अयोध्या में ‘रामभरक्तों’ की नहीं, ‘शाह’ के ‘सोशल इंजिनियरिंग’ की हार है!
फैजाबाद
लोकसभा
सीट
पर
भाजपा
की
करारी
हार
के
लिए
लोग
भले
ही
अयोध्यावासियों
को
कोस
रहे
हैं।
त्रेता
युग
की
याद
दिलातें
हुए
उन्हें
निर्दयी
जैसे
तरह-तरह
के
शब्दों
से
ट्रोल
कर
रहे
हो।
लेकिन
हकीकत
यह
है
कि
अयोध्या
में
रामभक्तों
की
जीत
हुई
है,
हारा
तो
वहां
की
टुकड़ों
में
बंटी
जातियां
है।
मतलब
साफ
है
कि
पांच
विधानसभाओं
वाली
फैजाबाद
लोकसभा
क्षेत्र
में
जहां
मर्यादा
पुरुषोत्तम
श्रीराम
का
मंदिर
है,
उस
अयोध्या
विधानसभा
में
रामभक्तों
ने
भाजपा
को
तो
जीता
दिया
है।
यह
अलग
बात
है
कि
भाजपा
के
शीर्ष
नेतृत्व
की
छत्रछाया
में
पल
बढ़
रहे
एक
पत्रकार
के
इशारे
पर
यह
कह
कर
अयोध्यावासियों
की
किरकिरी
करायी
जा
रही
है
कि
रामभक्तों
ने
भाजपा
को
हरवा
दिया।
जबकि
सच
यह
है
कि
रुदौली,
मिल्की,
बीकापुर
और
दरियाबाद
विधानसभा
में
मुस्लिम
की
एकजुटता
के
मुकाबले
टुकड़ों
में
बंटी
जातियों
ने
भाजपा
को
हरवा
है।
हनुमानगढ़ी
के
मिष्ठान
विक्रेता
श्याम
यादव
कहते
है
यह
आरोप
पूरी
तरह
बेबुनियाद
है
कि
राम
मन्दिर
के
निर्माण
की
वजह
से
जिन
लोगों
के
मकानों
और
दुकानों
को
तोड़ा
गया,
वो
लोग
मुआवज़ा
नहीं
मिलने
से
बीजेपी
से
नाराज़
थे,
जिसकी
वजह
से
उन्होंने
बीजेपी
को
चुनावों
में
हरा
दिया.
सच
यह
है
कि
अयोध्या
में
मन्दिर,
एयरपोर्ट
और
सड़कों
के
चौड़ीकरण
से
न
सिर्फ
अयोध्या
की
भव्यता
बढ़ी
है,
बल्कि
रोजगार
के
अवसर
मिले
है।
जहां
तक
मुआवजे
का
सवाल
है
तो
सर्किल
रेट
से
छह
गुना
अधिक
मुआवजा
यानी
तकरीबन
1253 करोड़
मिलने
से
तो
हर
कोई
गदगद
है।
लेकिन
जब
से
कुछ
लोगों
द्वारा
वामपंथियों
के
नेरेटिव
वालें
झांसे
में
आकर
अयोध्यावासियों
को
ट्रोल
कर
रहे
है
उससे
कमाई
पर
असर
जरुर
पड़ा
है
सुरेश गांधी
फिरहाल, बीजेपी भले ही तीसरी
बार लगातार केंद्र में सरकार बनाने
का श्रेय राम लला को
न दे, पर हकीकतो
तो यही है राम
मंदिर निर्माण से बीजेपी के
पक्ष में हवा बनी
थी. उस हवा का
ही परिणाम है कि देश
के सबसे बड़े राज्य
यूपी में मुस्लिमों का
एकजुट होकर सपा के
पक्ष में मतदान करने
व भाजपा के अंदुरुनी कलह
के बीच शीर्ष नेतृत्व
द्वारा थके हारे व
जातिय समीकरण में कहीं से
भी फिट न बैठने
के बावजूद प्रत्याशियों को मैदान उतारने
पर अगर भाजपा 33 सीटे
जीतने में कामयाब हुई
तो इसका बड़ा श्रेय
राम मंदिर व मोदी-योगी
का प्रताप ही है, वरना
जिस हिसाब से भाजपा के
शीर्ष नेतृत्व से मिलकर कथित
पत्रकार ने मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ का कद घटाने
