शिव की नगरी को गंगा पुत्र की सौगात है बाबा विश्वनाथ धाम
तीनों
लोकों
में
न्यारी
काशी
अपना
कलेवर
बदल
रही
है।
काशी
के
धार्मिक
और
ऐतिहासिक
संदर्भों
का
जीवंत
दस्तावेज
लिखने
जा
रहा
काशी
विश्वनाथ
धाम,
जो
भारत
ही
नहीं
पूरी
दुनिया
के
लिए
अद्भुत,
अविश्वसनीय,
अकल्पनीय
और
अनोखा
होगा।
किसी
ने
कभी
सोचा
भी
नहीं
था
इन
7 सालों
में
352 साल
बाद
12 ज्योर्तिलिंगों
में
शुमार
सोमनाथ
व
रामेश्वर
की
तर्ज
पर
बाबा
विश्वनाथ
भी
नए
रुप
में
देश-दुनिया
के
लिए
आकर्षण
के
केन्द्र
में
होंगे।
यह
अलग
बात
है
कि
जब
काशी
की
धरती
पर
साल
2014 में
पीएम
मोदी
ने
कहा
था,
मुझे
बीजेपी
ने
वाराणसी
नहीं
भेजा
है,
ना
ही
मैं
खुद
आया
हूं.
मुझें
’गंगा
मां’
ने
बुलाया
है,
तो
लोग
इसके
अलग-अलग
मायने
निकाल
रहे
थे।
लेकिन
आज
जब
बाबा
विश्वनाथ
व
मां
गंगा
का
मिलन
हो
जा
रहा
है
लोग
बरबस
ही
कह
रहे
है
गंगा
पुत्र
की
सौगात
है
बाबा
विश्वनाथ
धाम
सुरेश गांधी
हो जो भी,
सच तो यही है
बाबा भोलेनाथ की जटाओं से
निकलकर सदियों से लोगों को
तारती आ रही मां
गंगा मोदी जैसा पुत्र पाकर निहाल हो उठी है।
भला हो भी क्यों
ना, उनके पुत्र ने उन्हें जो
आमने-सामने ला दिया है।
अब गंगा तट से बाबा
विश्वनाथ की दुरियां खत्म
हो गयी है। अब दरबार अब
एकाकार हो चुका है।
अब काशी अधिपति शिव और मां पूर्णा
उत्तरवाहिनी गंगा से सीधे जुड़
जाएंगे। धाम क्षेत्र से मां गंगा
नजर आने लगीं हैं। मां गंगा पुत्र ने अपना वादा
पूरा किया है और 13 दिसम्बर
को खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बाबा विश्वनाथ धाम का लोकार्पण करेंगे।
खास यह है कि
काशी विश्वनाथ धाम में 27 मंदिरों को विग्रह सहित
स्थापित किया गया है। इससे पहले राजराजेश्वर का भव्य दरबार
सतरंगी रोशनी से सराबोर हो
चुका है। दिन के वक्त इस
धाम की आभा तो
अद्भुत दिखती ही है, लेकिन
रात में ऐसा लगता है जैसे आसमान
से तारे जमीन पर उतर आए
हों। कहीं नीली, कहीं सुनहरी तो कहीं सतरंगी
रोशनी बिखेरती एलईडी लाइट मंदिर परिसर की भव्यता को
चार चांद लगा रही है। जायसवाल क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष
मनोज जायसवाल व समाजसेवी अजीत
सिंह बग्गा कहते है कभी सोचा
भी नहीं था इन सात
सालों में इतना कुछ हो सकता है।
अपने आप को गंगा
पुत्र कहनाने वाला काशी का कायापलट कर
सकता है। लेकिन अपनी आंखों के सामने सब
कुछ होते देखा। आधुनिकता के इस दौर
में पुर्ननिर्माण के लिए एक
अरसे से छटपटाती मां
गंगा को बाबा विश्वनाथ
धाम से जुड़ते देख
रहा हूं, जो अकल्पनीय है।
इतिहास के उतार-चढ़ाव
और सृजन के साक्षी रहे
भगवान शिव के इस अधिष्ठान
का यह कायाकल्प तकरीबन
352 वर्षो बाद साकार हो रहा। या
यूं कहे काशी विश्वनाथ कॉरिडोर अपने आततायी अतीत को सुधारने का
संकल्प है। इतने सालों बाद एक बार फिर
बाबा विश्वनाथ धाम को भव्य स्वरूप
देने के लिए मां
