Tuesday, 9 July 2024

बाकी जो बचा वह महंगाई मार गई...

 


बाकी जो बचा वह महंगाई मार गई...

महंगाई की मार से आम जनता त्रस्त है. तेल-सब्जियों से लेकर खाने-पीने की चीजों के दाम में बेतहाशा वृद्धि ने रसोई का बजट गड़बड़ कर दिया है. अब आलू, प्याज और टमाटर से लेकर पॉल्ट्री फॉर्म उत्पादों की कीमतें बढ़ने के कारण थाली से अंडे और मांस गायब होते जा रहे हैं. प्याज की कीमत पिछले साल के मुकाबले 80 फीसदी और आलू की कीमत 67 फीसदी बढ़ी है। टमाटर की कीमत भी 80 रुपये किलो पहुंच गई है। मतलब साफ है आम आदमी की कमाई की पाई-पाई पर महंगाई सपरचट कर रही है। महंगाई का सबसे ज्यादा असर मध्यमवर्गीय परिवारों पर देखा जा रहा है। या यूं कहें महंगाई में कमाई की धुलाई हो रही है। साबुन, सर्फ, टूथपेस्ट पर भी महंगाई की मार देखने को मिली हैं नैपकिन पैड के दाम में 10 से 15 फीसदी तक वृद्धि हो गयी है। छोटे पैकेट की तुलना में बड़े पैकेट की कीमतों में अच्छी खासी वृद्धि देखी जा रही है। कमाई की तुलना में अधिक खर्च की खींझ से जूझ रहे लोगों पर 10-15 फीसदी तक का अधिक भार पड़ा है। अब तक लोग खुलकर बोलने लगे है सरकार के पास भंडार है तो आम आदमी के जेब की स्टॉक क्यों खत्म किया जा रहा है? अगर महंगाई की वजह मानसून है तो इससे निपटने के उपाय पहले क्यों नहीं किए गए? क्या जमाखोरों पर कार्रवाई सिर्फ इसलिए नहीं हो रही कि वह पैरलल सरकार चला रहे है? आजादी के 75 सालों बाद क्या सरकार अब भी मानसून पर ही निर्भर है? पिछले दो-तीन दिनों के भीतर सब्जियों सहित अन्य जरुरी के खाद्य सामाग्रियों में 40 से 50 फीसदी का उछाल है। थोक मंडियों के सापेक्ष खुदरा बाजार में सामानों के दाम 10-15 रुपये अधिक हो गया है

सुरेश गांधी

फिरहाल, महंगाई की मार ने लोगों को केवल अपने रोजमर्रा के खर्चे कम करने के लिए मजबूर किया है, बल्कि खाने की थाली को भी सीमित कर दिया है. देश में आलू, टमाटर, प्याज, अदरक, लहसुन एलपीजी से लेकर अन्य खाद्य पदार्थों पर लगातार बढ़ती महंगाई के बीच जनता रसोई के बजट को लेकर परेशान है, उस पर पॉल्ट्री में इजाफा होने के कारण थाली से अंडे और मांस दूर हो गए हैं. पिछले कुछ दिनों में मौसम में बदलाव के कारण सब्जियों की कीमतों में भी बेतहाशा तेजी देखने को मिली है. इस बीच भिंडी की कीमत 15 रुपये से बढ़कर 60-70 रुपये प्रति किग्रा, अदरक 200 रुपये किलो, लौकी की कीमत 20 रुपये से 50 रुपये प्रति किग्रा, कुलरु 60 रुपये किला, परवाल बोड़ा 100, सूरन 80 रुपये किलो, बआलू 42 रुपये किलों, प्याज 60 रुपये किलो, लहसून 200 रुपये किलो हो गई, जबकि अन्य सब्जियों के दाम में भी बीते दिनों में 15-20 फीसदी की वृद्धि हुई है। सबसे ज्यादा हाल-बेहाल टमाटर ने कर रखा है। 

खुदरा विक्रेताओं का कहना है कि टमाटर 80 से 100 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच बिक रहा है. खाद्य तेल की कीमतें हाल ही में अपने शिखर पर पहुंचने बाद कम जरूर हुई हैं, लेकिन अभी भी ये 40 फीसदी ऊपर बनी हुई हैं. बाजार विक्रेताओं का कहना है कि पिछले कुछ दिनों में बारिश से किसानों की फसल बर्बाद हो रही है, जो कि कीमतों में बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण है. कहा जा सकता है जहां एक ओर खाने-पीने की वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं, वहीं दूसरी ओर खुदरा महंगाई भी लोगों को हलकान कर रखा है। आंकड़ों के मुताबिक खाद्य तेल (सोया ऑयल) को छोड़ दें तो आटा, दाल, चावल, दूध, चाय पत्ती, शक्कर के दामों में तेजी आयी है. पिछले साल की तुलना में इस साल दालें 21.95 प्रतिशत, अनाज 9.01 प्रतिशत और फल 5.81 प्रतिशत महंगे हुए. दूध के दाम भी 3.61 फीसदी बढ़े. मसालों की कीमतों में भी 11.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

