Sunday, 3 March 2024

’श्रीराम व मोदी लहर’ पर सवार भाजपा जीतेगी जौनपुर?

श्रीराम मोदी लहरपर सवार भाजपा जीतेगी जौनपुर?

          इमरती तथा लंबी मूली लौकी के लिए विख्यात जौनपुर में एकबार फिर से मीडिया की सूर्खियों में गया है। भला क्यों नहीं, यहां से पूर्व सांसद बाहुबली धनंजय सिंह का क्षेत्र जो है। कहते है भाजपा के हार की सबसे बड़ी वजह धनंजय सिंह ही रहे हैं। पिछले हार के समीकरणों के मद्देजनर बीजेपी ने इस बार कृपाशंकर सिंह को जौनपुर से अपना प्रत्याशी बनाया है. कृपाशंकर के नाम ऐलान होते ही धनंजय सिंह ने अपने सोशल मीडिया पर खुद का एक पोस्ट शेयर करते हुए लिखा, “साथियों! तैयार रहिए... लक्ष्य बस एक लोकसभा 73, जौनपुर. इसके साथ हीजीतेगा जौनपुर-जीतेंगे हमके साथ अपनी फोटो भी शेयर की. हालांकि अबतक ये साफ नहीं है कि धनंजय सिंह निर्दलीय मैदान में होंगे या नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के सिंबल पर, लेकिन इस पोस्ट के जरिए धनंजय ने ये स्पष्ट कर दिया है कि चुनावी मैदान में ताल ठोकने के लिए तैयार हैं. मतलब साफ है सबकुछ ठीक नहीं रहा और धनंजय सिंह मैदान में उतरे तो एकबार फिर भाजपा के लिए वो चुनौती बन सकते है। देखा जाएं तो यहां इस बार भी मुख्य मुकाबला सपा कांग्रेस गठबंधन एवं भाजपा के बीच है। हालांकि बसपा ने अगर किसी दमदार उममींदवार को मैदान में उतारा तो मुकाबला त्रिकोणिय होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। जानकारों की मानें तो त्रिकोणिय मुकाबला ही बनेगा बीजेपी के जीत की वजह। बता दें, 2014 में भाजपा के कृष्णा प्रताप ने 1,46,310 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी। दूसरे स्थान पर बसपा के सुभाष पांडेय रहे। जिन्होंने 2,20,839 वोट हासिल किये थे। सपा के पारसनाथ यादव 1,80,003 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थे। कृष्णा प्रताप को ने 3,67,149 वोट मिले थे। 2019 में सपा बसपा गठबंधन के चलते बसपा के श्याम सिंह यादव ने भाजपा सांसद केपी सिह को 80754 मतों से पराजित कर दी थी। श्याम सिंह यादव को कुल 520046 मत जबकि केपी सिंह को 439292 मत मिले। इस बार श्याम सिंह यादव की विकास में अरुचि, लोगों के दुख दर्द में सरीक होने से लोगों में उनके प्रति खासी नाराजगी है। जबकि राम मंदिर, 370, राष्ट्रवाद, विकास मोदी लहर की लोगों में भूत इस कदर सवार है कि जात-पात गौढ़ हो चला है। बाजी किसके हाथ लगेगी, ये तो चुनाव परिणाम बतायेंगे, लेकिन लड़ाई कांटे की होगी, इसमें कोई संशय नहीं


