Monday, 8 July 2024

मोदी-पुतिन मिलन से और मजबूत होंगे आर्थिक रिश्ते

मोदी-पुतिन मिलन से और मजबूत होंगे आर्थिक रिश्ते 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2024 की जंग जीतने के बाद राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन .के निमंत्रण पर पहली द्विपक्षीय यात्रा के तौर पर रूस की राजधानी मॉस्कों पहुंचे है। वहां पीएम रूसी राष्ट्रपति के साथ 22वें रूस-भारत वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. दोनों नेताओं के बीच अनौपचारिक बातचीत की भी उम्मीद है. मतलब साफ है मोदी पुतिन मिलन एक बार फिर रुस और भारत के आर्थिक कारोबार बढ़ेंगे। दोनों देशों के बीच विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी और गहरा होगा। खासकर आपसी सहयोग के क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों से लोगों को बहुत फायदा होगा. स्वागत करने पहंचे ओवरसीज फ्रेंड्स बीजेपी रूस के अध्यक्ष सैमी कोटवानी ने तो यहां तक कहा, रूस के लोग मानते हैं पीएम मोदी और पुतिन कुंभ के मेले में खोए हुए दो भाई हैं

सुरेश गांधी 

फिलहाल, रूस और पश्चिमी देशों (विशेषकर अमेरिका और यूरोप) के बीच संबंध तनावपूर्ण हैं. विशेषकर यूक्रेन संघर्ष और नाटो विस्तार के कारण. ऐसे में भारत का रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय हो सकता है. यह उनके रणनीतिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है. भारत और रूस के बीच रक्षा और सैन्य सहयोग बहुत मजबूत है. यदि भारत और रूस के बीच सैन्य समझौते होते हैं या भारत रूसी हथियार खरीदता है तो यह पश्चिमी देशों के रक्षा उद्योगों के लिए नुकसानदायक हो सकता है, जो भारतीय रक्षा बाजार में हिस्सेदारी की कोशिश कर रहे हैं. रूस एक प्रमुख ऊर्जा उत्पादक देश है. यदि भारत और रूस के बीच ऊर्जा सहयोग बढ़ता है, जैसे तेल और गैस की आपूर्ति पर समझौते हुए तो यह पश्चिमी देशों के ऊर्जा कंपनियों के लिए चुनौती बन सकता है.

भारत और रूस कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। जैसेब्रिक्स, एससीओ, और संयुक्त राष्ट्र. यदि इन मंचों पर भारत और रूस के बीच सहयोग बढ़ता है तो यह पश्चिमी देशों के लिए अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में चुनौतियां पैदा कर सकता है. रूस तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में भी भारत के साथ सहयोग कर रहा है. यह पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय हो सकता है. विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां वे भी भारत के साथ सहयोग करना चाहते हैं. भारत और रूस के बीच व्यापार और निवेश के बढ़ते संबंध भी पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय हो सकते हैं. यदि भारत रूसी बाजार में अधिक निवेश करता है या रूस से अधिक व्यापार करता है तो यह पश्चिमी व्यापारिक हितों को प्रभावित कर सकता है.  हालांकि, भारत की विदेश नीति स्वायत्त और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है और वो अपने रणनीतिक साझेदारों के साथ संबंधों को संतुलित करने की कोशिश करता है.

 हाल के वर्षों में भारत और रूस के बीच ऊर्जा सहयोग, विशेषकर तेल और गैस के क्षेत्र में सहयोग काफी बढ़ा है. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण रूस ने भारत और चीन जैसे देशों को रियायती दरों पर तेल बेचना शुरू किया. इससे भारत को सस्ता तेल हासिल करने का मौका मिला. 2022 और 2023 के दौरान भारत ने रूस से तेल खरीद में जबरदस्त वृद्धि की. 2022 की शुरुआत में रूस भारत को सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ताओं में से एक बन गया. भारतीय रिफाइनरियां रूस से बड़ी मात्रा में तेल खरीदने लगीं. मई 2022 तक रूस भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया था. रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदने से भारतीय रिफाइनरियों को आर्थिक लाभ हुआ, जिससे देश की ऊर्जा लागत को कम करने में मदद मिली. यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि वैश्विक तेल कीमतों में वृद्धि हो रही थी. भारत और रूस के बीच लंबे समय से मजबूत रक्षा संबंध हैं और भारत ने विभिन्न प्रकार के हथियार और डिफेंस सिस्टम रूस से आयात किए हैं.