के लिए सपा के
पक्ष में चक्रब्यूह की
रचना की थी, उससे
तो भाजपा का सुपड़ा ही
साफ हो जाता। प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी के संसदीय
क्षेत्र वाराणसी में भी अगर
50 हजार करोड़ से भी
अधिक विकास काम कराने के
बावजूद वोट आफ मार्जिन
घट गया तो उसी
चक्रव्यूह की बू आती
है, जिससे बाकी सीटें प्रभावित
हुई। राजनीतिक विश्लेषक अविनाश मिश्रा का कहना है
कि जहां अच्छे कैंडिडेट
और सजग नेतृत्व रहा
वहां तो भाजपा ने
भुना लिया. लेकिन जहां प्रत्याशी जातिय
ताना-बाना के सांचे
में फिट नहीं बैठा,
पार्टी के भीतर ही
अंदुरुनीकलह रहा, वहां पार्टी
को हार का सामना
करना पड़ा। जहां तक
राम मंदिर का सवाल है
तो ये उसी का
परिणाम है कि सारे
एंटीकम्बैसी के बावजूद दक्षिण
से लेकर पूरब पश्चिम
तक न सिर्फ एनडीए
का वोट प्रतिशत बढ़ा
है बल्कि 290 तक का आंकड़ा
छू पायी है.
देखा जाएं तो
दस साल लगातार सत्ता
में रहने के बाद
किसी भी नेता और
पार्टी के खिलाफ असंतोष
का लेवल बहुत बढ़
जाता है. इसके बावजूद
भी अगर तीसरी बार
बीजेपी को सत्ता हासिल
हुई है तो इसका
सीधा मतलब है कि
बहुत से लोगों पर
असंतोष की जगह मंदिर
बनाने का वादा पूरा
करना भारी पड़ा. अयोध्या
में मिली बीजेपी की
हार के बाद सोशल
मीडिया पर कई दिनों
से ’अयोध्या’ ट्रेंड कर रहा है.
कुछ लोग अयोध्यावासियों को
खलनायक साबित करने में लगे
हैं तो कुछ ने
यह कहना शुरू किया
कि हम अयोध्या जाएंगे
पर वहां से कुछ
खरीदेंगे नहीं. इस बीच सरयू
किनारे का एक वीडियो
वायरल हुआ जिसमें अयोध्या
के ई-रिक्शा वाले
कह रहे हैं कि
कुछ दिनों से खर्च निकालना
मुश्किल हो गया है.
हालांकि यह भी दुष्प्रचार
ही है. भाजपा विरोधियों
ने यह प्रचारित करना
शुरू कर दिया कि
राम मंदिर में आस्था जैसी
कोई बात नहीं थी
यह सब बीजेपी का
एक प्रौपेगैंडा था जो फेल
हो गया है. जनता
सब समझ गई है
और अब अध्योध्या आने
वाली नहीं है. जबकि
फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र की जिस दरियाबाद
विधानसभा सीट पर बीजेपी
10 हज़ार से ज्यादा वोटों
से चुनाव हारी, वो सीट अयोध्या
जिले में नहीं बल्कि
बाराबंकी ज़िले में आती
है. जो लोग दुकाने
तोड़ने के एवज में
मुआवजा नहीं दिय जाने
का नेरेटिव फैला रहे है,
उन्हें पता होना चाहिए
कि सरकार और प्रशासन की
तरफ से 1253 करोड़ रुपये का
मुआवज़ा दिया गया और
ये राशि सरकार ने
समय से लोगों के
बैंक खातों में जमा करा
दी थी. ये जानकारी
खुद अयोध्या जिले के प्रशासन
ने दी है.