सुरेश
गांधी

भारत में शर्की शासकों की राजधानी रहा जौनपुर गोमती नदी के किनारे बसा ऐतिहासिक रूप से चर्चित शहर है। यह अपने चमेली के तेल, तंबाकू की पत्तियों, इमरती और मिठाइयों के लिए लिए पूरे देश दुनिया में प्रसिद्ध है। जौनपुर शहर हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। यहां के जामा मस्जिद, शाही किला और शाही ब्रिज को देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में सैलानी आते हैं। इस शहर का नाम विष्णु के छठे अवतार परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि के नाम पर रखा गया है। खास यह है कि यहां की जमीन कभी दबंगई, अपहरण, वसूली, गैंगवार और दुर्दांत अपराधों से लाल होती थीं, आज वहां राजनीतिक जमीन तलाशी जा रही है. इस जिले में दो संसदीय क्षेत्र और कुल 9 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। जौनपुर के अलावा मछलीशहर एक और संसदीय क्षेत्र है। जौनपुर में पांच विधानसभा बदलापुर, शाहगंज, जौनपुर, मल्हनी और मुंगरा बादशाहपुर है। अब तक के हुए चुनावों में जातीय समीकरणों पर यहां के वोटर रोचक आंकड़े गढ़ते आये हैं। लेकिन 2014 में मोदी लहर में सारे मुद्दे हवा में उड़ गए। भाजपा ने कृष्णा प्रताप सिंह ने यहां रिकार्ड मतों से जीत हासिल की थी। यह अलग बात है कि 2019 में एक बार फिर जातीयां ही जीत गयी। इस चुनाव में सपा बसपा गंठबंधन में बसपा के श्याम सिंह यादव ने भाजपा सांसद केपी सिह को 80754 मतों से पराजित कर दी थी। श्याम सिंह यादव को कुल 520046 मत जबकि केपी सिंह को 439292 मत मिले। इस बार श्याम सिंह यादव की विकास में अरुचि, लोगों के दुख दर्द में सरीक होने से लोगों में उनके प्रति खासी नाराजगी है। जबकि राम मंदिर, 370, राष्ट्रवाद, विकास मोदी लहर की लोगों में भूत इस कदर सवार है कि जात-पात गौढ़ हो चला है। मोदी के कामकाज के तौर तरीकों को लेकर जनता उन पर फिदा है। जिसे देखों वहीं राम मंदिर मोदी की धून में बंशी बजा रहा है। बाजी किसके हाथ लगेगी, ये तो चुनाव परिणाम बतायेंगे, लेकिन लड़ाई कांटे की होगी, इसमें कोई संशय नहीं। 

वैसे भी लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर, 370, राष्ट्रवाद, उभरती तिसरी अर्थव्यवस्था, विदेश नीति, सड़कों का जाल, योगी का बुलडोजर, माफियाओं का सफाया विकास से मोदी की स्थिति मजबूत होती दिख रही है। हाल यह है कि बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे भी इस मोदी राम लहर में गायब हैं। भाजपा के उम्मीदवार की बात करें तो उसने कद्दावर नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री कृपाशंकर सिंह को मैदान में उतारा है. जौनपुर के सामान्य परिवार में जन्मे कृपाशंकर सिंह मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. एक फार्मास्यूटिकल कंपनी में लैब असिस्टेंट के रूप में काम शुरू करने वाले सिंह ने 1977 में महाराष्ट्र कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी. जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म किया, उसके बाद उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे. या यूं कहे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले कृपाशंकर अब भाजपा मोदी लहर के सहारे अपनी पुश्तैनी जमीन पर राजनीति करने आए हैं। फिलहाल यहां से बसपा के श्याम सिंह यादव सांसद हैं। अगर वे मैदान में आएं तो मुकाबला भी उन्हीं से होगा। क्योंकि यहां कांग्रेस का वजूद नहीं होने सपा की अंदुरुनी कलह से कांग्रेस-सपा गठबंधन टक्कर तो देगी, लेकिन जीत के लिए उसे नाकों चने चबाने पड़ेंगे।

