121 मौतों का गुनाहगार बाबा को जमीन खा गई या निगल गया आसमां
यूपी के हाथरस में भयावह हादसे ने पूरे देश को दहला दिया है। सत्संग पंडाल सिर्फ इसलिए श्मशान में तब्दील हो गया कि बाबा साकार हरि प्रवचन खत्म कर जाते समय अपने अनुयायियों कहा, जिस रास्ते मैं जाऊ उसके धूल माथे लगा लें, फिर क्या भगदड मच गई और देखते ही देखते 121 दृसे ज्यादा अनुयायी अपनी जान से हाथ धो बैठे। बाबा को उस समय भी रहम नहीं ज बवह अपने ही अनुयायियों को मौत के मुंह में झोक रहा था और जब बात संवेदना की आयी तो संकट की घड़ी में साथ होने के बजाय खुद फरार हो गया। हालांकि दिखावा ही सही पुलिस तो बाबा को सरगरमी से खोज रही है, ताबड़तोड छापे मार रही है। लेकिन एफआईआर में बाबा का नाम ही नहीं है। ऐसे में बडा सवाल तो यही क्या बाबा को नहीं पता था, दो लाख अनुयायी एक साथ मिट्टी माथे पर लगायेंगे तो भदेस नही होगा? दुसरा बड़ा सवाल तो यह है कि अगर पुलिस ईमानदारी से बाबा को खोज रही है तो लोग पूछेंगे ही उसे जमीन खा गई या आसमान निगल गया! और मामला तब और बड़ा हो जाता है जब इस हादसे से भी कोई सबक नहीं लिया गयां 2 जुलाई को जब पूरा देश हाथरस में मारे गए अनुयायियों के शोक में डूबा था तब एक और बाबा बागेश्वर सरकार धीरेंद्र शास्त्री के जन्मदिन पर लाखों की भीड़ छतरपुर में भांगड़ा कर रही थी। यह संयोग ही है कि छतरपर में कोई हादसा नहीं तो हुआसुरेश गांधी
इस घटना के लिए बाबा को जिम्मेदार बताया जा रहा है। हालांकि पुलिस ने एफआईआर में बाबा का नाम तो दर्ज नहीं किया है, लेकिन उन्हें खोज जरुर रही है। दिखावा ही सही ताबड़तोड़ छापामारी जारी है। लेकिन हकीकत यह है कि एक बड़ा वोटबैंक उनकी गिरफ्तारी में आडे आ रही है। नारायण साकार हरि के सत्संग में आने वालो में एक बड़ी संख्या मजदूर तबके की है। यह वह तबका है जो न सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए हर रोज जूझता है, बल्कि मामूली बीमारी का इलाज कराने के लिए सामान तक गिरवी रखना पड़ता है. सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े तबके के लोग इस बाबा के सत्संग में सबसे ज्यादा आते हैं. एक सत्संग में लाखों लोग की भीड़ ही बाबा की असली ताकत है. असली ताकत का मतलब वोट बैंक, जिसके चश्मे से सत्ताधारी दल हो या फिर कोई भी दूसरा राजनीतिक दल, नफा नुकसान का आकलन करता है. शायद यही वजह है कि किसी भी अपराधी को ना छोड़ने का दावा करने वाली यूपी पुलिस इस बाबा पर हाथ डालने से बच रही है. दबी जुबान से ही सही लोग कहने लगे है बाबा ने जानबूझकर अपने अनुयायियों को मौत के मुंह में तो झोका ही, बात जब संवेदना की आयी तो संकट की घड़ी में साथ होने के बजाय खुद फरार हो गया। लोग सवाल पूछ रहे है क्या बाबा को नहीं पता था, दो लाख अनुयायी एक साथ मिट्टी माथे पर लगायेंगे तो भदेस हो जायेगा? दुसरा बड़ा सवाल यह है कि अगर पुलिस ईमानदारी से बाबा को खोज रही है तो क्या उसे जमीन खा गई या आसमान निगल गया! बता दें कि जनवरी 2023 में अखिलेश यादव भी अपने वोट बैंक को मजबूत और बढ़ाने के लिए बाबा के कार्यक्रमों में शिरकत कर चुके हैं. मैनपुरी, कासगंज, एटा, अलीगढ़, हाथरस, आगरा और फर्रुखाबाद वो इलाके हैं, जो समाजवादी पार्टी के पीडीए फार्मूला यानी पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक के वोट बैंक के लिहाज से मजबूत है. यही वजह थी कि अखिलेश यादव भी नारायण साकार हरि के कार्यक्रमों में शिरकत करते रहे. हाथरस कांड में मारे गए लोगों में उत्तर प्रदेश के 16 जिलों के भक्त शामिल थे. जो ढाई लाख की भीड़ हाथरस के सत्संग में पहुंची, उसमें यूपी के 16 जिलों से लोग पहुंचे थे. वह भी उस मानसिकता के, जो बाबा के कहने पर कुछ भी करने को तैयार है. इसके लिए बाबा ही भगवान है और बाबा का आदेश ही परम आदेश है. ये लोग 121 लोगों की मौत के बाद भी बाबा को कहीं से कसूरवार नहीं मानते. वोट बैंक की राजनीति में पार्टियों के लिए ऐसे बाबाओं का आशीर्वाद उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जो इंडि गठबंधन ने यूपी में नुकसान पहुंचाया, उसके पीछे पीडीए फॉर्मूला का बड़ा हाथ है. इस बदले परिणाम के पीछे जातियों का बदला समीकरण एक बड़ा कारण है और जातियों के समीकरण बदलने में ऐसे बाबाओ की भूमिका कई चुनावी परिणाम साबित कर चुकी है. सूत्रों का कहना है कि यही ताकत शायद अब भोले बाबा पर कार्रवाई करने से रोक रही है.
