दलितों के बंटने व गारंटी कार्ड से गड़बड़ाया यूपी में भाजपा का समीकरण
यूपी
जातियों
के
चक्रव्यूह
इस
कदर
उलझी
है
कोई
भी
पार्टी
चाहकर
भी
अपने
कोर
वोटर्स
के
वोट
भी
नहीं
सहेज
सकती.
इस
संकट
का
सामना
2024 के
चुनाव
में
तकरीबन
हर
सीट
पर
हर
दल
को
झेलना
पड़ा।
लेकिन
पूर्वांचल
के
26 सीटों
पर
कुछ
ज्यादा
ही
इसका
प्रभाव
दिखा।
खासकर
अफवाह
एवं
दिग्भ्रमित
होने
के
चलते
बसपा
के
कोर
वोटर
दलितों
के
दो
धड़ों
में
बंटने
व
श्रीराम
मंदिर
की
भव्यता
से
खिसियाएं
एकजुट
मुस्लिमों
का
एकतरफा
वोटिंग
इंडी
गठबंधन
या
यूं
कहे
कांग्रेस
व
सपा
की
जीत
में
चार
चांद
लगा
दिया।
इस
जीत
में
राहुल
गांधी
की
एक
लाख
सालाना
या
यूं
कहे
साढ़े
आठ
हजार
रुपये
हर
महीने
खातों
में
भेजा
जाने
वाला
गारंटी
कार्ड
का
ऐसा
छौंका
लगा
कि
भाजपा
के
महेन्द्रनाथ
पांडेय
जैसे
बड़े
से
बड़े
दिग्गज
धराशायी
होते
नजर
आएं।
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र
मोदी
के
जीत
की
मार्जिन
घटने
के
कारणों
में
एक
फैक्टर
यह
भी
माना
जा
रहा
है।
हालांकि
भदोही
व
मिर्जापुर
में
अखिलेश
का
यह
दांव
उल्टा
पड़
गया।
ब्राह्मणों
को
खुलेआम
गाली
देने
वाले
रमेश
बिन्द
को
मिर्जापुर
से
उतारने
का
ही
परिणाम
रहा
कि
ललितेशपति
त्रिपाठी
जीती
बाजी
हार
गए।
भदोही
में
ब्राह्मणों
ने
भाजपा
के
डॉ
विनोद
बिन्द
एवं
मिर्जापुर
में
नीरज
त्रिपाठी
की
जगह
अनुप्रिया
पटेल
को
जीता
दिया
सुरेश गांधी
लोकसभा चुनाव सकुशल संपंन होने के साथ
मोदी 3.0 सरकार बनाने की कवायद तेज
हो गई है. सरकार
बनने के आहट मात्र
से शेयर बाजार ने
भी लंबी छलांग लगा
दी है. लेकिन यूपी
में जीत-हार के
बीच उसके कारणों की
खोजबीन जारी है। बता
दें, कि भाजपा के
नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक
गठबंधन (एनडीए) ने तीसरी बार
बहुमत हासिल कर लिया है.
एनडीए गठबंधन ने 292 सीटें जीती हैं. हालांकि,
बीजेपी अकेले बहुमत (272) के आंकड़े को
नहीं छू पाई और
उसे 240 सीटों से ही संतोष
करना पड़ा. विपक्षी इंडी
ब्लॉक ने 234 सीटों पर जीत हासिल
की है. मतलब साफ
है नतीजे सभी पार्टियों के
लिए उत्साहजनक रहे, सिर्फ बसपा
को छोड़कर. भाजपा इसलिए खुश है, क्योंकि
उसकी सरकार तीसरी बार बनने जा
रही है. सपा इसलिए
खुश है कि उसके
सांसदों की संख्या में
बड़ी बढ़ोतरी हुई और वह
कांग्रेस के बाद सबसे
बड़ी विपक्षी पार्टी बनकर उभरी. कांग्रेस
भी खुश है क्योंकि
वो यूपी में एक
सीट से 6 सीटों वाली
पार्टी बन गई. लेकिन
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है
कि एलायंस के जीत में
बड़ा झोल है। अफवाहों
को बल देकर उसने
गरीब तबके के साथ
बड़ा मजाक किया है।
अयोध्या के भाजपा प्रत्याशी
लल्लू सिंह के उस
बयान को तूल देकर
मायावती के कोर वोटर्स
को अपने पाले में
लाया, जिसमें उन्होंने कहा था- यदि
अबकी बार भाजपा 400 पार
गयी तो संविधान बदल
जायेगा। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर
आला एनडीए नेताओं ने बार-बार
सफाई दी कि ऐसा
कदापि नहीं होने वाला,
यह सिर्फ अफवाह है लेकिन लल्लू
सिंह के खिलाफ ठोस
कार्रवाई न किया जाना
इंडी गठबंधन के नेताओं ने
इसे मुद्दा बना दिया। दलितों
एवं ओबीसी वोटरों को वह यह
कहकर समझाने में सफल हो
गए कि यदि भाजपा
सरकार बनी तो बाबा
साहब के संविधान को
बदलने के साथ सारे
आरक्षण खत्म कर दिए
जायेंगे। इसके अलावा राहुल
गांधी का वह गारंटी
कार्ड सोने पर सुहागा
हो गया, जिसमें उन्होंने
कहा है कि यदि
कांग्रेस की सरकार बनी
तो उनके खाते में
पहली जुलाई से हर महीने