गंगा पुत्र पीएम मोदी बधाई के पात्र है।
जी हां, द्वादश
ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा
काशी विश्वनाथ मंदिर के के टूटने
का उल्लेख 1034 में मिलता है। 11वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने इस मंदिर
का जीर्णोद्धार करवाया। 1194 में मोहम्मद गोरी ने इसे लूटने
के बाद तोड़ा। स्थानीय लोगों ने इसे फिर
बनवाया। 1447 में जौनपुर के सुल्तान ने
इसे फिर से तोड़ा। अकबर
की सर्वसमावेशी नीति के चलते टोडरमल
ने 1585 में फिर इसका जीर्णोद्धार करवाया। औरंगजेब के फरमान के
बाद एक बार फिर
1669 में मुगल सेना ने विश्वनाथ मंदिर
न सिर्फ ध्वस्त कर दिया था,
बल्कि परिसर में ही ज्ञानवापी मस्जिद
बना दिया। 352 साल पहले इंदौर की महारानी अहिल्याबाई
होल्कर ने 1777 से 80 के बीच मंदिर
का पुर्ननिर्माण करायी थी। लेकिन उसके पुराने स्वरुप, वैभव व गौरव को
नहीं लौटा पाई। इसके बाद 1836 में महाराजा रणजीत सिंह ने विश्वनाथ मंदिर
के शिखर को स्वर्ण मंडित
कराया, लेकिन तब से लेकर
अब तक सदियां बीत
गईं, खास तौर से उस दौर
जब हर तीर्थस्थल जैसे
उज्जैन का महाकालेश्वर, कोलकाता
का महाकाली मंदिर, तिरुपति बालाजी, सोमनाथ से लेकर रामेश्वरम्
तक के सभी मंदिर
अपने नए रुप में
आ चुके है। लेकिन बाबा विश्वनाथ धाम वहीं पुराने तंग गलियों में मंदिर का ढ़ाचा जस
की तस रहा। भारत
ही नहीं दुनिया भर से आने
वाले श्रद्धालुओं को दर्शन-पूजन
के लिए काफी झंझावतों का सामना करना
पड़ता था। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उस
वक्त महसूस किया जब वे वाराणसी
से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वर्ष
2014 में मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए आए
थे। वीआईपी प्रबंधों के कारण उन्हें
तो कोई दिक्कत नहीं हुआ, लेकिन वे आम श्रद्धालुओं
की पीड़ा को समझ चुके
थे कि आम दिनों
में सामान्य श्रद्धालुओं को मंदिर परिसर
तक पहुंचने और दर्शन पूजन
करने में कितनी परेशानियों का सामना करना
होता होगा। यह संयोग है
कि 118 वर्ष पूर्व दक्षिण अफ्रीका से आए एक
अनजान गुजराती बैरिस्टर महात्मा गांधी फरवरी 1916 में बीएचयू के स्थापना सम्मेलन
समारोह में आएं। इस दौरान वे
काशी विश्वनाथ मंदिर गए। मंदिर में दर्शन पूजन करने में ऐसी ही दिक्कत पेश
आई थी। तब उन्होंने कहा
था मंदिर में गंदगी व दुर्व्यस्था और
पांडवों के लालची आचरण
के बीच आध्यात्मिक अनुभूति और आत्मिक शांति
महसूस नहीं की जा सकती।
लेकिन धन्य है प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी, जिन्होंने अपने ही कार्यकाल में
कॉरीडोर का शिलान्यास कर
परिसर के प्राचीन मंदिर
जो चुरा कर घरों में
कैद कर लिए गए
थे, उन्हें मुक्त कराया। अब मंदिर के
इस भव्य रुप का लोकापर्ण करेंगे।
लेकिन इसकी भव्यता का अंदाजा इसी
से लगाया जा सकता है
कि काशी विश्वनाथ मंदिर का जो परिसर