विधानसभा वाइज जीत हार
के आंकड़े देखने पर पता चला
जिस अयोध्या नगरी में भगवान
श्री राम का मन्दिर
बना, उस अयोध्या के
लोगों ने तो बीजेपी
को चुनाव जिता दिया और
वहां बीजेपी को सपा से
साढ़े चार हज़ार से
ज्यादा वोट मिले. लेकिन
जो बाकी के चार
विधानसभा क्षेत्र थे, वहां बीजेपी
को सपा से कम
वोट मिले, जिसके कारण बीजेपी इस
बार फैजाबाद की सीट लगभग
50 हज़ारों वोटों से हार गई.
इसकी बड़ी वजह रही
सपा मुखिया अखिलेश यादव की रणनीति।
क्योंकि इस बात को
जानते थे कि उत्तर
प्रदेश की बाकी सीटों
की तरह फैजाबाद में
भी हिन्दुओं को जातियों में
विभाजित किए बिना चुनावों
को नहीं जीता जा
सकता और इसीलिए उन्होंने
इस गैर आरक्षित सीट
से अवधेश प्रसाद को अपना उम्मीदवार
बनाया, जो दलित हैं
और पासी समुदाय से
आते हैं. फैजाबाद में
कुल 18 लाख वोटर हैं,
जिनमें से 26 फीसदी दलित हैं और
इनमें भी पासी समुदाय
के लोगों की संख्या 3 लाख
से ज्यादा है. इसके अलावा
इस सीट पर 14 पर्सेंट
मुस्लिम और 12 पर्सेंट यादव हैं और
इन्हीं सारी जातियों को
देखकर अखिलेश यादव ने अवधेश
प्रसाद को यहां से
चुनाव लड़ाया और ये नारा
भी दिया कि ’’ना
अयोध्या, ना काशी, अबकी
बार अवधेश पासी’’ और जातियों की
इसी सोशल इंजीनियरिंग के
कारण बीजेपी फैजाबाद में चुनाव हार
गई.
जबकि लल्लू सिंह
के खिलाफ वर्ष 2014 और 2019 से ही माहौल
बना था, लेकिन मोदी
योगी के नाम लोग
जीताते आ रहे थे।
इस बार उनके खिलाफ़
लोगों में जबरदस्त नाराज़गी
थी और स्थानीय नेता
भी चाहते थे कि इस
बार बीजेपी इस सीट से
अपने उम्मीदवार को बदले लेकिन
ऐसा नहीं हुआ। तो
परिणाम कहां से अच्छा
हो पाता। जबकि सांसद अवधेश
प्रसाद एक मजबूत उम्मीदवार
थे और वो 9 बार
के विधायक भी रह चुके
हैं, इसलिए इस मुश्किल सीट
पर उनकी जीत सम्भव
हो गई. खास बात
यह है कि लल्लू
सिंह का संविधान बदलने
वाली बात दलितों को
काफी नागवार लगा, परिणाम यह
रहा कि इसका असर
सिर्फ अयोध्या ही नहीं पूरे
यूपी में देखने को
मिला। दलित नेता राम
प्रसाद का कहना है
कि उनके लिए मायावती
से बड़ा संविधान निर्माता
बाबा साहब है और
जब उनके लिए उस
साहब का ही अस्तित्व
नहीं रहेगा जो दलितों को
सम्मान दिलाएं तो वह भला
कैसे कुछ किए बिना
चुप बैठ जाता। इसीलिए
दलितों ने यह कहते
हुए सपा के पक्ष
में गए कि बहन
जी को तो हम
लोग कभी भी उंचा
कर सकते है, लेकिन
इस वक्त बाबा साहब
का संविधान बचाना जरुरी है। हालांकि अगर
जिस वक्त लल्लू सिंह
ने यह बयान दिया
था कि बीजेपी को
संविधान बदलने के लिए 400 सीटें
चाहिए, उसी वक्त अगर
उनके खिलाफ बड़ा एक्शन हो
जाता तो ये स्थिति
नहीं होती, लेकिन इस मामले में
शिवाय सफाई के शीर्ष
नेतृत्व द्वारा कोई एक्शन न
किया जाना विपक्ष ने
इसे बड़ा मुद्दा बना
लिया और ये कहा
कि बीजेपी अगर चुनाव जीती
तो वो संविधान बदलकर
आरक्षण खत्मकर देगी और इसी
मुद्दे से पिछड़े और
दलितों के वोट बीजेपी
से अलग हो गए.
