पूर्वांचल : ‘ध्रुवीकरण’ व ‘तुष्टीकरण’ के बीच ‘मिट्टी में मिला देंगे’ का शोर
पूर्वांचल में मुद्दो से ज्यादा चर्चा मिट्टी में मिल चुके माफिया डॉन मुख्तार अंसारी व अतीक अंसारी की हो रही है। यह उनका राजनीतिक रसूख ही था कि वह निर्दलीय भी चुनाव जीत जाते थे. बीएसपी और सपा से उनके अच्छे संबंधों का ही तकाजा रहा, वे जिस पर हाथ रख देते वो जमीन उनका हो जाता था। जिसके सामने मुंह खोला, वो चंद घंटों में उनके पैरों पर करोड़ों रख कर रहम की भीख मांगता नजर आया। जिसे जब जहां चाहा, वही टपका दिया। हालांकि वो इस रसूख को बनाने के लिए करोड़ों की खैरात बांटने में रंचमात्र भी देरी नहीं करते रहे और जो उनसे लाभान्वित है, वे आज भी उन्हें न मसीहा ही मानते है। यह अलग बात है कि बुलडोजर राज में न सिर्फ उनका सियासी किला ढह गया, बल्कि करोड़ों अरबों की संपत्ति सहित वे खुद भी मिट्टी में मिल गएं। लेकिन उनके नाम की गूंज उनके प्रभाव वाले पूर्वांचल के जिलों में अब भी सुनाई दे रही है। विपक्षी नेता उन्हीं के रहमोकरम पर अपने जीत की उम्मींद लगाएं बैठे है। यह अलग बात है कि भाजपा को श्रीराम मंदिर, राष्ट्रवाद, 370 व मोदी योगी के कामों पर ही जीत कर भरोसा जता रहे हैं। इन दावों और वादों में ताज किसके सिर बंधेगा, ये तो 4 चुनाव को पता चलेगा। लेकिन मुहम्मदाबाद के सलीम अंसारी व प्रयागराज के चकिया खुल्दाबाद के इरफान कहते है ओवैसी व अखिलेश जैसे नेता सामज के वोटबैंक का ढिढोरा भले पीट रहे हो, लेकिन कांटों पर रेशम की साड़ी ओढ़ा देने से वो फूल नहीं बन जाता। माफिया अपराधी हो होता है, वो अपनी हरकत से बाज नहीं आता। हजारों की मिट चुकी सिंदुरों की आंखों के सामने उनके खूनी पंजे आज भी उन्हें चैन से सोने नहीं दे रही है। जबकि उन्हीं के बगल में खड़े सलीम खां कहते है दोनों माफियाओं के मौत के असली गुनहगार तो वो है, जिन्होंने सदन में बाबा के पुरुषार्थ को ललकारा थासुरेश गांधी
फिरहाल, पूर्वी यूपी में आतंक का पर्याय रहे डॉन से नेता बने मफिया मुख्तार अंसारी व अतीक अंसारी अब इतिहास हो चुके हैं. अंसारी बंधुओं की मौत से अपराध के एक युग और राजनीति के साथ गठजोड़ वाले एक बड़े चैप्टर का अंत हो गया है. यह अलग बात है कि उनकी मौत ऐसे समय में हुई है जब लोकसभा चुनाव के लिए पार्टियां घर-घर जाकर अपनी-अपनी जीत के लिए वोट मांग रही है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या माफियाओं की मौत इनके प्रभाव वालें जिलों में मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर सकती है? देखा जाएं तो यूपी की सियासत केंद्र की सत्ता के लिए बेहद अहम मानी जाती है. जिसमें पूर्वांचल सबसे अहम् कड़ी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सबसे कम अंतर से जीत और रिकॉर्ड मतो से जीत पूर्वांचल से ही मिली थी. कुछ ऐसा ही इस बार भी होने वाला है। हालांकि बीजेपी ने पूर्वांचल में अपनी पैठ बनाने के लिए खूब काम किए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरों के बीच वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरीडोर, रुद्राक्ष केंद्र, कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट का उद्धाटन, मेडिकल कालेज का शिलान्यास, सिद्धार्थनगर समेत पूर्वांचल के 7 जिलों में मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन, आजमगढ़ में स्टेट यूनिवर्सिटी का शिलान्यास जैसी योजनाओं पर काम किया गया, जिससे पूर्वांचल का विकास हुआ है.
