समाज के दर्पण है ‘श्रीकृष्ण‘
श्रीकृष्ण मूल रूप से पारिवारिक व्यक्ति थे, लेकिन अत्यधिक सामाजिक और राष्ट्रीय नेतृत्व करते दिखते थे। हम अधिकतम समय घर से बाहर गुजारते हैं। ऐसे में परिवार बचाने की यही शैली है कि जरूरी नहीं हमारे पास पासे कितने हैं? आवश्यक यह होगा कि हम बाजी कैसे चलें। घरों में ऐसा ही वातावरण है। एक-दूसरे से चाल चल रहे हैं। परिवार एकमात्र ऐसा खेल है, जिसमें या तो सभी को जीतना है या सभी से हारना है। एक ही परिवार में अपनों को हराना और अपनों से जीतना ठीक नहीं है, इसलिए श्रीकृष्ण जैसा गुरु परिवार के केंद्र में होना चाहिए। समाज को प्रकृति प्रेम, मित्रता, सदाचार, कुशल नेतृत्व व स्त्री सम्मान जैसे विचारों से युगों पहले लोगों को अवगत करवा दिया था। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से हम सभी को जीवन जीने की राह सीखनी चाहिए। जन्म के पूर्व माता-पिता का जेल में होना, भाई-बहनों की हत्या होना, जन्म के बाद ही उफनती जमुना नदी पार करना, मां के आंचल से दूर हो जाना जैसी विषम परिस्थितियों में भी भगवान श्री कृष्ण ने विश्व के सामने पूरे सम्मान और गरिमा के साथ जीवन जीने का उदाहरण रखा है। सनातन संस्कृति में भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण ने मर्यादा के अंदर जीवन जीना सिखाया है। हम सभी को उनके द्वारा स्थापित उच्च आदर्शों का अपने जीवन में पालन करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में आई हर मुसीबत और परीक्षा का निडर होकर सामना किया और सफल हुए। भगवान ने अपने जीवन काल में लगातार संघर्ष करते हुए समाज को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद् भागवत गीता के माध्यम से पूरे विश्व में धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है। आध्यात्मिक, सामाजिक, नैतिक या दूसरी किसी भी दृष्टि से देखेंगे तो मालूम पड़ेगा कि श्रीकृष्ण जैसा समाज सुधारक दूसरा कोई नहीं हुआ। श्रीकृष्ण ने अपना जीवन इतना सुंदर और सुगंधित किया था कि जो कोई उनकी ओर देखता उसे वे अपने ही लगते थे। जो सब को अपनी ओर समान रूप से खींचता हो या आकर्षित करता हो उसी का नाम श्रीकृष्ण है
सुरेश गांधी
भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने अर्जुन को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश श्रीमदभगवदगीता के माध्यम से दिया। कालियानाग के फन पर नृत्य किया, विदुराणी का साग खाया और गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरिधारी कहलाये। समय पड़ने पर उन्होंने दुर्योधन की जंघा पर भीम से प्रहार करवाया, शिशुपाल की गालियां सुनी, पर क्रोध आने पर सुदर्शन चक्र भी उठाया। अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने पाण्डवों को महाभारत के संग्राम में जीत दिलवायी। सोलह कलाओं से पूर्ण वह भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने मित्र धर्म के निर्वाह के लिए गरीब सुदामा के पोटली के कच्चे चावलों को खाया और बदले में उन्हें राज्य दिया। उन्हीं परमदयालु प्रभु के जन्म उत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने के लिए भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप में हुआ था।
वैसे भी श्रीकृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था
के केंद्र रहे हैं। वे
कभी यशोदा मैया के लाल
होते हैं। तो कभी
ब्रज के नटखट कान्हा
तो कभी गोपियों का
यौवन चुराते छलिया तो कभी विदुर
पत्नी का आतिथ्य स्वीकार
करते हुए सामने आते
हैं तो कभी अर्जुन
को गीता का ज्ञान
देते हुए। चौपड़ के
खेल में कहावत है-
जरूरी नहीं कि सारे
पासे आपके हाथ में
हों, जरूरी यह है कि
आप बाजी कैसे चलते
हैं। इसे यूं समझें
कि संसाधन सीमित हो या कभी