वायरल है चमत्कार की झूठी कहानियां
देखा जाएं तो भोले बाबा उर्फ साकार हरि सिर्फ प्रवचन ही नहीं करते, बल्कि इनके कई जगह हवेली रुपी आश्रम है। सपा मुखिया अखिलेश यादव से लेकर मायावती सहित कई बड़े नेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों सहित कई ओहदेदारों से संबंध है। इनके रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पेपरलीक का माफिया दौसा आश्रम से पकड़ा गया, लेकिन बाबा के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। बता दें, पेपरलीक माफिया हर्षवर्धन पटवारी का मकान आश्रम के पास ही है। गत 29 फरवरी को भर्ती परीक्षा-2020 के पेपर लीक मामले में हर्षवर्धन पटवारी के दौसा में नेशनल हाईवे स्थित मकान पर छापा मारा था। जहां बाबा का दरबार चर्चा में आया था। इस मकान में बाबा माह में तीन चार बार जाकर प्रवचन करते है। इसके अलावा इनके चरण रज के कमाल अनुयायियों में इस कदर सिर चढ़कर बोल रहे है कि आश्रम लगे हैंडपंप के पानी को अनुयायी कैंसर जैसे लाइलाज बीमारी को दूर करने का सच मानते हैं लोग आश्रम पहुंचते है तो सबसे पहले हैंडपंप का पानी ही पीते है। आश्रम के बाहर दर्जनों हैंडपंप लगे हैं। जहां सत्संग होते हैं वहां भी हैंडपंप लगाए जाते हैं। एक अनुयायी तो यहां तक दावा करता है कि बाबा आधा डॉक्टर आधा ईश्वर है।
बाबा की उंगली पर भगवान शंकर को देखा हैं। भगवान विष्णु का रुप है बाबा। वाह्य शक्तियों के स्वामी है बाबा। यही वजह है कि अनुयायी उन्हें अदृश्य शक्तियों के स्वामी बताते हैं। दावा है कि जो बाब का एक बार साक्षात्कार लेता है उसके बिगड़े काम बन जाते है। बाबा के आवाज से कट जाते हैं सारे कष्ट। दावा तो यहां तक है कि बीमारी में इलाज भले ही डाक्टर करें, लेकिन माध्यम बाबा ही होते है। यह अलग बात है कि हाथरस की घटना के लिए सोशल मीडिया से लेकर विशेषज्ञ तक बाबा को ही जिम्मेदार मानते हैं। कोई इसे लचर प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो कोई बाबा के संरक्षकों को भी जिम्मेदार मान रहे हैं. ट्विटर पर एक पत्रकार लिखते हैं कि बाबा ने 21 बीघे में अपना आश्रम बना रखा है. तीन तरफ से गेट हैं. इस वक्त सारे बंद हैं, बाबा इसी आश्रम में रोज सभा करता है. स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर वो लिखते हैं कि लोग बता रहे हैं कि रोज सुबह बाबा को दूध से नहलाया जाता है. उसी दूध से खीर बनती है जो प्रसाद के रूप में बांटी जाती है. कुछ लोग पूछ रहे हैं कि ये घटनाएं अक्सर होती हैं और भगदडके नाम पर ऐसी हत्याओं का कारण बनने वाले बाबाओं पर कोई एक्शन नहीं होता. बस नाम बदल जाते हैं, चेहरा बदल जाता है, जगह बदल जाती है लेकिन आस्था के सिंहासन पर बैठकर हर बार इस तरह लोगों को मौत के मुंह में भेजने की छूट मिल जाती है.रसूखदारों तक है बाबा की पकड़
समर्थकों के हुजूम और
रसूख ने सिर्फ अनुयायियों
के बीच ही भोले
बाबा का रुतबा नहीं
बढ़ाया, बल्कि नेता, अफसर और कर्मचारी
भी उनके दरबारी बनते
रहे। मंगलवार को हाथरस में
हुए कार्यक्रम के आयोजकों की
सूची में कई सरकारी