बता दें, पूर्वांचल
में कुल 26 लोकसभा और 130 विधानसभा सीटें हैं. पूर्वांचल में
ही वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी जीत की
हैट्रिक लगाने के लिए तीसरी
बार मैदान में हैं. इसके
अलावा सूबे के मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ का मठ भी
पूर्वांचल के गोरखपुर में
ही है और इसका
असर उससे सटे 26 सीटों
पर भी देखने को
मिलता है। इस चुनाव
में सभी सीटों पर
जीत का दारोमदार मोदी-योगी पर ही
है। जबकि महेंद्रनाथ पांडेय
की संसदीय सीट चंदौली, दिनेश
लाल यादव निरहुआ आजमगढ़,
अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर और
फिल्म स्टार रवि किशन गोरखपुर
से ताल ठोक रहे
हैं बीजेपी के ये सभी
दिग्गज अपनी-अपनी सीटें
बचाने में कामयाब रहे,
लेकिन पूर्वांचल के गढ़ को
गाजीपुर, जौनपुर आदि को नहीं
बचा सके हैं. हालांकि,
इसकी बड़ी वजह सपा-बसपा गठबंधन का
प्रभाव रहा। लेकिन इस
बार पूर्वांचल की सभी सीटों
पर परचम लहाराने की
जिम्मेदारी योगी पर है।
क्यों कि ये ऐसी
सीटे है, जहां, जहां
मुख्तार अंसारी का प्रभाव देखा
जाता है। मऊ और
आसपास के मुस्लिम समुदाय
के लोग माफिया को
’मुख्तार भाई’ कहते रहे
हैं. इलाहाबाद, कौशांबी व फूलपुर के
असपास भी अतीक अहमद
का दबदबा था. सियासी कद
का अंदाजा इसी से लगा
सकते है कि मऊ
से मुख्तार निर्दलीय भी खड़े हो
जाते तो जीत जाते.
इस समय लोकसभा चुनाव
हो रहे हैं तो
मुख्तार अंसारी का असर मऊ,
गाजीपुर, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया और वाराणसी समेत
पूर्वी यूपी की कई
लोकसभा सीटों पर देखने को
मिल सकता है. कुछ
ऐसा ही इलाहाबाद, फूलपुर,
कौशांबी में भी अतीक
का भी है। यही
वजह है कि सपा,
बसपा से लेकर ओवैसी
और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री
तेजस्वी यादव उन्हें जेल
में जहर दिए जाने
का शिगुफा छोड़कर अपनी सियासत रोटी
सेंकने में व्यस्त हो
गए है। ये नेता
उनके आंतक को क्रांतिकारी
व मसीहा बताने में जुट गए
है।
पूर्वाचल की सबसे हॉट
सीट वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी जीत की हैट्रिक
लगाने के लिए मैदान
में है। उनके सामने
कांग्रेस के अजय राय
व बसपा के अतहर
जमाल लारी हैं। दोनों
को अपने-अपने वोटबैंक
पर ही भरोसा हैं।
चंदौली से भाजपा के
केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री
डा. महेंद्र नाथ पांडेय मैदान
में है। उनके सामने
सपा के पूर्व मंत्री
विरेंद्र सिंह है और
बसपा ने सत्येंद्र मौर्य
को टिकट दिया है।
आजमगढ़ में भाजपा के
वर्तमान सांसद दिनेश लाल यादव निरहुआ
दोबारा प्रत्याशी हैं। सपा ने
मुलायम सिंह यादव परिवार
के धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी
बनाया है। धर्मेंद्र यादव
2022 में हुए उपचुनाव में
यहां से मैदान में
उतरे थे। तब उन्हें
निरहुआ से हार का
मुंह देखना पड़ा था। यहां
बसपा से भीम राजभर
मैदान में है। आजमगढ़
की लालगंज सीट से बसपा
ने डा. इंदू चौधरी
को मैदान में उतारा है।
यहां से बसपा की
सांसद संगीता आजाद पार्टी छोड़कर
भाजपा में शामिल हो
गईं हैं। लालगंज से
सपा के प्रत्याशी दरोगा
प्रसाद सरोज और भाजपा
से नीलम सोनकर हैं।
नीलम सोनकर यहां से दोबारा
भाजपा की प्रत्याशी हैं।
घोसी सीट एनडीए से
सुभासपा के खाते में
गई है। सुभासपा ने
यहां से पार्टी अध्यक्ष
ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद
को प्रत्याशी बनाया है। यहां से
सपा प्रत्याशी राजीव राय और बसपा
प्रत्याशी पूर्व सांसद बाल कृष्ण चौहान
प्रत्याशी हैं। भदोही सीट
पर भाजपा ने मीरजापुर के
मझवां विधायक विनोद बिंन्द को प्रत्याशी बनाया
है। आइएनडीआइए ने यह सीट
तृणमूल कांग्रेस को दिया है।
यहां से उसके प्रत्याशी
ललितेशपति त्रिपाठी हैं। वह पूर्व
विधायक हैं और उत्तर
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री
कमलापति त्रिपाठी परिवार के हैं।
लेकिन सबकी निगाहें गाजीपुर
संसदीय सीट पर लगी
है। अंसारी परिवार के प्रभाव वाली
यह सीट मुख्तार अंसारी
की जेल में मौत
के कारण से भी
चर्चा में है। यहां
से 2019 में मोदी सरकार
में रेल राज्य मंत्री
रहे मनोज सिन्हा चुनाव
हार गए थे। उन्हें
बसपा के अफजाल अंसारी
ने हराया था। अफजाल अब
सपा के प्रत्याशी हैं।
भाजपा ने संघ के
स्वयंसेवक पारस राय को
मैदान में उतारा है।
जबकि बसपा ने डॉ
उमेश कुमार सिंह को प्रत्याशी
बनाया है। मीरजापुर से
एनडीए की पार्टनर अनुप्रिया
पटेल खुद मैदान में
है। उनका सामना सपा
के राजेन्द्र बिंद और बसपा
के मनीष त्रिपाठी से
है। राबर्ट्सगंज से पार्टी ने
पत्ते नहीं खोले हैं।
जौनपुर से भाजपा ने
कृपाशंकर सिंह को प्रत्याशी
बनाया है। यहां से
सपा ने बाबू सिंह
कुशवाहा व बसपा ने
धनंजय सिंह की पत्नी
कला रेड्डी को प्रत्याशी बनाया
है। मछलीशहर सीट पर भाजपा
ने एक बार फिर
वर्तमान सांसद बीपी सरोज को
प्रत्याशी बनाया है। सपा ने
प्रिया सरोज व बसपा
ने कृपाशंकर सरोज को अपना
प्रत्याशी घोषित किया है। मऊ,
जौनपुर, भदोही, गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़ आदि इलाकों में
मुस्लिम और दलित वोटर
अंसारी को वोट देते
रहे हैं. वैसे भी
मुख्तार अंसारी की राजनीति पूर्वी
यूपी के मुस्लिम वोटरों
पर टिकी रही. गाजीपुर-मऊ इलाके में
हाल के चुनावों में
मुस्लिम तबका अंसारी परिवार
को ही वोट करता
रहा है. यह अलग
बात है कि इन
इलाकों में भूमिहार वोटर
अच्छी तादाद में हैं और
हत्याओं के कारण वे
अंसारी ब्रदर्स को भूमिहार-विरोधी
मानते हैं. हालांकि जब
से मोदी सरकार ने
फ्री में राशन देना
शुरू किया है, काफी
कुछ समीकरण बदल गए है.
