Friday, 30 December 2022

आखिरी पथ पर माँ. कर्तव्य पथ पर मोदी

आखिरी पथ पर माँ. कर्तव्य पथ पर मोदी 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीरा बा का 100 वर्षों का संघर्षपूर्ण जीवन भारतीय आदर्शों का प्रतीक है. मोदी ने उनके मातृदेवोभव की भावना और हीरा बा के मूल्यों को अपने जीवन में ढाला. उसी कर्तव्यबो के तहत पीएम मोदी ने मां हीरा बा नम आंखों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सिर्फ कंधा दी, बल्कि भावुक मन से मुखाग्नि भी दी। उसके बाद अपने कर्तव्य पथ पर डट गए। पश्चिम बंगाल के दौरे को रद्द करने के बजाय वह वर्चअली तरीके से सिर्फ 7,800 करोड़ के प्रोजेक्ट लॉन्च किया, बल्कि वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई। बावजूद इसके उनके कामकाज पर तुच्छ मानसिकता के द्योतक सपाई मोदी को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे है

सुरेश गांधी

हीरा बा का शुक्रवार सुबह 3.30 बजे निधन हो गया. वे 100 साल की थीं. हीरा बा ने अहमदाबाद के यूएन मेहता अस्पताल में अंतिम सांस ली.हीरा बा को मंगलवार को सांस लेने में तकलीफ होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बुधवार को पीएम मोदी भी उन्हें देखने के लिए अस्पताल पहुंचे थे. तड़के जैसे ही उन्हें मां के महायात्रा पर जाने की खबर लगी, अहमदाबाद पहुंच गए। वहां पीएम मोदी ने अपनी मां को सिर्फ मुखाग्नि दी, बल्कि कंधा भी दिया। मतलब साफ है कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि जो बेटा थोड़ी देर पहले मां की चिता के पास था, कुछ मिनटों बाद ही देश के पीएम के तौर पर पश्चिम बंगाल में जनता के लिए आधारभूत सुविधाओं से जुड़े 7800 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को लांच कर रहा था, वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये. यही वो चीज है, जो मोदी को खास बनाती है और यही वो खासियत, जिसे लेकर मां हीराबा अपने नरेंद्र पर हमेशा गर्व करती थीं और अब यादों में ही सही, हमेशा प्रेरणा देती रहेंगी.

बता दें, हीरा बा पीएम मोदी के छोटे भाई पंकज मोदी के साथ रहती थी। पीएम मोदी ने यहां पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी. इसके बाद पीएम मोदी ने अपनी मां के पार्थिव शरीर को कंधा भी दिया. उनकी आंखों में आंसू थे। मां-बेटे का रिश्ता ही ऐसा था। पीएम मोदी का मां हीरा बा के प्रति प्रेम और सम्मान जगजाहिर है। वे अक्सर अपनी मां की बातों को याद किया करते हैं। उन्होंने कई कार्यक्रमों में हीराबेन का जिक्र भी किया। कई बार तो वे पुराने दिनों की याद कर भावुक भी हो जाते थे। वो मां, जो जीवन भर मोदी को प्रेरणा देती रही, उन्हें कर्तव्य पथ पर मजबूती से आगे बढ़ने की सीख देती रही. इस अपूरणीय क्षति के दिन भी मोदी अपनी सार्वजनिक भूमिका और दायित्व से कोई समझौता करते दिखे नहीं, मां हीराबा का अंतिम संस्कार कर तुरंत ही जनकल्याण के सरकारी कार्यक्रमों में लग गये. मोदी के व्यक्तित्व की यही वो खासियत है, जो उन्हें देश-दुनिया में अनूठा बनाती है.

