकॉसमॉस लैंडर नहीं दे पाई।
इसरो ने
चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग मार्च 2018 तय
की। लेकिन
कुछ टेस्ट
के लिए
लॉन्चिंग को
अप्रैल 2018 और फिर अक्टूबर 2018 तक
टाला गया।
इस बीच,
जून 2018 में
इसरो ने
फैसला लिया
कि कुछ
बदलाव करके
चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग जनवरी 2019 में
की जाएगी।
फिर लॉन्च
डेट बढ़ाकर
फरवरी 2019 किया गया। अप्रैल 2019 में
भी लॉन्चिंग
की खबर
आई थी।
लेकिन टल
गया, फिर
15 जुलाई को
तिथि तय
हुई फिर
टल गया,
अब सफल
हुई है।
खास बात
यह है
कि इसरों
ने चांद
पर वह
जगह चुनी
है, जहां
अभी तक
कोई देश
नहीं पहुंचा
ह। इसरो
के अनुसार
चंद्रयान 2 भारतीय मून मिशन है
जो पूरी
हिम्मत से
चाँद के
दक्षिणी ध्रुव
क्षेत्र में
उतरेगा जहां
अभी तक
कोई देश
नहीं पहुंचा
है। यानी
कि चंद्रमा
का दक्षिणी
ध्रुवीय क्षेत्र।
इसका मकसद,
चंद्रमा के
प्रति जानकारी
जुटाना है।
ऐसी खोज
करना जिनसे
भारत के
साथ ही
पूरी मानवता
को फायदा
होगा। इन
परीक्षणों और अनुभवों के आधार
पर ही
भावी चंद्र
अभियानों की
तैयारी में
जरूरी बड़े
बदलाव लाए
जाएंगे। ताकि
आने वाले
दौर के
चंद्र अभियानों
में अपनाई
जाने वाली
नई टेक्नोलॉजी
को बनाने
और उन्हें
तय करने
में मदद
मिले।
भारत का
अब तक
का सबसे
शक्तिशाली लॉन्चर है। इसे पूरी
तरह से
देश में
ही बनाया
गया है।
तीन स्टेज
का यह
रॉकेट 4 हजार
किलो के
उपग्रह को
35,786 किमी से लेकर 42,164 किमी की
ऊंचाई पर
स्थित जियोसिनक्रोनस
ऑर्बिट में
पहुंचा सकता
है। या
फिर, 10 हजार
किलो के
उपग्रह को
160 से 2000 किमी की लो अर्थ
ऑर्बिट में
पंहुचा सकता
है। इस
रॉकेट के
जरिए 5 जून
2017 को जीसेट-19
और 14 नवंबर
2018 को जीसेट-29
का सफल
प्रक्षेपण किया जा चुका है।
ऐसी उम्मीद
भी है
कि इसरो
के मानव
मिशन गगनयान
को इसी
रॉकेट के
अत्याधुनिक अवतार से भेजा जाएगा।
चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम जहां
उतरेगा उसी
जगह पर
यह जांचेगा
कि चांद
पर भूकंप
आते है
या नहीं।
वहां थर्मल
और लूनर
डेनसिटी कितनी
है। रोवर
चांद के
सतह की
रासायनिक जांच
करेगा। तापमान
और वातावरण
में आद्रता
है कि
नहीं। चंद्रमा
की सतह
पर पानी
होने के
सबूत तो
चंद्रयान 1 ने खोज लिए थे
लेकिन चंद्रयान
2 से यह
पता लगाया
जा सकेगा
कि चांद
की सतह
और उपसतह
के कितने
भाग में
पानी है।
आज देश
के लिए
गर्व करने
का दिन
है। क्योंकि
इस मिशन
से हिंदुस्तान
के कदम
पहली बार
चांद पर
पड़ने वाले
हैं। चंद्रयान
अपने साथ
एक रोबोट
प्रज्ञान ले
जा रहा
है जो
चांद के
उस हिस्से
पर उतरेगा
जहां अब
तक कोई
नहीं पहुंचा
है। चांद
पर कदम
रखने वाला
चौथा देश
बन जाएगा
हिंदुस्तान। ये देश के लिए
बहुत बड़ी
उपलब्धि है।
सबसे पहले
1966 में लूना-9
यान ने
चांद पर
कदम रखा
था। उसके
तीन साल
बाद 1969 में
अमेरिका ने
सबसे पहले
इंसान को
चांद पर
उतारा। इसके
करीब 45 साल
बाद चीन
ने चांग
ई-3 यान
उतारा और
अब आज
भारत का
चंद्रयान-2 चांद पर कदम रखने
के लिए
जाने वाला
है। इस
मिशन की
लागत 978 करोड़
रुपये है।
चंद्रयान-2 भारत का दूसरा चंद्रमा
मिशन है।
इस मिशन
की खासियत
यह है
कि पहली
बार भारत
चंद्रमा की
उत्तरी सतह
पर ’लुनर
रोवर’ उतारेगा। कानपुर
द्वारा निर्मित
’लुनर रोवर’ यानी मानवरहित चंद्रयान
को चंद्रमा
पर भेजा
जाएगा, जो
चंद्रमा की
सतह के
कई रहस्यों
से पर्दा
उठाएगा। रॉकेट
को ’बाहुबली’ नाम दिया गया
है। यह
पहली बार
है कि
मानवरहित चंद्रयान
भारत की
ओर से
चंद्रमा की
उत्तरी सतह
पर लैंड
करेगा, जो
पूरी दुनिया
के लिए
अभी अछूता
है।
No comments:
Post a Comment