लेकिन इस बार संभावना
जताई जा रही है
कि मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हो
सकता है. भोलानाथ यादव
कहते है पूर्वांचल में
कब किसके समर्थन में पुरवइया बह
जाए ये कोई नहीं
कह सकता. सपा को उम्मीद
है कि बीजेपी के
खिलाफ समीकरण को देखते हुए
अंसारी के सपोर्टर उसे
चुनाव में वोट करेंगे।
2022 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार के
बेटे अब्बास ने बसपा सपा
गठबंधन उम्मीदवार के तौर पर
इलेक्शन जीता था.
ये संयोग नहीं
बल्कि एक सधा हुआ
प्रयोग है. पूर्वांचल से
चुनाव लड़ना और जीतना
पिछड़ों और दलितों में
पैठ का परसेप्शन बनाता
है. साल 2014-2017 और 2019 में बीजेपी को
भारी जीत मिली, उसमें
इस परसेप्शन का बड़ा खेल
था. 2014 में बीजेपी के
लिए पूर्वांचल का इलाका इसलिए
भी अहम है क्योंकि
यहां से देश के
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री
सीएम योगी आदित्यनाथ दोनों
ही आते हैं. इसके
अलावा मोदी सरकार के
तीन मंत्री और योगी सरकार
में 13 अन्य मंत्री भी
पूर्वांचल से ही हैं.
बावजूद इसके यहां की
राजनीति पर जाति का
खासा प्रभाव देखा जाता है.
2019 लोकसभा चुनाव पर नजर डालें
तो यहां से प्रधानमंत्री
होने के बावजूद बीजेपी
को यहां काफी चुनौतियों
का सामना करना पड़ा था.
बीजेपी को गाजीपुर, घोसी
समेत कई सीटें गंवानी
पड़ी जहां पर 2014 के
चुनाव में पार्टी को
जीत मिली थी. इस
बार पूर्वांचल में बीजेपी के
लिए गाजीपुर, जौनपुर, मऊ और आजमगढ़
जैसे जिले में चुनौती
मिल सकती है. यहां
के जातीय समीकरण के चलते बीजेपी
कमजोर स्थिति में है. 2017 के
चुनाव में एनडीए का
स्ट्राइक रेट 81 फीसदी था, जबकि पूर्वांचल
में 77 फीसदी था, वहीं 2022 विधानसभा
चुनाव में जहां एनडीए
का स्ट्राइक रेट 68 फीसदी रहा जो वहीं
पूर्वांचल में घटकर 59 फीसद
पर चला गया. 2022 में
पूर्वांचल के 3 जिलों में
बीजेपी का खाता तक
नहीं खुल पाया था.
वहीं 2019 लोकसभा चुनाव की बात करें
तो पूर्वांचल की आजमगढ़, लालगंज,
गाजीपुर, घोसी और जौनपुर
बीजेपी हार गई, जबकि
2014 में इन सीटों पर
पार्टी को जीत हासिल
हुई थी.
