Friday, 10 May 2024

रायबरेली : रामलहर में दादी व मां की विरासत को सहेजने की चुनौती?

रायबरेली : रामलहर में दादी मां की विरासत को सहेजने की चुनौती?

   दादी इंदिरा और मां सोनिया की विरासत को सहेजने के लिए प्रियंका बांड्रा रायबरेली में डेरा डाल दिया है। मकसद है ऐनकेन प्रकारेण राहुल गांधी को संसद भेजने की। जबकि 2019 में सोनिया से मात खा चुके भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह इस बार बख्सने के मूड में नहीं है। विरासत विकास की इस जंग में बाजी किसके हाथ लगेगी ये तो 4 जून को पता चलेगा। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या श्रीराम मंदिर, विकास, 370 राष्ट्रवाद सहित मोदी-योगी लहर में राहुल गांधी दादी इंदिरा मां सोनिया की विरासत को सहेज पायेंगे? देखा जाएं तो रायबरेली लोकसभा की ऐसी सीट है जहां देश के आजाद होने के बाद जब भी गांधी परिवार का सदस्य उतरा, उसे जीत निश्चित तौर पर मिली है. लेकिन इससे इतर याकूब कुरैशी कहते है रायबरेली की लड़ाई, ’डरो मतबनामभागो मत’! हो गयी है। मतलब साफ है राहुल के लिए यहां की सीट बहुत मुश्किल नहीं तो बहुत आसान भी नहीं होगी. जबकि धनखड़ यादव कहते है रायबरेली मतलब कांग्रेस के लिए जीत की गारंटी. इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के दौर में भी कांग्रेस ने यहां से सीट जीती थी. 1977 की इमरजेंसी की बात छोड़ दें तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हों या उनके बाद सोनिया गांधी दोनों की जीत सुनिश्चित रही है 

सुरेश गांधी

रायबरेली लोकसभा सीट का राजनीतिक रूप के साथ साहित्य रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है. महावीर प्रसाद द्विवेदी, मालिक मोहम्मद जायसी आदि कई ऐसी हस्तियां हैं, जिन्होंने रायबरेली के नाम को रोशन किया है. खासकर, रायबरेली लोकसभा ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए एक महल के रूप में काम किया है क्योंकि उन्होंने इस सीट पर लड़े गए 20 लोकसभा चुनावों में से 17 में जीत हासिल की है (तीन उप-चुनावों सहित) यही वजह है कि रायबरेली देश की हॉट लोकसभा सीटों में शामिल हैं. क्योंकि यह भारतीय राजनीति के कई महत्वपूर्ण नामों, जैसे इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, फ़िरोज़ गांधी आदि का गढ़ रहा है। देश के सबसे प्रभावशाली प्रधानमंत्रियों में से एक, श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी करीब एक दशक तक इस सीट को अपना गढ़ बनाए रखा. हालांकि, इस सीट से सबसे सफल नेता पूर्व कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी हैं, जिन्होंने इस सीट से एक के बाद एक पिछले पांच लोकसभा चुनाव जीते (2006 के उपचुनाव सहित) चूंकि यह गांधी परिवार की पुरानी सीट रही है, इसलिए राहुल गांधी के नामांकन के बाद चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है. उनका मुकाबला भाजपा के दिनेश प्रताप सिंह एवं बसपा के ठाकुर प्रसाद यादव से होगा