साढ़े हजार रुपये खटाखट
मिलने लेंगे। खास बात यह
है कि मामला बयान
तक ही सीमित नहीं
रहा, चरणवाइज वोटिंग से एक दिन
पहले कांग्रेस व सपा कार्यकर्ताओं
ने दलित सहित अन्य
गरीब तबके की बस्तियों
में पहुंचकर एक गारंटी कार्ड
भरवाया था, जिसमें इंडिया
गठबंधन की सरकार बनने
पर एक लाख सालाना
यानी साढ़े आठ हजार
रुपये महीने दिए जाने के
साथ-साथ तमाम वादे
किए गए थे. कार्यकताओं
ने उन्हें आश्वस्त कर दिया कि
आप वोट देने के
बाद यह कार्ड कांग्रेस
कार्यालय में कार्ड भरकर
जमा कर दें, रुपये
खाते में पहुंचने लगेगा।
यह अलग बात है
कि अब लोग कार्ड
भरकर कांग्रेस कार्यालय के सामने लाइन
लगाएं खड़े है, लेकिन
उनके कार्ड नहीं लिए जा
रहे है और उनसे
तरह तरह के बहाने
बनाते हुए कह रहे
है भाजपा ने भी तो
हर खाते में 15 - 15 लाख
देने को कहा था,
मिला क्या।
दरअसल, सियासी गलियारे में ये कहावत काफी पुरानी है कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता यूपी से होकर जाता है. केंद्र की कुर्सी के लिए यह बात फिट भी बैठती है. 2014 और 2019 में बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत में यूपी का बड़ा योगदान था। वैसे भी देश में लोकसभा सीट के लिहाज से यूपी सबसे बड़ा प्रदेश है. यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं. ऐसे में जिसे यहां ज्यादा सीटें मिलीं, उसके लिए राह आसान हो जाती है. यूपी की 80 सीटों के महत्व को देखते हुए ही पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ तक ने यहां पूरी ताकत झोंक दी थी, इसके बाद भी बीजेपी 33 सीटों पर ही सिमट गयी। यूपी में ऐसी कई सीटें रहीं, जहां बीजेपी का सबसे ज्यादा दबदबा था, लेकिन इस बार सपा ने उसके गढ़ में भी सेंध लगा दी. जिस अयोध्या में भाजपा ने श्रीराम मंदिर निर्माण के साथ करोड़ों-अरबों के विकास को पूरे देश में ढिढारो पीटा, वहां अयोध्या सहित पूरे पूर्वांचल में उसे बड़ी शिकस्त मिला।
बीजेपी अयोध्या की सीट फैजाबाद व उसके आसपास सहित आजमगढ़, घोसी, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, मछलीशहर, प्रयागराज राबर्टसगंज आदि लोकसभा सीटें हार गई. यहां सपा ने जीत दर्ज की. बाराबंकी, अंबेडकरनगर, सुल्तानपुर व अमेठी जैसी सीटों पर भी बीजेपी को हार मिली. पास की बस्ती और श्रावस्ती सीट पर भी भाजपा जीत दर्ज नहीं कर पाई. अमेठी में स्मृति ईरानी जैसे दिग्गज नेत्री चुनाव कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा से हार गयी। वाराणसी लोकसभा सीट ने भी इस बार बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है. यहां से भले ही पीएम मोदी ने लगातार तीसरी जीत दर्ज की है, लेकिन इस बार उनकी जीत का मार्जिन घटा है. मोदी ने 2014 में 56.37 पर्सेंट और 2019 में 63.60 प्रतिशत वोट के साथ जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार वह 54.24 फीसदी वोट ही हासिल कर सके जो पिछले दोनों चुनाव की तुलना में कम है. शुरुआती चरणों में वह कांग्रेस के अजय राय से पीछे भी रहे थे. यूपी में बीजेपी के लिए सबसे निराशा की बात ये है कि इस बार न सिर्फ उसकी सीटें कम हुई हैं, बल्कि उसका वोट शेयर भी घटा है. 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 62 सीटें मिली थीं, तब उसका वोट शेयर 49.97 प्रतिशत था. 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 33 सीटें जीती हैं और उसका वोट शेयर 41.39 प्रतिशत पर आ गया है. वोट शेयर में करीब 7.9 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है.