दरअसल, हीराबेन उर्फ हीराबा का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। मोदी जब दिल्ली से अहमदाबाद के रास्ते में थे तड़के उनका ट्वीट आया, ’शानदार शताब्दी का ईश्वर चरणों में विराम... मां में मैंने हमेशा उस त्रिमूर्ति की अनुभूति की है, जिसमें एक तपस्वी की यात्रा, निष्काम कर्मयोगी का प्रतीक और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध जीवन समाहित रहा है।सुबह होते-होते वह गांधीनगर पहुंच चुके थे। मां को अंतिम विदाई देते समय वह भावुक हो गए। मां के चरणों को छुआ, नमन किया। जिसने भी ये तस्वीरें देखीं, आंखों से आंसू छलक गए। हीरा बा का अंतिम संस्कार गांधीनगर के श्मशान घाट में किया गया. यहां पीएम मोदी के साथ उनके सभी भाई मौजूद रहे. मुखाग्नि के बाद पीएम मोदी ने ट्वीट कर मां हीरा बा को श्रद्धांजलि दी. मां के पास आते समय सादगी का भाव मां की आखिरी यात्रा के समय भी बरकरार रहा, पीएम के लंबे- चौड़े काफिले की जगह श्मशान गृह के अंदर महज एक गाड़ी लेकर आए थे मोदी. वैसे ही जैसे सीएस से लेकर पीएम तक की अपनी यात्रा के दौरान मां के मामले में करते आए थे हमेशा. कही कोई आडंबर नहीं, कहीं कोई वीआईपी कल्चर नहीं.

पीएम मोदी ने लिखा, मैं जब उनसे 100वें जन्मदिन पर मिला तो उन्होंने एक बात कही थी, जो हमेशा याद रहती है कि काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से. उनके मुताबिक उन्हीं की प्रेरणा से वह कर्तव्य पथ पर है। जबकि दुख की इस घड़ी में कयास लग रहे थे कि पीएम मोदी के आज के कार्यक्रम रद्द हो सकते हैं लेकिन जल्द ही पीएमओ की ओर से स्पष्ट कर दिया गया कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम तय शेड्यूल के मुताबिक होंगे. पीएम मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये कार्यक्रमों से जुड़े रहे। इस बीच मोदी परिवार से जुड़े सूत्रों द्वारा सभी से आग्रह कर दिया गया कि वे अपने कर्तव्य पर डटे रहें. परिवार की ओर से कहा गया है कि हम इस कठिन समय में उनकी प्रार्थनाओं के लिए सभी को धन्यवाद देते हैं. सभी से हमारा विनम्र अनुरोध है कि दिवंगत आत्मा को अपने विचारों में रखें और अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम को जारी रखें. यही हीरा बा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

बता दें, उनका जन्म 18 जून 1923 को मेहसाणा में हुआ था. हीराबेन की शादी दामोदरदास मूलचंद मोदी से हुई थी. दामोदरदास तब चाय बेचा करते थे. हीराबेन और दामोदरदास की 6 संतानें हुईं. नरेंद्र मोदी तीसरे नंबर पर थे. हीराबेन और दामोदरदास की दूसरी संतानें हैं - अमृत मोदी, पंकज मोदी, प्रह्लाद मोदी, सोमा मोदी और बेटी वसंती बेन हंसमुखलाल मोदी. हीराबेन ताउम्र संघर्षशील महिला रहीं. पीएम मोदी कई बार अपनी मां के संघर्षों का भावुक अंदाज में जिक्र कर चुके हैं. साल 2015 में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग के साथ बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने अपनी मां के संघर्षों को याद किया था. तब उन्होंने कहा था कि, ’मेरे पिताजी के निधनके बाद मां हमारा गुजारा करने और पेट भरने के लिए दूसरों के घरों में जाकर बर्तन साफ करती थीं और पानी भरती थीं.’ तब मां की तकलीफों को याद करते हुए पीएम ममोदी भावुक हो रो पड़े थे. हीराबेन का जन्म गुजरात के मेहसाणा जिले के विसनगर के पालनपुर में हुआ था। यह वडनगर के काफी करीब है।