जहां तक बात धनंजय सिंह की है तो वे जेडीयू से काफी पुराने समय से जुड़े रहे हैं। एक बार वह जेडीयू के टिकट पर विधायक भी बन चुके हैं। इसके बाद उन्होंने बसपा का रुख कर लिया था और सांसद बने थे। यह अलग बात है कि राजनीतिक उठापटक के चलते कई अन्य पार्टियों में भाग्य आजमाते हुए आखिरकार धनंजय जेडीयू में ही वापस पहुंच गए है। धनंजय सिंह ने पहली बार 2002 में रारी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता। इसके बाद 2007 में उन्हें जेडीयू से टिकट मिला और वह विधानसभा पहुंचे। लेकिन 2008 में धनंजय जेडीयू छोड़कर बसपा में शामिल हो गए। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें जौनपुर से टिकट दिया और पहली बार धनंजय सिंह सांसद बनकर लोकसभा पहुंचे। लेकिन बसपा से उनके संबंध ज्यादा समय तक नहीं चले। मायावती ने 2011 में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगाकर बाहर कर दिया। इसी के साथ धनंजय का राजनीतिक किला ढहता नजर आने लगा। 2012 में उनकी पूर्व पत्नी डॉ जागृति सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ीं लेकिन हार गई। 2014 और 2017 विधानसभा चुनाव में धनंजय ने प्रयास किया लेकिन जीत नसीब नहीं हुई।

धनंजय के साथ 2022 में भी यही हुआ। धनंजय ने मल्हनी से चुनाव जीतने की जीतोड़ कोशिश की लेकिन सपा से लकी यादव से उन्हें हार ही नसीब हुई। मगर उन्होंने सपा के लकी यादव को मजबूत टक्कर दी थी. बता दें कि धनंजय सिंह को 78 हजार से अधिक वोट मिले थे और वह 15 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे. फिलहाल वे जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव हैं। धनंजय सिंह 2024 के लोकसभा चुनाव में जौनपुर से टिकट हासिल करने के लिए लगातार प्रयासरत थे। सीएम नीतीश के एनडीए में शामिल होने के बाद से ही इस सीट को लेकर सियासी बाजार गर्म था। बता दें, धनंजय सिंह का क्षेत्र में अपना जनाधार है. वह राजपूत समाज से आते हैं. एक बड़े वोट बैंक पर उनकी मजबूत पकड़ है. वे अगर चुनाव में उतरते है तो भाजपा को ही नुकसान पहुंचायेंगें। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि धनंजय सिंह के मैदान में आने से वोटों का समीकरण बदल सकता है. वैसे भी भाजपा को यहां कभी सपा से तो कभी बसपा से शिकस्त मिलती रही. धनंजय सिंह का चुनावी इतिहास बताता है कि वो हमेशा लड़ाई में बने रहे हैं. कई चुनाव लड़े और दूसरे नंबर पर रहे. धनंजय सिंह की दबंगई के तमाम किस्से मशहूर हैं. गैंगस्टर समेत कई मुक़दमे उन पर हैं. इसके बावजूद जौनपुर में उनका रुतबा और जमीनी पकड़ बरकरार है. इसी के दम पर वो हर बार चुनाव में ताल ठोक देते हैं. हालांकि जौनपुर लोकसभा चुनाव में अभी तक मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा बसपा के बीच ही माना जा रहा था. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने यहां से जीत भी हासिल की थी.

जातीय समीकरण

2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 4476,072 है। यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,848,842 है जिसमें महिला मतदाता 845,831 और पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,002,938 है। जौनपुर में अन्य जातियों की तुलना में क्षत्रिय और ब्राह्मण जातियों की संख्या ज्यादा है। यही कारण है कि ज्यादातर सांसद क्षत्रिय रहे हैं। वहीं अगर जिले के ब्राह्मणों की संख्या देखी जाए तो यहां पर लगभग में 3 लाख है, और क्षत्रिय लगभग 2 लाख हैं। मुस्लिमों की संख्या लगभग 3 लाख और यादवों की संख्या लगभग 3 लाख है। जबकि अनुसूचित जाति लगभग 2.50 लाख है। बसपा ने साल 2007 के लोकसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के चलते बड़ी संख्या में ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया था। लेकिन साल 1993 के बाद ये पहला मौका था जब 2019 में बसपा ने यादव समाज के किसी व्यक्ति को पार्टी का टिकट दिया था। यहां की औसत साक्षरता दर 60.78 प्रतिशत है जिनमें पुरुषों की साक्षरता दर 70.5 प्रतिशत और महिलाओं की 51.29 प्रतिशत है। जौनपुर की 88 प्रतिशत आबादी हिंदू और 10 प्रतिशत जनसंख्या मुस्लिम हैं।