कोई साधन नहीं भी
हो सकता है। ऐसे
में हम किस-किस
नीयत से निर्णय लेंगे
यह महत्वपूर्ण है। कौरवों के
पास सारे पासे थे,
लेकिन बाजी पांडवों ने
सही ढंग से चली,
क्योंकि श्रीकृष्ण उनके साथ थे।
श्रीकृष्ण यानी स्पष्ट चिंतन,
सुदृढ़ निर्णय शक्ति और आत्म-विश्वास।
श्रीकृष्ण का यह रूप
हमारे भीतर उपस्थित है।
बस, उघाड़ना भर है। श्रीकृष्ण
जैसी उपलब्धि हमारे भीतर शिक्षा अथवा
किसी के मार्गदर्शन से
प्राप्त हो सकती है।
मान्यता है कि भगवान
श्रीकृष्ण की भक्ति भवसागर
को पार करा देती
है. इससे भक्तों को
मोक्ष की प्राप्ति संभव
है. श्रीकृष्ण भगवान की पूजा में
जन्माष्टमी का सबसे ज्यादा
महत्व है. यह दिन
भगवान के पृथ्वी लोक
पर प्रकट होने के दिन
के रूप में मनाया
जाता है. भक्त रात्रि
के 12 बजे प्रभु के
जन्म लेने और उन्हें
पालने में डालने के
तौर पर मनाते हैं.
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण
की पूजा सभी प्रकार
के कष्टों को हरने वाली
और सभी अभिलाषाओं को
पूर्ण करने वाली मानी
जाती है.
जयंती योग में मनेगी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
इस बार जन्माष्टमी
26 अगस्त को मनाया जाएगा.
इसी दिन द्वापर युग
में भगवान श्रीकृष्ण का कृष्ण पक्ष
अष्टमी तिथि को जन्म
हुआ था. इसीलिए हर
वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण
पक्ष की अष्टमी तिथि
और रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाता
है। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार
है। कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण
की विशेष रूप से पूजा
की जाती है और
मंदिरों को भव्य रूप
से सजाया जाता है। इस
दिन भगवान कृष्ण की पूजा और
व्रत रखने से हर
तरह की मनोकामनाएं पूरी
होती हैं। इस बार
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जयंती योग में मनाया
जाएगा। 26 अगस्त को सुबह 8 बजकर
20 मिनट से अष्टमी तिथि
की शुरुआत हो रही है,
जो अगले दिन 27 अगस्त
को सुबह 6 बजकर 34 मिनट पर समाप्त
होगा। खास यह है
कि 26 को सोमवार है।
साथ में एक अत्यंत
शुभ योग, जयंती योग
एवं सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन
रहा है। ज्योतिषियषो का
कहना है कि इस
समय यदि भगवान श्रीकृष्ण
की पूजा उपासना की
जाय तो अक्षय पुण्य
फल की प्राप्ति होती
है।
शुभ मुहूर्त
26 अगस्त को सुबह 3 बजकर
40 मिनट से अष्टमी तिथि
शुरू होगी और 27 अगस्त
को सुबह 2 बजकर 19 मिनट पर समापन
होगा। 26 अगस्त के सूर्योदय से
ही व्रत प्रारम्भ होगा
और व्रत का पारण
27 अगस्त को सुबह 6 बजे
के बाद होगा। रात्रि
पूजन मुहूर्त रात्रि 12ः00 बजे से
रात्रि 12ः45 बजे तक
है। रोहिणी नक्षत्र का आगमन 26 की
रात 8ः20 के बाद
हो रहा है। जबकि,
सूर्योदय के अनुसार नक्षत्र,
तिथि को मानने वाले
वैष्णवानाम 27 सितंबर को जन्माष्टमी मनाएंगे।
तृतीया तिथि का आगमन
पांच तारीख (गुरुवार) की रात्रि 10ः05
बजे हो रहा है,
जो दिन में 12ः09
बजे तक रह रही
है।
श्रीकृष्ण व्रत से होती है मोक्ष की प्राप्ति
श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इसीलिए इस रात श्रद्धालु स्त्री-पुरुष मध्यरात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं। कहते है योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। विधि-विधान से व्रत कर पूजा कर लेने से अनेक व्रतों से मिलने होने वाले सभी फलदायी पुण्यों की एक साथ प्राप्ति हो जाती है। कहते है इस दिन व्रत का पालन करने से भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। यह व्रत कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है। श्रीकृष्ण जी की पूजा आराधना का यह पावन पर्व सभी को कृष्ण भक्ति से परिपूर्ण कर देता है। वैसे भी योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। अधिकांश नर-नारी इन्हीं उपदेशों के अनुरुप चलकर अपने जीवन को धन्य करने में सफल भी हुए है। कहा जाता है जो व्यक्ति जन्माष्टमी के व्रत को करता है वह ऐश्वर्य और मुक्ति को प्राप्त करता है। श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए रात भर जगने से उनका सामीप्य तथा अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है, वह निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पडता है।