महंगाई एक तरह से आर्थिक समस्या है। महंगाई से आम लोगों को राहत मिलती नजर नहीं रही है। सब्जियों से लेकर दालों की बढ़ी कीमतें वैसे ही परेशान कर रही थी। अब एफएमसीजी उत्पाद भी आम लोगों को झटका दे रहे हैं। साबुन शैंपू और पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स की कीमतों में अच्छी खासी वृद्धि हो गई है। नहाने का साबुन और कपड़ा धोने का सर्फ भी महंगा हो गया है। टूथपेस्ट के 50 ग्राम तक के पैक की कीमत में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। जबकि इसके ऊपर के पैक की कीमत में 20 से 50 फीसदी तक वृद्धि हो गई है। इसी तरह वाशिंग पाउडर के दाम में 25 से 30 फीसदी तक वृद्धि हुई है। कुछ कंपनियों के फेस पाउडर के दाम भी बढ़ गए है। बॉडी लोशन का दाम ₹50 तक बढ़ गया है। पेंसिल बैट्री की कीमत में 20 फीसदी तक उछाल है। मच्छर मारने वाला लिक्विड भी महंगा हो गया है। इसी तरह फेस क्रीम के दामों में भी 20 से 50þ तक की वृद्धि हुई हैं बाल रंगने वाले पाउडर की कीमत भी बढ़ गयी हैं।

गरीब मध्यम वर्ग के हितों के लिए कोई ठोस पहल नहीं किए गये। रेल किराया, फिर पेटोल-डीजल, आलू-प्याज, दूध सहित अन्य रोजमर्रा की जरुरतों की खाद्य सामाग्रियों के दाम वृद्धि ने गरीब की परेशानियां और बढ़ा दी। बढ़ी कीमतों के चलते गरीब मध्यम तबके को अब और अधिक जेब ढीली करनी पड़ेगी। क्योंकि कमाई की तुलना में अधिक खर्च की खींझ से जूझ रहे लोगों पर 10-15 फीसदी तक का अधिक भार पड़ने वाला है। चीनी-चाय-पत्ती की तेजी ने पहले से ही हाथ टाइट कर रखा है। सब्जियों के दामों में वृद्धि गृहणियों के बजट को ही झकझोर दिया है। गन्ना किसान अब भी कर्ज के बोझ से कराह रहे है, लेकिन बकाया भुगतान नहीं हो सका। हालांकि सरकार कीमतों में बढ़ोत्तरी को जमाखारी बता रही है। कहा जा रहा है कि सरकार के पर्याप्त अनाज है और महंगाई कम करने के प्रयास किए जा रहे है। सवाल यह है कि अगर सरकार के पास भंडार है तो आम आदमी के जेब की स्टॉक क्यों खत्म किया जा रहा। महंगाई की वजह मानसून देरी है तो इससे निपटने के उपाय पहले क्यों नहीं किए गए। क्या जमाखोरों पर कार्रवाई इसलिए नहीं हो पा रही कि वह पैरलल सरकार चला रहे है। आजादी के इतने सालों बाद क्या सरकार अब भी मानसून पर ही निर्भर है। इस जमाखोरी से आखिर किसकों लाभ हो रहा। इससे निपटने के कारगर उपाय क्यों नहीं किए जा रहे। ये सवाल जनता को अच्छे दिनों का सब्जबाग दिखाने वाले के प्रति तो चूभ ही रही है, अपने सोर्स ऑफ इनकम की भी चिंता खाएं जा रही है।

यह किसी से छिपा नहीं कि आलू प्याज की अपेक्षित पैदावार और आपूर्ति के बावजूद पिछले दो सप्ताह से लगातार दाम चढ़ते जा रहे है। और सरकार जब तक सक्रिय होती तब तक नुकसान हो चुका था। जमाखोरी कालाबाजारी करने वालों पर प्रभावी अंकुश लगाने के साथ-साथ जिंसों के वायदा कारोबार के बारे में भी नए सिरे से विचार करने की जरुरत है। इसलिए और भी क्योंकि यह धारणा गहराती जा रही है कि यह खाद्य पदार्थ महंगाई बढ़ाने में सहायक साबित हो रहा है। यह सही समय है कि इसकी समीक्षा हो कि जिंसों के वायदा कारोबार को जिस उद्देश्य से शुरु किया गया था उसकी पूर्ति हो पा रही है या नहीं। यदि यह केवल कारोबारियों के हितों को पूरा कर रहा हो तो फिर इसे जारी रखने का कोई मतलब नहीं।