कौन है कृपा शंकर सिंह 

वे 1971 में नौकरी की तलाश में जौनपुर से मायानगरी मुंबई पहुंचे. यहां सांताक्रूज इलाके की एक झुग्गी बस्ती में रहते हुए उन्होंने एक दवा कंपनी में काम करना शुरू कर दिया. यहां उन्हें दवा कंपनी से प्रतिदिन 8 रुपये मिलते थे. हालांकि, इतने रुपयों से परिवार का भरण पोषण करने में उन्हें दिक्कत आने लगी तो वह बाकी बचे समय में मुंबई की सड़कों पर आलू प्याज बेचने लगे. बताया जाता है कि एक समय कृपा शंकर सिंह के पास बच्चे के लिए दूध तक के पैसे नहीं होते थे. इसके बाद भी कृपा शंकर ने हार नहीं मानी और मजबूरियों से लड़कर आम आदमी से खास बने. शुरुआत में कृपा शंकर सिंह ने कांग्रेस में निचले स्तर पर काम किया. इसके बाद नब्बे के दशक में वह पार्टी के महासचिव बने. एमएलसी बनने के बाद वह कांग्रेस से विधायक भी चुने गए. कांग्रेस सरकार में वह गृह राज्य मंत्री भी रहे. केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर से धारा 370 हटा दिया. पीएम मोदी के इस फैसले का स्वागत करते हुए कृपा शंकर सिंह ने कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा में चले गए. मुंबई की उत्तर भारतीय राजनीति में कृपा शंकर सिंह एक जाना पहचाना चेहरा है.

कब कौन जीता

1952 : बीरबल सिंह : (कांग्रेस)

1957 : बीरबल सिंह : (कांग्रेस)

1962 : ब्रह्मजीत सिंह : (जनसंघ)

1963 : राजदेव सिंह : (कांग्रेस)

1967 : राजदेव सिंह : (कांग्रेस)

1971 : राजदेव सिंह : (कांग्रेस)

1977 :यादवेंद्र दत्त दुबे : (जनता पार्टी)

1980 : अज़ीज़ुल्लाह आज़मी दृः(जनता पार्टी)

1984 : कमला प्रसाद सिंह : (कांग्रेस)

1989 :यादवेंद्र दत्त दुबे : (भाजपा)

1991 : अर्जुन सिंह यादव : (जनता दल)

1996 : राजकेशर सिंह : (भाजपा)

1998 : पारसनाथ यादव : (सपा)

1999 : स्वामी चिन्मयानन्द : (भाजपा)

2004 : पारसनाथ यादव : (सपा)

2009 : धनंजय सिंह : (बसपा)

2014 :कृष्ण प्रताप सिंह : (भाजपा)

2019 श्याम सिंह यादव : (बसपा)