पाण्डवों के रक्षक के रूप में, कुरुक्षेत्र युद्ध में अर्जुन के रथ के सारथी बने श्रीकृष्ण की उदारता तथा उनका दिव्यसंदेश, शाश्वत व सभी युगों के लिए उपयुक्त है। शोकग्रस्त व व्याकुल अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया यह दिव्यसंदेश ही गीता में लिखा है। धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः, इस श्लोकांश से भगवद् गीता का प्रारंभ होता है। गीता मनुष्य के मनोविज्ञान को समझाने, समझने का आधार ग्रंथ है। हमारी संस्कृति के दो ध्रुव हैं- एक है श्रीराम और दूसरे श्रीकृष्ण। राम अनुकरणीय हैं और कृष्ण चिंतनीय। भारतीय चिंतन कहता है पृथ्वी पर जहा-जहां जीवन है, वह विष्णु का अवतरण है। सभी छवियां महाकाल की महेश की, और जन्म लेने को आतुर सारी की सारी स्थितियां ब्रह्मा की हैं। ऊर्जा के उन्मेष के यही तीन ढंग हैं चाहे तो हम इस सारे विषय को पावन त्रिमूर्ति भी कह सकते हैं। इसी परम तत्त्व का ज्ञान श्रीकृष्ण ने आज से पांच हजार वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में, हताश अर्जुन को दिया था। गीता श्रीकृष्ण का भावप्रवण हृदय ग्रंथ है। इस पूरे विराट में जो नीलिमा समाई है और लगातार जो स्वर ध्वनि सुनाई पड़ती है, वह श्रीकृष्ण की वंशी है। उन्हें सद्चित् आनंद का संगम माना गया है। सत् सब तरफ भासमान है चित् मौन और आनंद अप्रकट है, जिस प्रकार दूध में मक्खन छिपा रहता है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण की शरण में गया आदमी, आनंद से पुलकित हो जाता है। कृष्ण भी कुछ ऐसे करुण हृदय हैं कि डूबकर पुकारो तो पलभर में, कृतकृत्य कर देते हैं। श्रीकृष्ण रसेश्वर भी हैं और योगेश्वर भी हैं। कृष्ण, जिसके जन्म से पूर्व ही उसके मार देने का खतरा है। अंधेरी रात, कारा के भीतर, एक बच्चे का जन्म, जिसे जन्म के तत्काल बाद अपनी मां से अलग कर दिया जाता है। जन्म के छः दिन बाद पूतना (पूतना का अर्थ है पुत्र विरोधन नारी) जिसके पयोधर जहरीलें हैं, उसे मारने का प्रयत्न करती है।
पौराणिक मान्यता
मानव जीवन सबसे सुंदर और सर्वोत्तम होता है। मानव जीवन की खुशियों का कुछ ऐसा जलवा है कि भगवान भी इस खुशी को महसूस करने समय-समय पर धरती पर आते हैं। शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु ने भी समय-समय पर मानव रूप लेकर इस धरती के सुखों को भोगा है। भगवान विष्णु का ही एक रूप कृष्ण जी का भी है जिन्हें लीलाधर और लीलाओं का देवता माना जाता है। कृष्ण को लोग रास रसिया, लीलाधर, देवकी नंदन, गिरिधर जैसे हजारों नाम से जानते हैं। कृष्ण भगवान द्वारा बताई गई गीता को हिंदू धर्म के सबसे बड़े ग्रंथ और पथ प्रदर्शक के रूप में माना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण विष्णुजी के आठवें अवतार हैं। यह श्रीहरि विष्णु का सोलह कलाओं से पूर्ण भव्यतम अवतार है। श्रीराम तो राजा दशरथ के यहां एक राजकुमार के रूप में अवतरित हुए। जबकि श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण में भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के असुर राजा कंस, जो उसकी सदाचारी माता देवकी का भाई था, का अंत करने के लिए हुआ था।
