अखंड ‘हिन्दुस्तान’ में अब सिर्फ ‘तिरंगा’ फहरेगा
केंद्र सरकार ने राज्यसभा में संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने का प्रस्ताव पेश किया तो 35ए को खत्म कर दिया। अनुच्छेद 370 जम्मू एवं कश्मीर को विशेष दर्जा देता है। प्रस्ताव के अनुसार, जम्मू एवं कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया जाएगा। इसमें जम्मू कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश रहेगा, वहीं लद्दाख दूसरा केंद्र शासित प्रदेश होगा। मतलब साफ है मोदी की न्यू इंडिया में अब एक हिन्दुस्तान, एक राष्ट्र, एक निशान, एक संविधान, एक झंडा होगा। 1947 के बाद यह सबसे बड़ा फैसला है। या यूं कहे 72 साल बाद जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 से आजादी मिल गयी है। सीमा पार के आतंकवाद को मिल रहे संरक्षण पर रोक लग गया है। सालों से तीन परिवारों महबूबा, शेख एंड अब्दुल्ला कंपनी की दुकान में ताला लग गया है
सुरेश गांधी
इस धरती
पर कहीं स्वर्ग
है तो वह
कश्मीर में है।
लेकिन इस स्वर्ग
को अब्दुला, शेख
व महबूबा ने
अपनर निजी राजनीतिक
फायदे के लिए
नर्क बना दिया
था। गृहमंत्री अमित
शाह का फैसला
कश्मीर को वापिस
जन्नत बनाने में
मदद करेगा। कश्मीर
एक बार फिर
जन्नत बनेगा। क्योंकि
मोदी ने नेहरु
की गलतियों में
सुधार कर दी
है। दरअसल, 370 हटने
के बाद जम्मू-कश्मीर में हुए
कई बदलावों के
साथ एक यह
भी है कि
वहां अब तिरंगा
अकेले लहराएगा। राज्य
का अलग झंडा
नहीं होगा। अब
तक यहां अलग
झंडा और अलग
संविधान चलता रहा,
जो अब छीन
जाएगा। कश्मीर के झंडे
को लेकर उस
समय सहमति बनी
थी जब 1952 में
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू
और जम्मू-कश्मीर
के तत्कालीन प्रधानमंत्री
शेख मोहम्मद अब्दुल्ला
के बीच समझौता
हुआ था। इसमें
जम्मू-कश्मीर के
अलग झंडे को
राज्य का झंडा
माना गया था।
तभी से वहां
तिरंगे के साथ-साथ जम्मू
कश्मीर का भी
झंडा फहराया जाता
था।
कहा जा
सकता है 5 अगस्त
कश्मीर से अनुच्छेद
370 से मुक्ति का दिन
है। मोदी के
‘चौके‘ से विपक्ष
चारों खाने ‘चित‘ हो चुका है।
कश्मीर पर सरकार
के इस क्रांतिकारी
फैसले का असर
विधानसभा चुनाव पश्चिम बंगाल,
झारखंड, बिहार व महाराष्ट्र
व हरियाणा में
देखने को मिलेगा।
मोदी के इस
पराक्रमी फैसले से नेहरु
युग के पाप
का अंत हो
गया है। मोदी
व शाह ने
कश्मीर का भूगोल
ही बदल दिया
है। अब लाल
चौक से लाल
किले की दूरी
भी खत्म हो
जायेगी। 5 अगस्त जम्मू कश्मीर
की आजादी का
दिवस है। कश्मीर
का आज पुनर्जन्म
हुआ है। मोदी
के पराक्रमी फैसले
से पाप का
अंत हो गया
है। अब अनुच्छेद
379(3) के तहत राष्ट्रपति
ही अनुच्छेद 370 को
खत्म कर सकते
हैं। इसके लिए
जम्मू-कश्मीर संविधान
की अनुशंसा की
जरूरत है। एक
अधिसूचना के जरिए
जम्मू-कश्मीर की
संविधान सभा भंग
करके उसकी शक्ति
राज्य विधानसभा को
दी गई। चूंकि
विधानसभा की शक्ति
अभी संसद के
पास है इसलिए
संसद में अनुच्छेद
370 की दो धाराओं
को खत्म करने
का प्रस्ताव लाया
गया। संसद की
मंजूरी और राष्ट्रपति
की अधिसूचना के
बाद यह खत्म
हो जाएगी। अनुच्छेद
370 को खत्म करने
की शक्ति अनुच्छेद
370 में ही है।
अनुच्छेद 370 के कारण
एक देश में
रहकर भी लोग
वहां अजनबी थे।
जब एक हिन्दुस्तान
है, एक संविधान
है तो सब
को एक सा
क्यों नहीं हो
सका इसे गैर
भाजपाई अच्छी तरह से
समझ रहे है।
फिरहाल, यह कारनामा
सिर्फ और सिर्फ
मोदी शाह के
बूते का ही