5 हजार वर्गफीट में भी नहीं था,
अब उसका दायरा विश्वनाथ धाम या काशी विश्वनाथ
कॉरिडोर के नाम से
काशी विश्वनाथ विस्तारीकरण और सुंदरीकरण परियोजना
के तहत बढ़कर 5 लाख 27 हजार 730 वर्ग फीट तक बढ़ गया
है। इसमें श्रद्धालुओं की सुविधा के
लिए एक-दो नहीं
कई इमारतें हैं। 27 मंदिरों की मणिमाला भी
बनकर तैयार है। खास यह है कि
लोकापर्ण के बाद 14 दिसंबरसे
13 जनवरी 2022 तक पूरे एक
महीने ’चलो काशी’ के नाम से
महोत्सव भी वाराणसी में
मनाया जाएगा। लोकापर्ण कार्यक्रम को इतना भव्य
स्वरुप प्रदान किया जा रहा है
कि उस दिन देव
दीपावली की नजारा काशी
में दिखेगा। मतलब साफ है राष्ट्रीयता का
प्रतीक बनेगा बाबा विश्वनाथ धाम। धाम में रानी अहिल्याबाई, भारत माता, कार्तिकेय, आदि शंकराचार्य की मूर्तियां भी
होंगी स्थापित होंगी। गंगा और बाबा विश्वनाथ
के मध्य राष्ट्रीयता का प्रतीक भी
दिखाई देगा। जो दुनिया में
काशी को नई पहचान
देगा। विश्वनाथ धाम के विकास, विस्तारीकरण
व सौंदर्यीकरण से दर्शन सुगम
और सरल होंगे। मंदिर परिसर पूरी तरह से पत्थर से
बना है, बिना किसी स्टील या कंक्रीट के,
ताकि यह मंदिर के
रूप में लंबे समय तक चल सके।
यह पूरी तरह से मिर्जापुर के
चुनार पत्थर में बनाया गया है। बाहरी कोर्ट, मंदिर चौक, आधुनिक है, फिर भी मंदिर की
वास्तुकला के साथ मिश्रण
करने के लिए पारंपरिक
आर्च के आकार के
तोरणों का उपयोग करता
है। मंदिर चौक का प्रवेश द्वार
रामनगर किले के गंगामुखी द्वार
के शिल्प से प्रेरित है।
राष्ट्रीयता की प्रतीक बनेगा बाबा विश्वनाथ धाम
तीनों लोको में न्यारी शिव के त्रिशुल पर
बसी हजारों वर्ष पुरानी काशी को देश की
धार्मिक राजधानी कहा जाता है। देश-दुनिया से लाखों-करोड़ों
दर्शन-पूजन के लिए आते
है। लेकिन अब उनके परेशानियों
से इतर काशी में बाबा विश्वनाथ व मां गंगा
एक बार फिर से एकाकार हो
रही है। बाबा के दरबार और
अविरल निर्मल गंगा के मध्य राष्ट्रीयता
की प्रतीक भारत माता की मूर्ति भी
दिखेगी। यही नहीं 1669 में बाबा के दरबार का
पुनरोद्धार करने वाली रानी अहिल्याबाई की मूर्ति भी
विश्वनाथ धाम में स्थापित होगी। 2014 के चुनाव में
मोदी ने कहा था
मुझे मां गंगा ने बुलाया है।
तब ये कोई नहीं
सोंच पाया था कि काशी
में बाबा विश्वनाथ व गंगा का
एकाकार हो जाएगा। प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ की दूरदृष्टि से
बाबा दरबार से गंगधार तक
कॉरिडोर के जरिए मंदिर
के पुरातन स्वरूप को साकार किया
गया है। इस भव्यता व
दिव्यता का साक्षी पूरा
विश्व बनेगा। इतना ही नहीं उत्सव
में देश भर के 27 हजार
शिवालय भी शामिल होंगे,
जहां धाम लोकार्पण के दौरान ही
पूजन-अर्चन किया जाएगा।
काशी में बही भक्ति की बयार
श्रीकाशी विश्वनाथ धाम लोकार्पण से पहले ही
काशी में भक्ति की बयार बह
चली है। हर कोई महादेव...,
महादेव... का उद्घोष कर
एक-दूसरे का अभिनंदन कर