हालांकि तमाम कवायदों के
बावजूद भी बीजेपी के
पास क्षेत्रीय दलों की तरह
कमिटेड जातीय वोट नहीं है।
सपा और बीएसपी इस
मामले में बीजेपी पर
बीस पड़ते हैं, इसलिए
जातीय गठजोड़ को तोड़ने में
ध्रुवीकरण हमेशा रास आता है।
1991 में बीजेपी की पूर्ण बहुमत
की सरकार रामलहर में ही बनी
थी। विवादित ढाचा गिराए जाने
के बाद जब जातीय
राजनीति के दो धुरंधर
माया-मुलायम एक साथ चुनाव
लड़े तब भी बीजेपी
को 177 सीटें मिली थीं। ’धर्म’
का ताना-बाना टूटा
तो नतीजे भी बदलने लगे।
दिन फिर तभी बहुरे
जब जाति की दीवार
टूटी। गैर-बीजेपी पार्टियों
के लिए नतीजे तभी
बेहतर होंगे जब ध्रुवीकरण न
हो सके। उन्हें इसका
पूरा अंदाजा भी है इसलिए
प्रचार से लेकर गठबंधन
सहयोगी तक के दांव
इसी कसौटी को ध्यान में
रखकर लगाए जा रहे
हैं। सपा ने भले
ही अफजाल को टिकट दिया
है लेकिन जोर ’भाईचारे’ पर
है। बीएसपी की प्रचार होर्डिंग्स
’सभी धर्मों का हाथ, बहनजी
का साथ’ और ’सामाजिक
भाईचारा बनाने दो, बहनजी को
आने दो’ जैसे नारों
से सजी है। पार्टी
की पूरी ताकत मुस्लिम
सहित पंरपरागत जाति को फिर
से मजबूती देने पर है।
मुस्लिम वोटरों पर धार्मिक रंग
न मिले इसके लिए
दलित भाईचारा अभियान के साथ बात
की जा रही है।
यह कवायद तभी सफल हो
सकेगी जब चुनाव को
’सांप्रदायिक’ रंग न मिल
पाए। विभिन्न सामाजिक व परंपरागत संगठनों
से भी इसके लिए
माहौल बनाने की कोशिश हो
रही है। बेशक, गाजीपुर
में सिर्फ ध्रुवीकरण ही निर्णायक साबित
होगा। न मोदी और
योगी का जादू कम
हुआ है और न
सपा और अखिलेश यादव
से भरोसा उठा है। कुल
मिलाकर कहें तो मुख्य
लड़ाई में सपा और
भाजपा ही है।
मुख्तार का प्रभाव
बता दें, पूर्वांचल
में 83 फीसदी हिंदू और 17 फीसदी आबादी मुसलमानों की है. मुस्लिम
आबादी वाले पांच बड़े
जिलों में सिर्फ 2 में
ही मुख्तार का जबर्दस्त प्रभाव
था. सपा के लिए
मुस्लिम-यादव का फैक्टर
पहले लाभ पहुंचाता रहा.
मुख्तार अंसारी के न होने
से अगर ध्रुवीकरण हुआ
तो फायदा भाजपा को भी मिल
सकता है. जब से
यूपी में योगी सरकार
बनी है जनता में
यही मैसेज गया है कि
भाजपा सरकार माफियाओं के खिलाफ सख्त
एक्शन ले रही है.
बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या
में बाहुबली नेता को सजा
हो चुकी थी. यह
केस भी काफी चर्चा
में रहा था और
बीजेपी के वोटर बढ़े
थे. खास यह है
कि मुसलमानों में पसमांदा समाज
मोदी को पसंद कर
रहा है. उसकी बड़ी
वजह राशन व मकान
है. कई परिवार ऐसे
हैं जिनके पास खाने का
इंतजाम नहीं है. गाजीपुर
के मुस्लिम समुदाय बीजेपी की तरफ झुक
सकते हैं. हालांकि सपा
को मुख्तार की मौत का
फायदा दिख रहा है
तो हिंदू मतों का भाजपा
की ओर ध्रुवीकरण रोकने
और आधी आबादी को
रिझाने की पुरजोर कोशिश
की है। इन सीटों
पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं।
लेकिन, भाजपा के हिंदू वोटरों
के एकजुट होने से कई
बार खेल का रुख
पलट जाता है और
जीत का पलड़ा कहीं
भी झुक जाता है।
इसके पीछे पार्टी के
परंपरागत वोटरों को साधने के
साथ ही भाजपा के
हिंदू वोटरों में सेंधमारी कर
चुनाव को अपने पक्ष
में करने की सोच
है। यही वजह है
कि भाजपा मुस्लिम मतों के बिखराव
पर जोर दे रही
है। सपा के अंदरूनी
कलह का लाभ अपने
पक्ष में कर कमल
खिलाने में भाजपाई रणनीतिकार
जुटे हैं। एक तरफ
वह पार्टी के परंपरागत वोटरों
को सहेज रहे हैं
तो दूसरी ओर मुस्लिम मतों
खासकर सपा के प्रभाव
वाले क्षेत्रों में यह तान
छेड़ रहे हैं कि
सपा मुस्लिम विरोधी है। ऐसे में
बसपा हाथी की चाल
को गति देकर चुनाव
में अपनी दमदार उपस्थिति
दर्ज कराकर जीत का गणित
फिट करने में जुट
गई है।
क्या कहते है आंकड़े
पूर्वांचल में 21 जिले हैं और
26 लोकसभा सीटें आती हैं. इस
इलाके में 130 विधानसभा सीटें हैं. इस इलाके
में यूपी की 6.37 करोड़
(2011 की जनगणना) आबादी रहती है जो
कुल आबादी का 32 फीसदी है. पूर्वांचल के
जिन इलाकों में बीजेपी को
सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा या फिर
विधानसभा में खाता खोलना
तक मुश्किल हो गया वो
है आजमगढ़, जहां की 10 विधानसभा
सीटों पर बीजेपी हार
गई, इसके अलावा गाजीपुर
की 7 सीटें, कौशाम्बी की 3 सीटें बीजेपी
हारी. खुद डिप्टी सीएम
केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए. बस्ती
में 5 सीटें, मऊ में 4 सीटें
तो वहीं बलिया जिले
की 7 में से 5 सीटों
पर बीजेपी हारी दो पर
जीत मिली, जौनपुर की 9 में से
4 सीटों पर बीजेपी जीती.
