‘स्वच्छता’ से ही है स्वस्थ ‘स्वास्थ्य’
स्वच्छता लोगों को न सिर्फ स्वस्थ बनाती है, बल्कि विकास की अहम कड़ी है। क्योंकि स्वच्छता के अभाव में ही तमाम बीमारियां जन्म लेती है और इनके इलाज में कमाई का बड़ा हिस्सा खाक हो जाता है, जो विकास में रुकावट पैदा करते है। सामाजिक परिवर्तन नहीं हो पाता। यही वजह है कि बापू शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता को बेहतर बनाना चाहते थे। वो कहा करते थे, “स्वतंत्रता से ज्यादा महत्वपूर्ण है स्वच्छता“ है। बापू के इस कथन से साफ है कि निजी जीवन में वो स्वच्छता व स्वास्थ्य के कितने बड़े हिमायती थे। सबसे बड़ी बात यह है कि वह सिर्फ बाहरी स्वच्छता यानी घर, पास-पड़ोस आदि के ही पक्षधर नहीं थे, बल्कि उनका मानना था कि जब तक मन और पड़ोस साफ नहीं होगा, अच्छे और सच्चे व ईमानदार विचार आना असंभव है। या यूं कहे गांधीजी बाहरी स्वच्छता के लिए आंतरिक स्वच्छता को आवश्यक मानते थे
सुरेश गांधी
मोहनदास करमचंद गांधी...एक बैरिस्टर
से महात्मा, बापू
और राष्ट्रपिता तक
का सफर करने
वाली वो शख्सियत
जिसने भारत भूमि
को ब्रिटिश शासन
से आजाद कराने
से पहले रूढ़ियों-बंटवारों और असमानता
वाले समाज को
एक कर दिया।
गांधी जयंती के
मौके पर बापू
को याद करने
का दिन है,
साथ ही उनके
विचारों को जीवन
में अमल करके
भी उन्हें श्रद्धांजलि
दी जा सकती
है। उनका मानना
था ‘जब भी
कोई निर्णय लो,
तो समाज के
अंतिम व्यक्ति का
भला कैसे हो
सकता है, ये
सोच कर निर्णय
करो।’ उनहोने हमेशा अहिंसा
के पथ पर
चलने के लिए
प्रेरित किया। लोग उन्हें
बापू कहते थे।
बापू ने अपने
एक पत्र में
कहा है- “वह
जो सचमुच में
भीतर से स्वच्छ
है अस्वच्छ बनकर
नहीं रह सकता।“
शारीरिक पवित्रता के
दो महत्वपूर्ण घटक
स्वच्छता व स्वावलंबन
हैं। स्वच्छता से
स्वास्थ्य व शक्ति
का गहरा संबंध
है। स्वावलंबन के
लिए श्रम की
महत्ता को अंगीकार
करना होगा। स्वच्छता
की धारणा शिक्षा
से पनपेगी और
ऐसी शिक्षा व्यवस्था
जो स्वावलंबन हेतु
गढ़ी जायेगी वह
निश्चित ही अस्पृश्यता
सहित सभी सामाजिक
विभाजन को समूल
नष्ट करेगी। एक
सुंदर, पवित्र, समरस और
बुराइयों से मुक्त
समाज के निर्माण
के लिए स्वच्छता
सबसे अहम् कड़ी
है। क्योंकि स्वच्छता
में रहने वाला
व्यक्ति कभी बीमार
नहीं होगा। और
जब वह बीमार
नहीं होगा, तो
बीमारी खर्च होने
वाला उसकी आमदनी
का एक बड़ा
हिस्सा बचेगा। इसलिए स्वच्छता
पर विशेष ध्यान
देने की जरुरत
है। शायद यही
वजह है कि
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
‘स्वस्छ इंडिया, फिट इंडिया‘ का नारा दे
दिया है। आज
जब देश बापू
की 150वीं जयंती
मना रहा है
तो मोदी ने
इस नारे को
घर घर तक
पहुंचाने का संकल्प
ले रखा है।
मोदी मानते है
कि मानव प्रगति
के लिए आंतरिक
और बाहरी स्वच्छता
जरुरी है। क्योंकि
स्वच्छता से ही
राष्ट्र विकास संभव है।
मोदी कहते है
“यदि कोई व्यक्ति
स्वच्छ नहीं है
तो वह स्वस्थ
नहीं रह सकता
है। और यदि
वह स्वस्थ नहीं
है तो स्वस्थ
मनोदशा के साथ
नहीं रह पाएगा।
स्वस्थ मनोदशा से ही
स्वस्थ चरित्र का विकास
होगा।
