Monday, 15 December 2025

राम विलास वेदांती : राम के जिया, राम के लिए तपे, और राम में ही विलीन

राम विलास वेदांती : राम के लिए जिया, राम के लिए तपे, और राम में ही विलीन 

अयोध्या की माटी से उठकर संसद तक पहुंचने वाले, राम जन्मभूमि आंदोलन के सबसे मुखर और अडिग संत स्वामी राम विलास वेदांती का निधन केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं है। यह उस पीढ़ी के संत-योद्धाओं के युग का अवसान है, जिन्होंने बिना सत्ता की गारंटी के संघर्ष किया और बिना परिणाम देखे भी धैर्य नहीं छोड़ा। राम मंदिर का स्वप्न साकार होते देख वे विदा हुए, लेकिन उनकी वैचारिक विरासत भारतीय समाज में लंबे समय तक गूंजती रहेगी। राम विलास वेदांती चले गए, लेकिन उनके जीवन का उद्देश्य इतिहास बन चुका है। मतलब साफ है राम मंदिर खड़ा है, यह केवल ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि उस तपस्या का प्रतिफल है, जिसे वेदांती जैसे संतों ने अपने जीवन से सींचा। वे राम के लिए जिए, राम के लिए लड़े, और राम के स्वप्न को साकार होते देख राम में ही विलीन हो गए. स्वामी राम विलास वेदांती का जीवन हमें सिखाता है कि जब आस्था, संघर्ष और धैर्य एक हो जाते हैं, तो इतिहास बदलता है। वे चले गए, लेकिन राम मंदिर खड़ा है। राम का नाम गूंज रहा है। और वेदांती जी का संघर्ष अमर हो गया है 

सुरेश गांधी

कुछ व्यक्तित्व सत्ता से नहीं, संघर्ष से बड़े होते हैं। कुछ संत प्रवचन से नहीं, प्रतिरोध से पहचाने जाते हैं। और कुछ जीवन ऐसे होते हैं, जो व्यक्ति नहीं, युग बन जाते हैं। स्वामी राम विलास वेदांती ऐसे ही संत थे, जिनका जीवन किसी पद या प्रतिष्ठा से नहीं, बल्कि उनके संघर्ष से पहचाना जाता है। वे ऐसे व्यक्तित्व थे, जो केवल राम मंदिर आंदोलन के साक्षी थे, बल्कि उसके वैचारिक स्तंभ भी थे। उनके निधन के साथ ही राम जन्मभूमि आंदोलन के उस तपस्वी अध्याय पर विराम लग गया है, जिसने दशकों तक भारतीय राजनीति, समाज और संस्कृति की दिशा तय की। या यूं कहे राम जन्मभूमि आंदोलन भारतीय लोकतंत्र और सनातन चेतना का वह अध्याय है, जिसने आज़ादी के बाद आस्था, राजनीति और राष्ट्रबोध, तीनों को एक सूत्र में पिरोया। इस आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में डॉ. रामविलास वेदांती का नाम श्रद्धा और संघर्ष, दोनों का पर्याय रहा। संत होते हुए भी उन्होंने संसद तक की यात्रा की और राजनीति में रहते हुए भी संन्यास की मर्यादा को अक्षुण्ण रखा।

वेदांती जी ने जिस रामकथा को बाल्यकाल में सुना, वही आगे चलकर उनके जीवन का ध्येय बन गई। उन्होंने सन्यास को पलायन नहीं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व का मार्ग बनाया। वे आश्रमों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि समय आने पर सड़क, आंदोलन और संसद, तीनों में सक्रिय भूमिका निभाई। मतलब साफ है, राम मंदिर आंदोलन केवल ईंट - पत्थर का संघर्ष नहीं था, वह भारत की सांस्कृतिक स्मृति की पुनर्स्थापना का अभियान था। इस अभियान के तपस्वियों में राम विलास वेदांती ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने आस्था को आंदोलन और आंदोलन को इतिहास बना दिया. राम जन्मभूमि आंदोलन के कठिन दौर में, जब यह संघर्ष कानूनी उलझनों, राजनीतिक विरोध और वैचारिक उपहास से घिरा था, तब राम विलास वेदांती उन संतों में थे, जिन्होंने बिना संकोच कहा, राम मंदिर कोई मांग नहीं, यह भारत की सांस्कृतिक स्मृति की पुनर्स्थापना है. उनके निधन के साथ ही संत-राजनीति और रामकेंद्रित वैचारिक संघर्ष के एक युग का अवसान हो गया है।