इस हार के पीछे बड़ी वजह कांग्रेस के राहुल गांधी का ’गारंटी कार्ड’ है। इसका पोल तब खुला जब बड़ी संख्या में गारंटी कार्ड भरकर महिलाएं कांग्रेस पार्टी कार्यालय पहुंचने लगी। महिलाओं का कहना था कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ’गारंटी कार्ड’ जारी कर एक लाख रुपये देने की घोषणा की थी। जिसको लेने वह आए हैं। महिलाओं ने आरोप लगाया कि उन्हें कांग्रेस मुख्यालय के अंदर जाने नहीं दिया गया। गेट पर मौजूद पार्टी के लोगों ने कहा कि उनके कार्ड अभी उपलब्ध नहीं है। इस बाबत प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष दिनेश सिंह का कहना है कि पार्टी ने चुनाव से पहले गारंटी कार्ड जारी किए थे। जिसमें सरकार बनने के बाद 1 लाख रुपये देने की बात कही थी। चुनाव से पहले यह कार्ड बांटे गए थे। अभी इस पर आगे फैसला किया जाएगा। कांग्रेस के गारंटी कार्ड में युवा न्याय योजना के तहत पढ़े-लिखे युवा को सालाना एक लाख, नारी न्याय के अंतर्गत हर गरीब परिवार की महिला को एक लाख रुपये देने का वादा किया गया। वहीं, 400 रुपये प्रति दिन के हिसाब से मनरेगा मजदूरी देने की बात कही गई। साथ ही एमएसपी की कानूनी गारंटी समेत कर्ज माफी का वादा किया गया है।
चंदौली के दीनदयाल नगर के काली महाल मोहल्ले में रहने वाली पवित्रा देवी से भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने गारंटी कार्ड भराया था. पवित्रा ने बताया कि चुनाव के दौरान कांग्रेस के लोगों ने यह कहकर कार्ड भरवाया था कि साढ़े आठ हजार रुपये हर महीने मिलेंगें, इसीलिए कांग्रेस व सपा का समर्थन किया गया। कांग्रेस से जुडे सूत्रों का कहना है कि पूर्वांचल में तकरीबन 5व लाख कार्ड बांटे गए, जिसका लाभ प्रत्याशियों को हुआ भी है। इधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के गारंटीकार्ड को लेकर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि बीते दिनों से लोग कांग्रेस दफ्तर पहुंच रहे हैं और कतार लगाकर पूछ रहे हैं कि पैसे कहां हैं. इस तरह लोगों की आंखों में धूल झोंकने का काम किया गया है. जनता जनार्दन के साथ झूठ बोला गया है. भ्रमित किया और अब धक्का मारा जा रहा है, उनको भगाया जा रहा है. इस प्रकार का चुनाव गरीबों का अपमान है. हमारे देश का सामान्य नागरिकों का अपमान है. कभी भी देश ऐसी हरकतों को न भूलता है, न कभी माफ करता है.
