सर्वार्थ, सिद्धि, अमृत व रवि योग में मनेगी गंगा दशहरा, पूरे होंगे हर अरमान
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जायेगा। इस दिन मां गंगा का अवतरण भूलोक पर हुआ था. इस दिन गंगा स्नान और पूजा के साथ दीपदान का विशेष महत्व है. कहते है इस दिन गंगा स्नान से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस दिन गंगा स्नान से पितर भी प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है. इस बार इस बार गंगा दशहरा 16 जून है। वैदिक पंचांग के अनुसार, 100 साल बाद गंगा दशहरा के दिन 4 शुभ संयोग बन रहे हैं। इस दिन हस्त नक्षत्र है। इसके अलावा सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ अमृत योग और रवि योग का भी अद्भुत संगम है. 16 जून को सुबह 10 बजकर 23 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत योग है. इसके अलावा पूरे दिन रवि योग का शुभ संयोग भी बना हुआ है। पंचांग के अनुसार सुबह 11ः13 तक हस्त नक्षत्र रहेगा। जबकि गंगा स्नान ब्रह्म मुहूर्त में सबसे उत्तम माना जाता है. इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04ः03 से सुबह 04ः45 के बीच रहेगा. इस दिन कोई भी व्यक्ति गंगा के पवित्र जल में स्नान करता है या गंगाजल का सेवन करता है उसके पापों के साथ-साथ रोग और दोष भी दूर हो जाते हैं। इस दिन मां गंगा स्नान व पूजा के बाद किसी जरूरतमंद को अन्न करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। घर हमेशा धन-धान्य से भरा रहता हैसुरेश गांधी
गंगे तव दर्शनात
मुक्तिः! यानी गंगा मां
के दर्शन से मुक्ति मिलती
है। विष्णुपदी मां गंगा के
धरती पर आने का
पर्व है गंगा दशहरा।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन
गंगा स्नान करने से व्यक्ति
के दस प्रकार के
पापों का नाश होता
है। इन दस पापों
में तीन पाप कायिक,
चार पाप वाचिक और
तीन पाप मानसिक होते
हैं। इन सभी से
व्यक्ति को मुक्ति मिलती
है। इस दिन ऊं
नमः शिवाय नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा मंत्रों द्वारा गंगा का पूजन
करने से जीव को
मृत्युलोक में बार-बार
भटकना नहीं पड़ता। निष्कपट
भाव से गंगा मां
के दर्शन करने मात्र से
जीव को कष्ट से
मुक्ति मिल जाती है।
गंगा दशहरा यानी मां गंगा
के धरती पर आने
का दिन। यह दिन
है कामनाओं को पूरा करने
का। मां से वरदान
पाने का। इस मौके
पर पतित पावनी गंगा
में लगाई गई एक
डुबकी, स्नान-दान, जप, गंगा
पूजन, ध्यान आदि से न
सिर्फ सब सिद्ध होगा,
बल्कि मां के चाहने
वालों की किस्मत भी
बदल सकती है। गंगा
दशहरा को बाबा रामेश्वर
महादेव की प्राण प्रतिष्ठा
का दिन भी माना
जाता है। सिद्धियोग के
प्रभाव से आने वाली
खरीफ और रबी की
फसल बेहतर होगी। आयु में वृद्धि,
धन अचल संपत्ति में
भी लाभ होगा। ज्योतिषि
रामदुलार उपाध्याय के मुताबिक 100 साल
बाद गंगा दशहरा पर
चारयोगों का महासंयोग बन
रहा है। श्री उपाध्याय
के मुताबिक इसमें स्नान, दान, रूपात्मक व्रत
होता है। स्कन्दपुराण में
कहा गया है कि
ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत्सरमुखी मानी
गई है इसमें स्नान
और दान तो अवश्य
करना चाहिए। किसी भी नदी