यह तभी
संभव है जब
हम दूसरों के
लिए गंदगी न
फैलाएं। खुद जो
गंदगी फैलाए उसकी
सफाई भी स्वयं
करें। इसमें ऊंच-नीच का
भेदभाव नहीं होना
चाहिए। स्वस्थ समाज की
परिकल्पना तभी पूर्ण
होगी जब हम
अपने घरों की
गंदगी जिस तरह
हटाते है उसी
तरह दुसरों की
भी सफाई पर
ध्यान देना होगा।
न कि अपनी
गंदगी हटाने के
चख्क्कर में दुसरे
के घर के
सामने गंदगी फेंक
दे। मतलब साफ
है हमारे आस-पास कोई
अजनबी अथवा बाहरी
लोग गंदगी फैलाने
नहीं आते हैं।
ये हम ही
हैं जो अपने
आस-पास रहते
हैं। स्वच्छता और
स्वास्थ्य टिकाऊ विकास के
लक्ष्य है। टिकाऊ
विकास में खुले
में शौच से
मुक्ति, हर व्यक्ति
को बुनियादी शौचालय
और सुरक्षित प्रबंधन
जरुरी है। क्योंकि
राष्ट्र की कृषि,
राष्ट्र की शिक्षा,
राष्ट्र की स्वच्छता,
राष्ट्र का स्वास्थ्य
और राष्ट्र का
विकास अलग-अलग
विषय नहीं है।
ये सभी मिलकर
ही देश को
आगे बढ़ाते है।
आज भारत में
बहने वाली नदियों
की दयनीय दशा
किसी से छिपी
नहीं है। नदियां
प्रदूषण का दंश
झेल रही हैं।
नदियों को प्रदूषित
करने में हमारा
ही योगदान है।
जबकि नदियां हमारे
देश की नाड़ियों
की तरह हैं।
यदि हम उन्हें
गंदा करना जारी
रखेंगे तो वो
दिन दूर नहीं
जब हमारी नदियां
जहरीली हो जाएंगी।
और अगर ऐसा
हुआ तो हमारी
सभ्यता नष्ट हो
जाएगी। गंदगी स ेउपजी
बढ़ते प्रदूषण के
कारण ही हम
पर्यावरणीय आपदा के
मुहाने पर खड़े
हैं। क्योंकि हमने
अपनी स्वच्छता की
तरफ ध्यान देना
बंद कर दिया
है। घर की
गंदगी नदियों में
बहा रहे है।
यह तभी रुकेगी
जब देश का
हर नागरिक हर
बच्चा स्वच्छता के
प्रति जागरुक होगा।
महात्मा गांधी की
150वीं जयंती पर केंद्र
की मोदी सरकार
सिंगल यूज प्लास्टिक
की छुट्टी करने
जा रही है।
इसके मद्देनजर देश
में इन दिनों
कई जागरूकता अभियान
भी चलाए जा
रहे हैं। इस
अभियान का उद्देश्य
लोगों को सिंगल
यूज प्लास्टिक का
प्रयोग न करने
व स्वच्छता के
प्रति जागरूक करना
है। क्योंकि प्लास्टिक
के प्रयोग से
जन मानस प्रभावित
होता है। इसके
प्रयोग से होने
वाले दुष्प्रभावों से
बचने के लिए
सभी को प्रत्यक्ष
व अप्रत्यक्ष रूप
से जिम्मेदारी निभानी
पड़ेगी। हरेक को
‘कपड़ा व जूट
बैग अपनाना होगा।
स्वास्थ्य को बिगाडने
वाले कृत्रिम और
रासायनिक उत्पादों के इस्तेमाल
से बचना होगा।
यह सब बापू
के विचार में
तब आया जब
इतनी गंदीगी नहीं
थी, लेकिन उन्हें
पता था आने
वाला कल गंदगी
से अटा पड़ा
होगा। जहां तक
गांधी के विचारों
से प्रेरणा का
सवाल है तो
उनसे हर कोई
बहुत कुछ सीख
सकता है। उनकी
कही हुई बातें
लोगों को सही
और सफल राहों
पर ले जाती
है। मौजूदा समय
में खास कर
छात्र छात्राएं व
नौजवान उनकी कही
बातों को अपनाकर
खुद एवं राष्ट्र
को नई दिशा
दे सकते है।
उनके स्वच्छ विचार
ही भारतीयों और
अंग्रेजों के बीच
मौजूद गलतफहमियों को
दूर करने में
महती भूमिका निभाई।
बापू का
मानना था जो
समय बचाते हैं,
वे धन बचाते
हैं और बचाया
हुआ धन, कमाए
हुए धन के
बराबर होता है।
अपनी गलती को
स्वीकारना झाड़ू लगाने
के सामान है
जो धरातल की
सतह को चमकदार
और साफ कर
देती है। वे
कहते थे अक्लमंद
काम करने से