बताते है कि मथुरा नगरी पर कंस का शासन था। कंस ने अपने पिता उग्रसेन को सत्ता हथियाने के लोभ में, जेल में डाल दिया था। इतना ही नहीं कंस अपनी मृत्यु के भय से बहन देवकी और वसुदेव को भी कारागार में कैद किया हुआ था। कृष्ण जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी। चारों तरफ घना अंधकार छाया हुआ था। श्रीकृष्ण का अवतरण होते ही वसुदेवदृदेव की की बेड़ियां खुल गईं। कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए। पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए। वसुदेव किसी तरह श्रीकृष्ण को उफनती यमुना के पार गोकुल में अपने मित्र नन्दगोप के घर ले गए। वहां पर नन्द की पत्नी यशोदा को भी एक कन्या पैदा हुई थी। वसुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को ले गए। कंस ने उस कन्या को पटककर मार डालना चाहा। किन्तु वह इस कार्य में असफल ही रहा। दैवयोग से वह कन्या जीवित बच गई। श्रीकृष्ण का लालन-पालन यशोदा व नन्द ने किया। बाल्यकाल में ही श्रीकृष्ण ने अपने मामा के द्वारा भेजे गए अनेक राक्षसों को मार डाला। कृष्ण ने देखा मथुरावासी कंस को अपनी कमाई का अंश, दूध-दही के रूप में दे देते हैं, तब उन्होंने इसका विरोध किया।
व्रत की महिमा
भविष्यपुराण के जन्माष्टमीव्रत-माहात्म्य
में यह कहा गया
है कि जिस राष्ट्र
या प्रदेश में यह व्रतोत्सवकिया
जाता है, वहां पर
प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का
ताण्डव नहीं होता। मेघ
पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा
फसल खूब होती है।
जनता सुख-समृद्धि प्राप्त
करती है। इस व्रतराजके
अनुष्ठान से सभी को
परम श्रेय की प्राप्ति होती
है। व्रतकर्त्ताभगवत्कृपाका भागी बनकर इस
लोक में सब सुख
भोगता है और अन्त
में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी
का व्रत करने वाले
के सब क्लेश दूर
हो जाते हैं। दुख-दरिद्रता से उद्धार होता
है। कृष्णाय वासुदेवाय हरयेपरमात्मने। प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमोनमः।। मंत्र का नित्य जाप
करते हुए सच्चिदानंद घनश्रीकृष्ण
की आराधना करने से परिवार
में खुशियां वापस लौट आएंगी।
घर में विवाद और
विघटन दूर होगा। स्कन्द
पुराण के मतानुसार जो
भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी
व्रत को नहीं करता,
वह मनुष्य जंगल में सर्प
और व्याघ्र होता है। वह्निपुराण
का वचन है कि
कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में
यदि एक कला भी
रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको
जयंती नाम से ही
संबोधित किया जाएगा। अतः
उसमें प्रयत्न से उपवास करना
चाहिए। विष्णुरहस्यादि वचन से- कृष्णपक्ष
की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद
मास में हो तो
वह जयंती नामवाली ही कही जाएगी।
वसिष्ठ संहिता का मत है-
यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन
दोनों का योग अहोरात्र
में असम्पूर्ण भी हो तो
मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र
के योग में उपवास
करना चाहिए। मदन रत्न में
स्कन्द पुराण का वचन है
कि जो उत्तम पुरुष
है। वे निश्चित रूप
से जन्माष्टमी व्रत को इस
लोक में करते हैं।
उनके पास सदैव स्थिर
लक्ष्मी होती है। इस
व्रत के करने के
प्रभाव से उनके समस्त
कार्य सिद्ध होते हैं। विष्णु
धर्म के अनुसार आधी
रात के समय रोहिणी
में जब कृष्णाष्टमी हो
तो उसमें कृष्ण का अर्चन और
पूजन करने से तीन
जन्मों के पापों का
नाश होता है। भृगु
ने कहा है- जन्माष्टमी,
रोहिणी और शिवरात्रि ये
पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए
तथा तिथि एवं नक्षत्र
के अन्त में पारणा
करें। इसमें केवल रोहिणी उपवास
भी सिद्ध है।
कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिन क्यों?
