नागपंचमी
: ‘नागों’ की पूजा
से मिलता
है ‘आध्यात्मिक
शक्ति व
धन’

सुरेश
गांधी
महादेव
की उपासना
के महीना
सावन में
उनके प्रिय
आभूषण यानि
नागों की
उपासना का
भी विधान
है। नाग
भगवान शंकर
के अंग
भूषण माने
गए हैं।
नागपंचमी के
दिन शिवजी
के साथ
ही नागों
की पूजा
करने से
विशेष फल
की प्राप्ति
होती है।
नागपंचमी श्रावण
मास में
शुक्लपक्ष की पंचमी को मनाई
जाती है।
नाग को
प्रत्येक पंचमी
तिथि का
देवता माना
गया है।
परंतु नागपंचमी
पर नाग
की पूजा
को विशेष
महत्व दिया
गया है।
नागपंचमी का
पर्व धार्मिक
आस्था व
विश्वास के
सहारे हमारी
बेहतरी की
कामना का
प्रतीक है।
यह जीव
- जंतुओं के
प्रति समभाव,
हिंसक प्राणियों
के प्रति
भी दयाभाव
व अहिंसा
के अभयदान
की प्रेरणा
देता है।
यह पर्व
हमें पर्यावरण
से भी
जोड़ता है।
इस दिन
नागों की
पूजा करके
आध्यात्मिक शक्ति, सिद्धियां और अपार
धन की
प्राप्ति की
जा सकती
है। नाग
मुख्यतः शिव
जी की
शक्ति के
प्रतीक हैं।
शिव जी
के महीने
के सोमवार
सबसे ज्यादा
महत्वपूर्ण होते हैं।

वैसे
भी सर्प
भारतीय संस्कृति
और जीवन
दर्शन में
महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। कहते
हैं सर्प
वायु पीता
है अर्थात
वायुमंडल की
संपूर्ण विषाक्तता
को स्वयं
ग्रहण कर
वह मानव
व अन्य
जीव-जंतुओं
के लिए
स्वच्छ पर्यावरण
प्रदान करता
है। शायद
इसीलिए नाग
कल्याणकारी शिव को सर्वाधिक प्रिय
है। उन्होंने
बासुकी नाग
को अपने
गले का
हार बना
लिया। इसलिए
नाग भी
देवता के
रूप में
पूजे जाने
लगे। शिव
ने स्वयं
भी तो
समुद्र मंथन
से निकले
विष को
जगत के
कल्याण के
लिए अपने
कंठ में
धारण कर
लिया। बौद्ध
साहित्य में
भी उल्लेख
है कि
बासुकी नाग
भगवान बुद्ध
का उपदेश
सुनने के
लिए अपनी
प्रजाति के
साथ आता
था। रामायण
और महाभारत
में भी
बासुकी की
कथाओं का
उल्लेख है।
शास्त्रों में पाताललोक को नागलोक
के रूप
में मान्यता
दी गयी
है। कहते
हैं नागदेवता
की पूजा
से कालसर्प
दोष से
मुक्ति मिलता
है। इस
दिन महिलाएं
नाग देवता
की आराधना
के साथ
परिवार की
सुख-समृद्धि
और दीर्घायु
की कामना
करती हैं।
इस व्रत
के प्रताप
से कालभय,
विषजन्य मृत्यु
और सर्पभय
नहीं रहता।
नागपंचमी के
व्रत का
सीधा सम्बन्ध
उस नाग
पूजा से
भी है
जो शेषनाग
भगवान शंकर
और भगवान
विष्णु की
सेवा में
तत्पर है।
इनकी पूजा
से शिव
और विष्णु
पूजा के
तुल्य फल
मिलता है।
नागपंचमी के
दिन भगवान
शिव के
विधिवत पूजन
से हर
प्रकार का
लाभ प्राप्त
होता है।
नागपंचमी के
दिन नागदेवता
का दूध
से अभिषेक
कर पूजा
करने से
परिवार पर
उनकी कृपा
बनी रहती
है। मान्यता
है कि
जो भी
श्रद्धालु नागदेवता की पूजा करते
हैं, नागदेव
उनके परिवार
के सदस्य
की रक्षा
करते हैं।
परिवार के
किसी सदस्य
की मृत्यु
नाग के
डंसने से
नहीं होती।
मान्यता है
कि इस
शुभ तिथि
के दिन
सृष्टि के
अनुष्ठाता ब्रह्मा ने शेषनाग को
पृथ्वी का
भार धारण
करने का
आदेश दिया
था।
शेषनाग
के फन
पर टिकी
है पृथ्वी

नागों
की मां
थी सुरसा
रामायण
में सुरसा
को नागों
की माता
और समुद्र
को उनका
अधिष्ठान बताया
गया है।
महेन्द्र और
मैनाक पर्वतों
की गुफाओं
में भी
नाग निवास
करते थे।
हनुमान जी
द्वारा समुद्र
लांघने की
घटना को
नागों ने