पहले सोचता है
और मूर्ख काम
करने के बाद।
किसी भी काम
को या तो
प्रेम से करें
या उसे कभी
करें ही नहीं।
काम की अधिकता
ही नहीं, अनियमितता
भी आदमी को
मार डालती है।
भूल करने में
पाप तो है
ही, परन्तु उसे
छुपाने में उससे
भी बड़ा पाप
है। जब तक
गलती करने की
स्वतंत्रता ना हो
तब तक स्वतंत्रता
का कोई अर्थ
नहीं है। लम्बे-लम्बे भाषणों से
कहीं अधिक मूल्यवान
है इंच भर
कदम बढ़ाना। आप
प्रत्येक दिन अपने
भविष्य की तैयारी
करते हैं। पुस्तकों
का मूल्य रत्नों
से भी अधिक
है, क्योंकि पुस्तकें
अन्तःकरण को उज्ज्वल
करती हैं। यदि
मनुष्य सीखना चाहे, तो
उसकी हर भूल
उसे कुछ शिक्षा
दे सकती है।
जिंदगी का हर
दिन ऐसे जीना
चाहिए जैसे कि
यह तुम्हारे जीवन
का आखिरी दिन
होने वाला है।
किसी भी लक्ष्य
तक पहुंचने का
प्रयास गौरवशाली होता है
न कि उस
तक पहुंचना। कोई
भी तुम्हारी मर्जी
के बिना तुम्हें
चोट नहीं पहुंचा
सकता है। आपको
खुद में ऐसे
बदलाव करने चाहिए
जैसा आप दुनिया
के बारे में
सोचते हैं। बापू
के ये विचार
आज भी प्रासंगिक
है।
कहा जा
सकता है भले
ही महात्मा गांधी
आज हमारे बीच
न हों, लेकिन
वह सभी के
जहन में बसे
हैं। उनके विचार
और आदर्श आज
हम सबके बीच
हैं, हमें उनके
विचारों को अपने
जीवन में उतारने
की जरूरत है।
देश के बच्चे
से लेकर बड़ों
तक की जुबां
पर बापू का
नाम अमर है।
हम जब भी
आजादी की बात
करते हैं तो
गांधी जी का
जिक्र होना लाजमी
है। गांधी का
मानना था कि
साफ-सफाई ईश्वर
भक्ति के बराबर
है। इसलिए उन्होंने
लोगों को स्वच्छता
बनाये रखने संबंधी
शिक्षा दी थी
और देश को
एक उत्कृष्ट संदेश
दिया था। वे
चाहते थे कि
सभी नागरिक मिलकर
’स्वच्छ भारत’ के लिए
कार्य करें। महात्मा
गांधी के सपने
को पूरा करने
के लिए प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने
स्वच्छ भारत अभियान
शुरू किया और
इसके सफल कार्यान्वयन
के लिए भारत
के सभी नागरिकों
से इस अभियान
से जुड़ने की
अपील की है।
इस अभियान
का उद्देश्य पांच
वर्ष में स्वच्छ
भारत का लक्ष्य
प्राप्त करना है,
ताकि बापू की
150वीं जयंती को इस
लक्ष्य की प्राप्ति
के रूप में
मनाया जा सके।
स्वच्छ भारत अभियान
सफाई करने की
दिशा में प्रतिवर्ष
100 घंटे के श्रमदान
के लिए लोगों
को प्रेरित करता
है। जीवन के
अंतिम दौर में
वे शारीरिक अक्षमता
के साथ साथ
मानसिक पीड़ा भी
झेल रहे थे।
लेकिन ऐसी परिस्थितियों
के बावजूद उन्होंने
देश को दिशा
दी। अपने आदर्श
को नहीं बदला।
सार्वजनिक जीवन के
लिए भी उन्होंने
हमें ख़राब लोगों
के लिए ख़राब
होना नहीं सिखाया
बल्कि ख़राब लोगों
के प्रति ईमानदार
होना सिखाया। गांधीजी
के आदर्शों को
मानना काफ़ी मुश्किल
है, लेकिन इसलिए
तो वे आदर्श
हैं। गांधी को
मानने के लिए
हमें टोपी या
धोती पहनने की
ज़रूरत नहीं है
और ना ही
ब्रह्मचर्य को अपनाने
की ज़रूरत होगी।
लेकिन हमें किसी
से घृणा की
ज़रूरत नहीं है।
अगर हम घृणा
से भरे हों
और गांधीजी को
मानते हों तो
हमारे अंदर से
घृणा ग़ायब होने
लगेगी और शांति
महसूस करने लगेंगे।
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