अमेठी : गढ़ छिनने-बचाने के बीच ’इमोशनल कार्ड’ का जोर
अमेठी-रायबरेली इन दिनों खासा चर्चा में है. भला क्यों नहीं, दोनों सीटों पर जीत की गारंटी को लेकर राहुल व प्रियंका की न सिर्फ साख, बल्कि नाक का भी जो सवाल बन गया है। खुद प्रियंका बांड्रा ने भाई राहुल व सलाहकार केएल शर्मा की जीत पक्की करने के लिए अमेठी व रायबरेली में डेरा डाल रखा है। जबकि भाजपा की स्मृति ईरानी व दिनेश सिंह को मोदी योगी सहित खुद के काम, राम मंदिर, राष्ट्रवाद व कल्याणकारी योजनाओं पर भरोसा है। बाजी किसके हाथ लगेगी ये तो 4 जून को पता चलेगा। लेकिन स्मृति ईरानी को तमाम काम व ग्लैमर के बावजूद “सशक्त इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वस्थ अमेठी” के नारों के साथ सीट बचाने के लिए हाड़तोड मेहनत करनी पड़ रही है। जबकि प्रियंका बांड्रा खानदानी गढ़ बचाने के लिए अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ दिया है। इसके लिए वह लोगों से अपनी भावनात्मक रिश्ता जोड़ते हुए, पिता को याद कर नुक्कड़ सभाओं में भावुक हो जा रही है कि कैसे उन्हें अपनी मां को बताना पड़ा था कि उनके पिता के साथ कुछ हुआ है. फिरहाल, गौरीगंज के श्यामनारायण यादव कहते है अगर भीतरघात नहीं हुआ तो स्मृति ईरानी ने इतने काम कराएं है कि उन्हें हराने के लिए इस बार कांग्रेस को नाकों चने चबाने पड़ेंगे। जबकि जगदीशपुर के इस्माइल खां व मुसाफिरखाना के जीतेन्द्र दुबे का कहना है कि जनता पिछली गलती दोहराना नहीं चाहती। अगर कांग्रेसियों ने भीतरघात नहीं किया तो जातिय समीकरण केएल शर्मा के पक्ष में है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि क्या केएल शर्मा गांधी परिवार के लिए अमेठी को बचा कर रख पाएंगे? खासकर तब जब पिछले कई चुनावों में कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। ऐसे में देखना है कि प्रियंका गांधी किस तरह से गांधी परिवार के गढ़ को वापस बीजेपी से छीन कर लाती हैं
सुरेश गांधीदेखा जाएं तो
अमेठी न सिर्फ गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ रही
है, बल्कि संजय गांधी, राजीव
गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी
प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
राहुल गांधी यहां से लगातार
तीन बार अमेठी के
सांसद रहे हैं. लेकिन
इस बार वह रायबरेली
सीट से चुनाव लड़
रहे हैं. देश की
हॉट सीटों में शुमार इस
सीट पर अब तक
दो उपचुनाव समेत 16 बार लोकसभा चुनाव
हुए हैं। जिनमें 13 बार
कांग्रेस ने चुनाव जीता
है। मतलब साफ है
कि अमेठी के कांग्रेसी चक्रव्यूह
को भेदना पहाड़ तोड़ने जैसा
है। हालांकि इस सीट पर
साल 1998 और 2019 में 2 बार बीजेपी और
साल 1977 में एक बार
जनता पार्टी चुनाव जीत चुकी है।
बाकी बसपा-सपा समेत
तमाम दूसरी पार्टियों को यहां से
सफलता हाथ नहीं लग
सकी। साल 2014 की मोदी लहर
में भी कांग्रेस के
राहुल गांधी यहां से चुनाव
जीतकर संसद पहुंचे थे।
जबकि बीजेपी से टीवी स्टार
स्मृति ईरानी और आम आदमी
पार्टी से मशहूर कवि
कुमार विश्वास उसके सामने मैदान
में थे, लेकिन राहुल
गांधी ने बीजेपी और
आप से फिर भी
चुनाव में पार पा
लिया था। वैसे ये
सीट दलित, ओबीसी, ठाकुर, मुस्लिम और ब्राह्मण बहुल