रहा है। अनुभव होने लगा है कि 13 दिसंबर
को भव्य काशी व दिव्य काशी
साक्षात आंखों में होगी। इसमें सभी ज्योर्तिलिंग मंदिर भी शामिल किए
गए हैं जहां पर विशेष पूजा-अनुष्ठान आयोजित किया गया है। इतना ही नहीं देश
भर के 15,444 मंडलों में 51 हजार स्थानों पर समारोह का
सजीव प्रसारण किया जाएगा। यू समझें कि
13 दिसंबर को 135 करोड़ लोगों का मन-मस्तिष्क
एक साथ श्रीकाशी विश्वनाथ धाम से जुड़ जाएगा।
अध्यात्म के सर्वोच्च पर
जहां काशी के अवमुक्त क्षेत्र
में बसे बाबा विश्वनाथ होंगे तो आकर्षण के
शीर्ष पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी रहेंगे। लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि
बनेंगे। सभी पूजा-अनुष्ठान पीएम मोदी के हाथों से
ही पूरा होगा। भारत के लोगों के
लिए भी यह बहुत
बड़ा अवसर है, जब काशी की
महिमा व महत्ता और
समृद्ध होने जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत की
महान पुरातन संस्कृति को दुनिया भर
में पुनः प्रतिष्ठित किया है। दिव्य काशी-भव्य काशी के सपने को
साकार कर रहे हैं।
‘शिव दीपावली’ जलेंगे 11 लाख दीए
सच में काशी
का ऐसा नजारा कभी नहीं देखे होंगे जो भव्यता 13 दिसंबर
को दुनिया के सामने आने
वाली है। यूं समझें कि प्राचीन काशी
में पहली बार ‘शिव दीपावली’ मनाई जाएगी। यह देव दीपावली
व दीपावली का संगम पर्व
होगा। देवालयों से लेकर आवास
तक सजेंगे। गंगा के दोनों किनारे
11 लाख दीपों से जगमग होंगे।
उत्सव का उत्साह यहीं
नहीं थमेगा, घाटों पर आतिशबाजी की
जाएगी ताकि आकाश भी चमक जाए।
थल व आकाश के
बाद गंगा जल को भी
प्रकाशमय किया जाएगा। गुनगुनाती शांत लहरों पर तैरती नावें
भी सजी-धजी होंगी, जिनकी रफ्तार से जलतरंग की
धुन सुनाई देगी। जिले के पांच लाख
घरों पर जब दीप
जलेंगे तो रात को
भी काशी दिन की तरह प्रकाशित
दृष्टिगोचर होगी। नगर की मुख्य सड़कें
ही नहीं बल्कि गलियां भी झालरों की
ज्योति से प्रकाशित होंगी।
ऐतिहासिक धरोहरें, बड़ी-बड़ी इमारतें, सरकारी भवन, पानी की टंकियां, पटरियों
पर लगे पेड़-पौधे, चौराहे, गंगा के साथ ही
वरुणा व असि पर
बने पुल, फ्लाइओवर, आरओबी, रेलवे व रोडवेज स्टेशन
सभी प्रकाशित रहेंगे।
होगी प्रतियोगिता, मिलेगा पुरस्कार
13 दिसंबर को आयोजित शिव
दीपावली में विभिन्न प्रतियोगिताएं होंगी। इसमें भवनों की आकर्षक सज्जा
के लिए भी प्रतियोगिता कराई
जाएगी। इसमें सरकारी भवन, व्यवसायिक भवन, निजी भवन सभी को शामिल किया
गया है। उत्कृष्ट सजावट के लिए शीर्ष
तीन भवनों का चयन किया
जाएगा। प्रथम स्थान पर आए भवन
स्वामी को 51 हजार, द्वितीय स्थान को 21 हजार व तृतीय स्थान
पर 11 हजार रुपये की धनराशि पुरस्कार
के तौर पर दी जाएगी।
साथ ही प्रमाण-पत्र
भी दिया जाएगा। यह प्रतियोगिता शहर
के 90 वार्डों के बीच भी
होगी।
भव्य होगा मां सरस्वती का मंदिर
सरस्वती फाटक पर स्थित मां