हीरा बा की मां यानी पीएम मोदी की नानी का स्पेनिश फ्लू महामारी से अल्प आयु में ही निधन हो गया था। हीराबेन को अपनी मां का चेहरा भी याद नहीं था। हीरा बा ने अपना पूरा बचपन अपनी मां के बिना बिताया। हीरा बा का बचपन गरीबी और अभावों में बीता। पीएम मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा था कि  कैसे उनकी मां केवल घर के सभी काम खुद करती थीं, बल्कि परिवार पालने के लिए दूसरों के यहां काम भी करती थीं। वह कुछ घरों में बर्तन धोती थीं और घर के खर्चों को पूरा करने के लिए चरखा चलाने के लिए समय निकालती थीं। पीएम मोदी वडनगर के उस छोटे से घर को अक्सर याद करते थे, जिसकी छत और दीवारें मिट्टी की थी। जहां वे अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ रहते थे। उन्होंने उन असंख्य रोजमर्रा की प्रतिकूलताओं का उल्लेख किया था, जिनका सामना उनकी मां ने किया और सफलतापूर्वक उन पर विजय प्राप्त की थी।

मां ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग की प्रेरणा दी थी

मोदी पहली बार सात अक्टूबर 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री बने, तो मां का आशीर्वाद लेने गये. मां ने बेटे से पहली बात यही कही, बेटा जीवन में कभी रिश्वत लेना नहीं. बेटे नरेंद्र ने मां हीराबा की ये बात हमेशा याद रखी और यही ये वजह रही कि पहले गुजरात और फिर देश में भ्रष्टाचार मुक्त शासन के लिए तमाम उपाय किये, जरूरी कानूनी प्रावधानों से लेकर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की स्कीम तक, ताकि भ्रष्टाचार की गुंजाइश बचे. मां के ही अमृत वचन से प्रेरणा लेकर मोदी ने बतौर सीएम ये मशहूर नारा दिया था- खाता हूं, खाने देता हूं.

सार्वजनिक हित की चिंता करने की सीख

मां की एक और सीख बेटे नरेंद्र मोदी ने हमेशा याद रखी. ईश्वर ने जितना समय दिया है, उसका सार्वजनिक हित में इस्तेमाल, निजी दुख और भावनाओं के ज्वार में बहने की जगह सार्वजनिक सुख की हमेशा चिंता करना. मां की यही सीख बेटे नरेंद्र मोदी को आज के दिन भी याद रही, जब मां के निधन की खबर उन्हें सुबह में मिली. मां की मृत्यु की खबर मिलते ही दिल्ली से अहमदाबाद के लिए तत्काल प्रस्थान कर जाने वाले मोदी ने अपनी मां हीराबा के निधन को पूरी तरह निजी मामला ही रखा.

मोदी ने 1988 में पिता को खोया

मोदी के लिए ऐसे मौके निहायत निजी ही रहते हैं. जब 1988 में कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गये थे, लौटकर आते ही पिता के बीमार होने की खबर मिली, मोदी आए और अपनेकुमारकी झलक देखकर पिता दामोदरदास मोदी ने प्राण त्याग दिये. दूसरे ही दिन मोदी घर से वापस निकल गये, बतौर प्रचारक दल, देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्य के निर्वाहन के लिए. इस बार भी ऐसा ही रहा. मां हीराबा के बीमार होने की खबर मिली, तो पीएम 28 दिसंबर के दिन अहमदाबाद आए थे दोपहर में. मां की तबीयत नाजुक थी, आखिर सौवां वर्ष चल रहा था मां का. लेकिन मां का हालचाल जानकर नरेंद्र मोदी वापस दिल्ली लौट गये, बतौर प्रधानमंत्री अपने दायित्वों का निर्वाह करने के लिए. आखिर एक सौ तीस करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश की जनता ने उन्हें अपार समर्थन देकर देश का प्रधानमंत्री दूसरी बार बनाया है, तो उस दायित्व की गंभीरता का अंदाजा तो है ही मोदी को. निजी चिंता और दुख आखिर मोदी के सार्वजनिक दायित्व पर कैसे भारी पड़ सकते हैं, मां भी तो हमेशा निजी पर सार्वजनिक दायित्व को ही महत्ता देने की सीख देते आईं थीं. कहां दूसरे नेताओं के मामले में परिवार के किसी सदस्य के निधन होने पर उसे भी एक राजनीतिक अवसर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, बड़ी तादाद में समर्थकों और कार्यकर्ताओं को बुला लिया जाता है, वही नरेंद्र मोदी के मामले में पूरा मामला अलग रहा. मुठ्ठी भर मंत्रियों, गुजरात बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेताओं, प्रचारक दिनों के कुछ साथियों के अलावा बाकी सबको आने के लिए मना किया गया. अगर मोदी की तरफ से संकेत होता, तो गांधीनगर में गुजरात तो क्या, देश भर से नेताओं और कार्यकर्ताओं की बाढ़ लग जाती. आखिर अपने लोकप्रिय नेता के साथ दुख की इस घड़ी में कौन खड़ा नहीं होना चाहता.