मानी जाती है। बाकी
बिरादरी यहां निर्णायक भूमिका
में है। ओबीसी, दलित
और सवर्ण वोट बैंक की
बदौलत फिलहाल इस सीट पर
बीजेपी का कब्जा है।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी यहां पर बीजेपी
की सांसद हैं और राहुल
गांधी को हरा चुकी
हैं। पिछले चुनाव में अगर हार-जीत को देखें,
तो राहुल और ईरानी में
55 हजार वोटों का अंतर था।
जबकि इससे पहला यानी
2014 का चुनाव राहुल गांधी एक लाख से
अधिक वोटों से स्मृति ईरानी
को हराकर ही जीते थे।
हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में मिलकर लड़
रहीं सपा-बसपा ने
अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था।
जबकि हर बार बसपा
यहां पर दूसरे स्थान
पर रहती थी।
अगर साल 2014 और 2019 के चुनाव को छोड़ दें। शायद इसी का लाभ बीजेपी और ईरानी को 2019 के चुनाव में मिला और राहुल गांधी चुनाव हार गए। लेकिन इस बार जिस तरह प्रियंका बांड्रा ने अमेठी व रायबरेली को अपनी स्मिता से जोड़ दिया है। उससे साफ है कड़ा मुकाबला देखने को मिलने वाला है। ऐसे में अमेठी में फिर खिलेगा ’कमल’ या ’कांग्रेस’ को मिलेगा जनता का साथ? या यूं कहे कायम रहेगी स्मृति या पब्लिक पकड़ेगी ’हाथ’? का सवाल बना हुआ है। इसकी बड़ी वजह यह है कि इस सीट पर सपा और कांग्रेस की रणनीति पर सपाई ही पलीता लगा रहे है। खासकर महाराजी का बदला रुख गठबंधन की परेशानी बढ़ा सकता है। वह परोक्ष रूप से स्मृति ईरानी का समर्थन करती दिख रही है। चुनावी मैदान में उतरकर महाराजी प्रजापति अपने वोट बैंक को अलग संदेश देने की कोशिश में हैं। गायत्री प्रजापति की पत्नी और सपा विधायक महाराजी प्रजापति अपने बेटे अनुराग प्रजापति के साथ अमेठी में चुनाव प्रचार कर रही हैं। राज्यसभा चुनाव में वोटिंग से किनारा करके उन्होंने भाजपा की ही मदद की थी। अब फिर से उनकी ओर से एक बार फिर आरोप लगाया जा रहा है कि सपा ने मुसीबत में उनका साथ नहीं दिया। अखिलेश यादव पर पहले भी मुसीबत में अपने नेताओं का साथ नहीं देने का आरोप लगता रहा है।
दरअसल, महाराजी के पति और मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे गायत्री प्रजापति पर पीएमएलए के तहत ईडी की कार्रवाई चल रही है। वे जेल में बंद हैं। राज्यसभा चुनाव में महाराजी के रुख में बदलाव को इसी नजरिए से देखा जा रहा है। बता दें, अमेठी में प्रजापति वोटर काफी महत्वपूर्ण हैं। यूपी चुनाव 2022 के दौरान प्रजापति वोटर एकमुश्त सपा के पाले में चले गए। इससे महाराजी प्रजापति की राह आसान हो गई। हार-जीत को तय करने वाले ये वोटर्स इस बार के चुनाव में किस तरफ रुख करते हैं, देखना दिलचस्प होगा। स्मृति ईरानी से लेकर कांग्रेस तक इस वोट बैंक को साधने में जुटे हैं। जबकि प्रियंका गांधी के लिए रायबरेली से ज्यादा अमेठी सीट पर साख दांव पर लगी है, क्योंकि 2019 में राहुल की हार कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था. पिछले 5 सालों में स्मृति ईरानी ने अमेठी में अपनी सियासी जड़े मजबूत की है, जिसके चलते कांग्रेस के लिए इस बार सियासी राह आसान नहीं है. ऐसे में देखना है कि प्रियंका गांधी किस तरह से गांधी परिवार के गढ़ को वापस बीजेपी से छीन कर लाती हैं.