सरस्वती का मंदिर धाम
क्षेत्र में अपने भव्य स्वरूप में स्थापित होगा। इसके लिए दो करोड़ रुपये
का बजट पास किया गया है। पहले मां सरस्वती की प्रतिमा सरस्वती
फाटक पर एक दीवाल
में स्थापित थीं लेकिन आने वाले समय में श्रद्धालुओं को बाबा के
धाम में मां सरस्वती के दर्शन भव्य
मंदिर में होंगे।
पहले चरण के मंदिर
अन्नपूर्णा जी, पार्वती जी, अवमुक्तेश्वर महादेव, सत्यनारायण जी, लक्ष्मी जी, गणेश जी, सन्मुख विनायक, दुर्मुख विनायक, प्रमोद विनायक, भारत माता मंदिर, सरस्वती जी, हनुमान जी, नीलकंठ महादेव, अमृतेश्वर महादेव, चंडी चंडेश्वर महादेव, त्रिसंध्य विनायक, स्वर्गद्वारेश्वर महादेव, मोक्षद्वारेश्वर, बद्रीनारायण, दत्तात्रेय, राधाकृष्ण, अक्षयवट हनुमान, मणिकेश्वर विनायक, तुलसीदास हनुमान, अपरेश्वर महादेव, अविमुक्तेश्वर महादेव, हनुमान जी, अन्नपूर्णा जी (कनाडा)।
ज्ञानवापी कूप धाम में शामिल
औरंगजेब के फरमान के
बाद 1669 में मुगल सेना ने विशेश्वर का
मंदिर ध्वस्त कर दिया था।
स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को कोई क्षति
न हो इसके लिए
मंदिर के महंत शिवलिंग
को लेकर ज्ञानवापी कुंड में कूद गए थे। हमले
के दौरान मुगल सेना मंदिर के बाहर स्थापित
विशाल नंदी की प्रतिमा को
तोड़ने का प्रयास किया
था लेकिन सेना के तमाम प्रयासों
के बाद भी वे नंदी
की प्रतिमा को नहीं तोड़
सके। तब से आज
तक विश्वनाथ मंदिर परिसर से दूर रहे
ज्ञानवापी कूप और विशाल नंदी
को एक बार फिर
विश्वनाथ मंदिर परिसर में शामिल कर लिया गया
है। यह संभव हुआ
है विश्वनाथ धाम के निर्माण के
बाद। 352 साल पहले अलग हुआ यह ज्ञानवापी कूप
एक बार फिर विश्वनाथ धाम परिसर में आ गया है।
दीवारें बताएंगी मंदिर और काशी का पौराणिकताएं
विश्वनाथ धाम में दीवारों पर न सिर्फ
काशी विश्वनाथ धाम बल्कि काशी के इतिहास और
पौराणिकता को भी उकेरा
गया है। दरअसल, श्री काशी विश्वनाथ धाम की दीवारों से
लेकर यहां अलग-अलग इमारतों और अन्य जगहों
पर काशी आने वाले शिव भक्तों को समस्त जानकारी
उपलब्ध कराने और काशी की
संस्कृति सभ्यता से रूबरू कराने
की तैयारी की गई है।
विश्वनाथ धाम के अंदर ही
भक्त बहुत सी जानकारियां हासिल
कर सकेंगे। मकराना और लाल पत्थरों
से बने दीवारों पर शिव पुराण
चारों वेदों और समस्त धर्म
ग्रंथों में से काशी से
जुड़ी जानकारियां अंकित की गयी है।
खास यह है कि
सभी जानकारी संस्कृत में मंत्रों व हिन्दी के
जरिए दी जायेगी। ताकि
लोग इसे पढ़कर काशी और काशी विश्वनाथ
मंदिर के समस्त इतिहास
की जानकारी को विश्वनाथ धाम
में ही पा सके।
विद्वानों का कहना है
कि गंगा नदी से मंदिर तक
की यात्रा आत्म-खोज की यात्रा का
एक वास्तुशिल्प अहसास है। नदी से, सीढ़ियों के पिरामिड के
ऊपर एक प्रवेश द्वार
द्वारा मंदिर की उपस्थिति की
घोषणा की जाती है।
प्रवेश द्वार के माध्यम से
प्रवेश करने के बाद, चौक,