मूल्य वृद्धि पर नियंत्रण पाने के लिए केन्द्र राज्य सरकारों को मिलकर काम करने के साथ यह भी देखना होगा कि विचौलियों पर लगाम कैसे लगे। इसी तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में एक ही जिंस के दामों में भारी अंतर को पाटने की दिशा में कारगर उपाय करने होंगे। चूंकि महंगाई ने सिर उठा लिया है इसलिए इसमें हर्ज नहीं कि केन्द्र सरकार उन कदमों की सत्त समीक्षा करें कि जो उसने महंगाई पर काबू पाने के लिए उठाएं है। यह तभी संभव हो पायेगा जब राज्य सरकारें अधिक सतर्कता का परिचय देंगी। चूंकि अभी केवल मौखिक या कागजी सतर्कता दिखाई जाती है इसलिए वह मुश्किल से नियंत्रित दिखते है। राज्यों को इससे अवगत होना ही चाहिए कि जमाखोरी कालाबाजारी करने वाले बहुत तेजी से सक्रिय हुए है। ट्रेनों के जनरल बोगियों में ठूसें यात्रियों के परेशानियों को आखिर क्यों नजरअंदाज किया गया। सांसदों, मंत्रियों उनकी हवाई यात्रा सहित अन्य सुविधाओं पर गरीबों का पैसा पानी की तरह बहा रही है, लेकिन गरीब पर ध्यान नहीं दे रही।

यह अलग बात है कि देश की खुदरा मुद्रास्फीति मई में सालाना आधार पर घटकर 12 महीने के निचले स्तर 4.75 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह पिछले महीने यानी अप्रैल में 11 महीने के निचले स्तर 4.83 प्रतिशत थी। सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार खुदरा महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 2-6 फीसदी के सहिष्णुता दायरे में बना हुआ है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार क्रमिक आधार पर मुद्रास्फीति की दर मई में 0.48 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रही। सरकार के आंकड़ों के अनुसार खाने-पीने की कीमतें कम हुईं है। मई में खाद्य मुद्रास्फीति की दर अप्रैल के 8.75 प्रतिशत से घटकर मई में 8.62 प्रतिशत हो गई। हालांकि यह आंकड़ा मई 2023 की खाद्य महंगाई दर 3.3 प्रतिशत से अधिक है। ग्रामीण मुद्रास्फीति मई में घटकर 5.28 प्रतिशत रह गई, जो पहले 5.43 प्रतिशत थी। इस बीच, मई में शहरी मुद्रास्फीति की दर 4.15 प्रतिशत रही। फलों और सब्जियों की मुद्रास्फीति अप्रैल के 27.8 प्रतिशत से घटकर मई में सालाना आधार पर 27.3 प्रतिशत पर गई।

अनाज और दालों की कीमतें जो भारत के मुख्य आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, मुद्रास्फीति की दर क्रमशः 8.69 प्रतिशत और 17.14 प्रतिशत पर गई। ईंधन के मामले में मुद्रास्फीति दर मई में घटकर 3.83 प्रतिशत रह गई, जबकि अप्रैल में इसमें 4.24 प्रतिशत की गिरावट आई थी। कपड़े और जूते और हाउसिंग सेक्टर के लिए मुद्रास्फीति दर मई में क्रमशः 2.74 प्रतिशत और 2.56 प्रतिशत रही। जून की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के फैसलों के बारे में बताते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि भारत की मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत के अपने लक्ष्य के करीब पहुंच रही है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि केंद्रीय बैंक चाहता है कि यह प्रक्रिया क्रमिक हो और टिकाऊ आधार पर हो।

एमपीसी की बैठक के बाद दास ने मुद्रास्फीति को हाथी बताया था और कहा था कि जून की बैठक के दौरान यह बहुत धीरे-धीरे जंगल में लौटता दिखा। उस दौरान, अपने अनुमानों में भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2025 के लिए मुद्रास्फीति के लक्ष्य को 4.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित छोड़ दिया था। वित्त वर्ष 2024 में मुद्रास्फीति दर केंद्रीय बैंक के पूर्वानुमान के अनुरूप 5.4 प्रतिशत थी। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई) की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (प्प्च्) अप्रैल में घटकर 5 प्रतिशत रह गई, जो तीन महीने का निचला स्तर है। मार्च में यह 5.4 प्रतिशत थी। सरकार ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि अप्रैल 2023 में आईआईपी वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत दर्ज की गई। आईआईपी का पिछला उच्चतम स्तर अक्टूबर 2023 में 11.9 प्रतिशत दर्ज किया गया था, यह नवंबर में घटकर 2.5 प्रतिशत, दिसंबर में 4.2 प्रतिशत और जनवरी 2024 में 4.1 प्रतिशत दर्ज किया गया।

No comments:

Post a Comment

बढ़ी गलन तो खादी प्रदर्शनी में उमड़े खरीदार, देशी उत्पादों की भरमार

बढ़ी गलन तो खादी प्रदर्शनी में उमड़े खरीदार , देशी उत्पादों की भरमार  खादी व गर्म कपड़ों पर मिल रही 30 प्रतिशत तक की छूट...