दूर नहीं अब ‘चांद’, बसेगा ‘आशियाना’
अंतरिक्ष में चंद्रयान
के ऊंची उड़ान
के बाद इसरों
का चुनौतीपूर्ण वादा
है। दावा है
कि चंद्रमा पर
कदम रखने के
मकसद से भेजे
गए चंद्रयान-2 अगर
सफल रहा तो
बहुत जल्द 2021 से
2022 तक इंसान वहां अपना
आशियाना बना सकेगा।
मतलब साफ है
बचपन में सुलाने
के लिए मां
की लोरी ‘चंदा मामा
दूर के, पूए
पकाएं गूड के’ साकार होने
वाला है। दूरी
के हिसाब से
तो चंदा मामा
वाकई हमसे बहूत
दूर है, लेकिन
अब चंदा मामा
इंसानी पहुंच के दायरे
से बाहर नहीं।
3,82000 किमी की 48 किमी की
यात्रा पर रवाना
हो चुका है
चंद्रयान 2 जो न
सिर्फ रेकार्ड बनायेगा
बल्कि अमेरिका व
चीन के बाद
भारत चौथा देश
होगा जो चांद
पर लैंडर उतारेगा।
ब्रह्मांड के किसी
दूसरे पिंड पर
उतरने की तकनीक
भारत हासिल कर
लेगा
सुरेश गांधी
मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन
हॉकिंग हमेशा कहा करते
थे कि अगर
मानव जाति को
संपूर्ण विनाश से बचना
है और अपना
अस्तित्व बचाए रखना
है, तो उसे
अंतरिक्ष में धरती
के बाहर कहीं
रहने का ठिकाना
खोजना होगा। उनका
यह बाते इसरो
करके दिखाने वाला
है। चांद पर
इंसानों की बस्ती
बसाने और दूसरे
ग्रहों की खोज
के लिए चांद
को पडाव बनाने
का सपना साकार
करने के लिए
चंद्रयान 2 अपनी ऐतिहासिक
यात्रा पर है।
हमने जीसैट 11, जीसैट
29, जीसैट 6ए और
जीसैट 7ए, जीएसएलवी
एमके तृतीय जैसे
महत्वपूर्ण उपग्रह पहले ही
लॉन्च किए है।
मिशन के दौरान
एक लैंड रोवर
और जांच उपकरण
से युक्त यान
चंद्रमा की सतह
पर उतरेगा और
उसकी सतह पर
मौजूद मिट्टी व
पानी के नमूने
एकत्र करेगा। पूर्व
में भेजे गए
उपग्रहों से जमीनी
इंसान की संचार
संबंधी आवश्यकताएं तो पूरी
हो रही है
देश की सुरक्षा
के लिए भी
कारगर साबित हो
रही है। इससे
वायुसेना अपने विभिन्न
रडार केंद्रों और
अड्डों से हवाई
हमलों की पूर्व
चेतावनी एवं नियंत्रण
प्रणाली वाले विमान
को जोड़ पाने
में सक्षम हो
गयी है।
खास बात
यह है कि
इससे मानवरहित वायुयान
व ड्रोन को
भी नियंत्रित किया
जा सकता है।
रणनीतिक उपग्रहों के मामले
में भारत, अमेरिका,
रूस और चीन
जैसे देशों के
रास्ते पर चल
रहा है। उपग्रह
जीसैट-11 सबसे भारी
उपग्रह है, जिसमें
मल्टी-स्पॉट बीम
के एंटीना लगे
हैं, जो भारतीय
भूमि और द्वीपों
को कवर कर
सकते हैं। इससे
ग्रामीण अंचलों में भी
कनेक्टिविटी बढ़ी है।
यह डिजिटल इंडिया
प्रोग्राम का हिस्सा
है। इसके जरिए
ई-बैंकिंग, ई-हेल्थ, ई-गवर्नेंस