इसके अलावा, भारत ने रूस से विभिन्न प्रकार के रडार और संचार उपकरण भी हासिल किए हैं, जो हमारी सेना की क्षमताओं को बढ़ाते हैं. इन सभी हथियारों और रक्षा प्रणालियों ने भारतीय सेना, नौसेना, और वायु सेना की युद्ध क्षममता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. रूस के साथ यह रक्षा सहयोग भारत की रणनीतिक सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. हालांकि, रूस भारत से हथियारों की खरीदारी अपेक्षाकृत कम करता है. चूंकि रूस खुद एक प्रमुख हथियार निर्माता और निर्यातक है. लेकिन दोनों देशों के बीच तकनीकी और रक्षा सहयोग का आदान-प्रदान होता है. भारत और रूस ने संयुक्त रूप से ब्रह्मोस  मिसाइल विकसित की है. यह दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइलों में से एक है और यह दोनों देशों के सशस्त्र बलों द्वारा उपयोग की जाती है. रूस ने इस परियोजना में भारतीय तकनीकी योगदान को स्वीकार किया है और इसे अपनी जरूरतों के अनुसार अनुकूलित करने की संभावना भी देखी जाती है. इसके अलावा, भारत की रक्षा अनुसंधानएवं विकास संगठन और रूसी रक्षा अनुसंधान संस्थान के बीच विभिन्न परियोजनाओं पर सहयोग होता है. इस सहयोग के तहत दोनों देश एक-दूसरे की तकनीकी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हैं.

देखा जाए तो पीएम नरेंद्र मोदी ऐसे समय में रुस पहुंचे जब भारत को अमेरिका की तरफ झुकने की भी बात की जा रही है। ऐसे में नरेंद्र मोदी की मॉस्को यात्रा रूस को यह भरोसा दिलाने का प्रयास है कि दोनों देशों के बीच संबंध बरकरार हैं और भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं है। मोदी से रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ संबंध काफी अच्छे माने जाते हैं। दोनों की दोस्ती का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दोनों नेता पिछले दस वर्षों में 16 बार मिले हैं। हालांकि नरेंद्र मोदी पीएम बनने से पहले भी व्लादिमीर पुतिन से मिल चुके थे। नरेंद्र पहली बार जब रूस गए तो वह उस समय वह गुजरात के सीएम थे और तत्कालीन भारतीय पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उन्होंने मॉस्को का दौरा किया था। 2014 में नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री चुने गए। इसके बाद अपने अब तक तक के 10 साल के कार्यकाल में उनकी रूसी राष्ट्रपति से लगातार मुलाकात होती रही हैं। मतलब साफ है मोदी के मौजूदा रूस दौरे को मॉस्को के साथ दिल्ली के रिश्ते की अहमियत को दिखाना और पश्चिम के साथ संबंधों को संतुलित करने की कोशिश है। अपने पहले के दोनों कार्यकाल में शपथ के बाद मोदी ने पहले विदेशी दौरे के लिए पड़ोसी देशों को चुना था लेकिन इस बार उन्होंने रूस को चुना है।