बता दें, राम मंदिर आंदोलन का चेहरा रहे पूर्व सांसद डॉ. रामविलास दास वेदांती का सोमवार सुबह निधन हो गया. 77 साल की उम्र में वेदांती ने अंतिम सांस मध्य प्रदेश के रीवा में ली. एक कथा महोत्सव के दौरान अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनका निधन हो गया. डॉ. रामविलास वेदांती का जन्म 7 अक्टूबर 1958 को मध्य प्रदेश के रीवा में हुआ था. उन्होंने 12 साल की उम्र में संन्यास ले लिया था. वह अपना घर-परिवार छोड़कर राम नगरी अयोध्या गए. अयोध्या में हनुमानगढ़ी के महंत अभिराम दास के शिष्य बन गए. संस्कृत के प्रकांड विद्वान माने जाने वाले वेदांती सरयू किनारे स्थित हिंदू धाम पर रहते थे, उनका खुद कावशिष्ठ भवनएक आश्रम भी है. सीएम योगी आदित्यनाथ के गुरु अवैद्यनाथ स्वामी परमहंस के साथ-साथ अस्सी के दशक में डा. रामविलास दास वेदांती राम मंदिर मंदिर आंदोलन से जुड़े गए. लालकृष्ण आडवाणी, मुरलीमनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और विनय कटियार के साथ रामविलास वेदांती भी राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरा हुआ करते थे. देश और प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में रामविलास वेदांती जाकर राम मंदिर आंदोलन की अलख जगाई, जिसके चलते उन्हें एक मजबूत पहचान मिली थी. राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका के चलते उन्हें राम मंदिर जन्मभूमि न्यास का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था.

संत से सियासत तक का सफर

डा. रामविलास वेदांती ने संत से सियासत तक का सफर तय हुआ है. हनुमानगढ़ी के महंत अभिराम दास के शिष्य के तौर पर संत बने और राम मंदिर आंदोलन से पहचान मिली तो सियासत में भी कदम रख दिया. 1991 में बाबरी विध्वंस के मामले में वेदांती को भी आरोपी बनाया गया था, जिसके बाद उन्हें आक्रमक हिंदुत्व राजनीति को धार देने लगे. बीजेपी ने उन्हें जौनपुर-प्रतापगढ़ की विधानसभा सीट को मिलाकर बनी मछली शहर सीट से 1996 में प्रत्याशी बनाया. वेदांती लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने. इसके बाद 1998 में प्रतापगढ़ सीट चुनाव लड़े और फिर एक बार जीतने में सफर रही. इस तरह 1996 और 1998 में दो बार सांसद रहे.बाबरी विध्वंस के मुख्य आरोपी रहे. 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने बाबरी विध्वंस किया तो उसमें राम विलास वेदांती भी मुख्य आरोपी थी. हालांकि, कोर्ट ने अपनफैसले में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया है. इस फैसले से पहले और कोर्ट में चार महीने पहले दर्ज करवाए बयान में राम विलास वेदांती ने कहा था हमने किसी मस्जिद को नहीं मंदिर के खण्डहर को तोड़ा था. वहां केवल और केवल मंदिर था, जिसे राजा विक्रमादित्य ने 84 कसौटी के खंभे पर बनवाया था. उस मंदिर पर रामललाविराजमान थे। वह खंडहर हो चुका था, इसलिए हमने खंडहर को तोड़वाकर नया मंदिर बनवाने का संकल्प लिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने पूरा करने का काम किया है. कहा जा सकता है जब किसी युग का अंत होता है, तो वह केवल एक व्यक्ति के जाने से नहीं, बल्कि उस वैचारिक धारा के मौन हो जाने से पहचाना जाता है, जिसने समाज को दशकों तक दिशा दी हो। राम मंदिर आंदोलन के ऐसे ही तपस्वी, वैचारिक योद्धा और सन्यासी नेता स्वामी राम विलास वेदांती का निधन भारतीय राजनीति, सनातन चेतना और राष्ट्रवादी आंदोलन के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वेदांती केवल एक संत थे, बल्कि वे उस पीढ़ी के प्रतिनिधि थे, जिसने धर्म को सत्ता नहीं, बल्कि समाज-संस्कार का माध्यम माना।