प्रत्यक्ष देखा था। नागों की
स्त्रियां अपनी सुन्दरता के लिए
प्रसिद्ध थी।
रावण ने
कई नाग
कन्याओं का
अपहरण किया
था। प्राचीन
काल में
विषकन्याओं का चलन भी कुछ
ज्यादा ही
था। इनसे
शारीरिक सम्पर्क
करने पर
व्यक्ति की
मौत हो
जाती थी।
ऐसी विषकन्याओं
को राजा
अपने राजमहल
में शत्रुओं
पर विजय
पाने तथा
षड्यंत्र का
पता लगाने
हेतु भी
रखा करते
थे। रावण
ने नागों
की राजधानी
भोगवती नगरी
पर आक्रमण
करके वासुकि,
तक्षक, शंक
और जटी
नामक प्रमुख
नागों को
परास्त किया
था। कालान्तर
में नाग
जाति चेर
जाति में
विलीन हो
गयी जो
ईस्वी सन
के प्रारम्भ
में अधिक
समपन्न हुई
थी।
जब
दी गयी
सर्पो की
आहुति
कहा
जाता है
कि अभिमन्यु
के बेटे
राजा परीक्षित
ने तपस्या
में लीन
ऋषि के
गले में
मृत सर्प
डाल दिया
था। इस
पर ऋषि
के शिष्य
श्रृंगी ऋषि
ने क्रोधित
होकर श्राप
दिया कि
यही सर्प
सात दिनों
के पश्चात
तुम्हें जीवित
होकर डस
लेगा। ठीक
7 दिनों के
पश्चात उसी
तक्षक सर्प
ने जीवित
होकर राजा
को डसा।
तब क्रोधित
होकर राजा
परीक्षित के
बेटे जन्मजय
ने विशाल
सर्प यज्ञ
किया जिसमे
सर्पों की
आहुतियां दी।
इस यज्ञ
को रुकवाने
हेतु महर्षि
आस्तिक आगे
आये। उनका
आगे आने
का कारण
यह था
कि महर्षि
आस्तिक के
पिता आर्य
और माता
नागवंशी थी।
इसी नाते
से वे
यज्ञ होते
देख न
सके। सर्प
यज्ञ रुकवाने,
लड़ाई को
खत्म करने,
पुनः अच्छे
सम्बन्धों को बनाने हेतु आर्यों
ने स्मृति
स्वरूप अपने
त्योहारों में सर्प पूजा को
एक त्योहार
के रूप
में मनाने
की शुरुआत
की।
खेतों
की रक्षक
है नाग
भारत
में नागों
को खेत
की रक्षा
करने वाला
बताया गया
है। यहां
नागों को
क्षेत्रपाल भी कहा जाता है।
जीव-जंतु
जो फसलों
को नुकसान
पहुंचाते हैं,
सांप उन्हें
खाकर खेतों
को हरा-भरा रखने
में मदद
करते हैं।
नागपंचमी के
दिन लोग
नाग देवता
का सत्कार
करते हैं
और इनकी
पूजा करते
हैं।
पूजन
की विधि
इस
दिन लोगों
को नित्य
कर्म से
निवृत्त होकर
साफ वस्त्र
धारण करना
चाहिये। पूजन
के लिए
सेंवई-चावल
का ताजा
भोज बनाना
चाहिये। इसके
बाद घर
में दीवाल
पर गेरू
पोतकर पूजन
के लिए
स्थान बनाना
चाहिये। कच्चे
दूध में
कोयला घिसकर
उससे गेरू
पुती दीवाल
पर घर
जैसी आकृति
बनानी चाहिये
और इस
आकृति के
भीतर कई
नागों की
आकृतियां बनानी
चाहिये। सबसे
पहले निकटतम
नाग की
बांबी में
एक कटोरा
दूध चढ़ाना
चाहिये। इसके
बाद दीवाल
पर बनाये
गये नाग
देवता की
कच्चा दूध,
दही, दूर्वा,
कुशा, गंध,
अक्षत, पुष्प,
जल, रोली
और चावल
से पूजा
करनी चाहिये।
इसके बाद
आरती कर
नागपंचमी की
कथा सुनने
से भक्तों
को नागपंचमी
की पूजा
का लाभ
मिलता है।
घरों
में नहीं
चढ़ता तवा

नहीं
होती खुदाई
ं
इस
दिन पृथ्वी
की खुदाई
करना वर्जित
है। भोले
भण्डारी नागपंचमी
के दिन
अपनी झोली
से विषैले
जीव को
भूमि पर
विचरण के
लिये छोड़
देते हैं
और जन्माष्टमी
के दिन
पुनः अपनी
झोली में
समेट लेते
हैं। इस
मास में
भूमि पर
हल नहीं
चलाना चाहिये।
मकान बनाने
के लिये
नींव भी
नहीं खोदनी
चाहिये। इस
दिन किसी
सपेरे से
नाग खरीदकर
उसे खुले
जंगल में
छोड़ने से
शांति मिलती
है। पूजा
में चंदन
की लकड़ी
का प्रयोग
अवश्य करें।
जब
सांप ने
बनाया बहन
कहावत
है कि
एक सेठ
के सात
बेटे थे।
सातों की