जैसी सार्वजनिक कल्याणकारी
योजनाओं को बढ़ावा
दिया जा रहा
है। पीएम नरेंद्र
मोदी ने स्वतंत्रता
दिवस के मौके
पर लाल किले
से मानव मिशन
2022 की घोषणा की थी।
इस कार्यक्रम के
तहत अंतरिक्ष में
दो मानवरहित यानों
के साथ-साथ
एक यान ऐसा
भेजे जाने की
परिकल्पना है, जिसमें
अंतरिक्ष यात्री भी होंगे।
अबतक केवल अमेरिका,
रूस और चीन
ने ही इंसानों
को अंतरिक्ष में
भेजा है। भारतीय
अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)
का मानना है
कि 2022 तक भारतीय
अंतरिक्ष यात्री गगनयान से
अंतरिक्ष में भेजे
जा सकते हैं।
चंद्रयान 2 उसी कड़ी
का एक हिस्सा
है। इस दिशा
में मानव क्रू
मॉड्यूल और पर्यावरण
नियंत्रण तथा जान
बचाने की प्रणाली
जैसी प्रौद्योगिकी भी
विकसित की जा
चुकी है।
इसरों का दावा
है कि यान
भेजने के पहले
हम दो मानवरहित
मिशन को अंजाम
देंगे। इससे 2022 से पहले
भारत का कोई
बेटा या बेटी
अंतरिक्ष में स्वदेशी
गगनयान से पहुंचेगा।
वायु सेना के
पूर्व पायलट राकेश
शर्मा अंतरिक्ष में
जाने वाले पहले
भारतीय थे। वहीं
भारत में जन्मी
कल्पना चावला और भारतीय
मूल की सुनीता
विलियम्स भी अंतरिक्ष
जा चुकी हैं।
गौरतलबहै कि वर्ष
2003 में भारतीय मूल की
अंतरिक्षयात्री कल्पना चावला का
उस दुर्घटना में
देहांत हुआ, जब
अंतरिक्ष से अपनी
वापसी यात्रा में
पृथ्वी के वातावरण
में प्रवेश करते
वक्त स्पेस शटल
कोलंबिया नष्ट हो
गया। वर्ष 1980 में
स्पेस शटल की
प्रथम दुर्घटना के
बाद यह उसकी
दूसरी दुर्घटना थी।
इन दोनों के
बीच अन्य दुर्घटनाओं
ने 14 मानव जिंदगियां
लील लीं। फिरहाल,
भारत आज एक
अंतरिक्षीय शक्ति बन चुका
है और उसके
पास रॉकेट और
उपग्रह निर्माण की विशेषज्ञता
है। इसने देश
की शोध-अनुसंधान
की क्षमताओं में
भरोसा जगाया है।
अब चुनौती ज्यादा
बड़े और भारी
संचार उपग्रह बनाने
और प्रक्षेपण प्रति
तिमाही एक से
बढ़ाकर प्रति माह
एक करना है।
कुछ ही देश
वह काम कर
सके हैं जो
भारत ने कर
दिखाया है। ऐसे
रॉकेटों का निर्माण
जो उपग्रहों को
ध्रुवीय और भू-स्थैतिक कक्षाओं में
छोड़ सकें, हर
किस्म के उपग्रहों
का निर्माण तथा
चंद्रयान और मंगलयान
अभियान।
मंगलयान मिशन इसरो
की अंतरिक्ष उद्यमिता
का उदाहरण है।
संभव है कि
देश अंतरिक्ष स्टेशन
स्थापित करने में
भी भविष्य में
सक्षम हो जाए।
उसी कड़ी में
22 जुलाई, 2019 को भारत
ने चांद पर
अपना दूसरा अंतरिक्षयान
भेजा है। यह
हमारे समूची सौर
प्रणाली के विकास
को समझने में
हमारी मदद करेगा।
