सुरेश गांधी
यूं तो समाजसेवा के
हजारों किस्से हैं। लेकिन कुछ लोग समाजसेवा को ही अपने
जीवन का मुख्य लक्ष्य
बना लेते हैं। गरीबों और जरूरतमंदों की
सेवा को अपनी दिनचर्या
में शुमार कर उनके प्रति
निःस्वार्थ भाव से सेवारत रहते
हैं। सिर्फ सेवा ही नहीं बल्कि
उनकी सेवा के लिए अपना
सबकुछ छोड़ भी देते हैं।
चाहे कितनी मुश्किलें आएं, वो अपनी गतिविधियों
से पीछे नहीं हटते। ऐसी ही एक शख्सियत
हैं वाराणसी के सिगरा स्थित
गांधीनगर कालोनी निवासी अजीत सिंह बग्गा। बग्गा काशी के उन चर्चित
शख्सियतों में शुमार है, जिनकी पूरी जिंदगी दुसरों की सेवा में
ही बीत रही हैं। इसमें कोई शक नहीं कि
उनकी पहचान सामाजिक कार्यों से है। वह
चाहे गरीब घरों की बच्चियों को
मुफ्त शिक्षा मुहैया कराने की बात हो
या व्यापारियों को स्वावलंबी बनाने
की दिशा में किए जा रहे कार्य
हो या उनके उत्पीड़न
से लेकर माफियाओं की वसूली से
बचाना हो या गायों
की सेवा हो या बंदरों
को फल खिलाकर उनका
पेट भरने का प्रयास। पक्षियों
के ठहरने के लिए घोसलों
की व्यवस्था हो या फिर
उनके खाने-पीने का इंतजाम। वह
सामाजिक सरोकार की हर उस
डगर की साक्षी हैं,
जिस पर चलकर गरीबों,
पीड़ितों, शोषितों, मजलूमों का दुख-दर्द
साझा किया जा सकता हो।
मतलब साफ है सामाजिक कार्यों
में बढ़-चढ़कर भागीदारी
निभाने वाले श्री बग्गा ने समाज सेवा
के क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान
स्थापित कर ली है।
समाजसेवा का जुनून उनके
सिर चढ़कर बोलता है। बग्गा वैसे तो पीड़ित मानवता
की सेवा में सदैव समर्पित रहते हैं, लेकिन खासतौर पर विगत तकरीबन
डेढ़ वर्षो से कोरोना संक्रमण
काल के दौरान उन्होंने
मानव सेवा की जो अद्भुत
मिसाल पेश की है, वह
अनुकरणीय ही नहीं, बल्कि
प्रेरणास्रोत भी बन गई
है। कोरोनाकाल में बग्गा ने कोविड हॉस्पिटल
में भर्ती मरीजों को पौष्टिक नाश्ता
एवं भोजन मुहैया कराने का संकल्प लिया,
जिसे अमलीजामा पहनाने के लिए वह
प्रातः ही उठ जाया
करते और स्वयं नाश्ता
तैयार करने के साथ ही
उसकी पैकिंग करके हॉस्पिटल में पहुंचाने तक, जहां उसे कोविड मरीजों को वितरित किया
जाता रहा। खासकर निचले तबके के झोपड़पट्टियों में
खुद जरुरतमंदों तक पहुंचकर भोजन
से लेकर बच्चों के टॉफी-बिस्कुट
खुद बांटते थे। एक अनुमान के
मुताबिक उन्होंने 25 लाख से भी अधिक
राशि के भोजन-कंबल
सहित अन्य जरुरी सामाग्रियों को जरुरतमंदों में
वितरीत किया।
यही कारण है कि उनका
समाजसेवा से राजनीति तक
का सफर विनम्रता और जनकलण का
एक बेहतरीन उदाहरण है। समाजसेवा के साथ-साथ
वह राजनीति में भी सक्रिय हैं।
यह अलग बात है कि भारी-भरकम तामझाम व दिखावे के
मायाजाल से दूर रहने
के नाते राजनीतिक पार्टियों ने उनकी पहचान
व सोहरत के मुताबिक सेवा
लेने की जरुरत नहीं
समझी और जब मौका
मिला भी तो उनके
विरोधी उन्हें यह कहकर बरगलाने
में सफल रहे कि वे चुनाव
नहीं जीत सकते। जबकि उनके जुझारुपन को देखते हुए
एक-दो नहीं बल्कि
40 साल से लगातार विभिन्न
व्यापारी संगठनों के अध्यक्ष चुने
जाते रहे। बता दें, 25 जून 1960 को बग्गा का