अधिकतर कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग
दिनों पर हो जाती
है। जब-जब ऐसा
होता है, तब पहले
दिन वाली जन्माष्टमी स्मार्त
सम्प्रदाय के लोगो के
लिये और दूसरे दिन
वाली जन्माष्टमी वैष्णव सम्प्रदाय के लोगो के
लिये होती है। प्रायः
उत्तर भारत में श्रद्धालु
स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी
का भेद नहीं करते
और दोनों सम्प्रदाय जन्माष्टमी एक ही दिन
मनाते हैं। वैष्णव धर्म
को मानने वाले लोग अष्टमी
तिथि और रोहिणी नक्षत्र
को प्राथमिकता देते हैं और
वे कभी सप्तमी तिथि
के दिन जन्माष्टमी नहीं
मनाते हैं। वैष्णव नियमों
के अनुसार हिन्दू कैलेण्डर में जन्माष्टमी का
दिन अष्टमी अथवा नवमी तिथि
पर ही पड़ता है।
जन्माष्टमी का दिन तय
करने के लिये, स्मार्त
धर्म द्वारा अनुगमन किये जाने वाले
नियम अधिक जटिल होते
हैं। इन नियमों में
निशिता काल को, जो
कि हिन्दू अर्धरात्रि का समय है,
को प्राथमिकता दी जाती है।
जिस दिन अष्टमी तिथि
निशिता काल के समय
व्याप्त होती है, उस
दिन को प्राथमिकता दी
जाती है। इन नियमों
में रोहिणी नक्षत्र को सम्मिलित करने
के लिये कुछ और
नियम जोड़े जाते हैं।
जन्माष्टमी के दिन का
अन्तिम निर्धारण निशिता काल के समय,
अष्टमी तिथि और रोहिणी
नक्षत्र के शुभ संयोजन,
के आधार पर किया
जाता है। स्मार्त नियमों
के अनुसार हिन्दू कैलेण्डर में जन्माष्टमी का
दिन हमेशा सप्तमी अथवा अष्टमी तिथि
के दिन पड़ता है।
कुरुक्षेत्र के मैदान में
श्री कृष्ण के
विराट व्यक्तित्व कुरुक्षेत्र के मैदान में
प्रकट होता है। कृष्ण
ने प्रयत्न किया था कि
युद्ध न हो। फिर
युद्ध स्वीकार किया और युद्ध
से पूर्व एक और निर्णय
लिया- कि मेरी सेना
दुर्योधन के साथ लड़ेगी।
मैं अकेला पांडवों की ओर रहूंगा।
ऐसा विरोधी निर्णय कृष्ण ही ले सकते
थे। इसी से कहा
जाता है कि कृष्ण
अनुकरणीय नहीं, चिंतनीय हैं। उनके हर
कार्य के पीछे गहरा
प्रतीकार्थ है, जो सामान्य
आदमी की समझ से
बाहर है।
संसार को अनुशासित करने वाले श्रीकृष्ण
वृंदावन में कृष्ण ने
जैसा नृत्य-संगीत भरा जीवन जिया,
उस उत्सवपरक उल्लास भरे बचपन के
ठीक विपरीत वही कृष्ण, कुरुक्षेत्र
में अर्जुन से यह क्यों
कर कह सकें- अपने
यहाँ चार पुरुषार्थ गिनाए
गए हैं, धर्म, अर्थ,
काम और मोक्ष। इन
चारों का निर्वचन ईशावास्योपनिषद
के प्रथम श्लोक में है। ईश
शब्द ईंट धातु से
बना हुआ है। मतलब
यह है कि जो
सभी को अनुशासित करता
है या जिसका आधिपत्य
सब पर है, वही
ईश्वर है। उसे न
मानना स्वयं को भी झुठलाना
है। जो अपने को
नहीं जानता वही ईश्वर को
भी नहीं मानता। श्कर्म
करते हुए ही सौ