अयोध्या की माटी से उठी वैचारिक ज्वाला

स्वामी राम विलास वेदांती एक साधारण, संस्कारवान और धार्मिक परिवार में हुआ। यह वही भूमि थी, जहां रामकथा लोकजीवन का हिस्सा है और जहां आस्था सांसों की तरह बहती है। बाल्यकाल से ही उनका झुकाव, भौतिक आकर्षण से अधिक आध्यात्मिक जिज्ञासा की ओर और रामकथा, वेदांत सनातन दर्शन की ओर दिखाई देने लगा था। वही आगे चलकर उनके जीवन की कर्मभूमि, संघर्षभूमि और साधनास्थली बनी।

सन्यास : संसार से विमुखता नहीं, समाज से संवाद

राम विलास वेदांती के लिए सन्यास पलायन नहीं था। यह समाज के लिए स्वयं को समर्पित कर देने का निर्णय था। उनके लिए सन्यास वैराग्य का प्रतीक नहीं था, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व का स्वीकार था। उन्होंने गृहस्थ जीवन त्यागा, लेकिन लोकजीवन से दूरी नहीं बनाई। वेद, उपनिषद, रामायण और वेदांत का अध्ययन करते हुए वे केवल कथावाचक नहीं बने, बल्कि वैचारिक संत के रूप में उभरे। वे कहते थे, “संत का धर्म है समाज को जगाना, कि उससे कट जाना।” “संत का कर्तव्य है समाज को दिशा देना, कि उससे पलायन करना।यही कारण रहा कि वे केवल आश्रमों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि समय आने पर आंदोलन, मंच और संसद तक पहुंचे।

अयोध्या और राम जन्मभूमि : जीवन का ध्येय 

राम जन्मभूमि आंदोलन ने वेदांती को पहचान नहीं दी, बल्कि उन्हें उनका जीवन उद्देश्य दिया। जब यह आंदोलन प्रारंभ हुआ, तब सत्ता का विरोध था, कानून की जटिलताएं थीं और एक वर्ग इसे केवल धार्मिक उन्माद बताने में जुटा था. लेकिन वेदांती उन संतों में थे जिन्होंने स्पष्ट कहा, “राम मंदिर कोई मांग नहीं, यह भारत की सांस्कृतिक राष्ट्रीय स्मृति की पुनर्स्थापना है।

आंदोलन का स्वर : उग्र नहीं, अडिग

राम विलास वेदांती की विशेषता यह थी कि वे भावुक थे, पर अविवेकी नहीं, उग्र थे, पर उद्दंड नहीं और स्पष्ट थे, पर भ्रमित नहीं. उनके भाषणों में साधु की भाषा और योद्धा का साहस एक साथ दिखाई देता था। वे कहते थेराम मंदिर कोई सौदे का विषय नहीं, यह भारत की आत्मा का प्रश्न है।

6 दिसंबर 1992 : इतिहास का निर्णायक अध्याय

6 दिसंबर 1992, यह दिन केवल एक ढांचे के गिरने का नहीं, बल्कि दशकों से दबे सांस्कृतिक प्रश्न के विस्फोट का दिन था। राम विलास वेदांती इस घटना के प्रत्यक्ष साक्षी, वैचारिक सहभागी, और आंदोलन के स्तंभ थे। उनकी दृष्टि में यह अराजकता नहीं, विध्वंस नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की पुनर्प्राप्ति थी. उनके लिए यह राजनीतिक विजय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक मुक्ति का क्षण था।

संत से सांसद तक : राजनीति में वैराग्य का प्रवेश

राम मंदिर आंदोलन के बाद वेदांती केवल संत समाज तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के माध्यम से संसदीय राजनीति में प्रवेश किया और सांसद बने। संसद में उनका स्वर अलग था, कूटनीति, भाषाई अलंकरण, वे सीधे बोलते थे, स्पष्ट बोलते थे। राम मंदिर, राष्ट्रवाद, सनातन मूल्य और सांस्कृतिक एकता, ये उनके स्थायी विषय रहे।

विवादों के बीच भी वैचारिक अडिगता

वेदांती के कई बयान विवादों में रहे. उन पर तीखापन, असहिष्णुता जैसे आरोप भी लगे। लेकिन विवादों में भी उनमें वैचारिक अडिगता थी. वे कभी अपने कथनों से पीछे नहीं हटे। वे कहते थे, “संत की जिम्मेदारी लोकप्रिय होना नहीं, सत्य के साथ खड़ा होना है।क्योंकि सत्य संत का आभूषण होता है। राजनीतिक शिष्टाचार के दौर में वे असुविधाजनक सत्य के प्रतीक थे।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला : तपस्या की विजय