कर्मचारियों के नाम हैं।
बसपा सरकार में बाबा को
पुलिस स्कॉट मिला हुआ था।
पिछले साल एक कार्यक्रम
में सपा मुखिया अखिलेश
यादव भी मौजूद थे।
उसमें वह बाबा के
कार्यक्रम में उमड़ी भीड़
की तारीफ के साथ चमत्कारों
का संयोग बताते नजर आ रहे
हैं। भरतपुर से कांग्रेस की
सांसद संजना जाटव का सोशल
मीडिया पेज भी नारायण
साकार हरि के दरबार
में मत्था टेकने की तस्वीरों से
गुलजार है।
लापरवाही ही लापरवाही
जहां तक प्रशासनिक
लापरवाही का सवाल है
तो उसकी लापरवाही जगजाहिर
है। प्रशासन यह कह कर
नहीं बच सकता 80 हजार
की परमिशन थी, दो लाख
लोग पहुंच गएं। अगर दो
लाख लोग पहुंच गए
तो आप क्या कर
रहे थे। बाहरी व्यवस्था
कम से कम ठीक
तो कर लेतें। क्योंकि
ऐसी घटना जहां होती
है, उसकी तैयारी अगर
पहले से न हो,
तो व्यवस्था और अधिक चरमरा
जाती है। वहां एंबुलेंस,
डॉक्टर, नर्स, अस्पताल, दवाओं आदि की व्यवस्था
वैकल्पिक तौर पर क्यों
नहीं की गयी। अगर
की गयी तो लोगों
को जलालत क्यों झेलनी पड़ी। जहां तक
भक्तों की श्रद्धा की
बात है, तो जो
श्रद्धालु होते हैं, उनकी
जहां श्रद्धा होती है, वे
वहां जाते ही हैं.
उनसे मिलना चाहते हैं, उनका आशीर्वाद
लेना चाहते हैं, उनका पैर
छूना चाहते हैं, तो ऐसे
में भगदड़ मचना स्वाभाविक
है. यदि मिलने के
लिए या आशीर्वाद लेने
के लिए एक साथ
सैकड़ों की संख्या में
लोग पहुंच जाएं, तो भगदड़ की
स्थिति होना स्वाभाविक है.
इसलिए इस घटना में
सबसे बड़ा दोषी स्थानीय
पुलिस-प्रशासन को ही कहा
जा सकता है। जो
राजनीतिक रैली होती है,
उसमें भीड़ क्या नेताओं
से नहीं मिलना चाहती
है? उसके साथ सेल्फी
नहीं लेना चाहती है,
कई बार भीड़ के
कारण मंच तक टूट
जाते हैं. मतलब साफ
है मेला या आयोजन
हो, उसमें भीड़ जुटती ही
है, जरूरत इस बात की
है कि उस भीड़
को नियंत्रित कैसे किया जाए,
और यह काम स्थानीय
पुलिस ही बेहतर तरीके
से कर सकती है.
आस्था के इस देश
में श्रद्धा अहम कड़ी है।
हम अपनी व्यवस्था को
चुस्त-दुरुस्त करने के बजाय
हम अपनी परंपराओं, आस्था
और विश्वास को कटघरे में
खड़ा करने के बजाय
व्यवस्था पर जोर देना
होगा।
तोड़नी होगी ढोंगी बाबाओ की कमर
हिंदुस्तान में ऐसे बाबाओं
का साम्राज्य है. ये कोई
आज से नहीं है.
सदियों पहले से रहा
है और अभी भी
है. कुछ लोगों का
कहना है कि इसके
मूल में अशिक्षा और बेरोजगारी
है, पर यह पूरी
तरह गलत है. बाबाओं
के चक्कर में जितना पढ़े
लोग और संपन्न लोग
( खाते-पीते) हैं उतना गरीब
नहीं है. यही कारण
है बाबाओ का साम्राज्य अमीर
राज्यों पंजाब-हरियाणा-राजस्थान और वेस्ट यूपी
में कुछ ज्यादा ही
है. कुछ लोग यह
भी कहते हैं कि
बढ़ता तनाव, भविष्य की अनिश्चितता जैसी
बातें बाबाओं को समृद्ध और
मजबूत बना रही हैं,
तो ये भी गलत
है क्योंकि जब ऐसी समस्याएं
कम थीं तब भी
देश में बाबा लोगों
की पूछ थी. मध्यकालीन
भारत के बाद से
भारत में साधु-संतों
और बाबाओं का साम्राज्य लगातार
बढ़ता गया. भारत से
राजघराने तो समाप्त हो
गए पर मठों की
जमीन और जायदाद बढ़ती
गई. देश में उत्तर
से दक्षिण और पूर्व से
पश्चिम तक में ऐसे
मठों की भरमार है.