पूर्वांचल में लोकसभा चुनाव
2014 और 2019 को लेकर बात
की जाए तो 2014 में
बीजेपी को यहां से
23 सीटों पर जीत हासिल
हुई थी वहीं उनकी
सहयोगी अपना दल दो
सीटों पर जीती. इस
तरह एनडीए ने 26 में से 25 सीटों
पर फतह हासिल की,
जबकि एक सीट पर
सपा को जीत मिली.
2019 में बीजेपी के खिलाफ सपा-बसपा ने मिलकर
चुनाव लड़ा, जिसका असर
इस इलाके में देखने को
मिला. बीजेपी को यहां 4 सीटों
का घाटा हुआ और
19 पर जीत मिली अपना
दल को दो सीटें
मिली वहीं बसपा जो
जीरो को बढ़कर 4 सीटों
पर जीत हासिल हुई.
गठबंधन के चलते मजबूत है एनडीए
पूर्वांचल का इलाका यूपी के पिछड़े इलाकों में आता है. ये पूरी भोजपुरी बेल्ट है यहां ज्यादातर किसानी होती है. ये इलाका अति पिछड़ी जातियों वाला इलाका है जहां राजभर, निषाद और चौहान जातियां निर्णायक स्थिति में हैं. बीजेपी जानती है कि लोकसभा चुनाव का लक्ष्य पूरा करने के लिए पूर्वांचल में खुद को मजबूत करना बेहद अहम है. यही वजह कि बीजेपी का फोकस इस क्षेत्र पर है. इस क्षेत्र में अपना दल एस और निषाद पार्टी व संभासपा जैसे दलों के साथ उसका गठबंधन हैं। सर्वे के अनुसार, इस बार भी एनडीए अपना सुनहरा प्रदर्शन दोहरा रहा है. एनडीए गठबंधन 80 में से 73 सीटें जीतते हुए दिख रहा है. इसमें बीजेपी 70, अनुप्रिया पटेल का अपना दल 2, ओपी राजभर का सुभासपा 1 सीट जीत सकता है. वहीं विपक्षी गठबंधन ‘पीडीए सपा कांग्रइंडी में समाजवादी पार्टी 4, कांग्रेस 2, रालोद 1 सीट जीत सकता है. वहीं इस लोकसभा चुनाव में बसपा का हाथ खाली रहने वाला है. 2019 में 10 सीट जीतने वाली बसपा के इस बार एक भी सांसद नहीं जीतने वाले हैं. इस सर्वे के अनुसार, यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र की 29 लोकसभा सीटों में से बीजेपी गठबंधन को 28 सीटें, सपा गठबंधन को 1 सीट, बीएसपी और कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिलने का अनुमान जताया गया है.
पूर्वांचल की सोशल इंजीनियरिंग
पिछड़ा इलाका होने के बावजूद
यहां बिरादरी फर्स्ट, दल सेकंड और
मुद्दा लास्ट है. जातियों में
गुंथी यहां की राजनीति
में हर सवाल का
जवाब जाति ही है.
फिर चाहे रोजगार, आरक्षण,
विकास या कोई दूसरा
मुद्दा हो. पूर्वांचल
पिछड़ी, अति पिछड़ी, सवर्ण,
दलित समीकरण का कॉकटेल है.
यूं कहें छोटी-बड़ी
राजनीतिक पार्टियों की लेबोरेटरी. गोरखपुर
(ग्रामीण), संतकबीरनगर में निषाद जाति
की मौजूदगी है. वहीं जौनपुर,
आजमगढ़, कुशीनगर, देवरिया, बस्ती, वाराणसी में समुदाय की
उपजातियां जैसे मांझी, केवट,
बिंद, मल्लाह मिलती हैं. ये मछुआरों
और नाविक समुदाय के लोग हैं.
गैर-यादव ओबीसी और
गैर-जाटव दलित भी
कई इलाकों में प्रभावशाली हैं
और अक्सर चुनाव के नतीजे तय
करते हैं. जिनमें राजभर,
कुर्मी, मौर्य, चौहान, पासी, और नोनिया शामिल
हैं. हालांकि, राजभर समुदाय राज्य के कुल मतदाताओं
का केवल 4 फीसदी है. लेकिन पूर्वांचल के कई जिलों
खासतौर पर वाराणसी, आज़मगढ़,
जौनपुर, मऊ, बलिया में
इसके 12 फीसदी से 23 फीसदी तक वोटर हैं.
अपना दल का आधार
कुर्मियों के बीच है.