2019 में जब सर्वोच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि पर ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, तब यह केवल कानूनी जीत नहीं थी। यह दशकों का धैर्य, लाखों कारसेवकों का बलिदान, और संतों की तपस्या की विजय थी। वेदांती जी ने कहा था, “अब राम अपने घर लौट रहे हैं, इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा।

प्राण-प्रतिष्ठा : जीवन का पूर्णविराम

22 जनवरी 2024 : श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा। यह वह क्षण था, जिसके लिए राम विलास वेदांती ने जीवन समर्पित किया था। शरीर भले ही दुर्बल हो चला था, लेकिन आत्मा पूर्णतः तृप्त थी।

व्यक्तित्व : कठोर आवरण में करुणा

मंच से वे कठोर प्रतीत होते थे, लेकिन निजी जीवन में सरल, संवेदनशील, और करुणामय थे। वे दिखावे के संत नहीं थे। सत्ता के लोभी, सुविधाओं के आकांक्षी।

निधन : एक युग का अवसान

स्वामी राम विलास वेदांती का निधन, राम मंदिर आंदोलन के तपस्वी अध्याय का अंत है, संत-राजनीति के एक दौर की समाप्ति है. वे उस पीढ़ी के संत थे, जिन्होंने, बिना सत्ता की गारंटी के संघर्ष किया. बिना परिणाम देखे भी धैर्य नहीं छोड़ा.

विरासत : मंदिर से बड़ा विचार

उनकी विरासत किसी पद या स्मारक में नहीं, बल्कि विचारधारा में है। वे यह सिखाकर गए किआस्था यदि धैर्य और संघर्ष से जुड़ जाए, तो इतिहास बदलता है।

राम पथ का अमर पथिक

राम विलास वेदांती चले गए, लेकिन राम मंदिर खड़ा है। राम का नाम गूंज रहा है। और एक संत का संघर्ष इतिहास बन चुका है। वे राम के लिए जिए, राम के लिए तपे, और राम के स्वप्न को साकार होते देख राम में ही विलीन हो गए।

अयोध्या : कर्मभूमि और संघर्ष की भूमि

अयोध्या केवल एक नगर नहीं, बल्कि वेदांती जी के जीवन का केंद्रबिंदु थी। यहीं से उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन को नजदीक से देखा, जिया और नेतृत्व दिया। जब देश में राम मंदिर आंदोलन अपने प्रारंभिक दौर में था, तब यह केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और वैधानिक संघर्ष भी था। ऐसे समय में वेदांती उन संतों में थे जिन्होंने कहा, “राम मंदिर कोई मांग नहीं, यह भारत की आत्मा की पुकार है।” 1980 और 1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन ने राष्ट्रीय स्वरूप लिया। विश्व हिंदू परिषद, संत समाज और लाखों कारसेवकों के बीच राम विलास वेदांती एक निर्भीक, मुखर और स्पष्ट वक्ता के रूप में उभरे। वे मंच से डरते नहीं थे, सत्ता से समझौता नहीं करते थे और अदालत से अधिक आस्था के न्याय पर भरोसा रखते थे. उनके भाषणों में उग्रता नहीं, बल्कि संस्कारयुक्त दृढ़ता होती थी। राजनीतिक शुद्धता के युग में वे अराजनीतिक सत्य के पक्षधर थे।

1998 का चुनाव : जब आस्था ने मतों का रूप लिया

वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में प्रतापगढ़ सीट पर डॉ. वेदांती की जीत को केवल राजनीतिक विजय नहीं, बल्कि रामलहर की सामाजिक स्वीकृति माना गया। कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व विदेश मंत्री स्वर्गीय राजा दिनेश सिंह की पुत्री रत्ना सिंह को जहाँ 1,64,467 मत मिले, वहीं भाजपा प्रत्याशी रामविलास वेदांती को 2,32,927 मत प्राप्त हुए। यह स्पष्ट जनादेश उनके राम जन्मभूमि न्यास से सीधे जुड़ाव और मंदिर आंदोलन में अग्रणी भूमिका का परिणाम था। राजे-रजवाड़ों और सामंती राजनीति के लिए पहचाने जाने वाले प्रतापगढ़ में एक संत का सांसद बनना अपने आप में ऐतिहासिक था। इससे जिले की राजनीति की दिशा और दशा, दोनों बदलीं।