या गंगा में जाकर
अर्घ्य एवं तिलोदक (तीर्थ
प्राप्ति निमित्तक तर्पण) करना चाहिए। ऐसा
करने वाला महापातकों के
बराबर के दस पापों
से छूट जाता है।
खास बात यह है
कि जो मनुष्य इस
दशहरा के दिन गंगा
के पानी में खड़ा
होकर दस बार गंगा
मंत्रों का जाप करता
है वह चाहे दरिद्र
हो, चाहे असमर्थ हो,
वह भी प्रयत्नपूर्वक गंगा
की पूजा कर उस
फल को पाता है।
पूजन विधि
गंगा दशहरा का
व्रत भगवान विष्णु को खुश करने
के लिए किया जाता
है। प्रातः काल गंगा में
10 डुबकी लगाएं। घर में हों
तो पानी में गंगाजल
डालकर 10 लोटे जल से
स्नान करें। भगवान सूर्य को अर्घ्य दें।
मकरवाहिनी गंगा का चित्र
रखकर पूजा करें। पूजा
में 10 तरह के फूल,
फल, मिठाई चढ़ाएं। धूप, दीप, नवैद्य
अर्पित करें। ऊं ऐं ह््रीं
श्रीं भगवती गंगे नमो नमः
व ऊं नमः शिवाय
नारायणाय दशहरायै गंगायै नमः मंत्र के
एक माला जप करें।
गंगा जी का ध्यान
करते हुए षोडशोपचार से
पूजन करना चाहिए। 10 ब्राह्मणों
को वस्त्र दान करें। लक्ष्मी
पीपल का पेड़ लगाएं।
मान्यता है कि ऐसा
करने से सुख-सौभाग्य
घर में बढ़ जाएगा
और धन की वर्षा
होगी। सनातन धर्म में भी
गंगा जल के विशेष
महत्व का वर्णन है।
अविरल गंगा बहती रहे,
इसके लिए लोगों को
गंगा दशहरा के दिन गंगा
की स्वच्छता पवित्रता बनाए रखने का
भी संकल्प लेना चाहिए। ऐसी
मान्यता है कि गंगा
दशहरा के दिन गंगा
स्नान पूजन से 10 तरह
के पापों का शमन होता
है। इस दिन दान
में सत्तू, मटका और हाथ
का पंखा दान करने
से दुगुना फल प्राप्त होता
है। इस दिन भगवान
विष्णु की पूजा-अर्चना
की जाती है। इस
दिन लोग व्रत करके
पानी भी (जल का
त्याग करके) छोड़कर इस व्रत को
करते हैं। ग्यारस (एकादशी)
की कथा सुनते हैं
और अगले दिन लोग
दान-पुण्य करते हैं। इस
दिन जल का घट
दान करके फिर जल
पीकर अपना व्रत पूर्ण
करते हैं। इस दिन
दान में केला, नारियल,
अनार, सुपारी, खरबूजा, आम, जल भरी
सुराई, हाथ का पंखा
आदि चीजें भक्त दान करते
हैं। गंगा दशहरे के
दिन श्रद्धालु जन जिस भी
वस्तु का दान करें
उनकी संख्या दस होनी चाहिए
और जिस वस्तु से
भी पूजन करें उनकी
संख्या भी दस ही
होनी चाहिए। ऐसा करने से
शुभ फलों में और
अधिक वृद्धि होती है। यदि
कोई व्यक्ति पूजन के बाद
दान करना चाहता है
तब वह भी दस
प्रकार की वस्तुओं का
करता है तो अच्छा
होता है लेकिन जौ
और तिल का दान
सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए।
दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों
को देनी चाहिए। जब
गंगा नदी में स्नान
करें तब दस बार
डुबकी लगानी चाहिए।
पौराणिक महत्व
पुराणों के अनुसार गंगा
दशहरा के दिन गंगा
स्नान का विशेष महत्व
है। इस दिन स्वर्ग
से गंगा का धरती
पर अवतरण हुआ था, इसलिए
यह महापुण्यकारी पर्व माना जाता
है। गंगा दशहरा के
दिन सभी गंगा मंदिरों
में भगवान शिव का अभिषेक
किया जाता है। वहीं
इस दिन मोक्षदायिनी गंगा
का पूजन-अर्चना भी
किया जाता है। कहते
हैं राजा भागीरथी के
तप से प्रसन्न होकर
महादेव ने गंगा को
धरती पर जाने का
आदेश दिया था। इसके बाद शिव
की जटाओं से होकर धरती
पर आयी थी मां
गंगा। मां गंगा धरती