चंद्रयान 2 अंतरीक्ष में एक
वर्ष तक काम
करता रहेगा। इस
यान को जिस
राकेट से अंतरिक्ष
में पहुंचाया जा
रहा है, उसका
नाम जीएसएलवी-तीन
है और उसकी
प्रक्षेपण शक्ति सैटर्न-5 नामक
उस राकेट की
चौथाई ही है,
जिसने आर्मस्ट्रांग को
चंद्रमा तक पहुंचाया
था। इस उपग्रह
का वजन 3.8 टन
है, जिसे चंद्रमा
की सतह से
सौ किमी ऊपर
की एक वृत्ताकार
कक्षा में स्थापित
किया जायेगा। इस
कार्यक्रम के अंतर्गत
चंद्रमा का चक्कर
लगाने वाले इस
यान से अलग
होकर चंद्रमा की
सतह पर उतरने
वाला हिस्सा, जिसका
नाम भारतीय अंतरिक्ष
कार्यक्रम के जनक
सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई
के नाम पर
‘विक्रम’ रखा
गया है, चांद
के दक्षिणी ध्रुव
के निकट उतरेगा।
उसके बाद उसका
‘प्रज्ञान’ नामक
रोबोटीय हिस्सा इस सतह
पर चौदह दिनों
तक चलता हुआ
विभिन्न खनिजों तथा रसायनों
के नमूने इकट्ठे
करेगा, ताकि उनके
विश्लेषण से चंद्रमा
की सतह की
बनावट को समझा
जा सके।
कहा जा
सकता है चंदा
मामा दूर के...ये बात
अब सही नहीं
है। अब चंदा
मामा बहुत जल्द
इंसान के करीब
होंगे। गौरतलब है कि
इंसान ने 1959 में
पहली बार चंद्रमा
पर खुद की
बनाई हुई कोई
वस्तु (इंपैक्टर) फेंकी थी।
चंद्रमा को नजदीक
से देखने, उसे
छूने और उसके
अंधेरे-उजियारों से रहस्य
खंगालने के लिए
दुनियाभर के 8 देशों
से कुल 135 मून
मिशन लॉन्च किए।
इनमें से 56 मिशन
रॉकेट या स्पेसक्राफ्ट
के फेल होने
से नाकाम हो
गए थे। लेकिन
इच्छाएं कम नहीं
हुईं...और मून
मिशन चलते रहे।
चंद्रमा पर पहुंचने
के लिए इन
आठ देशों ने
कई जुगत लगाए।
करीब 9 तरीकों से चांद
के रहस्यों से
परदा हटाने की
कोशिश की। इनमें
सबसे ज्यादा 45 प्रयास
ऑर्बिटर के थे।
यानी चंद्रमा के
चारों ओर चक्कर
लगाने वाला सैटेलाइट।
45 ऑर्बिटर यानी ऐसा
उपग्रह जो चांद
के चारों तरफ
चक्कर लगाता रहे।
इनमें से 14 लॉन्च
के समय फेल
हो गए या
बीच रास्ते में
खो गए। लैंडर,
जो उपग्रह चांद
की सतह पर
उतर कर एक
ही स्थान पर
विभिन्न प्रकार के प्रयोग
करे उसे लैंडर
कहते हैं। चांद
पर भेजे गए
21 लैंडर में से
18 लैंडर सफल नहीं
हुए। फ्लाईबाई, जो
उपग्रह चांद की
कक्षा में घुसकर
बेहद नजदीक से
होकर आगे गुजर
जाए या एक
चक्कर लगाते हुए
आगे निकल जाए
तो उसे फ्लाईबाई
कहते है।
चांद
पर छोड़े गए
18 फ्लाईबाई में से
10 फेल हो गए
थे। इंपैक्टर, वह
इलेक्ट्रॉनिक वस्तु जो किसी
फ्लाईबाई या ऑर्बिटर
से चांद की
सतह पर सिर्फ
टकराने के लिए
फेंकी जाए उसे