इस दौरान द्विपक्षीय हितों पर बात होगी. रूस के बाद प्रधानमंत्री 10 जुलाई को ऑस्ट्रिया भी जाएंगे. लेकिन समझा जा रहा है कि मोदी रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में भी भारतीय हित को लेकर बात कर सकते है। हालांकि, पीएम मोदी के रूस दौरे से पश्चिमी देशों में जलन देखने को मिल रही है. क्रेमिलन (रूसी राष्ट्रपति कार्यालय) ने इस बात का दावा किया है. जबकि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाले इस युद्ध को समाप्त करने की अपील मोदी कर चुके है. जहां तक जलन की बात है तो यह पहली बार नहीं है, 1950-1960 के दशक से पश्चिमी देशों में भारत-रूस के रिश्तों पर ईर्ष्या देखने को मिली है. हालांकि, भारत पश्चिम के दबाव को लगातार खारिज करता रहा है और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के साथ आगे बढ़ रहा है. यूक्रेन संकट में भी भारत और रूस की साझेदारी पर अब तक कोई आंच नहीं आई है. दो साल पहले जब पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच मुलाकात हुई तब दोनों नेताओं ने कहा था, ’रूस और भारत की दोस्ती अटूट है.’ भारत और रूस को हर संकट पर साथ खड़े देखा जा सकता है. भारत की तटस्थ विदेश नीति हर किसी को आकर्षित कर रही है.

रूस से सस्ती ऊर्जा खरीदने का अवसर भी भारत के निर्णयों को प्रभावित करता है. रूस से कच्चे तेल और अन्य ऊर्जा संसाधनों की खरीद में वृद्धि हुई है, जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है. भारत और रूस के बीच दोस्ती का आधार कई ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारणों पर आधारित है. भारत और सोवियत संघ के बीच के रिश्ते 1950 के दशक से ही मजबूत रहे हैं. दोनों देशों ने शीत युद्ध के दौरान एक-दूसरे का समर्थन किया. खासकर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान. रूस, भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता है. भारत की सेना के उपकरणों और हथियारों का एक बड़ा हिस्सा रूस से आता है. दोनों देशों के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास और तकनीकी सहयोग भी होता है. दोनों देश विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन करते हैं, जैसे संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स,और शंघाई सहयोग संगठन. भारत और रूस के बीच ऊर्जा, खनिज और अन्य क्षेत्रों में व्यापारिक संबंध हैं. दोनों देश परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भी सहयोग करते हैं, जैसे कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना. चीन की बढ़ती ताकत और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भारत और रूस एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं. दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी हैं, जैसे शैक्षणिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम, भारतीय छात्रों का रूस में पढ़ाई करना, और रूसी संस्कृति का भारत में प्रसार. यही वजह है कि रूस भारत का एक भरोसेमंद साथी बना हुआ है और दोनों देशों के बीच दोस्ती मजबूत बनी रहती है।

भारत और रूस के बीच बेहतर है द्विपक्षीय संबंध

भारत और रूस के बीच ऐतिहासिक, रणनीतिक और बहुआयामी द्विपक्षीय संबंध माने जाते हैं. ये संबंध कई मायने में अहम हैं. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. 2021 में द्विपक्षीय व्यापार लगभग 10 अरब डॉलर था. द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने के लिए दोनों देशों ने 2025 तक 30 अरब डॉलर तक के लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प लिया है. भारत और रूस के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र मेसहयोग रहा है. रूस ने भारत के पहले मानव अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में भेजने में मदद की थी. दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्र में सहयोग होता है. इसके अलावा, भारतीय छात्रों की एक बड़ी संख्या रूसी यूनिवर्सिटीज़ में शिक्षा हासिल करती है. दोनों देशों केवैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्र में सहयोग होता है. इसके अलावा, भारतीय छात्रों की एक बड़ी संख्या रूसी यूनिवर्सिटीज़ में शिक्षा हासिल करती है. दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम भी होते हैं. भारतीय संस्कृति और योग का रूस में बड़ा प्रभाव है. भारत और रूस विभिन्न अंतररराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग करते हैं, जैसे शंघाई सहयोग संगठन और संयुक्त राष्ट्र. दोनों देश आतंकवाद के खिलाफ सहयोग करते हैं और वैश्विक सुरक्षा में योगदान देते हैं. फिलहाल, भारत और रूस के बीच उभरते हुए नए क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है. इनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, और ग्रीन एनर्जी शामिल है.दोनों देशों के बीच नियमित दौरे और शिखर सम्मेलन होते हैं.

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