एक साधारण परिवार में जन्म हुआ। उनकी शिक्षा-दिक्षा वाराणसी में ही हुई। 1980 में
बीएचयू से ग्रेजुएशन की
और पढाईकाल से ही समाजसेवा
की भावना जागृत हो गयी। महामना
की बगिया में उूर-दराज से आकर पढ़ने
वाले हर उन छात्रों
की मदद के लिए आगे
बढ़ जाते, जिनकी सीनियर छात्रों द्वारा उत्पीड़न किया जाता। खासकर उनका हौसला उस वक्त देखने
को मिला जब 1984 के दंगे में
उनके पूरे परिवार को बंधक बना
लिया गया, लेकिन उन्होंने साहस का परिचय देते
हुए अशोक अग्रवाल की मदद से
लाठी-डंडे व पेट्रोल से
आग लगाते उपद्रवियों से बचते हुए
अपने पूरिवार को सुरक्षित किया।
हर तीसरे दिन होती है डायलिसिस
एक मुलाकात के
दौरान बग्गा ने बताया कि
साल 2015 में उन्हें हार्ट अटैक आया। इस दौरान चिकित्सकों
की सलाह पर उन्हें बाइपास
सर्जरी करानी पड़ी। कुछ दिनों बाद तबियत बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली
के मेदांता हास्पिटल में भर्ती होना पड़ा। उस वक्त दोनों
हाथ पैर काम करना बंद कर चुके थे।
जांच में पता चला कि उनकी दोनों
किडनी फेल है। स्वास्थ्य इतना खराब हो गया कि
जानने वालों में बेचैनी बढ़ गयी, परिवार
निरास होने लगा, पूरे शहर में अफवाह फैल गयी, बग्गा अब नहीं बचेंगे,
लेकिन मैने हिम्मत नहीं हारी और दो सप्ताह
के भीतर बाबा विश्वनाथ व वाहे गुरु
की मदद से सब ठीक
हो गया और लोगों के
बीच में हूं। हालांकि उन्हें हर तीसरे दिन
डायलिसिस करानी पड़ती है। इसी बीच उन्हें पता चला कि तेलियाबाग के
एक व्यापारी को पुलिस 302 के
आरोप में जेल भेज दिया है। मैं तुरंत बनारस आ गया और
बेगुनाह व्यापारी को जेल से
बाइज्जत रिहा कराया। एक पुरानी घटना
जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 2002 से 2015 तक आएं दिन
माफियाओं की फिरौती के
चलते व्यापारियों की हत्याएं व
लूटपाट की घटनाएं होती
थी। व्यापारी डरे-डरे से रहते थे।
लेकिन उस दौर में
भी माफियाओं की परवाह किए
बगैर उनके खिलाफ अभियान चलाएं रखा। इसके लिए कभी-कभी अधिकारियों के सामने धरना-प्रदर्शन के साथ-साथ
छीना-झपटी भी हो जाती
थी। लेकिन मांग पूरी होने तक उटा रहता
था।
लॉकडाउन में गरीबों और जरूरतमंदों की खूब की मदद
कोरोनाकाल में मरीजों को फल, दलिया
हलुआ, केला, दलिया-दूध, हल्दी-दूध, पनीर, बादाम, उपमा फल, बिस्कुट आदि वितरित किया गया। हर दिन नाश्ता
बदलकर दिया जाता रहा। साथ ही पौष्टिकता का
भी विशेष ध्यान रखा जाता था। उनका कहना है मानव एवं
पशु सेवा ही माधव सेवा
है। सेवा परमो धरमः को मानते हुए
उनका अनवरत सेवा कार्य जारी है। उनका कहना है कि इस
संकटकाल में एक-दूसरे का
सहारा बनने का वक्त था।
हमको कोरोना से दूरी बनाना
था, समाज से नहीं। हमको
हाथ नहीं मिलाना था, पर हाथ छोड़ना
भी नहीं था। यही वजह रहा कि उन्होंने सिर्फ
मरीजों को ही नहीं
बल्कि घाट के नाविकों से
लेकर संगीतकारों में भी समाजसेवा करते
रहे। उन्हें खुशी है कि वह
बुरा वक्त भी गुजर गया।
बग्गा ने बताया कि
वैश्विक महामारी कोरोना से बचाव के
मद्देनजर लागू लॉकडाउन के दौरान गरीबों