जो पूर्वांचल की आबादी का
9 प्रतिशत हैं और यादवों
के बाद दूसरा सबसे
बड़ा हिस्सा हैं. ब्राह्मण व
क्षत्रिय बीजेपी के ही वोट
माने जाते है। जिनकी
आबादी 8 फीसदी से अधिक है।
और धार्मिक विभाजन की त्रासदी दिखती
है तो विकास का
वह मॉडल भी दिखता
है, जिसकी पूंछ पकड़कर राजनीतिक
पार्टियां चुनावी नदी पार करने
की फिराक में रहती हैं।
फिलहाल, इस समय गाजीपुर
समाजवादी पार्टी की राजनीति का
ताकतवर केंद्र बना हुआ है।
इसके पीछे बड़ी वजह
पिछली विधानसभा चुनाव में सपा का
वह गठबंधन भी था, जिसमें
उसके साथ ओम प्रकाश
राजभर की पार्टी सुभासपा
को शामिल होना था। फिलहाल,
अब यह गठबन्धन टूट
चुका है। ओम प्रकाश
राजभर अपने कुनबे के
साथ भाजपा की गोद में
बैठ चुके हैं। भाजपा
आगामी लोकसभा चुनाव में सपा के
इस गढ़ को पूरी
तरह से ध्वस्त करने
का मंसूबा बनाती दिख रही है।
सर्वाधिक वोट पाने वाले नेता
पूर्वांचल के 12 सीट के चुनावी
परिणाम पर नजर डालें
तो अब तक के
लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी
ने सर्वाधिक वोटो से जीत
हासिल की है. 2019 लोकसभा
चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी
ने 63 फ़ीसदी से अधिक वोट
प्राप्त करते हुए 4,79,505 वोटों
के अंतर से जीत
हासिल की थी. वहीं
दूसरी तरफ सपा प्रमुख
अखिलेश यादव ने 2019 में
ही बीजेपी के दिनेश लाल
यादव निरहुआ को आजमगढ़ की
सीट पर 2,59, 874 वोटो से हराकर
पूर्वांचल की दूसरी सबसे
बड़ी जीत हासिल की
थी. तीसरे नंबर पर अपना
दल की अनुप्रिया पटेल
रही जिन्होंने 2,32,008 वोटो से 2019 लोकसभा
चुनाव में मिर्जापुर सीट
से जीत हासिल की
थी.
2019 में पूर्वांचल की इन सीटों पर चला ’ब्राह्मण कार्ड’
पूर्वांचल की 26 लोकसभा सीटों में से बीजेपी
17 और दो सीटें उसकी
सहयोगी अपना दल (एस)
जीतने में कामयाब रही.
वहीं, बसपा को 6 और
सपा को एक सीट
मिली है. पूर्वांचल ब्राह्मणों
का मजबूत गढ़ माना जाता
है. पूर्वांचल की अधिकतर सीटों
पर ब्राह्मण वोटर्स की महत्वपूर्ण भूमिका
रहती है. एक दौर
में ब्राह्मण पारंपरिक तौर पर कांग्रेस
के समर्थक थे, लेकिन मंडल
आंदोलन के बाद उनका
झुकाव बीजेपी की ओर हो
गया. बाद में ब्राह्मण
वोटर्स के एक बड़े
हिस्से का झुकाव मायावती
की बसपा की तरफ
भी हुआ और 2014 के
लोकसभा चुनाव में इस तबके
ने बीजेपी के पक्ष में
मतदान किया था. वर्ष
2019 के लोकसभा चुनाव में भी ब्राह्मण
बीजेपी के साथ मजबूती
के साथ खड़ा रहा
है. वैसे भी पूर्वांचल
के कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, बांसगांव, फैजाबाद, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, डुमरियागंज, महाराजगंज, अंबेडकरनगर, बस्ती, संत कबीर नगर,
आजमगढ़, घोषी, सलेमपुर, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वारणसी, भदोही, मिर्जापुर, फूलपुर, इलाहबाद और प्रतापगढ़ सीटों
पर ब्राह्मण वोटर्स की भूमिका अहम
रही.
माफियाओं की खेती बनी रही पूर्वांचल
चुनाव कोई भी हो,
पूर्वांचल के गोरखपुर, गाजीपुर,
प्रतापगढ़, जौनपुर, आजमगढ़, मऊ से लेकर
वाराणसी, प्रयागराज तक के साथ
किसी न किसी अपराधी
का नाम जरूर जुड़
जाता है। पूर्वांचल की
राजनीति में कभी मुख्तार
अंसारी और बृजेश सिंह
तो कभी राजा भैया,
अभय सिंह, खब्बू तिवारी, अमनमणि त्रिपाठी जैसे लोगों की
सियासत में सक्रियता बढ़
जाती है। चुनावी विश्लेषकों
के मुताबिक, पूर्वांचल की राजनीति में
अबकी बाहुबली बृजेश सिंह बीजेपी से
तालमेल करने वाले किसी
दल के टिकट से
चुनाव मैदान में उतरना चाहते
हैं। सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर ने पिछले विधानसभा
चुनाव में बाहुबली मुख्तार
अंसारी के लिए अपनी
पार्टी के दरवाजे खोले
थे और अबकी बीजेपी
से तालमेल बैठाकर वह बृजेश सिंह
के लिए सीट चाहते
हैं। कहा जा सकता
है पूर्वांचल की सियासी जमीन
बाहुबलियों के लिए मुफीद
है। देश में 90 के
दशक में अपराधियों के
राजनीतिकरण की शुरुआत हुई।
80 से 90 के दशक के
बीच. जब रेलवे के
ठेके पर वर्चस्व की
लड़ाई को लेकर बाहुबली
नेताओं ने पूर्वांचल के
माथे पर लकीर खींच
दी थी. अपराधी अब
राजनीति में एंट्री लेने
लगे थे. तब
हरिशंकर तिवारी, बृजेश सिंह, मुख्तार अंसारी, धनंजय सिंह जैसे माफियाओं
का नाम चलता था.