वर्षों तक जीवित रहने
की इच्छा रखेश् ईशावास्य उपनिषद का यह मंत्र
हम सब जानते हैं।
ईशावास्यमिंद सर्वम्, इस मंत्र में
तीन पुरुषार्थ के लिए तीन
बातें कही गई हैं।
मोक्ष पुरुषार्थ के लिए - ईशावास्यमिंद
सर्वम्, काम पुरुषार्थ के
लिए तेन त्यक्तेन भुंजीथाः
व अर्थ पुरुषार्थ के
लिए मागृधः कस्यस्विद् धनम्। चौथे धर्म नामक
पुरुषार्थ के लिए कुर्वन्नेवीह
कर्माणि। कृष्ण कर्म की बात
कर रहे हैं और
साथ ही यह भी
कह रहे हैं- सर्वधर्मान
परित्यज्यः, सब धर्म अर्थात्
पिता, पुत्र, वाला धर्म छोड़कर
जितने शारीरिक, सांसारिक या भौतिक, दैविक
राग और रोग हैं
वे सारी परिधियां पार
कर, मैं जो सभी
का कर्त्ता और भर्त्ता हूं,
उसकी शरण में आ।
तब तू सब पापों
से मुक्त, परम स्थिति को
पा लेगा।
कई रुपों में मनाई जाती है जन्माष्टमी
जन्माष्टमी को पूरे भारत
में भिन्न-भिन्न तरीके से मनाया जाता
है। कहीं रंगों की
होली खेली जाती है
तो कहीं फूलों की
बारिश तो कहीं दही-हांडी फोड़ने को जोश होता
है। इस मौके पर
भगवान कृष्ण की कई मनमोहक
छवियां देखने को मिलती है।
कृष्ण रासलीलाओं का भी आयोजन
होता है। भक्तजन उपवास
का पालन करते हैं।
जन्माष्टमी का मुख्य प्रसाद
धनिया पंजीरी ही होती है।
कृष्ण जन्माष्टमी पर भक्त व्रत
रखते हैं और इसके
बाद रात के 12 बजे
कृष्ण जन्मोत्सव के बाद प्रसाद
ग्रहण करते हैं। जन्माष्टमी
भारत में हीं नहीं
सात समुंदर पार विदेशों में
भी रह रहे भारतीय
पूरी आस्था व उल्लास से
मनाते हैं। देश का
चाहे वह शहरी या
ग्रामीण इलाका हो सभी जगह
भक्ति के रंगों से
सराबोर हो उठती है।
अधिकांश भक्त घरों के
पूजागृह व मंदिरों में
बड़े ही आकर्षक व
मनोहारी तरीके से श्रीकृष्ण-लीला
की झांकियां सजाते हैं। भगवान श्रीकृष्ण
का श्रीविग्रह श्रृंगार करके पालने में
रख झूला झुलाते है।
श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा
शालिग्राम का दूध, दही,
शहद, यमुनाजल आदि से अभिषेक
होता है। श्रीविग्रहका षोडशोपचार
विधि से पूजन किया
जाता है। शंख, घंट-घड़ियाल के ध्वनि के
बीच कुछ लोग गर्भ
से जन्म लेने के
प्रतीक स्वरूप खीरा चीर कर
बालगोपाल की आविर्भाव-लीला
करते हैं यानी श्रीकृष्ण
का जन्म कराकर उत्सव
रुप में मनाते है।
मथुरा में जन्माष्टमी
मथुरा में जन्माष्टमी का
त्योहार बहुत ही धूमधाम
से मनाया जाता है। भगवान
कृष्ण के दर्शन के
लिए बड़ी दूर-दूर
से श्रद्धालु से यहां आते
हैं। इस मौके पर
ब्रज पूरी तरह से
कृष्णमय हो जाता है।
यहां मंदिरों को फूलों और
रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाता
है। इस दिन मंदिरों
में झांकियां सजाई जाती है