हालांकि यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में गठबंधन हैं, इसलिए उनका मुकाबला सीधे-सीधे बसपा और बीजेपी से है. यह अलग बात है कि राहुल की जीत पक्की करने के लिए बहन प्रियंका गांधी बहनोई राबर्ट वाड्रा ने रायबरेली में डेरा डाल रखा है। वह लोगों के बीच कहती है दादी मां ने राहुल को संपति नहीं शहादत की विरासत सौंपी है और इस विरासत को संभालने में रायबरेली की जनता उनके साथ है। रायबरेली के थुलवासा में एक नुक्कड़ सभा में उन्होंने कहा, ’जब उन्हें इंदिराजी (इंदिरा गांधी) की कोई नीति पसंद नहीं आई तो उन्होंने उन्हें भी हरा दिया। इंदिरा गुस्सा नहीं हुईं बल्कि आत्ममंथन किया। आपने उन्हें दोबारा चुना। यह रायबरेली के लोगों की खासियत है कि वे नेताओं को समझते हैं।जबकि लालगंज के बनवारी लाल कहते हे राहुल को अपनी मां दादी की राजनीतिक विरासत को संभालना आसान नहीं होगा. क्योंकि राहुल का मुकाबला पुराने कांग्रेसी दिनेश प्रताप सिंह से है. या यूं कहे कांग्रेस की भले ही तूती बोलती हो, लेकिन यहां कई सियासी क्षत्रप हैं, जिनका अपना-अपना सियासी असर और रसूख है. यानी रायबरेली में भले ही राहुल गांधी बनाम दिनेश प्रताप सिंह के बीच मुकाबला हो, लेकिन नजर जिले के सियासी मठाधीशों पर भी है. दिनेश प्रताप सिंह के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनों की भितरघात की है, तो कांग्रेस के लिए सहयोगी दल सपा के नेताओं का विश्वास जीतने की है. बाहुबली अखिलेश सिंह भले ही अब दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनकी बेटी अदिति सिंह से लेकर उनके भतीजे मनीष सिंह तक सियासत में सक्रिय हैं. अदिति सिंह बीजेपी से विधायक हैं.

   रायबरेली की सियासत में सपा विधायक मनोज पांडेय ब्राह्मण चेहरे के तौर पर उभरे हैं. रायबरेली के ऊंचाहार सीट से लगातार तीन बार से मनोज पांडेय विधायक हैं और सपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं. राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने के साथ ही बागी रुख अपना रखा है. मनोज पांडेय भले ही बीजेपी में नहीं शामिल हुए हैं, लेकिन उनके बेटे और भाई ने बीजेपी की सदस्यता ले ली है. दिनेश प्रताप सिंह के नामांकन करने के बाद डिप्टी सीएम बृजेश पाठक को लेकर मनोज पांडेय के घर गए थे, जहां दोनों ही नेताओं ने गले मिलकर आपसी गिले-शिकवे मिटाने की कोशिश की. मनोज पांडेय और दिनेश प्रताप सिंह की निजी अदावत नहीं रही है, लेकिन दोनों में सियासी वर्चस्व रहा है. मनोज पांडेय अभी तक दिनेश प्रताप सिंह के लिए खुलकर प्रचार करते नजर नहीं आए हैं, क्योंकि सपा से विधायक हैं. मनोज पांडेय के ज्यादातर समर्थक नेता दिनेश प्रताप सिंह के बजाय राहुल गांधी को जिताने की मुहिम में जुटे हुए हैं. मनोज पांडेय के समर्थकों के सोशल मीडिया से उसे बखूबी समझा जा सकता है. मनोज पांडेय के कांग्रेस के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं. उनके गृह प्रवेश में सोनिया गांधी भी पहुंची थीं.

  दिनेश प्रताप सिंह वर्तमान में योगी सरकार में मंत्री हैं. 2019 से पहले वे कांग्रेसी हुआ करते थे. दिनेश प्रताप सिंह पूर्व में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं. वे 2010 से 2016 और 2016 से 2022 तक एमएलसी रहे. 2018 में वे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. तीसरी बार वे फिर से जीते और योगी सरकार में मंत्री बने. 2019 के लोकसभा चुनाव में दिनेश प्रताप सिंह रायबरेली सीट से सोनिया गांधी के खिलाफ बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में सोनिया गांधी को 5.34 लाख वोट मिले थे, जबकि दिनेश प्रताप सिंह को 3.67 लाख वोट. यह सोनिया गांधी की रायबरेली में अब तक की सबसे कम अंतर की जीत थी. इसके अलावा रायबरेली में दिनेश प्रताप सिंह के समर्थन में सपा के बागी विधायक मनोज पांडे भी गए हैं. इससे बीजेपी का पक्ष और ज्यादा मजबूत हो गया है. क्योंकि रायबरेली लोकसभा सीट भले ही गांधी परिवार की हो, लेकिन यहां विधानसभा सीटों पर सपा का डंका बजता है. ऐसे में सपा गठबंधन से कांग्रेस को फायदा मिल सकता है.

