रोशनी में डूबी धरती, आसमान में बिखरी सतरंगी छटा
खूब हुई आतिशबाजी, सजे-धजे बाजारों को सपरिवार निहारने पहुंचे लोग
घर-घर हुई समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी और विघ्नहर्ता श्रीगणेश की पूजा
कह दो अंधेरों से कहीं और घर बना लें...
गोधूलि बेला में बही की पूजा
झिलमिल सितारों सी जगमगाई काशी
दीपावली के दिन हुआ महालक्ष्मी का श्रृंगार
कोने-कोने में हुई रोशनी की बरसात
दीप व झालरों से सजे देवालय और घर
सुरेश
गांधी
वाराणसी।
अमावस की घुप्प
अंधेरी रात में
जब दीप से
दीप मिलने लगे
और एक बाती
से दुसरी बाती
ने रोशनी ली
तो चारों तरफ
उल्लास फैल गया।
दीपक की लड़ी
के बीच फुलझड़ी
चलने लगी। अनार
के रंग-बिरंगे
दाने रंग बिखेरने
लगे और आंगन
में चकरी घूमने
लगी। सर्र-सर्र...करते राॅकेट
आसमान का सीना
चीर रोशनी के
रंग बिखेरने लगे।
इससे अमावस की
काली रात, पूनम
सी रोशन हो
गई। चारों तरफ
शंख ध्वनि के
साथ घंटे-घड़ियाल
का नाद सुनाई
देने लगा। छत्र-चंवर के
साथ कमल पुष्प
पर धन धान्य
की देवी महालक्ष्मी
की अगवानी होने
लगी। खील-पताशे
के साथ पंच
मेवे का भोग
लगने लगा और
भाल पर तिलक
दमकने लगे।
सुहागनों ने थाल
भर दीपक संजाएं
और घर-आंगन
से लेकर देवालय
तक रोशन कर
दिए। सुख-शांति
आरोग्य के साथ
वैभव-एश्वर्य की
कामना हुई। ऐसा
लगा मानों शहर
में आकाश ध्वनि
हो रही हो,
‘कह दो अंधेरों
से कहीं और
घर बना लें,
मेेरे मुल्क में
रोशनी का शैलाब
आया है।‘ मानों चारों
तरफ रोशनी की
बरसात हो रही
है। पूरा शहर
चम-चम करते
दीपों व रंगीन
विद्युत झालरों से जगमगाता
रहा। रंगीन झालरों
की झिलमिलाहट दूर
से ही अलौकिक
छटा बिखेर रही
थी। लग रहा
था मानों बाबा
भोलेनाथ की नगरी
का श्रृंगार करने
के लिए स्वयं
सितारे जमीं पर
उतर आए हों।
कुछ इसी अंदाज
में धर्म एवं
आस्था की नगरी
काशी में रोशनी
का त्योहार दीवाली
धूमधाम से मनाया
जा रहा है।
रंगोली और मां
लक्ष्मी के चरणों
के प्रतीकों के
साथ दीपावली पर
घरों में मां
लक्ष्मी के आगमन
की उत्सुकता और
विघ्नहर्ता श्रीगणेश की कृपा
की लालसा लोगों
में साफ झलक
रही थी। धर
के अंदर और
बाहर दीयों की
लगी कतार में
जगमगाती रोशनी जहां धरती
को दीपोत्सव के
सतरंगी रोशनी से सराबोर
कर रही थी
तो दूसरी ओर
आसमान में बिखरी
आतिशबाजी के रंग
उल्लास और खुशी
की दास्ता बता
रहे थे। शाम
ढलते ही पूरा
देश रोशनी से
नहा उठी थी
तो बिजली की
झालर धरती को
प्रकाशित कर रही
थी। बच्चे, बूढ़े
और जवान सभी
आतिशबाजी के उल्लास
में खुद को
डूबोए हुए थे।
देर रात तक
आतिशबाजी के बीच
पूरा शहर से
लेकर देहात तक
दीपावली के रंग
में रंगा नजर
आया।
वैसे उत्सव
का उल्लास रविवार
को आसमान में
सूरज की लालिमा
बिखरते ही शुरु
हो गया था।
सड़के के किनारे
गेंदे के पीले
और चटक केसरिया
रंग बिखरे और
आम के पत्तों
की हरियाली बिखेर
गयी। पूजन की
सामाग्री और फूलों
का दुकानों ने
माहौल में सबसे
बड़े त्योहार की
गंध घोली। इस
बार पारंपरिक दीयों
के साथ ही
देशी डिजाइनर दीयों
की बाजार में
काफी धूम रही।
सामान्य मोमबत्तियों की जगह
सुगंधित मोमबत्तियों को लोगों
ने चाव से
खरीदा। चीन निर्मित
दीये बाजार में
कम ही दिखें,
जहां दिखा भी
तो लोगों ने
खरीदारी से परहेज
किया। बाजार में
दुकाने दुल्हन की तरह
सजी थीं। प्रमुख
इमारतों पर भी
रोशनी के खास
इंतजाम किए गए
हैं। सभी को
गोधूलि बेला का
इंतजार था। जैसे
ही सांझ हुई
पूरा शहर रोशनी
से जगमगा उठा।
सोलह श्रृंगार
कर महिलाओं ने
दीपक का पूजन
किया और फिर
घर के हर
कोने में उजियारा
पहुंचा। पहला दीपक