जब मां को ह्वीलचेयर पर घुमाया

उनकी मां एक बार मई 2016 में गुजरात से बेटे नरेंद्र मोदी से मिलने उनके आधिकारिक प्रधानमंत्री आवास पहुंची थीं. इस दौरान पीएम मोदी ने उन्हें व्हीलचेयर पर बैठाकर पूरा पीएम आवास घुमाया था. पीएम मोदी का अपनी मां से खास लगाव रहा है. यही वजह है कि जब भी कोई खास मौका होता, या पीएम मोदी गुजरात के दौरे पर होते, तो वे समय निकाल कर अपनी मां से मिलने जाते थे. पीएम मोदी कई बार सार्वजानिक मंच पर अपनी मां का जिक्र करते रहे हैं. कई बार तो पीएम मोदी उनके संघर्षों को याद कर भावुक हो जाते थे. खास यह है कि प्रधानमंत्री मोदी जब भी दिल्ली से गुजरात जाते तो कोशिश करते कि मांसे जरूर मिलें. इस दौरान पीएम मोदी अपनी मां के घर में खाना जरूर खाते थे. मां के साथ खाना खाते पीएम की तस्वीर सुर्खियां बनतीं. पीएम मोदी ने बताया था कि जितना खाना हो, उतना ही भोजन मां अपनी थाली में लेतीं, एक दाना भी छोड़ना पसंद नहीं करतीं.