जातीय समीकरण
अमेठी लोकसभा के अंतर्गत विधानसभा
की कुल पांच सीटें
हैं। जिसमें अमेठी जिले की तिलोई,
जगदीशपुर व रायबरेली की
सलोन सुरक्षित है। जबकि अमेठी
और गौरीगंज सामान्य है। साल 2022 में
हुए विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा
क्षेत्र की पांच सीटों
में से तीन पर
बीजेपी का कब्जा है।
जबकि दो सीट सपा
के खाते में हैं।
कांग्रेस के पास इस
क्षेत्र की कोई सीट
नहीं है। हालांकि इस
चुनाव में सपा और
कांग्रेस का गठबंधन है।
मगर राज्यसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी
को वोट देकर सपा
के दोनों विधायक पाला बदल चुके
हैं। अमेठी में लगभग 26 फीसदी
यानि की करीब 4 लाख
वोटर मुस्लिम समाज से हैं,
जबकि लगभग साढ़े तीन
लाख वोटर दलित समाज
के हैं। यादव, राजपूत
और ब्राह्मण भी इस सीट
पर निर्णायक भूमिका में हैं। ऐसे
में जातीय समीकरण के हिसाब से
कांग्रेस को लगता है
कि उनको फायदा हो
सकता है। लेकिन बीते
पांच सालों में स्मृति ईरानी
ने यहां पर जो
काम करवाए और स्थानीय लोगों
का भरोसा जीतने का काम किया,
उस आधार पर उन्हें
वोट मिलेंगे। स्मृति ईरानी ने अमेठी में
घर भी बनवा लिया
है। वह लगातार लोगों
के बीच जाकर जनसंपर्क
कर रही हैं। किशोरी
लाल शर्मा के बहाने अमेठी
में प्रियंका ’चिड़िया से बाज लड़ाने’
की तैयारी कर रही है।
इसका जिम्मा खुद उन्होंने संभाला
है। भेटुआ के गजोधर सिंह
कहते हैं कि स्मृति
ईरानी के साथ जिले
के बड़े ठाकुर नेता
हैं। ब्राह्मणों की जगह कम
है। इसलिए अगर यह लड़ाई
ब्राह्मण बनाम ठाकुर में
बदली, तो स्मृति ईरानी
को इसकी कीमत चुकानी
पड़ सकती है। क्योंकि
अमेठी में 20 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाता हैं। 18 फीसदी ब्राह्मण, 12 फीसदी क्षत्रिय हैं। सबसे अधिक
34 फीसदी ओबीसी, 26 फीसदी दलित हैं। जातियों
का यह खेल इस
बार भाजपा के लिए भारी
पड़ सकता है। शुकुल
बाजार के हेमंत प्रजापति
कहते है लड़ाई कांटे
की है। लेकिन भाजपा
की डबल इंजन सरकार
ने जनमानस के आरोग्य हेतु
अनेकों कदम उठाए हैं।
इसका फायदा उसे जरुर मिलेगा।
अब यहां से गांधी
फैमिली का वर्चस्व टूट
चुका है। राहुल गांधी
केरल की वायनाड सीट
से निर्वाचित हो गए। और
फिर अमेठी का रूख नहीं
किया, यह सब याद
है।
कुल मतदाता
अमेठी में कुल मतदाताओं
की संख्या 17 लाख 16 हजार 602 है, जिसमें 9 लाख
11 हजार 525 पुरुष मतदाता हैं। वहीं 8 लाख
4 हजार 932 महिला मतदाता भी हैं। 5855 दिव्यांग
मतदाता तथा 145 अन्य मतदाता शामिल
हैं। 2024 के लोकसभा में
लगभग 25 हजार नए मतदाता
शामिल हैं। 2011 की जनगणना के
आंकड़ों के मुताबिक अमेठी
की 72.16 फीसदी जनसंख्या साक्षर है. इनमें पुरुष
83.85 फीसदी और महिलाओं की
साक्षरता दर 60.64 फीसदी है.