है, जिसने देश
को सबसे बड़ी
उपलब्धि दी है।
इसकी खुशी का
अंदाजा इससे लगाया
जा सकता है
कि मुस्लिमपरस्त राजनीतिज्ञों
को छोड़ दे
तो हिन्दुस्तान का
कोना कोना गदगद
है। हर कोई
सड़कों पर जश्न
मना रहा है।
क्योंकि जो 70 सालों में
ना हुआ उसे
मोदी शाह ने
एक झटके में
कर डाला। अनुच्छेद
370 अब गुजरे जमाने की
बात हो गयी।
अब कश्मीर में
देश का कोई
भी नागरिक जाकर
रह सकता है,
अपना आशीयाना बना
सकता है। बता
दें, मोदी सरकार
के इस फैसले
का मतलब हुआ
कि अनुच्छेद 370 के
तहत जम्मू-कश्मीर
को लेकर विशेषाधिकार
मिले थे, वे
अब खत्म हो
जाएंगे। जम्मू-कश्मीर भी
भारत के अन्य
राज्यों की तरह
एक सामान्य राज्य
होगा। जम्मू-कश्मीर
जो अब तक
विशेष राज्य का
दर्जा पाता रहा
था अब वह
भारत का केंद्र
शासित प्रदेश होगा।
मलतब साफ है
राज्य का प्रमुख
राज्यपाल होगा मुख्यमंत्री
नहीं।
देश की
राजधानी दिल्ली की तरह
अब जम्मू-कश्मीर
में भी विधानसभा
होगी। कैबिनेट के
ताजा फैसले के
बाद जम्मू-कश्मीर,
दो राज्यों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख
में बंट जाएगा।
इसके साथ ही
भारत में कुल
केंद्र शासित राज्यों की
संख्या अब 7 से
बढ़कर 9 हो गया
है, जबकि पूर्ण
राज्यों की संख्या
घटकर 28 हो जाएगी।
370 के हटने से
अब सूबे से
अनुच्छेद 35 ए भी
खत्म हो गया
और भारतीय संसद
के जरिए पारित
कानून अब सीधे
लागू होगा। जम्मू
कश्मीर को मिले
सभी विशेष अधिकार
खत्म हो जायेंगे।
भारत का कोई
भी नागरिक चाहे
वो देश के
किसी भी हिस्से
में रहता हो
अब उसे कश्मीर
में स्थायी तौर
पर रहने, अचल
संपत्ति खरीदने का अधिकार
मिल जाएगा। अब
तक 35ए की
वजह ये नहीं
हो पा रहा
था। अब देश
का कोई भी
नागरिक जम्मू-कश्मीर में
सरकारी नौकरी पा सकता
है। स्कॉलरशिप हासिल
कर सकता है।
जम्मू-कश्मीर की
महिला अगर किसी
दूसरे राज्य के
स्थायी नागरिक से शादी
करती हैं तो
उसकी और उसके
बच्चों के लिए
अब कश्मीरी नागरिकता
जैसे अड़चने नहीं
होंगी, क्योंकि अब कश्मीरी
नागरिकता जैसी चीज़
नहीं होगी। और
सूबे से दोहरी
नागरिकता भी खत्म
हो जाएगी।
संसद से
पारित कानून अब
सीधे लागू होंगे,
अब तक भारतीय
संसद के अधिकार
जम्मू कश्मीर को
लेकर सीमित थे।
अब तक ये
होता था कि
डिफेंस, विदेश और वित्तीय
मामले को छोड़कर
अगर संसद कोई
भी कानून बनाती
थी तो वो
वह जम्मू-कश्मीर
में लागू नहीं
होता था। ऐसे
कानून को लागू
कराने का प्रावधान
यह था कि
इसके लिए पहले
संसद द्वारा पारित
कानून को जम्मू-कश्मीर राज्य की
विधानसभा में पास
होना जरूरी था।
ये अधिकार राज्य
को 370 के तहत
ही मिले हुए
थे। अब ये
खत्म हो गया
है। सुप्रीम कोर्ट
का आदेश भी
जम्मू-कश्मीर में
सीधे नहीं लागू
होते थे। अब
इसमें कोई रुकावट
नहीं होगी। राज्य
की विधानसभा का
कार्यकाल अब पांच
साल का होगा,
जो पहले छह
साल का था।
जम्मू-कश्मीर का
अपना झंडा और
अपना संविधान नहीं
होगा। जम्मू-कश्मीर
ने 17 नवंबर 1956 को
अपना संविधान पारित
किया था। जिसे
अब खत्म कर
दिया गया है।
अब तक कश्मीर
में आर्थिक इमरजेंसी
नहीं लगाई जा
सकती थी, अब
उसे खत्म कर
दिया गया है।
जम्मू-कश्मीर में
वोट का अधिकार
सिर्फ वहां के
स्थाई नागरिकों को
था, अब दूसरे
राज्य के लोग
यहां वोट कर
सकेंगे। चुनाव में उम्मीदवार
भी बन सकते
हैं।
अब तिरंगे
का अपमान करना
अपराध होगा, अब
तक इसपर किसी
तरह की सजा
नहीं थी। बाहरी
लोग जम्मू कश्मीर
में बिजनेस कर
सकेंगे। संविधान के मुताबिक
अल्पसंख्यकों को आरक्षण