बताया जाता है कि
पूर्वांचल के रेल मुख्यालय
गोरखपुर स्टेशन पर जब ट्रेन
रुकती थी तो लोग
खिड़की बंद कर लेते
थे. टिकट घरों पर
उस रूट की टिकट
मांगी जाती थी जिस
पर गोरखपुर न पड़े. वर्तमान
में. फिलहाल यूपी के पूर्वी
इलाके की राजनीति और
अहमियत इसी बात से
साफ हो जाती है
कि पीएम मोदी ने
चुनाव लड़ने के लिए
गंगा किनारे बनारस को चुना. बीजेपी
के कद्दावर नेता और यूपी
के सीएम योगी आदित्यनाथ
का गढ़ भी पूर्वांचल
का गोरखपुर है. बृजेश सिंह
के कुनबे से जुड़े लोगों
का ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत, विधान
परिषद और विधानसभा के
चुनाव में दबदबा है।
बृजेश एमएलसी रह चुके हैं
और उनकी पत्नी अन्नपूर्णा
सिंह अभी एमएलसी हैं।
इस बार के आम
चुनाव में यह चर्चा
है कि खुद बृजेश
सिंह या उनके बेटे
चुनाव में किस्मत आजमा
सकते हैं। एक दौर
था तब भदोही, मिर्जापुर
और प्रयागराज की सियासत में
विजय मित्र की तूती बोलती
थी, मगर हाल के
दिनों में उसके ऊपर
कानून का इस कदर
शिकंजा कसा है कि
उसका सियासी रसूख तहस- नहस
हो गया है। ज्ञानपुर
सीट से विधायक रहे
विजय मिश्र को कभी मुलायम
सिंह यादव का करीबी
माना जाता रहा, मगर
अब उसके सितारे गर्दिश
में हैं।
पूर्वांचल का महत्व
काशी से लेकर
गहमर तक, मोक्ष और
नर्क के पौराणिक द्वारों
के बीच बसे पूर्वांचल
का राजनीतिक महत्व इसी बात से
स्पष्ट होता है कि
2014 में देश की सभी
लोकसभा सीटों को छोड़कर प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने चुनाव
लड़ने के लिए पूर्वांचल
का दिल गंगा किनारे
बसे पौराणिक शहर वाराणसी को
चुना. उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल इलाका
की एक अलग सियासी
पहचान है। पूर्वांचल से
लोकसभा की कुल 26 सीटें
निकलती हैं। जबकि 130 विधानसभा
की सीटें होती हैं। पूरे
यूपी की 32 फीसदी जनसंख्या पूर्वांचल में रहती है।
इसे प्रदेश का पिछड़ा इलाका
भी माना जाता है।
लेकिन पिछड़े होने के बावजूद
देश को पांच प्रधानमंत्री
देने वाला इलाका भी
ये पूर्वांचल ही है। इस
इलाके में पटेल ,राजभर,
निषाद और चौहान जाति
का बोलबाला रहता है। पूर्वांचल
में वाराणसी, जौनपुर, गोरखपुर, कुशीनगर, सोनभद्र, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, आजमगढ़, भदोही, मिर्जापुर, मऊ, गाजीपुर, बलिया,
सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा जैसे जिले आते
हैं।
क्या कहते है वोटर
गाजीपुर के अनवारुल हक
कहते है मुख्तार के
आतंक के दौरान लोगों
की बहुत हाय ली।
जिसका घर उनके जद
में आया, वो आज
भी खून के आंसू
रो रहा है। सालों
बाद अब कलेजे में
ठंडक पड़ी है। सुल्ताना
कहती हैं कि उन्होंने
सपा के समर्थन से
इसलिए हाथ खींच लिए
क्योंकि “वे वादे तो
खूब करतीं हैं लेकिन उनमें
से पूरा एक भी
नहीं किया. मुसलमान तो उनके लिए
महज वोट बैंक थे.”
सुल्ताना सवाल करती हैं,
“गरीबों, इमामों को पैसा देने
का क्या मतलब है?
सपा न तो विकास
का नक्शा तैयार कर सकी और
न ही वह शिक्षा
में सुधार, ठोस औद्योगिक नीति
और कृषि क्षेत्र पर
ध्यान दे सकी है.