2019 का चुनाव परिणाम
2019 में हुए चुनाव
में बीजेपी की स्मृति ईरानी
ने कांग्रेस के राहुल गांधी
को 55 हजार से अधिक
वोटों के अंतर से
हराया था। स्मृति ईरानी
को कुल 4 लाख 68 हजार 514 वोट मिले थे।
जबकि राहुल गांधी को 4 लाख 13 हजार
394 वोट मिले थे। वहीं
तीसरे नंबर पर नोटा
को 3 हजार 940 वोट मिले थे।
2014 का चुनाव परिणाम
2014 में हुए लोकसभा
चुनाव में मोदी लहर
के बावजूद कांग्रेस ने बाजी मारी
थी। अमेठी से कांग्रेस के
राहुल गांधी ने बीजेपी की
तेजतर्रार नेता स्मृति ईरानी
को एक लाख से
अधिक वोटों के अंतर से
चुनाव हराया था। राहुल गांधी
को कुल 4 लाख 8 हजार 651 वोट मिले थे।
जबकि स्मृति ईरानी दूसरे नंबर पर रही
थी। स्मृति ईरानी को कुल 3 लाख
748 वोट मिले थे। वहीं
तीसरे नंबर पर बसपा
के धर्मेंद्र प्रताप सिंह थे। धर्मेंद्र
को कुल 57 हजार 716 वोट मिल पाए
थे।
इनके बीच है सियासी लड़ाई
इस सीट पर
कुल 13 उम्मीदवार लड़ाई में हैं.
बीजेपी से केंद्रीय मंत्री
स्मृति ईरानी, कांग्रेस से किशोरी लाल
शर्मा और बीएसपी से
नन्हें सिंह चौहान उम्मीदवार
हैं.
कांग्रेस का घटता मत प्रतिशत
साल 2007 के बाद से
हुए हर विधानसभा चुनाव
में कांग्रेस का इन पांच
विधानसभा सीटों में वोट प्रतिशत
घटा है. चुनाव आयोग
के आंकड़ों के मुताबिक 2007 विधानसभा
चुनाव में कांग्रेस का
वोट शेयर 34.2 फीसदी था, जो 2012 विधानसभा
चुनाव में घटकर 29.2 फीसदी
हो गया था. इसके
बाद 2017 विधानसभा चुनाव में 24.7 फीसदी और 2022 विधानसभा चुनाव में ये महज
14.2 फीसदी रह गया था.
2019 लोकसभा चुनाव के आंकड़ों में
नजर डालें तो अमेठी की
पांच विधानसभा में से केवल
एक में राहुल गांधी
आगे रहे थे. तिलोई
विधानसभा सीट में राहुल
गांधी को 81,128 वोट और स्मृति
ईरानी को 96292 वोट, सलोन में
राहुल गांधी को 88,285 और स्मृति ईरानी
को 90,195 वोट, जगदीशपुर में
राहुल गांधी को 84,063 वोट, स्मृति ईरानी
को 1,01,977, गौरीगंज में राहुल गांधी
को 79,013, स्मृति ईरानी को 98,986 और अमेठी में
राहुल गांधी को 80,378 और स्मृति ईरानी
को 80,146 वोट मिले थे.
इतिहास
अमेठी, राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण लोकसभा
क्षेत्र है। इसे बसपा
सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर 1 जुलाई
2010 को अस्तित्व में लाया गया
था। गौरीगंज शहर अमेठी जिले
का मुख्यालय है। शुरुआत में
इसका नाम छत्रपति साहूजी
महाराज नगर था बाद
में बदलकर इसका नाम अमेठी
कर दिया गया है।
यह भारत के गांधी
परिवार की कर्मभूमि है।
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु उनके पोते संजय
गांधी, राजीव गांधी और उनकी पत्नी
सोनिया गांधी ने इस जिले
का प्रतिनिधित्व किया है। देवी
पाटन धाम, हिन्दू धार्मिक
मंदिर, उल्टा गढ़ा हनुमान मंदिर,
हनुमान गढ़ी मंदिर, सती
महरानी मंदिर और मालिक मोहम्मद
जायसी की मस्जिद यहां
के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
कौन है केएल शर्मा
सोनिया गांधी जब रायबरेली से
सांसद थीं तो किशोरी
लाल शर्मा उनके सांसद प्रतिनिधि
हुआ करते थे. इसलिए
क्षेत्र के वोटरों के
बीच अच्छी पकड़ है. किशोरी
लाल शर्मा लंबे समय से
अमेठी और रायबरेली में
कांग्रेस पार्टी के कार्यों को
देखते रहे हैं. वह
लोकल मुद्दे और लोकल वोटरों
को लुभाने की कला जानते
हैं. मूल रूप से
पंजाब के रहने वाले
किशोरी लाल शर्मा पहली
बार 1983 में राजीव गांधी
के साथ अमेठी पहुंचे
थे. उसके बाद से
वह लगातार अमेठी में कांग्रेस पार्टी
के लिए काम कर
रहे हैं. क्षेत्र में
किशोरी लाल शर्मा कितने
पुराने और सक्रिय हैं.