मिलेगा। लद्दाख में विधानसभा
नहीं होगी, चंडीगढ़
की तरह लेफ्टिनेंट
गवर्नर होगा। केंद्र शासित
राज्य बनने के
बाद के बाद
जम्मू कश्मीर को
केंद्र शासित राज्य बनाया
गया है। अब
जम्मू कश्मीर विधानसभा
दिल्ली जैसी विधानसभा
होगी। यानि राज्य
का हेड गवर्नर
होगा। पुलिस जम्मू
कश्मीर के सीएम
के बजाए राज्यपाल
को रिपोर्ट करेगी
यानि लॉ एंड
ऑर्डर केंद्र के
पास होगा। अब
तक कानून व्यवस्था
जम्मू कश्मीर सरकार
के पास थी।
कश्मीर को अभी
तक जो विशेषाधिकार
मिले थे, उसके
तहत इमरजेंसी नहीं
लगाई जा सकती
है। लेकिन अब
सरकार के फैसले
के बाद वहां
इमरजेंसी लगाई जा
सकती है। भारत
के कानूनी मामलों
में अदालतें भारतीय
दंड संहिता के
तहत कार्रवाई करती
हैं। लेकिन जम्मू
कश्मीर में ऐसा
नहीं होता था।
वहां भारतीय दंड
संहिता का प्रयोग
नहीं होता था।
लेकिन अब पूरे
देश की तरह
भारतीय दंड संहिता
यानी आईपीसी लागू
होगी।
बता दें,
भारत के जम्मू
कश्मीर राज्य में रणबीर
दंड संहिता लागू
थी। जिसे रणबीर
आचार संहिता भी
कहा जाता था।
भारतीय संविधान की धारा
370 के मुताबिक जम्मू कश्मीर
राज्य में भारतीय
दंड संहिता का
इस्तेमाल नहीं किया
जा सकता था।
यहां केवल रणबीर
दंड संहिता का
प्रयोग होता था।
ब्रिटिश काल से
ही इस राज्य
में रणबीर दंड
संहिता लागू थी।
दरअसल, भारत के
आजाद होने से
पहले जम्मू कश्मीर
एक स्वतंत्र रियासत
थी। उस वक्त
जम्मू कश्मीर में
डोगरा राजवंश का
शासन था। महाराजा
रणबीर सिंह वहां
के शासक थे।
इसलिए वहां 1932 में
महाराजा के नाम
पर रणबीर दंड
संहिता लागू की
गई थी। यह
संहिता थॉमस बैबिंटन
मैकॉले की भारतीय
दंड संहिता के
ही समान थी।
लेकिन इसकी कुछ
धाराओं में अंतर
था। जबकि भारतीय
दंड संहिता (आईपीसी)
की धारा 4 कंप्यूटर
के माध्यम से
किये गए अपराधों
को व्याख्यित और
संबोधित करती है,
लेकिन रणबीर दंड
संहिता में इसका
कोई उल्लेख नहीं
है। आईपीसी की
धारा 153 के तहत
सार्वजनिक सभाओं या जमावड़ों
के दौरान जान
बूझकर शस्त्र लाने
को दंडनीय अपराध
माना जाता है,
जबकि रणबीर दंड
संहिता में इस
महत्वपूर्ण विषय का
उल्लेख नहीं है।
आईपीसी की धारा
195। के तहत
अगर कोई किसी
को झूठी गवाही
या बयान देने
के लिये प्रताड़ित
करता है, तो
वह सजा का
हकदार माना जाता
है, जबकि रणबीर
दंड संहिता में
इस संबंध में
कोई निर्देश नहीं
है। आईपीसी की
धारा 281 के तहत
जो व्यक्ति किसी
नाविकों को प्रकाश,
निशान या पेरक
में काम आने
वाले पहियों से
गुमराह करता है,
तो वह सजा
का हकदार है,
जबकि रणबीर दंड
संहिता में ऐसा
कुछ नहीं है।
भारतीय दंड संहिता
की धारा 304ए,
दहेज के कारण
होने वाली मौतों
से संबंधित है,
लेकिन रणबीर दंड
संहिता में इसका
कोई उल्लेख नहीं
है। रणबीर दंड
संहिता की धारा
190 के तहत सरकार
ऐसे किसी भी
व्यक्ति को सज़ा
दे सकती है,
जो सरकार द्वारा
अमान्य या जब्त
की गई सामग्री
का प्रकाशन या
वितरण करता है।
इस मामले में
अपराध का निर्धारण
करने का अधिकार
मुख्यमंत्री को है।
यह विशेष धारा
पत्रकारिता, सोच, विचार
और अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता को बुरी
तरह से प्रभावित
करती है। जहां
तक इस काले
कानून को अब
तक न हटाने
का सवाल है
तो यही कहा
जा सकता है
कि गैरभाजपा दलों
के पास इच्छा
शक्ति नहीं थी।
वोट बैंक की
राजनीति में इस
कदर उलझे थे
कि 370 को हटाना
तो दूर आतंकवाद
को ही बढावा
देने में जुटे
रहे।
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