सोशल मीडिया पर
लगातार दावा किया जा
रहा है कि 4 जून
के नतीजों के बाद से
अयोध्या में भगवान श्रीराम
का मन्दिर सूना पड़ा है
और लोग अयोध्यावासियों से
इतने निराश हैं कि वो
राम मन्दिर में दर्शन करने
के लिए नहीं आ
रहे हैं, लेकिन हकीकत
मे ये दावा भी
पूरी तरह से गलत
है. भीषण गर्मी और
खतरनाक लू के बावजूद
1 जून से 12 जून के बीच
7 लाख 36 हज़ार श्रद्धालु अयोध्या
में राम मन्दिर के
दर्शन करने के लिए
आ चुके हैं और
ये आंकड़े पिछले महीने आए श्रद्धालुओं की
संख्या के ही बराबर
हैं. पिछले महीने 15 दिन में लगभग
8 लाख श्रद्धालुओं ने राम मन्दिर
के किए थे और
इस बार 12 दिनों में 7 लाख 36 हज़ार श्रद्धालु वहां
आ चुके हैं और
अब भी शनिवार और
रविवार को छुट्टी वाले
दिन हर रोज़ एक
लाख से ज्यादा और
बाकी ददिनों में 50 हजार श्रद्धालु राम
मन्दिर के दर्शन करने
के लिए आ रहे
हैं. और ये भीड़
इस बात का सबूत
है कि लोगों को
राजनीति से कोई लेना
देन.नहीं है और
वो अब भी अपने
आराध्य भगवान श्री राम के
मन्दिर में उनकी भक्ति
करने के लिए आ
रहे हैं और गर्मी
की वजह से मई
के आखिरी हफ्ते में कुछ श्रद्धालुओं...की संख्या घटना
शुरू हुई थी, लेकिन
इसका चुनावों से कोई संबंध
नहीं है और अब
भी राम मन्दिर में
भक्तों की भीड़ लगी
हुई है. मतलब साफ
है अब अयोधवासियों की
ट्रोलिंग बंद होनी चाहिए
और उनके ख़लिफ़ ये
जो माहौल बनाया जा रहा है
और उन्हें बदनाम किया जा रहा
है, वो सही नहीं
है.
राम मंदिर को सुरक्षा बढ़े
विपक्ष के इस नेरेटिव
का फायदा सीमा पार बैठे
आतंकी भी उठा सकते
है। और अगर भूल
से भी यदि आतंकी
कुछ कर बैठे तो
विपक्ष सीधे दिग्विजय सिंह
की तरह हिन्दू आतंकवाद
का एजेंडा सेट कर पूरे
देश में प्रोपोगंडा फैलाने
में कामयाब हो सकती है
कि अयोध्या वालों ने वोट नहीं
दिया, इसलिए उनपर विस्फोट कराया
गया। खासतौर से मामला तब
और संवेदनशील हो जाता है
जब आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद
की ओर से राम
मंदिर को उड़ाने की
धमकी दी गयी हो।
हालांकि धमी के बाद
से ही अयोध्या अलर्ट
मोड पर आ गई
है। राम मंदिर में
निगरानी बढ़ा दी गई
है। राम मंदिर समेत
महत्वपूर्ण स्थलों की सुरक्षा को
लेकर विशेष सतर्कता बरती जा रही
है। महर्षि वाल्मीकि एयरपोर्ट की भी सुरक्षा
में इजाफा किया गया है।
एसएसपी राजकरण नय्यर ने खुद महर्षि
वाल्मीकि एयरपोर्ट पहुंचकर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया।
उन्होंने मीडिया के सवालों का
जवाब देते हुए कहा
कि अयोध्या धाम की सुरक्षा
पहले से ही कड़ी
है। यहां की सुरक्षा
व्यवस्था को विभिन्न क्षेत्रों
में विभाजित करते हुए सीनियर
राजपत्रित अधिकारी के नेतृत्व में
टीमों का गठन किया
गया है। विभिन्न जोन
में सुरक्षाकर्मी पहले से ही
तैनात हैं।
पहले भी भाजपा अयोध्या हारी
पीएम नरेन्द्र मोदी
क जय जगन्नाथ का
मतलब यह था कि
पार्टी ने उडीसा जै
एक नए किले को
फतह किया है. चूंकि
उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में
भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण/विष्णु) का वास है,
इसलिए पीएम ने जय
जगन्नाथ का उदघोष किया.