राजेन्द्र सिंह का कहना
है कि सपा ने
मुस्लिम वोटरों के छिटक जाने
की खौफ के चलते
कम्प्रोमाइज कर 17 सीटों पर गठबंधन किया
है। सपा और कांग्रेस
के साथ आने से
पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक साथ आएंगे। कांग्रेस
का मूल वोटर बढ़ेगा
और सपा का वोट
बैंक भी जुड़ेगा। चुनाव
में मतों का बिखराव
भी नहीं होगा। कांग्रेस
और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी
तालमेल ने बीजेपी के
लिए पूर्वांचल की कई सीटों
पर चुनौतियां खड़ी कर दी
है। दलपत राय का
कहना है कि पूर्वांचल
में भूमिहार भी बीजेपी का
कोर वोटर माना जाता
रहा है। गाजीपुर जिले
के मूल निवासी मनोज
सिन्हा जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल हैं
और वह भूमिहार समुदाय
से हैं। बीजेपी को
लगता है कि पूर्वांचल
में भूमिहारों के बगैर सियासत
नहीं साधी जा सकती
है। इसके चलते ही
बीजेपी ने योगी मंत्रिमंडल
में एके शर्मा समेत
दो मंत्रियों को अहम जिम्मेदारी
सौंपी है। आजमगढ़, बनारस,
मऊ, बलिया, गाजीपुर, देवरिया, कुशीनगर और जौनपुर में
भूमिहार जातियों की तादाद इतनी
है जो सियासी हवा
का रुख मोड़ सकते
हैं। हरिराम का कहना है
कि यूपी में आदिवासी
समुदाय का कोई खास
बड़ा वोट बैंक नहीं
है, लेकिन बीजेपी उसे साधने की
जुगत में है। इसी
मकसद से बीजेपी ने
लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को राज्यपाल बनाया
है जो पीएम मोदी
के संसदीय क्षेत्र से आते हैं।
इनका जन्म आदिवासी खरवार
जाति के परिवार में
हुआ है। यूपी के
चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र में
खरवार, मुसहर, कोल, गोंड, चेरो
आदि जनजातियों का वर्चस्व है।
इनकी तादाद 20 लाख से अधिक
हैं। सोनभद्र, चंदौली, गोरखपुर, बलिया में मुसहर समेत
दर्जन भर आदिवासी जातियां
है, जिन्हें बीजेपी साधने की कोशिश कर
रही है। सरबजीत दुबे
का कहना है कि
पूर्वांचल की सियासत पर
जातियों का खासा प्रभाव
देखने को मिलता है।
पूर्वांचल के समीकरण को
देखते हुए बीजेपी नए
सिरे से सियासी दांव
चल रही है। ओबीसी
के अति पिछड़े समाज
के वोटों को बीजेपी हरहाल
में जोड़े रखना चाहती
है, क्योंकि पूर्वांचल की सियासत में
उनकी भूमिका काफी अहम है।
बसपा की सियासत से
निकले फागू चौहान को
पहले बीजेपी ने अपने साथ
लेकर यूपी की सियासत
को साधा। बिहार के बाद उन्हें
मेघालय का राज्यपाल बना
दिया। फागू चौहान ओबीसी
के नोनिया समाज से आते
हैं, जिनकी
मऊ, गाजीपुर और आजमगढ़ में
खासी आबादी है। रामखेलावन खरवार
कहते है ’’पूर्वांचल में
छुट्टा जानवरों का आतंक और
महंगी होती खेती ही
सबसे बड़ा मुद्दा है।
बीजेपी सरकार ने बड़ी चालाकी
के साथ यूरिया के
पैकेट का वजन घटा
दिया और अन्नदाता उफ
भी नहीं कर सके।
गौर करने की बात
यह है कि सरकार
जितना अनाज फोकट में
बांटती है, किसानों को
उससे ज्यादा नुकसान छुट्टा पशुओं से हो रहा
है। पूर्वांचल में सर्वाधिक धान-गेहूं की खेती बनारस
मंडल के चंदौली, गाजीपुर
और जौनपुर में होती है।
हालत यह है कि
छुट्टा पशुओं के चलते किसान
अपनी फसल नहीं बचा
पा रहे हैं। इन
पशुओं के हमले से
पूर्वांचल के दर्जनों किसानों
को अपनी जान से
हाथ धोड़ा पड़ा है।’’
पूर्वांचल यूपी के पिछड़े
इलाकों में आता है।
यह पूरी भोजपुरी बेल्ट
है, यहां ज्यादातर लोग
खेती-किसानी करते हैं। इस
बार बेरोजगारी और महंगाई के
अलावा सिर्फ किसानों के मुद्दे हैं।
एमएसपी की गारंटी सबसे
बड़ा मुद्दा है। पूर्वांचल के
किसानों की डिमांड है
कि सरकार धान-गेहूं पर
एमएसपी की गारंटी दे।
चंदौली के उतरौत गांव
के बनवारी लाल कहते हैं,
’’पंजाब और हरियाणा के
90 फीसदी से ज्यादा किसान
अपनी सारी उपज सरकार
को एमएसपी पर बेच लेते
हैं, जबकि पूर्वांचल में
सिर्फ रसूख वाले किसानों
का धान-गेहूं ही
सरकारी दाम पर बिक
पाता है। मोदी सरकार
से किसानों की लड़ाई जायज
है और वो यह
लड़ाई जीतते हैं तो पूर्वांचल
के किसान ही सबसे ज्यादा
फायदे में रहेंगे।’’
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