जौनपुर का इतिहास 

यूपी की 80 सीटों में से एक सीट जौनपुर की है, यह ज़िले का मुख्यालय भी है। पहले इस जिले पर गुप्त वंश का आधिपत्य था यह एक ऐतिहासिक शहर भी था। मध्यकालीन भारत में जौनपुर सल्तनत (1394 और 1479 के बीच) उत्तरी भारत का एक स्वतंत्र राज्य था, जिसपर शर्की शासक जौनपुर से शासन करते थे। यहां की अवधी मुख्य भाषा है। यह भी मान्यता है कि जौनपुर प्राचीन समय में देवनागरी नाम का पवित्र स्थान था जो अपने शिक्षा, कला और संस्कृति के कारण प्रसिद्ध था। सर्वप्रथम इस स्थान पर कन्नौज के शासक ने आक्रमण करके इसे अपने आधीन कर इसका नाम यवनपुर रखा जिसके बाद इसपर तुगलक शासक फिरोज शाह तुगलक ने इसकी स्थापना 13वीं सदी में अपने चचेरे भाई मुहम्मद बिन तुगलक की याद में की थी जिसका वास्तविक नाम जौना खां था। इसी कारण इस शहर का नाम जौनपुर रखा गया। वहीं 1394 के लगभग में मलिक सरवर ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य के रूप में स्थापित किया। जौनपुर का शर्की शासक कला प्रेमी थे जब शर्की का शासन था तब उन्होंने अनेक मकबरों, मस्जिदों और मदरसों का निर्माण किया गया। यह शहर मुस्लिम संस्कृति और शिक्षा के केन्द्र के रूप में भी जाना जाता है। वर्तमान में यह शहर चमेली के तेल, तम्बाकू की पत्तियों, इमरती और स्वीटमीट के लिए लिए प्रसिद्ध है।

राजनीतिक घटनाक्रम

जौनपुर की राजनीति में करीब 31 साल तक सपा और पारसनाथ यादव एक दूसरे के पूरक बने रहे. 1989 से 2020 तक पारसनाथ ने कुल 9 चुनाव जीते. मल्हनी, मड़ियाहू और बरसठी तीनों विधानसभा से कुल 7 बार विधानसभा पहुंचे. जौनपुर लोकसभा सीट 2 बार जीती. जौनपुर में पारसनाथ यादव सपा के लिए जीत की गारंटी माने जाते थे. उनके सामने भाजपा ने काफी कोशिशें कीं, लेकिन 1999 के बाद से लगातार चार लोकसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ एक बार 2014 में जीत दर्ज कर सकी है.पहली बार 1962 में जौनपुर लोकसभा सीट पर ठाकुर बिरादरी के नेता ब्रह्मजीत सिंह जनसंघ के टिकट पर जीते थे. इसके बाद भाजपा के टिकट पर पहली बार यादवेंद्र दत्त दुबे चुनाव जीते थे. जौनपुर लोकसभा सीट पर भाजपा की ये पहली जीत थी. जौनपुर के राजनीतिक इतिहास में 7 बार ठाकुर, चार बार यादव, 2 बार ब्राह्मण और एक बार मुस्लिम नेता को लोगों ने अपना सांसद चुना है. यानी सबसे ज्यादा बार ठाकुर और यादव नेता ही यहां से संसद पहुंचे. उसमें भी चार यादव सांसदों में दो बार पारसनाथ यादव चुने गए. पारसनाथ काफी लोकप्रिय थे. जौनपुर में 1952 में पहला आम चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस ने जीत दर्ज की। अगले चुनाव 1957 में भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की, लेकिन 1962 में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई। इस सीट पर जनसंघ के ब्रह्मजीत सिंह ने कब्जा किया था। 1967 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और राजदेव सिंह सांसद बने। 1971 के चुनाव में भी यहां कांग्रेस सीट बचाने में कामयाब रही, लेकिन 1977 में यह सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई। इस सीट पर भारतीय लोकदल और अगले 1980 के चुनाव में जनता पार्टी सेक्युलर ने जीत हासिल की। 1984 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की, लेकिन 1989 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बाजी मारी। 1991 में अर्जुन सिंह यादव ने जनता दल को जौनपुर में पहली जीत दिलाई, 1996 में भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर दोबारा कब्जा किया। 1998 में समाजवादी पार्टी के पारसनाथ यादव जौनपुर से जीतकर लोकसभा पहुंचे तो 1999 में भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी से एक साल पहले हुई अपनी हार का बदला ले लिया। साल 2004 में यहां सपा ने अपना परचम लहराया लेकिन 2009 में बसपा के दिग्गज धनंजय सिंह ने सपा से ये सीट छीन ली। साल 2014 में इस सीट पर भगवा फहराया और कृष्ण प्रताप उर्फ के.पी यहां से सांसद बने।

 

 

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