देवता के चरणों
में रखा गया
तो दुसरा रसोई
घर में। तीसरे
ने घर की
तिजोरी को रोशन
किया तो चैथे
ने बच्चों के
कमरों को। एक
दीपक स्टोर रुम
में पहुंचा तो
अनेक घर काने
लगे। छत से
ेलेकर तुलसी की
क्यारी तक में
दीप की रोशनी
समा गयीं। समृद्धि
की झलक और
खुशियों का माहौल
घर-घर में
देखने को मिला।
इसके बाद घरों
व प्रतिष्ठानों में
श्रीगणोश-श्रीलक्ष्मी का शुभ
मुहुर्त में पूजन
किया गया। घरों
में लोगों ने
खुद विधि विधान
से रस्म पूरे
किए तो प्रतिष्ठानों
में पुरोहितों से
विधिवत अनुष्ठान कराए गए।
दीप ज्योति प्रज्ज्वलन
का आरंभ लोगों
ने मंदिरों में
दीप अर्पित कर
किया। शहर से
लेकर गांव तक
भवनों की छतों
पर विद्युत झालरों
की सजावट की
गई थी। इससे
पूरे शहर में
हर जगह जगमगाहट
रही। रौनक देखने
के लिए देर
रात तक सड़कों
पर चहल-पहल
रही। लोग दीपावली
पर एक-दूसरे
को गिफ्ट व
मिठाइयों के पैकेट
भेंट कर शुभ
कामनाएं दे रहे
थे।
ग्रामीण अंचलों में
भी विशेष सजावट
देखने को मिला।
बच्चों में गजब
का उत्साह था
और इनके साथ
परिवार के लोग
नसीहत दे रहे
थे कि किस
तरह पटाखों से
बचना भी है।
घर में इस
दिन रंगोली का
विशेष महत्व होता
है। तकरीबन हर
घर में वंदनवार
रंगोली देखने को मिली।
इस दौरान सुबह
से देर रातक
तक लोगों ने
पड़ोसियों, रिश्तेदारों और दोस्तों
को दिवाली की
बधाइयां फेसबुक, ट्वीटर, वाट्सप
पर दी। दीपावली
पर्व मां लक्ष्मी
की उत्पत्ति की
मान्यता से भी
जुड़ा हुआ है।
मान्यता है कि
इस दिन लक्ष्मी-गणेश पूजन
से घर में
समृद्धि और खुशहाली
आती है। दिवाली
का यह पांच
दिवसीय पर्व क्षीर
सागर के मंथन
से पैदा हुई
लक्ष्मी के जन्म
दिवस से शुरू
होता है। माना
जाता है कि
दीपावली की रात
ही मां लक्ष्मी
ने भगवान विष्णु
को अपने पति
के रूप में
चुना था और
उनसे विवाह रचाया
था। इस दिन
लक्ष्मी के साथ
ही विघ्नहर्ता गणेश,
संगीत और ज्ञान
की देवी सरस्वती
और धन के
देवता कुबेर की
पूजा का भी
विधान है। कुछ
लोग दीपावली को
भगवान विष्णु के
वैकुण्ठ लौटने के दिन
के रूप में
मनाते हैं। मान्यता
है कि इस
दिन जो लोग
लक्ष्मी पूजन करते
हैं मां लक्ष्मी
उनसे प्रसन्न रहती
हैं और वे
पूरे वर्षभर खुशहाल
रहते हैं।
दीपावली पर भी बाजार में धनवर्षा
रविवार को भी
बाजार की रौनक
देखने लायक रही।
शोरूम व दुकानों
में लोगों ने
जमकर खरीदारी की।
पटाखे, मिठाइयां, माला, उपहार
आदि की दुकानों
पर ग्राहकों ने
जमकर चहलकदमी की।
ऐसे में बाजार
ने दीपावली के
दिन कारोबार में
काफी इजाफा हुआ,
दुकानदारों ने खूब
रुपये गिने। आटोमोबाइल्स,
सराफा, इलेक्ट्रानिक सामान, कपड़े, डिजाइनर
व परंपरागत दीपक,
ड्राई फ्रूट, लाई,
लावा, चूड़ा व
रेवड़ी के साथ-साथ चीनी
के खिलौने व
गट्टे आदि सामान
के साथ ही
गहने के बाजार
में भी ग्राहकों
की भीड़ रही।
दीपावली के दिन
कारोबार लगभग 250 करोड़ का
आंकड़ा पार कर
गया।
फूल-माला व झालरों व मिट्टी के दीयों की खूब हुई खरीदारी
दीवाली पर अपने
प्रतिष्ठानों व दुकानों
की सजावट के
लिए लोग सुबह
से ही माला
मंडियों में पहुंचे।
यहां पर सबसे
ज्यादा गेंदे के माला
की डिमांड रही।
एक अनुमान के
मुताबिक माला फूल
की लगभग ढेढ़
करोड़ की बिक्री
हुई है। इसमें
गेंदा और बेला
का फूल सबसे
ज्यादा बिका। विद्युत झालरों
की दुकानों पर
भी सुबह से
ही लोगों की
भीड़ रही। किसी
को नीले रंग
तो किसी को
मल्टी कलर का
झालर लेना था।
कुछ ऐसे झालर
भी थे जो
फूलों की डिजाइन
में थे और
सभी को खूब
आकर्षित कर रहे
थे।
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