शादी हो
चुकी थी।
सबसे छोटे
बेटे की
पत्नी काफी
सुंदर, सुशील
और ज्ञानी
थी। लेकिन
उसका कोई
भाई नहीं
था। एक
दिन बड़ी
बहु के
साथ सभी
बहुएं घर
लीपने के
लिए मिट्टी
लाने गईं।
मिट्टी निकालते
समय वहां
एक सांप
नजर आया।
जिसे देखते
ही बड़ी
बहु हाथ
में मौजूद
खुरपी से
उसपर वार
करने लगी।
यह देख
छोटी बहु
चिल्ला पड़ी
और बड़ी
बहु से
विनती कर
बोली कि
इसका अपराध
क्या है,
इसे न
मारो। अगले
दिन छोटी
बहू को
अचानक याद
आया कि
उसने सर्प
से वहीं
रुकने को
कहा था।
वह दौड़ती
हुई वहां
पहुंची तो
देखी कि
सांप वहीं
बैठा है।
वह बोली,
भैया मुझे
माफ करना।
मैं भूल
गई थी
कि आपको
मैंने यहां
रुकने के
लिए कहा
था। सांप
ने कहा,
अब आज
से तुम
मेरी बहन
हुई तो
जो हुआ
उसके लिए
मैं तुम्हें
माफ करता
हूं। अब
तुम्हें जो
चाहिए वह
मुझसे मांग
लो। छोटी
बहू ने
कहा कि
मुझे कुछ
नहीं चाहिए।
आप मेरे
भाई बन
गए, मुझे
सबकुछ मिल
गया। कुछ
दिन बीत
जाने के
बाद वही
सांप मनुष्य
का रूप
लेकर बहू
के घर
आया और
परिवार वालों
से कहा
कि मेरी
बहन को
मेरे साथ
कुछ समय
के लिए
भेज दें।
घरवालों ने
कहा कि
इसका तो
कोई भाई
था ही
नहीं तो
तू कौन
हैं। उसने
कहा कि
मैं दूर
का भाई
लगता हूं
और जब
छोटा था
तभी मैं
गांव से
बाहर चला
गया था।
घरवालों को
यकीन हो
जाने के
बाद अपनी
बहन को
लेकर वह
अपनी घर
की ओर
चल पड़ा।
रास्ते में
बहुन को
याद दिलाते
हुए उस
मनुष्य ने
कहा कि
बहन तुम
डरना मत।
मैं वही
सर्प हूं
और चलने
में कोई
भी दिक्कत
हो तो
बस मेरी
पूंछ पकड़
लेना। सर्प
के घर
पहुंचकर उसने
देखा कि
उसके घर
खूब धन-सम्पत्ति है।
एक दिन
सांप की
मां कहीं
जा रही
थी तो
उसने सांप
को ठंडा
दूध पिलाने
को उससे
कहा। वह
भूल गई
और गर्म
दूध उसे
पिला दिया।
जिससे सांप
का मुंह
जल गया।
जब मां
लौटकर आई
तो काफी
नाराज हुई।
लेकिन बेटे
के कहने
पर उसने
उसे माफ
कर दिया।
फिर, उसे
बहुत सारा
धन-सम्पत्ति,
सोना-चांदी,
हीरे-जवाहरात
आदि देकर
अपने घर
विदा कर
दिया। इतना
सारा धन
देख छोटी
बहू के
ससुराल वाले
हैरान थे।
सांप ने
अपनी बहन
को हीरा
और मणि
से जड़ा
एक हार
लाकर दिया।
उस हार
के बारे
में सुन
नगर की
रानी राजा
से इसे
मंगाने का
जिद कर
बैठी। यह
हार मंत्री
को कहकर
मंगा तो
लिया गया,
लेकिन जैसे
ही रानी
ने इसे
पहना वह
हार सांप
बन गया।
राजा ने
इसे छोटी
बहू का
जादू समझकर
उसे हवेली
बुलवाया। जैसे
ही यह
हार छोटी
बहू ने
अपने गले
में डाला
यह फिर
हीरे और
मणियों का
बन गया।
राज ने
सच्चाई जानकर
उसे बहुत
सारा धन-संपत्ति देकर
विदा कर
दिया। घर
में छोटू
बहू को
सोने-चांदी
से लदा
देख बड़ी
बहुओं को
ईर्ष्या होने
लगी तो
वे उसपर
तरह-तरह
के लांछन
लगाने लगीं
और उसके
पति से
पूछने को
कहा कि
वह इतना
धन-संपत्ति
कहां से
लाई है।
पत्नी ने
पति से
सब सच-सच बता
दिया। यह
बता ही
रही थी
कि सांप
उसी समय
प्रकट हुआ
और उसने
कहा कि
जो भी
मेरी बहन
के चरित्र
पर शक
करेगा उसे
में डस
लूंगा। छोटी
बहू के
पति ने
माफी मांगी
और सर्प
देवता का
खूब आदर-सत्कार किया।
उसी दिन
से यह
नागपंचमी का
त्योहार मनाया
जाने लगा।
कहते हैं
महिलाएं सांप
को भाई
मानकर नागदेवता
की पूजा
किया करती
हैं।
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