जहां तक बात जाति चक्रव्यूह की है तो किसी भी पार्टी के कोरवोटर्स तभी तक पार्टी भक्त हैं जब तक उनकी जाति का कैंडिडेट उस पार्टी से है. अगर पार्टी का कैंडिडेट किसी और जाति से और मुकाबले में किसी दल से अपनी जाति का कैंडिडेट है तो कोर वोटर्स का भी मन बदल जाता है. परिणाम यह रहा कि पूर्वांचल में अधिकांश सीटों पर मतदाताओं ने पार्टी के बजाय अपनी जाति के उम्मींदवारो को ही वोट किया। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान बसपा का हुआ है। उसे एक भी सीट मिलना तो दूर उसके कोर वोटर्स भी छिटकते नजर आएं। अधिकांश सीटों पर संविधान बदलने के भ्रम में उसने सपा व कांगेस को वोट कर दिया। हालांकि कहीं कहीं इसका फायदा भाजपा का भी हुआ है। भदोही में इंडि गठबंधन के ललितेश त्रिपाठी को 4.2 लाख वोट मिले. जबकि, जीत दर्ज करने वाले बीजेपी विनोद कुमार बिंद के खाते में 4 लाख 59 हजार 982 वोट आए. उन्होंने करीब 45 हजार वोटों से जीत हासिल की. तीसरे नंबर पर बसपा के हरिशंकर रहे. उन्हें 1 लाख 55 हजार वोट मिले. अगर यही वोट इंडि के ललितेश त्रिपाठी के खाते में पड़ते तो उनकी जीत हो जाती. मिर्जापुर में अपना दल (सोनेलाल) की अनुप्रिया पटेल ने जीत हासिल की. उन्हें 4 लाख 71 हजार 631 वोट मिले. जबकि सपा के रमेश चंद बिंद को 4 लाख 33 हजार 821 वोट मिले. अनुप्रिया को करीब 38 हजार वोटों से जीत मिली. यहां पर तीसरे नंबर पर बसपा रही. मनीष कुमार के खाते में 1 लाख 44 हजार 446 वोट आए. बसपा के यही वोट अनुप्रिया की जीत में अहम साबित हुए. अकबरपुर में बीजेपी के देवेंद्र सिंह को 5 लाख 17 423 वोट मिले. वहीं सपा के राजाराम पाल को 4 लाख 73 78 वोट हासिल हुए. तीसरे नंबर पर बसपा रही. उसके खाते में 73 हजार 140 वोट आए. यानी यहां पर बीजेपी को जीत 44 हजार 345 वोटों से मिली. बसपा के वोट अगर सपा को कन्वर्ट होते तो बीजेपी की हार हो जाती.
अलीगढ़ में बीजेपी के सतीश गौतम को 501834 वोट मिले. वहीं सपा के बिजेंद्र सिंह को 486187 वोट मिले. तीसरे नंबर पर बसपा रही. उसके खाते में 123929 वोट आए. यहां पर बीजेपी को 15 हजार 647 वोटों से जीत मिली. यानी यहां पर भी अगर बसपा के वोट सपा को मिलते तो नतीजे बीजेपी के पक्ष में नहीं होते. अमरोहा में बीजेपी को 28 हजार 670 वोटों से जीत मिली. बसपा के खाते में 1 लाख 64 हजार 99 वोट आए. इसमें से अगर बसपा के 30 हजार वोट भी सपा को मिलते तो बीजेपी की हार तय थी. बांसगांव में बीजेपी को 3 हजार 150 वोटों से जीत मिली. बसपा के खाते में 64 हजार 750 पड़े. ये वोट अगर सपा उम्मीदवार को मिलते तो उसकी भारी मतों से जीत होती. बिजनौर में बीजेपी ने 37 हजार 58 वोटों से जीत दर्ज की. बसपा के खाते में 2 लाख 18 हजार 986 वोट पड़े. देवरिया में बीजेपी ने 34 हजार 842 वोट से जीत हासिल की. बसपा को 45 हजार 564 मिले. फर्रुखाबाद में बीजेपी ने 2 हजार 678 वोटों से जीत दर्ज की. बसपा के खाते में 45 हजार 390 वोट आए. फतेहपुर सिकरी में बीजेपी ने 43 हजार 405 वोटों से जीत हासिल की. बसपा को 1 लाख 20 हजार 539 वोट मिले. हरदोई में बीजेपी ने 27 हजार 856 वोटों से जीत दर्ज की. बसपा उम्मीदवार को 1 लाख 22 हजार 629 वोट मिले. मेरठ में बीजेपी को 10 हजार 585 वोटों से जीत मिली. बसपा के खाते में 87 हजार वोट पड़े. मिसरिख में बीजेपी ने 33 हजार वोटों से जीत मिली. बसपा को 1 लाख 11 हजार 945 वोट मिले. फूलपुर में बीजेपी ने 4 हजार 332 वोटों से जीत दर्ज की. बसपा के खाते में 82 हजार वोट आए. शाहजहांपुर में बीजेपी ने 55 हजार वोटों से जीत हासिल की. बसपा को 91 हजार वोट मिले. उन्नाव में बीजेपी को 35 हजार वोटों से जीत मिली. बसपा के खाते में 72 हजार 527 वोट पड़े.