इंपैक्टर कहते हैं।
15 इंपैक्टर में से
9 इंपैक्टर मिशन नाकाम
हुए थे। ग्रैविटी
एसिस्ट, सिर्फ दो असफलताएं
मिली। यह ऐसा
प्रयोग है जिसमें
फ्लाईबाई और ऑर्बिटर
की मदद से
सतह और वातावरण
में गुरुत्वाकर्षण शक्ति
और रेडियो फ्रिक्वेंसी
को मापा जाता
है। सैंपल रिटर्न, रोवर
या मानव द्वारा
चांद की सतह
से किसी प्रकार
का सैंपल लाकर
उसकी जांच करना।
ऐसे प्रयोगों को
सैंपल रिटर्न कहते
हैं। ऐसे सिर्फ
2 प्रयोग ही सफल
हो पाए। क्रूड
ऑर्बिटर, ये सारे
मिशन सफल रहे
हैं। इनमें इंसान
को ऑर्बिटर में
बिठाकर चांद के
चारों तरफ चक्कर
लगाया जाता है।
साथ ही लैंडर
और रोवर चांद
पर भेजा जाता
है। लैंडर/रोवर,
1 ही फेल हुआ।
बाकी सारे सफल
रहे। इसमें लैंडर
चांद की सतह
पर उतरता है
फिर उसमें से
रोवर निकलकर चांद
की सतह की
तस्वीरें लेता है
और जांच करता
है। क्रूड ऑर्बिटर/लैंडर/रोवर, तीनों
मिशन सफल रहे।
मानव चांद की
सतह पर उतरा।
बता दें,
50 वर्ष पूर्व 24 जुलाई, 1969 को
अमेरिका का अपोलो-11
यान चंद्रमा की
यात्रा से लौट
आया। उसके तीन
अंतरिक्षयात्री, पायलट माइकल कोलिंस,
एडविन एल्ड्रिन तथा
कमांडर नील आर्मस्ट्रांग
को फ्लोरिडा से
उड़कर चंद्रमा तक
की अपनी यात्रा
पूरी कर वापस
लौट आने में
कुल आठ दिन
लगे। चंद्रयान
2 को पृथ्वी के
उपग्रह (चांद) पर उतरने
में लगभग सात
सप्ताह का समय
लगेगा। चंद्रमा 3.5 अरब वर्ष
पुराना है। और
इसकी ज्वालामुखियों के
मुंह एक लंबे
अरसे में निर्मित
हुए, जो फिर
अपरिवर्तित ही रहे,
क्योंकि न तो
चांद का कोई
वातावरण है, न
ही यहां ऐसी
कोई अन्य आंतरिक
हलचल है, जो
इनके स्वरूप बदल
सके। चंद्रमा ने
उन सभी प्रक्रियाओं
के असर दर्ज
कर रखे हैं,
जो पूरी सौर
प्रणाली में घटित
हुईं तथा जो
बहुत सारी ऐसी
चीजें बता सकती
हैं, जिन्हें धरती
पर नहीं समझा
जा सकता। अपोलो
मिशन के बाद
ही यह समझा
जाना भी संभव
हो सका कि
संभवतः जब एक
बड़ी चीज पृथ्वी
से टकरायी, तभी
चंद्रमा का निर्माण
हुआ। वर्ष 1969 के
उक्त महान पल
के बाद अमेरिका
ने स्वयं भी
अपने अंतरिक्ष मिशन
को बहुत अधिक
आगे नहीं बढ़ाया।
आर्मस्ट्रांग एवं एल्ड्रिन
के बाद 10 अन्य
अमेरिकी अंतरिक्षयात्रियों ने चंद्रमा
पर अपने कदम
रखे, मगर अंतिम
मिशन वर्ष 1972 में
संपन्न हो गया।
वर्ष 1980 के दशक
में अमेरिकी राष्ट्रपति
रोनाल्ड रीगन के
शासन काल में
अमेरिका ने स्पेस
शटल कार्यक्रम विकसित
किया, जो वर्ष
2011 में समाप्त हुआ।
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