पर ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि
को धरती पर पहाड़ों
से उतर कर हरिद्वार
ब्रह्मकुंङ में आईं थीं।
जिसके बाद मां गंगा
के पावन चरणों की
धूली पाकर राजा सगर
के 60 हजार पुत्रों का
उद्धार हुआ था। तभी
से इस दिन को
गंगा दशहरा के रूप में
मनाया जाने लगा। सूर्यवंशी
महाराजा भागीरथ ने अपने पितामहों
का उद्धार करने का संकल्प
लेकर हिमालय पर्वत पर घोर तपस्या
की और गंगा मां
को प्रसन्न किया, जिसके फलस्वरूप ज्येष्ठ माह के शुक्ल
पक्ष की दशमी को
हस्त नक्षत्र, बृषभ राशिगत सूर्य
एवं कन्या राशिगत चन्द्र की यात्रा के
मध्य गंगा का स्वर्ग
से पृथ्वी पर अवतरण हुआ।
इनकी महिमा का गुणगान करते
हुए भगवान महादेव श्रीविष्णु से कहते हैं-
हे हरे! ब्राह्मण की
शापाग्नि से दग्ध होकर
भारी दुर्गति में पड़े हुए
जीवों को गंगा के
सिवा दूसरा कौन स्वर्गलोक में
पहुंचा सकता है, क्योंकि
गंगा शुद्ध, विद्यास्वरूपा, इच्छा ज्ञान एवं क्रियारूप, दैहिक,
दैविक और भौतिक तीनों
तापों को शमन करने
वाली, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष
चारों पुरुषार्थो को देने वाली
शक्ति स्वरूपा हैं। इसीलिए इन
आनंदमयी, शुद्ध धर्मस्वरूपिणी, जगत्धात्री, ब्रह्मस्वरूपिणी अखिल विश्व की
रक्षा करने वाली गंगा
को मैं अपने मस्तक
पर धारण करता हूं।
कलियुग में काम, क्रोध,
मद, लोभ, मत्सर, ईष्या
आदि अनेकानेक विकारों का समूल नाश
करने में गंगा के
समान कोई और नहीं
है। विधिहीन, धर्महीन, आचरणहीन मनुष्यों को भी गंगा
का सान्निध्य मिल जाए तो
वे मोह एवं अज्ञान
के भव सागर से
पार हो जाते हैं।
गंगा कथा
इस दिन सुबह
स्नान, दान तथा पूजन
के उपरांत कथा भी सुनी
जाती है जो इस
प्रकार से है-प्राचीनकाल
में अयोध्या के राजा सगर
थे। महाराजा सगर के साठ
हजार पुत्र थे। एक बार
सगर महाराज ने अश्वमेघ यज्ञ
करने की सोची और
अश्वमेघ यज्ञ के घोडे.
को छोड़ दिया। राजा
इन्द्र यह यज्ञ असफल
करना चाहते थे और उन्होंने
अश्वमेघ का घोड़ा महर्षि
कपिल के आश्रम में
छिपा दिया। राजा सगर के
साठ हजार पुत्र इस
घोड़े को ढूंढते हुए
आश्रम में पहुंचे और
घोड़े को देखते ही
चोर-चोर चिल्लाने लगे।
इससे महर्षि कपिल की तपस्या
भंग हो गई और
जैसे ही उन्होंने अपने
नेत्र खोले राजा सगर
के साठ हजार पुत्रों
में से एक भी
जीवित नहीं बचा। सभी
जलकर भस्म हो गये।
राजा सगर, उनके बाद
अंशुमान और फिर महाराज
दिलीप तीनों ने मृतात्माओं की
मुक्ति के लिए घोर
तपस्या की ताकि वह
गंगा को धरती पर
ला सकें किन्तु सफल
नहीं हो पाए और
अपने प्राण त्याग दिए। गंगा को
इसलिए लाना पड़ रहा
था क्योंकि पृथ्वी का सारा जल
अगस्त्य ऋषि पी गये
थे और पुर्वजों की
शांति तथा तर्पण के
लिए कोई नदी नहीं
बची थी। महाराज दिलीप
के पुत्र भगीरथ हुए उन्होंने गंगा
को धरती पर लाने
के लिए घोर तपस्या
की और एक दिन
ब्रह्मा जी उनकी तपस्या
से प्रसन्न होकर प्रकट हुए
और भगीरथ को वर मांगने
के लिए कहा तब
भगीरथ ने गंगा जी
को अपने साथ धरती
पर ले जाने की
बात कही जिससे वह
अपने साठ हजार पूर्वजों
की मुक्ति कर सकें। ब्रह्मा
जी ने कहा कि
मैं गंगा को तुम्हारे
साथ भेज तो दूंगा
लेकिन उसके अति तीव्र
वेग को सहन करेगा?