और जरूरतमंदों को, खासकर स्लम एरिया के लोगों को
भोजन की परेशानियों को
देखते हुए उनके बीच जाकर निरंतर उन्हें खाद्य सामग्री मुहैया कराया। कोरोना की दूसरी लहर
के दौरान लोगों को हो रही
अस्पतालों में बेड की कमी, ऑक्सीजन
सिलेंडर की कमी, दवाओं
का अभाव को दूर करने
की हरसंभव कोशिश की। कोरोना से मृत लोगों
के अंतिम संस्कार के लिए भी
आवश्यक सामग्री जुटाने में वह सहयोग करते
रहे। बग्गा कहते हैं कि पीड़ित व्यक्तियों
की सेवा करने से उन्हें सुखद
अनुभूति होती है। इससे मानव जीवन की सार्थकता भी
साबित होती है। उनका मानना है कि अपनी
व्यक्तिगत, पारिवारिक जिम्मेदारियों को संभालते हुए
सामाजिक कार्यों के प्रति भी
समय निकालकर लोगों को सहभागिता निभानी
चाहिए। विशेष रूप से गरीबों और
जरूरतमंदों की मदद करने
से ईश्वर भी खुश होते
हैं। उनका कहना है कि अगर
समाजसेवा का जज्बा दिल
में हो तो किसी
भी तरह इंसान सेवा कर सकता है।
समाजसेवा से केवल खुद
को सुकून मिलता है, बल्कि जरूरतमंद लोगों की सहायता भी
की जा सकती है।
वह बचपन से ही समाजसेवा
करना चाहते थे, उनको सेवा करने का जुनून था।
अंत में बग्गा यह गाना गुनगुनाते
हुए अपनी बात समाप्त करते हैं “गरीबों की सुनो, वो
तुम्हारी सुनेगा, तुम एक पैसा दोगे,
वो दस लाख देगा”। व्यापारी अमृत
लाल कहते है लॉकडाउन के
दौरान उन्होंने मानव सेवा की मिसाल तो
पेश की ही, इसके
अलावा उन्होंने सड़कों पर लावारिस विचरण
करते बेजुबान जानवरों के लिए भी
निवाले की व्यवस्था कर
पशु प्रेमी होने का परिचय दिया।
समाजसेवा को ही उन्होंने
अपना ओढ़ना-बिछौना बना लिया है।
व्यापारियों की हर समस्या के लिए करेंगे संघर्ष
बग्गा ने कहा कि
व्यापारियों की हर समस्या
के समाधान के निदान के
लिए संघर्ष किया जाएगा। चाहे वाणिज्यकर विभाग की सचल दल
हो या अन्य इकाइयां
व्यापारियों का उत्पीड़न बर्दाश्त
नहीं किया जायेगा। अधिकारियों
को मनमानी नहीं करने दी जायेगी। व्यापारी
समाज ही 80 प्रतिशत लोगों को नौकरी देता
है। युवा व्यापारियों को जोड़कर व्यापारियों
की समस्याओं पर मौके पर
तत्परता से पहुंचने के
लिए एक टास्क फोर्स
बनाई जाएगी। उनका संघ व्यापारियों की समस्याओं को
लेकर निरंतर संघर्ष कर रहा है
और करता रहेगा। किसी भी दशा में
व्यापारियों का अधिकारियों के
द्वारा उत्पीड़न नही होने दिया जाएगा। साथ ही साथ सरकार
से मांग है कि व्यापारियों
को 10 लाख रुपये को बीमा दिया
जाए और अधिकारियों के
भांति ही व्यापारियों को
60 से 65 वर्ष की अवस्था में
कर्मचारियों की भांति पेंशन
दिया जाए ताकि बुजुर्ग व्यापारी अपना जीवन यापन आराम से कर सकें।
व्यापारियों के साथ किसी
भी तरह का जुल्म व
अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। व्यापारियों के हितों की
रक्षा लिए संघर्ष अनवरत जारी रहेगा। संगठन शक्ति का प्रतीक है।
संगठित रहकर व्यापारी अपनी समस्याओं का समाधान आसानी
से कर सकेगा।
एक महान शख्सियत का सही आंकलन करने के लिए सुरेश गांधी जी को बहुत बहुत धन्यवाद।
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