रामलला भी विष्णु के
ही अवतार हैं और श्रीकृष्ण
भी. पर पार्टी कार्यकर्ताओं
तक शायद संदेश गलत
चला गया. क्योंकि चुनाव
जीतने के बाद भी
नेता और कार्यकर्ता अयोध्या
के श्रीराम मंदिर की न चर्चा
कर रहे और न
ही जयश्रीराम का उद्घोष कर
रहे. गलत संदेश जाने
का एक और कारण
यह रहा कि चुनाव
जीतने की बात तो
बीजेपी कर रही है
पर अभी तक विजयश्री
का आशीर्वाद लेने राम लला
के पास न केंदसे
और न ही यूपी
का कोई कद्दावर नेता
अयोध्या पहुंचा है. शायद यही
कारण है कि अब
कोई भी कार्यकर्ता या
नेता राम लला का
नाम लेने से परहेज
करता दिख रहा है.
महीने में 3 बार अयोध्या जाने
वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ ने भी चुनाव
परिणाम आने के बाद
अयोध्या की ओर रुख
नहीं किया.अयोध्या में
हमेशा से बीजेपी का
परफार्मेंस खास नहीं रहा
है. पर यह अयोध्या
का तेज और राम
लला का प्रताप ही
है कि 1984 में केवल 2 संसदीय
सीट जीतने वाली बीजेपी आज
देश की सबसे ताकतवर
पार्टी बनकर बैठी है.
राम मंदिर के उद्घाटन के
बाद ही तुरंत बीजेपी
नहीं हारी है, इसके
पहले भी जब राम
मंदिर निर्माण से संबंधित कोई
घटना हुई तो पार्टी
को हार का सामना
करना पड़ा है. 6 दिसंबर
1992 को बाबरी मस्जिद के विवादास्पद ढांचे
के गिरा देने के
बाद अयोध्या विधान सभा क्षेत्र में
भाजपा को हार का
सामना करना पड़ा था.
भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को समाजवादी
पार्टी नेता तेज नारायण
पांडे उर्फ पवन पांडे
ने हराया था. पवन पांडे
ने 5405 वोटों के अंतर से
अयोध्या विधानसभा सीट पर कब्जा
जमाया. यही नहीं उत्तर
प्रदेश में बीजेपी सरकार
की वापसी भी नहीं हो
पाई थी. 1985 में हुई पालमपुर
बैठक मे.भाजपा ने
पहली बार पार्टी मंच
से राम जन्मभूमि को
मुक्त कराने का संकल्प लिया.
अयोध्या के नाम पर
1989 के लोकसभा चुनाव में भाजपा पूरी
हिंदी पट्टी पर छा गई.
किंतु फैजाबाद सीट (अयोध्या) से
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (ब्च्प्) के मित्रसेन यादव
चुने गए. यही नहीं
अयोध्या विधानसभा सीट भी बीजेपी
हार गई थी. वहां
से जनता दल के
जय शंकर पांडेय जीते
थे. इसलिए अगर 2024 में भारतीय जनता
पार्टी एक बार फिर
हार गई तो उसमें
निराश होने जैसी कोई
बात नहीं है. 54,567 वोटों
से हार कोई बहुत
बड़ी हार नहीं है.
आखिर लल्लू सिंह को 4,99,722 वोट
जो मिले वो राम
लला के नाम पर
ही मिले. करीब 5 लाख लोग लल्लू
सिंह का चेहरा देखकर
वोट नहीं दिए. वो
सिर्फ राम लला के
नाम पर ही बीजेपो
को वोट दिए थे.
इसलिए इन 5 लाख लोगों
का तिरस्कार किसी भी कीमत
पर नहीं होनी चाहिए.
यह मंदिर का ही प्रताप
है कि पार्टी तीसरी
बार सत्ता में आयी
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