इसके लिए तुम्हें भगवान
शिव की शरण लेनी
चाहिए वही तुम्हारी मदद
करेगें। अब भगीरथ भगवान
शिव की तपस्या एक
टांग पर खड़े होकर
करते हैं। भगवान शिव
भगीरथ की तपस्या से
प्रसन्न होकर गंगाजी को
अपनी जटाओं में रोकने को
तैयार हो जाते हैं।
गंगा को अपनी जटाओं
में रोककर एक जटा को
पृथ्वी की ओर छोड.
देते हैं। इस प्रकार
से गंगा के पानी
से भगीरथ अपने पूर्वजों को
मुक्ति दिलाने में सफल होता
है।
दशाश्वमेध में स्नान से गर्भदशा से मिलती है मुक्ति
तीर्थ शिरोमणि दशाश्वमेध तीर्थ पर स्नान के
बाद दशाश्वमेधेश्वर के दर्शन से
जीवन के समस्त पाप
नष्ट हो जाते हैं।
दशाश्वमेध तीर्थ पर ब्रह्मदेव ने
भगवान शिव के दशाश्वमेधेश्वर
स्वरूप को स्थापित किया
था। गंगा स्नान की
अपनी अलग महिमा है।
वहीं, दशाश्वमेध तीर्थ पर स्नान से
इसका महत्व बढ़ जाता है।
दशाश्वमेध तीर्थ पर मां पार्वती
माता शीतला के स्वरूप में
और भगवान विश्वेश्वर दशहरेश्वर के रूप में
भक्तों का कल्याण करते
हैं। मान्यता है कि गंगा
के पश्चिम तट पर विराजमान
दशहरेश्वर को प्रणाम करने
से व्यक्ति कभी दुर्दशा में
नहीं पड़ सकता है।
दशाश्वमेधेश्वर महादेव का विग्रह दशाश्वमेध
घाट पर बड़ी शीतला
माता मंदिर के प्रांगण में
है। काशी महात्म्य के
अनुसार ब्रह्मा जी ने दशाश्वमेध
तीर्थ स्थान पर दिवोदस का
अश्वमेघ यज्ञ किया था
और मां गंगा के
आने से पूर्व यह
क्षेत्र रुद्रवास तीर्थ स्थान के नाम से
विख्यात था। शीतला घाट
नाम तो मनुष्यों ने
रखा है। वास्तव में
यही असली दशाश्वमेध तीर्थ
या रुद्रवास तीर्थ है। ज्येष्ठ शुक्ल
पक्ष की दशमी की
प्रत्येक तिथियों में क्रम से
स्नान करने वाला व्यक्ति
हर जन्म के पापों
से मुक्त हो जाता है।
स्कंद पुराण के अनुसार ज्येष्ठे
मासि सिते पक्षे प्राप्य
प्रतिपदं तिथिम्। दशाश्वमेधिके स्नात्वा मुच्यते जन्मपातकैः।। ज्येष्ठे शुक्लद्वितीयायां स्नात्वा रुद्रसरोवरे। जन्मद्वयकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।।
अर्थात ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष
की प्रतिपदा को इस दशाश्वमेधतीर्थ
में स्नान करने से जन्म
भर के संचित पाप
दूर हो जाते हैं
और उसी जेठ सुदी
द्वितीया को इस रुद्रसरोवर
तीर्थ में स्नान करने
से दो जन्म के
संचित पापों से तुरंत छुट्टी
मिल जाती है। दशाश्वमेध
तीर्थ (घाट) पर स्नान,
दान, जप, होम वेदाध्ययन,
देवपूजन, संध्योपासन, तर्पण और श्राद्ध आदि
पितृकर्म या जो कुछ
सत्कर्म किए जाते हैं,
वे सब अक्षय कहे
गए हैं। इस तीर्थ
पर ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित
भगवान शिव के दशाश्वमेधेश्वर
स्वरूप के दर्शन पूजन
से मनुष्य समस्त पापों से छूट जाते
हैं। जो कोई दशहरा
को दशाश्वमेध पर नहाकर दशाश्वमेधेश्वर
शिवलिंग का भक्ति से
पूजन करता है, उसे
गर्भदशा का दुख नहीं
झेलना पड़ता।
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