पंजाब में डेरे एक
प्रकार के मठ ही
हैं. भोला बाबा उर्फ
साकार हरि भी कुछ
दिन बाद खुद को
एक मठ में तब्दील
कर लेंगे. अभी इनकी पूजा
इनकी पत्नी के साथ होती
है बाद में इनके
बच्चे भी भगवान बन
जाएंगे. देश के कई
मठों और डेरों की
ऐसी ही कहानी है.
बाबा का एफआईआर में नाम नहीं
इस वक्त बाबा
बागेश्वर की धूम मची
हुई है। दरबार में
नेता तक मत्था टेकने
पहुंच रहे हैं। इतना
ही नहीं रेप, हत्या
और कई मामलों में
आरोपी और कई मामलों
में सजा पा चुके
हरियाणा के बाबा राम
रहीम जेल में सजा
काट रहे हैं. पर
वो अधिकतर बेल पर जेल
से बाहर ही रहते
हैं. जेल की दीवार
कभी उन्हें ज्यादा दिन के लिए
अंदर नहीं रख पाती
है. क्योंकि उनके पास बड़ा
वोट बैंक है. कहा
जाता है कि बाबा
के भक्त केवल हरियाणा
मे ही नहीं पंजाब-राजस्थान और मध्यप्रदेश में
भी हैं. बाबा साकार
हरि उर्फ भोले बाबा
की भी राजनीतिक पहुंच
किसी से कम नहीं
थी. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव बाबा का
जयकारा करते रहे हैं.
कहा जाता है पूर्व
मुख्यमंत्री मायावती के समय में
भी उनका जलवा कायम
था. दूर क्यों जाएं
योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में
भी उनका जलवा कायम
ही कहा जाएगा. अभी
तक 121 लोगों की मौत में
कहीं उनका नाम नहीं
आया है. पुलिस प्रशासन
की हिम्मत नहीं हुई है
कि एफआईआर में उनका नाम
लिखा जा सके. बाबा
के आयोजन पर जिस तरह
पुलिस और प्रशासनिक महकमा
आंख मूंदे हुए था यह
बाबा के दबदबे कारण
ही संभव था. बाबा
की जाति जाटव है.
उत्तर भारत में जाटव
दलित वर्ग में आते
हैं. इसी समाज से
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री
मायावती भी आती हैं.
जिस समाज के लोगों के साथ छुआछूत
का व्यवहार होता रहा है
अगर उस समाज के
लोग महंत, संत और बाबा
बन रहे हैं तो
यह देश और समाज
के सुखद संयोग कहा
जा सकता है. पर
यह भी देखना होगा
कि बाबा के दरबार
कितने बड़ी जातियों के
लोग जाते रहे हैं.
क्योंकि उत्तर भारत के ज्यादातर
नए डेरों और नए बाबाओं
के दरबार पिछड़े और दलित समाज
के लोग ही जाते
रहे हैं. हालांकि इन
डेरों में जाने वालों
में उच्च जातियों के
लोगों की संख्या भी
कम नहीं है. दूसरे
शब्दों में हम यह
भी कह सकते हैं
कि इन डेरों और
बाबाओं के उत्थान के
पीछे वंचित समाज को बराबर
का दर्जा मिलने की चाहत भी
कहीं न कहीं एक
कारण रहा है. राम
रहीम, बाबा रामपाल ही
नहीं बल्कि पंजाब के अनेकों..डेरों
के पीछे पिछड़ी जातियों
और दलित जातियों के
लोगों का समर्थन रहा
है. इस तरह ये
बाबा बहुत बड़ा वोट
बैंक बना लेते हैं.
जिसके चलते इनका सत्ता
प्रतिष्ठानों तक में इनकी
हनक चलती है.
लंबी है ब्लैकलिस्टेड बाबाओं की सूची
अखाड़ा परिषद की लिस्ट में बलात्कारी बाबा गुरमीत राम रहीम, आसाराम उर्फ आशुमल शिरमानी, आसाराम का बेटा नारायण साईं, सुखविंदर कौर उर्फ राधे मां, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह समेत कई नाम थे. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की कार्यकारिणी में इन सभी का देशव्यापी बहिष्कार करने की अपील की गई थी. लिस्ट में सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी असीमानंद, ऊं नमः शिवाय बाबा, कुश मुनि, बृहस्पति गिरि, वृहस्पति गिरी और मलकान गिरि का भी नाम था.
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