मां का प्यार और आशीर्वाद हमेशा उनके साथ रहा

पीएम मोदी के मुताबिक जब वे पारिवारिक जीवन से अलग होकर अपनी आध्यात्मिक और राजनीतिक यात्रा शुरू की तो मां का प्यार और आशीर्वाद उनके साथ मजबूत स्तंभ की तरह बना रहा. 2014 लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के तुरंत बाद पीएम मोदी अपनी मां से मिलने पहुंचे थे और उनका आशीर्वाद लिया था. ये सिलसिला चलता रहा. पिछले 8 सालों में पीएम मोदी कई बार अपनी मां से गांधीनगर जाकर मिले. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार दूसरों पर अपनी इच्छा थोपने की भावना उन्होंने बचपन से ही मां में देखी है. पीएम मोदी लिखते हैं, “खासतौर पर मुझे लेकर वो बहुत ध्यान रखती थीं कि वो मेरे और मेरे निर्णयों को बीच कभी दीवार ना बनें. उनसे मुझे हमेशा प्रोत्साहन ही मिला. बचपन से वो मेरे मन में एक अलग ही प्रकार की प्रवृत्ति पनपते हुए देख रहीं थीं. मैं अपने सभी भाई-बहनों से अलग सा रहता था.“ पीएएम मोदी मानते हैं कि उनकी अलग दिनचर्या और प्रयोगों की वजह से उनकी मां को अलग-अलग इंतजाम करने पड़ते थे, लेकिन उन्होंने कभी अपनी मां के चेहरे पर शिकन नहीं देखी थी. पीएम मोदी बताते हैं, “मैं महीनों-महीनों के लिए खाने में नमक छोड़ देता था. कई बार ऐसा होता था कि मैं हफ्तों-हफ्तों अन्न त्याग देता था, सिर्फ दूध ही पीया करता था. कभी तय कर लेता था कि अब 6 महीने तक मीठा नहीं खाऊंगा. सर्दी के दिनों में, मैं खुले में सोता था, नहाने के लिए मटके के ठंडे पानी से नहाया करता था. मैं अपनी परीक्षा स्वयं ही ले रहा था. मां मेरे मनोभावों को समझ रही थीं. वो कोई जिद नहीं करती थीं. वो यही कहती थीं- ठीक है भाई, जैसा तुम्हारा मन करे.“ पीएम मोदी कहते हैं कि मां को आभास हो गया था कि मैं कुछ अलग दिशा में जा रहा हूं. लेकिन कभी टोका नहीं। पीएम का अपनी मां से रिश्ता ही कुछ ऐसा था। बीते वर्षों में पूरे देश ने देखा और महसूस किया था। पहले गुजरात का सीएम रहते और बाद में पीएम बनने के बाद उन्हें जब भी मौका मिलता वह मां से मिलने, उनका आशीर्वाद लेने पहुंच जाते। मां उन्हें अपने हाथों से खिलाती, पानी पिलाती। ये तस्वीरों में आपने भी देखा होगा।

पीएम मोदी ने सुनाया था वो किस्सा

पीएम मोदी ने खुद एक इंटरव्यू में बताया था कि उनकी मां के लिए बड़ा अवसर वो नहीं था जब वह पीएम बने थे बल्कि तब था जब उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। कुछ साल पहले पीएम ने बताया था कि वह सीएम पद की शपथ लेने से पहले मां का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। पीएम ने कहा, ’काफी लोग मुझसे पूछते हैं कि जब मैं पीएम बना तो मेरी मां को कैसा महसूस हुआ... उस समय मेरी तस्वीरें छप रही थीं, चारों तरफ काफी उत्साह का माहौल था। लेकिन मुझे लगता है मेरी मां के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि वो थी, जब मैं सीएम था।मोदी ने बताया कि उस समय वह दिल्ली में रह रहे थे जब पता चला कि उन्हें गुजरात की टॉप पोस्ट मिलने वाली है। शपथ ग्रहण समारोह से पहले वह अहमदाबाद में अपनी मां से मिलने गए, जहां वह उनके भाई के साथ रहती थीं। जब पीएम मोदी अहमदाबाद पहुंचे तो जश्न शुरू हो चुका था। हीराबेन मोदी को पहले से पता चल चुका था कि उनका बेटा राज्य का मुख्यमंत्री बनने जा रहा है। सबसे अच्छी बात ये है कि तुम अब गुजरात लौट आओगे। यह मां का स्नेह होता है। उसे इससे मतलब नहीं कि क्या हो रहा है। वह बच्चे को अपने करीब देखना चाहती है।पीएम मोदी की मां ने तब उन्हें एक मंत्र भी दिया था, जिसे उन्होंने हमेशा याद रखा। प्रधानमंत्री ने बताया, ’... उन्होंने कहा था कि देख भाई, मुझे नहीं पता कि तुम क्या करोगे लेकिन वादा करो कि तुम कभी रिश्वत नहीं लोगे- यह पाप कभी मत करना।मोदी ने बताया था कि मां के उन शब्दों का काफी महत्व था। एक महिला जिसने पूरा जीवन गरीबी में बिताया और जिसके पास कभी भौतिक सुख-सुविधाएं नहीं थीं। वह मुझे रिश्वत लेने की नसीहत दे रही थी। मोदी ने कहा था कि पहले के समय में जब कोई मेरी मां से कहता कि मुझे कोई नौकरी मिल गई है तो वह पूरे गांव में मिठाई बांट देती थीं। ऐसे में सीएम-वीएम उसके लिए कुछ मायने नहीं रखता। मोदी के पिता की चाय की दुकान थी और रेलवे स्टेशन पर वह चाय बेचा करते थे। प्रधानमंत्री के पिता दामोदरदास मोदी का 1989 में निधन हो गया था। उसके बाद हीरा बा ने पूरे परिवार को संभाला। मां के निधन के बाद आज पीएम ने लिखा, ’मैं जब उनसे 100वें जन्मदिन पर मिला तो उन्होंने एक बात कही थी, जो हमेशा याद रहती है कि काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से।