इसका अंदाजा इसी से लगा
सकते हैं कि 1991 में
राजीव गांधी की मौत के
बाद भी जब दूसरे
नेता इस सीट से
सांसद बने तो किशोरी
लाल शर्मा उनके लिए काम
करते थे।
फिर से कब्जा करने को आतुर स्मृति
दुसरी तरफ भाजपा से
एकबार फिर स्मृति ईरानी
मैदान में है। 2019 में
उन्होंने बड़ा उलटफेर करते
हुए सबको चौंका दिया
था। वह भाजपा की
कद्दावर नेता हैं। स्मृति
ईरानी ने राहुल गांधी
को 55,120 वोटों के अंतर से
हराया था। ऐसे में
इस बार भी कांग्रेस
के लिए अमेठी की
राह आसान नहीं होने
वाली है।
कब कौन जीता
1967 में हुए परिसीमन
के बाद वजूद में
आई अमेठी में 1977, 1998 व 2019 का चुनाव छोड़
दें तो कांग्रेस ही
कब्जा रहा है। अमेठी
सीट पर साल 1967 में
पहली बार हुए चुनाव
में कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी
सांसद बने। विद्याधर साल
1971 में भी दोबारा सांसद
चुने गए। हालांकि साल
1977 के चुनाव में कांग्रेस ने
संजय गांधी को यहां से
चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन
संजय गांधी जनता पार्टी के
रविंद्र प्रताप सिंह से चुनाव
हार गए। यह अलग
बात है कि 1980 के
चुनाव में संजय गांधी
जीत तो गए लेकिन
कुछ ही दिन बाद
एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत
हो गई थी। 1981 के
उपचुनाव में राजीव गांधी
अमेठी से चुनाव लड़े
और वो सांसद चुने
गए। साल 1984 में इंदिरा गांधी
की हत्या के बाद हुए
चुनाव में राजीव गांधी
इस सीट पर एक
बार फिर मैदान में
उतरे थे। राजीव गांधी
के सामने उनके भाई संजय
की पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय मैदान में थी। लेकिन
राजीव गांधी इसके बावजूद चुनाव
जीत गए। वहीं मेनका
गांधी महज 50 हजार वोटों पर
ही सिमट गई थी।
राजीव गांधी ने यहां से
साल 1989 और 1991 में भी चुनाव
जीता। हालांकि साल 1991 के नतीजे आने
से पहले राजीव गांधी
की हत्या कर दी गई
थी। इसके बाद हुए
उपचुनाव में कांग्रेस के
कैप्टन सतीश शर्मा यहां
से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। साल
1996 में भी सतीश शर्मा
ही यहां से सांसद
चुने गए थे। लेकिन
साल 1998 में सतीश शर्मा
बीजेपी के संजय सिंह
से चुनाव हार गए। इसके
बाद साल 1999 में राजीव गांधी
की पत्नी सोनिया गांधी ने राजनीति में
कदम रखा। सोनिया
गांधी ने अपने पति
की सीट को ही
चुनाव लड़ने के लिए
चुना था। अमेठी को
सोनिया ने अपनी सियासी
कर्मभूमी बनाया। यहां की जनता
ने सोनिया गांधी को चुनाव जीता
कर पहली बार संसद
पहुंचा दिया। लेकिन साल 2004 के अगले ही
चुनाव में सोनिया गांधी
ने अपने बेटे राहुल
गांधी के लिए इस
सीट को छोड़ दिया
था। साल 2004 से 2014 तक राहुल गांधी
लगातार तीन चुनाव यहां
से जीते। हालांकि हैट्रिक लगाने के बावजूद साल
2019 का चुनाव राहुल गांधी बीजेपी की स्मृति ईरानी
से नजदीकी मुकाबले में हार गए।
इस जीत से बीजेपी
अमेठी की सीट को
दूसरी बार जीतने में
सफल हो गई। वहीं
राहुल गांधी को हराकर रिकॉर्ड
भी बना दिया।
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