जो प्रवेश द्वार के साथ एक
धुरी पर केंद्रित है,
मंदिर की ओर मार्गदर्शन
करता है। यहां से, एक परिसर के
प्रवेश द्वार तक पहुंचने के
लिए उतरता है, जो एक ही
धुरी पर केंद्रित है।
मार्ग का अनुभव, एक
अर्थ में, आत्म-साक्षात्कार की धीमी गति
से प्रकट होना है।
मंदिर निर्माण में चुनौतियां रही हजार
इस परियोजना का
निर्माण एक बड़ी चुनौती
थी क्योंकि निर्माण सामग्री के परिवहन के
लिए एकमात्र पहुंच या तो एक
संकीर्ण 40 फीट सड़क के माध्यम से
थी जो साइट के
एक छोर तक पहुंचती थी,
या नदी के माध्यम से।
जगह की कमी के
कारण अधिकांश डेमोलिशन मैन्युअल रूप से करना पड़ा।
निर्माण चरण के दौरान कई
निजी घरों में प्राचीन मंदिर मिले। इन्हें बहाल करने के बाद, इन्हें
विकास में शामिल करने के लिए मास्टर
प्लान को संशोधित किया
गया था। निर्माण को सावधानीपूर्वक और
क्रियान्वित किया जाना था, ताकि मंदिर में जाने वाले यात्रियों को दिक्कत ना
हो। सारा सामान रात में ले जाया जाता
था, ताकि दिन में मंदिर के दर्शनार्थियों और
तीर्थयात्रियों को परेशानी न
हो।
सुविधाएं
स्थानीय लोगों, तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और मंदिर के
पुजारियों के आराम और
सुरक्षा के लिए कई
नई सुविधाएं जोड़ी गई हैं। इनमें
लॉकर के साथ तीन
तीर्थ सुविधा केंद्र शामिल हैं जहां आगंतुक अपना निजी सामान और जूते छोड़
सकते हैं, कतार के लिए पंखे
के साथ कवर क्षेत्र, मंदिर ट्रस्ट के लिए एक
छोटा गेस्टहाउस, तीर्थयात्रियों के लिए आवास,
बुजुर्गों और विकलांगों के
लिए एक धर्मशाला, आध्यात्मिक
किताबों की दुकान, हस्तशिल्प
की दुकानें, संग्रहालय और प्रदर्शनी स्थल,
सभा के लिए एक
हॉल, प्रसाद तैयार करने के लिए एक
बड़ा रसोईघर और मंदिर के
पुजारी के लिए कपड़े
बदलने की सुविधा शामिल
हैं। मुख्य द्वार के शीर्ष पर
एक व्यूइंग गैलरी है, जहां से कोई भी
गंगा नदी के विशाल विस्तार
को देख सकता है और साथ
ही मंदिर का दृश्य भी
देख सकता है। देश और दुनिया से
लंबी दूरी तय करने के
बाद तीर्थयात्री मुश्किल से कुछ क्षण
मंदिर में बिताते हैं। मंदिर तक जाने वाली
सीढ़ियां तक उन्हें आध्यात्मिक
अनुभव से जोड़ेंगी। परियोजना
ने मंदिर परिसर को दिव्यांग जनों
के लिए पूरी तरह से सुलभ बना
दिया है। यह गंगा नदी
से मंदिर तक व्हीलचेयर के
अनुकूल पहुँच प्रदान करता है। परिसर को पूरी तरह
से रोशनी के लिए डिजाइन
किया गया है। इसमें तीन अलग-अलग स्थानों पर उच्च गुणवत्ता
वाले और पर्याप्त शौचालय
हैं। इसमें स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए समर्पित
स्थान भी हैं। यह
सुनिश्चित करने के लिए कि
सुरक्षा व्यवस्था एक विनीत तरीके
से की जा सकती
है, परियोजना में विभिन्न सुविधाएं हैं। प्रयास सभी लिंग और आयु समूहों
के लिए एक समावेशी स्थान
बनाने का है।
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