देखा जाएं तो
9.38 फीसदी वोट शेयर पर
बसपा सिमट गयी। ये
हाल उस पार्टी का
है जिसने पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के
बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी
थी. उसने 10 सीटें जीती थीं लेकिन,
पांच साल के बाद
उसे एक भी सीट
नसीब नहीं हुई. बसपा
को 10 फीसदी भी वोट नहीं
मिले. 2022 विधानसभा चुनाव में बसपा को
12.88 फीसदी वोट मिले थे.
लेकिन इस बार के
लोकसभा चुनाव में पार्टी को
सिर्फ 9.38 फीसदी वोट ही मिले।
इसकी बड़ी वजह आरक्षण
के मुद्दे पर मायावती की
चुप्पी रही। चुनाव के
दौरान विपक्षी पार्टियां ये नैरेटिव कायम
कर पाने में सफल
हो पायीं कि भाजपा आरक्षण
और संविधान को खत्म करने
पर अमादा है. इसे कांग्रेस
और सपा ने जोर-शोर से उठाया
लेकिन, आरक्षण और संविधान को
लेकर सबसे आगे रहने
वाली मायावती व उनके नेताओं
ने इस मुद्दे पर
चुप्पी साधे रखी. दलित
वोटबैंक में ये संदेश
गया कि वाकयी में
अब मायावती बहुजन आंदोलन से दूर हो
गयी है. आकाश आनन्द
को अपना उत्तराधिकारी घोषित
करते समय पुराने बहुजन
नेताओं ने दबी जुबान
यही बातें की थीं. चुनाव
के ऐन पहले आकाश
आनन्द को उत्तराधिकारी घोषित
करना भी बसपा के
लिए घातक ही हुआ
माना जा रहा है.
बहुजन नेताओं ने अपने काडर
को ऐसा कोई संदेश
कभी नहीं दिया था.
लिहाजा सीनियर लीडर्स और काडर में
अंदर ही अंदर नाराजगी
थी. खैर, चुनाव में
आकाश आनन्द ने अपने भाषणों
से माहौल तो खड़ा कर
लिया था लेकिन एकाएक
मायावती ने उन्हें पीछे
खींच लिया. इससे जुड़े कार्यकर्ता
भी हताश हो गये.
अब उनके पास दूसरी
पार्टी की तरफ जाने
के अलावा कोई रास्ता न
दिखा. अब सवाल यह
उठता है कि बसपा
का वोट छिटककर किसको
गया? चुनाव आयोग का डाटा
देखें तो पता लगता
है कि इस बार
में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी
को न सिर्फ सीटों
का गेन हुआ, बल्कि
उसका वोट प्रतिशत गरीब
दोगुना बढ़ा. 2019 में जहां सपा
को सिर्फ 18.11 फीसदी वोट मिले थे.
तो इस बार उसे
33.59 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस
के वोट में भी
पिछली बार के मुकाबले
थोड़ा इजाफा हुआ. पिछली बार
6.36 फीसदी वोट शेयर था,
तो इस बार बढ़कर
9.6 फीसदी तक पहुंच गया.
पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा जिन
सीटों पर जीती थी,
उनमें- सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, अंबेडकर नगर, श्रावस्ती, लालगंज,
घोसी, जौनपुर और गाजीपुर की
सीट शामिल थी. इस बार
बसपा की 60 फीसदी सीटें सपा ने छीन
ली. अंबेडकर नगर, श्रावस्ती, लालगंज,
घोसी, जौनपुर और गाजीपुर में
सपा ने जबरदस्त जीत
हासिल की. इसी तरह
सहारनपुर में कांग्रेस, बिजनौर
में राष्ट्रीय लोक दल, नगीना
में आजाद समाज पार्टी
और अमरोहा में बीजेपी जीती.
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