घर चलाने के लिए दूसरों के यहां बर्तन भी धोए

पीएम मोदी के भाई प्रह्लाद मोदी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि मां हीरा बा सभी तरह के घरेलू उपचार जानती थीं। वडनगर के छोटे बच्चों और महिलाओं का इलाज करती थीं। कई महिलाएं अपनी परेशानी दूसरों को बताने के बजाय हीरा बा को बताती थीं। मेरी मां जरूर अनपढ़ थीं, लेकिन पूरा गांव उन्हें डॉक्टर कहता था। हीराबा की उम्र तब महज 15-16 साल थी, जब उनकी शादी हुई थी। घर की आर्थिक और पारिवारिक स्थिति कमजोर होने के चलते उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला, लेकिन वह अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए दूसरे के घरों में भी काम करने के लिए तैयार हो गईं। उन्होंने फीस भरने के लिए कभी किसी से उधार पैसे नहीं लिए। हीरा बा चाहती थीं कि उनके सभी बच्चे पढ़ लिखकर शिक्षित बनें।

जब मां हीरा बा ने मोदी को तिलक लगाया

उनके निधन के बाद पीएम मोदी के अर्काव पर कुछ तस्वीरें सार्वजनिक हुईं हैं, जिसमें खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मां हीरा बा नजर रही हैं। इन तस्वीरों में देखा जा सकता है कि मां हीरा बा अपने बेटे नरेंद्र मोदी को माथे पर तिलक लगा रही हैं। यह तस्वीर उस वक्त की है, जब पीएम मोदी अपनी एकता यात्रा को संपन्न कर अहमदाबाद पहुंचे थे, जहां मां हीरा बा ने उनका तिलक लगाकर स्वागत किया था। एकता यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने श्रीनगर स्थित लाल चौक पर तिरंगा झंडा भी फहराया था। श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराकर लौटने के बाद मां हीरा बा ने बेटे का टीका किया था। यह पल पीएम मोदी के लिए भावुक था, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री ने खुद एक साक्षात्कार के दौरान किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वो पल मेरे लिए इसलिए भावुक था, क्योंकि उस वक्त फगवाड़ा में हमला हुआ था, जिसमें कुछ लोग मारे गए थे। जिसके बाद मुझे दो लोगों का फोन मेरे पास आया था, जिमसें से एक मेरी मां और दूसरे अक्षयधाम मंदिर के प्रमुख श्रद्धेय धाम का फोन आया था, जब इन दोनों ने मेरा हाल चाल जान लिया तो इन्हें तसल्ली हुई। बता दें कि इससे पहले भी पीएम मोदी इस किस्सा का जिक्र कर मर्तबा कर चुके हैं। खास यह है कि पिछले आठ वर्ष से देश के प्रधानमंत्री, और इससे पहले करीब पौने तेरह साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने सुशासन की शोहरत देश- दुनिया से बटोरते मोदी. लेकिन यहां मोदी तो प्रधानमंत्री की भूमिका में थे और ही उस लोकप्रिय नेता के तौर पर, जिसकी धाक देश और दुनिया में है. यहां वो मोदी थे, जो अपनी मां हीराबा के नरेंद्र थे

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