पांच विधानसभा में चार विधानसभा सीटों पर सपा के विधायक हैं. यह अलग बात है कि रायबरेली सीट गांधी परिवार की पारंपरिक सीट रही है. यहां के लोगों का गांधी परिवार से खास लगाव है. लेकिन ये भी सच ही गांधी परिवार की ही एक और पारंपरिक सीट अमेठी लोकसभा सीट पर पिछले चुनावों में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने सेंध लगाकर कब्जा कर लिया था. जिस प्रकार पूरे देश में कांग्रेस का गढ़ लगभग ढहता जा रहा है, उस हिसाब से रायबरेली की जनता भी अमेठी की तरह की उलटफेर कर दे, से इनकार नहीं किया जा सकता. इसके अलावा खुद सोनिया गांधी इस बार रायबरेली सीट छोड़कर राजस्थान से राज्यसभा की सीट पर संसद पहुंच गई हैं. यह भी एक प्रकार से रायबरेली की जनता को सोनिया गांधी का बीच में छोड़ना ही हुआ. इसका असर भी चुनावों में दिखाई दे सकता है. 

कुल मतदाता

रायबरेली लोकसभा सीट पर 5वें चरण में 20 मई को मतदान होगा. इस सीट पर कुल 21 लाख, 45 हजार, 820 मतदाता हैं. इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 11.20 लाख और महिला वोटरों की संख्या 10.25 लाख है. रायबरेली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पांच विधान सभा सीट बछरावां, हरचंदपुर, रायबरेली, सरेनी और ऊंचाहार शामिल हैं. इनमें से रायबरेली सीट से बीजेपी की अदिति सिंह विधायक हैं, बाकि 4 पर सपा का कब्जा है. मनोज पांडे ऊंचाहार विधानसभा सीट से विधायक हैं.

2014 2019 में कांग्रेस की जीत

रायबरेली लोकसभा सीट से साल 2019 आम चुनाव में सोनिया गांधी ने जीत हासिल की थी. सोनिया गांधी के खिलाफ बीजेपी ने दिनेश प्रताप सिंह को मैदान में उतारा था. लेकिन सोनिया गांधी ने एक लाख 67 हजार वोटों से जीत हासिल की. 2014 में मोदी लहर में भी सोनिया गांधी ने यहां से चुनाव लड़ा था। तब सोनिया को 5,26,434 वोट हासिल हुए थे, जबकि भाजपा के अक्षय अग्रवाल 1,73,721 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। इस तरह सोनिया 3,52,713 वोटों से जीत दर्ज करने में कामयाब रही थीं। देखा जाएं तो 2009 में सोनिया गांधी को 72.23 फीसदी वोट मिले थे. जबकि बीजेपी को सिर्फ 3.8.2 फीसदी वोट मिला. बीजेपी और कांग्रेस के बीच तब वोटों का अंतर 68.41 फीसदी का था. इसके बाद 2014 के चुनाव में सोनिया गांधी को 63.80 फीसदी वोट मिले और बीजेपी को 21.05 फीसदी वोट मिले. यानी कांग्रेस को (-8.43 फीसदी) वोट का नुकसान हुआ और बीजेपी को ($17.23 फीसदी) वोट का फायदा. दोनों पार्टियों के वोट का अंतर घटकर 42.75 फीसदी हो गया. 2019 में सोनिया गांधी को 55.78 फीसदी वोट मिले और बीजेपी को 38.35 फीसदी वोट मिले, यानी कांग्रेस को (-8.02 फीसदी) का नुकसान हुआ और बीजेपी को ($17.3 फीसदी) का फायदा. जीत हार का अंतर घटकर 17.43 फीसदी रह गया है. अब चौथी अहम बात ये है कि रायबरेली में पिछली बार बीजेपी 17.43 फीसदी वोट के अंतर से हारी है और लगातार दो चुनाव में 7 फीसदी से ज्यादा वोट बढ़ाती रही है. 