सबसे लंबा मंदिर आंदोलन और साकार होता सपना

डॉ. वेदांती बार-बार कहते थे कि राम मंदिर आंदोलन आज़ादी के बाद किसी मंदिर के लिए चला सबसे लंबा संघर्ष है। उनके अनुसार अशोक सिंघल, महंत अवैद्यनाथ और रामचंद्र परमहंस जैसे संतों ने जिस राम मंदिर का स्वप्न देखा था, उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक निर्णयों और दृढ़ इच्छाशक्ति से साकार कर दिखाया। उनका विश्वास था कि अयोध्या में बनने वाला राम मंदिर विश्व का सबसे भव्य मंदिर होगा और एक अंतरराष्ट्रीय धार्मिक-पर्यटन केंद्र के रूप में उभरेगा। वे यहां तक कहते थे कि मंदिर के लिए निर्धारित 67 एकड़ भूमि भी भविष्य में कम पड़ सकती है। 1111 फुट ऊंचे मंदिर का उनका कथन भले ही प्रतीकात्मक रहा हो, लेकिन वह उनके विराट सोच और अडिग आस्था का परिचायक था।

अयोध्या की पहचान और नामकरण पर स्पष्ट दृष्टि

डॉ. वेदांती का मानना था कि राम की नगरी में गलियों, मार्गों और स्थलों के नाम भी राम और उनके पूर्वजों की स्मृति से जुड़े होने चाहिए। राजा दिलीप, राजा रघु और राजा दशरथ जैसे नामों को वह अयोध्या की सांस्कृतिक पहचान मानते थे। उनके अनुसार रामविरोधी किसी भी नाम को अयोध्या की भूमि पर स्थान नहीं मिलना चाहिए।

मुख्यमंत्री योगी की श्रद्धांजलि : एक युग का अवसान

डॉ. वेदांती के गोलोकगमन पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें राम जन्मभूमि आंदोलन काप्रमुख स्तंभबताते हुए इसे सनातन संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति कहा। योगी के शब्दों में, उनका त्यागमय जीवन धर्म, समाज और राष्ट्रकृतीनों के लिए प्रेरणा है। यह श्रद्धांजलि केवल औपचारिक नहीं, बल्कि वैचारिक उत्तराधिकार की स्वीकारोक्ति थी।

जौनपुर प्रतापगढ़ से आत्मीय रिश्ता

प्रतापगढ़ जौनपुर से उनका नाता केवल सांसद के रूप में नहीं, बल्कि एक संत-मार्गदर्शक के रूप में भी था। राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े सैकड़ों लोगों को उन्होंने जिले से जोड़ा। आंदोलन की रणनीति तय करने के लिए उनका यहां आना-जाना बना रहता था। आज भी जिले के असंख्य लोगों की स्मृतियों में वेदांती जी जीवित हैं।

अंतिम दिनों तक सक्रिय संत

कुछ ही समय पहले वे सच्चा बाबा आश्रम, चिलबिला में वाल्मीकि रामायण कथा के लिए आए थे। इससे पहले रामपुर भेड़ियानी सहित कई स्थानों पर रामकथा के माध्यम से उन्होंने भक्ति और वैचारिक चेतना की धारा प्रवाहित की। प्रश्नोत्तर के दौरान उनका तार्किक और वैदिक दृष्टिकोण श्रोताओं को गहराई से प्रभावित करता था।

सनातन बोर्ड और वैचारिक मुखरता

डॉ. वेदांती ने वक्फ बोर्ड कानून को समाप्त करने और सनातन बोर्ड के गठन की खुलकर वकालत की। उनका कहना था कि जैसे राम मंदिर का निर्माण हुआ, वैसे ही एक दिन सनातन बोर्ड का गठन भी निश्चित है। समान नागरिक संहिता, कुंभ में प्रवेश की मर्यादा और बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार, इन सभी विषयों पर वे निर्भीकता से अपनी बात रखते थे।

एक संत, एक सांसद, एक विचार

डॉ. रामविलास वेदांती का जीवन इस बात का उदाहरण है कि संत और सांसद, दोनों भूमिकाएँ एक-दूसरे की विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हो सकती हैं। उन्होंने राजनीति को आस्था से जोड़ा, लेकिन आस्था को कभी सत्ता का साधन नहीं बनने दिया। उनका जाना निस्संदेह एक युग का अंत है, पर उनके विचार, संघर्ष और संकल्प, राम की तरह अमर रहेंगे। 

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