जातिय समीकरण

रायबरेली में सबसे ज्यादा एससी वर्ग (दलित), ब्राह्मण और राजपूत मतदाताओं की आबादी है। यहां पर ब्राह्मण 11 प्रतिशत, ठाकुर 9 प्रतिशत, यादव 7 प्रतिशत, एससी वर्ग 34 फीसद हैं। जबकि मुस्लिम वोटरों की संख्या 6 फीसदी है। वहीं, लोध-6, कुर्मी-4 और अन्य वर्गों की कुल 23 प्रतिशत आबादी है।

कब कौन जीता

कांग्रेस के दिग्गजों का रायबरेली से संबंध आजादी पूर्व से है. 7 जनवरी 1921 में ही पं. मोतीलाल नेहरू ने अपने प्रतिनिधि के रूप में जवाहरलाल नेहरू को यहां भेजा था. यहां तक कि 8 अप्रैल 1930 में यूपी में दांडी यात्रा के लिए भी रायबरेली को ही चुना गया था. उस वक्त पं. मोतीलाल नेहरू खुद रायबरेली गए थे. इस प्रकार ऐसे कई वाकये हैं जब गांधी-नेहरू परिवार का रायबरेली से निकटता बढ़ती गई और उन्होंने आगे चलकर इसे अपना चुनाव क्षेत्र बनाया. आजादी के बाद जब देश में पहली बार लोकसभा का चुनाव हुआ तो फिरोज गांधी ने रायबरेली सीट पर 1952 और 1957 के चुनाव में यहां से जीत दर्ज की। 1960 में कांग्रेस के ही आरपी सिंह और 1962 के उपचुनाव में बैजनाथ कुरील चुनाव जीते थे. फिरोज गांधी के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रायबरेली में चुनावी मोर्चा संभाल लिया. उन्होंने 1967 से 1971 तक जीत दर्ज की. 1975 से 77 तक देश में आपातकाल का दौर रहा. 1977 के चुनाव में तो राजनारायण से वो हार गईं लेकिन 1980 में उन्होंने वापसी की. तब उन्होंने रायबरेली के साथ-साथ संयुक्त आंध्र प्रदेश की मेंडक सीट से भी चुनाव जीता था. ऐसे में उन्होंने रायबरेली को छोड़कर मेंडक को बनाए रखा. इंदिरा गांधी के रायबरेली छोड़ने के बाद लंबे समय तक परिवार के किसी सदस्य को यहां के चुनावी मैदान में नहीं उतारा गया। हालांकि, इंदिरा के बाद यहां से उनके रिश्तेदार अरुण नेहरू को जरूर प्रत्याशी बनाया गया. अरुण नेहरू मोतीलाल नेहरू के चचेरे भाई के पोते थे. अरुण नेहरू 1981 से 1984 तक यहां से सांसद रहे. लेकिन इसके बाद वो जनता दल में शामिल हो गए. इसके बाद कांग्रेस ने यहां से शीला कौल को उम्मीदवार बनाया. शीला कौल भी गांधी परिवार की रिश्तेदार थीं. शीला कौल सन् 1989 से लेकर 1991 तक रायबरेली सीट से लोकसभा की सांसद चुनी गईं. उनके बाद सन् 1996 में शीला कौल के बेटे विक्रम कौल तो सन् 1998 में शीला कौल की बेटी दीपा कौल को रायबरेली से उतारा तो गया लेकिन दोनों चुनाव नहीं जीत सके. इसके बाद सन् 1999 में कांग्रेस ने राजीव गांधी के दोस्त कैप्टन सतीश शर्मा को यहां से टिकट दिया, जो रायबरेली से सांसद बने. इस साल सोनिया गांधी पहली बार अमेठी से चुनावी मैदान में उतरीं और चुनी गयी। जब राहुल गांधी ने चुनावी राजनीति में कदम रखा तो सोनिया ने राहुल को अमेठी सीट दे दी और वह खुद रायबरेली चली आईं. तब से सोनिया ने यहां से लगातार चार बार चुनाव जीता है लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सोनिया ने रायबरेलीवासियों के नाम एक भावुक पत्र लिखकर उन्हें आभार जताया और चुनावी राजनीति से दूर हो गईं.

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