और झूला-झूलाया जाता
है। भगवान श्री कृष्ण के
विग्रह पर घी, तेल,
हल्दी, दही, गुलाबजल, मक्खन,
केसर, कपूर आदि चढाकर
लोग उसका एक दूसरे
पर छिड़काव करते हैं। जन्माष्टमी
के अवसर पर यहां
सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन
होता है।
दही-हांडी फोड़ने का चलन
श्रीकृष्ण जी का जन्म
मात्र एक पूजा अर्चना
का विषय नहीं बल्कि
एक उत्सव के रूप में
मनाया जाता है। इस
उत्सव में भगवान के
श्रीविग्रह पर कपूर, हल्दी,
दही, घी, तेल, केसर
तथा जल आदि चढ़ाने
के बाद लोग बडे
हर्षोल्लास के साथ इन
वस्तुओं का परस्पर विलेपन
और सेवन करते हैं।
महाराष्ट्र सहित कई जगहों
पर मटकी-फोड़ने का
विधान है। मटकी या
हांडी में दूध-दही
भरकर, उसे काफी ऊंचाई
पर टांगा जाता है। युवकों
की टोलियां उसे फोडकर इनाम
लूटने की होड़ में
बहुत बढ-चढकर इस
उत्सव में भाग लेती
हैं। वस्तुतः श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत केवल
उपवास का दिवस नहीं,
बल्कि यह दिन महोत्सव
के साथ जुड़कर व्रतोत्सव
बन जाता है।
श्रीकृष्ण के है 12 रूप
लड्डू
गोपाल
- कहते है इस रुप
की पूजा विधि-विधान
करने से धन संपत्ति
की प्राप्ति होती है। भगवान
श्री कृष्ण जी का यह
ऐसा स्वरुप है जिसमें वो
एक बालक कृष्ण हैं,
जिनके हाथों में लड्डू है
ऐसे स्वरुप का ध्यान करें।
भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को हरे रंग
के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें।
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, सफेद चन्दन प्रदान
करें। प्रसाद में खीर अर्पित
करें, हरे रंग के
आसन पर बैठ कर
चन्दन की माला से
मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ॐ सरू फ्रें
क्लीं कृष्णाय नमः। मंत्र जाप
के बाद भगवान् को
दूध के छीटे दें।
बंसीबजइया
-इस रुप का दर्शन
करने से मानसिक सुख
की अनुभूति होती है। भगवान
श्री कृष्ण जी का यह
ऐसा स्वरुप है जसमें वो
एक बालक कृष्ण हैं,
हाथों में बंसी लिए
हुए ऐसे स्वरुप का
ध्यान करें भगवान के
ऐसे चित्र या मूर्ती को
नीले रंग के गोटेदार
वस्त्र पर स्थापित करें।धूप
दीप पुष्प आदि चढ़ाकर, कपूर
प्रदान करें प्रसाद में
मेवे अर्पित करें, नीले रंग के
आसन पर बैठ कर
चन्दन की माला से
मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ॐ श्री कृष्णाय
क्लीं नमः। मंत्र जाप
के बाद भगवान् को
घी के छीटे दें।
कालिया
मर्दक-
इस रुप का दर्शन
करने से व्यापार में
तरक्की होती है। भगवान
श्री कृष्ण जी का ऐसा
स्वरुप जिसमें वो कालिया नाग
के सर पर नृत्य
मुद्रा में स्थित हैं,
ऐसे स्वरुप का ध्यान करें.
भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को काले रंग
के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें,
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, गोरोचन प्रदान करें प्रसाद में
मक्खन अर्पित करें. काले रंग के
आसन पर बैठ कर
चन्दन की माला से
मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ॐ हुं ऐं
नमरू कृष्णाय। मंत्र जाप के बाद
भगवान् को दही के
छीटे दें।
बाल
गोपाल-
इस रुप का दर्शन
करने से संतान सुख
की प्राप्ति होती है। भगवान
श्री कृष्ण जी का ऐसा
स्वरुप जिसमें वो एक पालने
में झूलते शिशु कृष्ण हैं
ऐसे स्वरुप का ध्यान करें,
भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को पीले रंग
के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें।
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, केसर प्रदान करें,
प्रसाद में मिसरी अर्पित
करें। पीले रंग के
आसन पर बैठ कर
चन्दन की माला से
मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ॐ क्लीं क्लीं
क्लीं कृष्णाय नमः। मंत्र जाप
के बाद भगवान् को
शहद के छीटे दे।
.
माखन
चोर-
इस रुप का दर्शन
करने से रोग नाश
होता है। भगवान श्री
कृष्ण जी का ऐसा
स्वरूप, जिसमें वो माता यशोदा
के सामने ये कहते हुए
दीखते हैं कि मैंने
माखन नहीं खाया। ऐसे
स्वरुप का ध्यान करें।
भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को पीले रंग
के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें।
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, सुच्चा मोती प्रदान करें,
प्रसाद में फल अर्पित
करें, पीले रंग के
आसन पर बैठ कर
चन्दन की माला से
मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ॐ हुं ह््रौं
हुं कृष्णाय नमः। मंत्र जाप
के बाद भगवान् को
गंगाजल के छीटे दें।
गोपाल
कृष्ण-
इस रुप का दर्शन
करने से मान-सम्मान
की प्राप्ति होती है। भगवान
श्री कृष्ण जी का ऐसा
स्वरुप जिसमें वो बन में
सखाओं सहित गैय्या चराते
हैं ऐसे स्वरुप का
ध्यान करें. भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को मटमैले रंग
के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें।
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, मोर पंख प्रदान
करें। प्रसाद में मिठाई अर्पित
करें। मटमैले रंग के आसन
पर बैठ कर चन्दन
की माला से मंत्र
का जाप करें। मंत्र-
ॐ ह््रौं ह््रौं क्लीं नमः कृष्णाय। मंत्र
जाप के बाद भगवान्
को दूध के छीटे
दें।
गोवर्धनधारी-
क्रूर ग्रह बेअसर होता
है। भगवान श्री कृष्ण जी
का ऐसा स्वरुप जिसमें
वो एक छोटी अंगुली
से गोवर्धन पर्वत उठाये हुये दीखते हैं।
भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को लाल रंग
के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें।
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, पीले पुष्पों का
हार प्रदान करें। प्रसाद में मिसरी अर्पित
करें। लाल रंग के
आसन पर बैठ कर
चन्दन की माला से
मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ॐ ऐं कलौं
क्लीं कृष्णाय नमः। मंत्र जाप
के बाद भगवान् को
गंगाजल के छीटे दें।
राधानाथ-
शीघ्र विवाह व प्रेम विवाह
होता है। भगवान श्री
कृष्ण जी का ऐसा
स्वरुप जिसमें वो राधा और
कृष्ण जी का प्रेममय
झांकी स्वरुप दीखता है ऐसे स्वरुप
का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को गुलाबी रंग
के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें।
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, इत्र सुगंधी प्रदान
करें। प्रसाद में मिठाई अर्पित
करें। गुलाबी रंग के आसन
पर बैठ कर चन्दन
की माला से मंत्र
का जाप करें। मंत्र-
ॐ हुं ह््रीं सः
कृष्णाय नमः। मंत्र जाप
के बाद भगवान को
शहद के छीटे दें।
रक्षा
गोपाल-
मुकदमों व राजकीय कार्यों
में सफलता देने वाला है।
भगवान श्री कृष्ण जी
का ऐसा स्वरुप जिसमें
वो द्रोपदी के चीर हरण
पर उनकी साड़ी के
वस्त्र को बढ़ते हुये
दीखते हैं ऐसे स्वरुप
का ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को मिश्रित रंग
के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें,
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, मीठे पान का
बीड़ा प्रदान करें, प्रसाद में माखन-मिसरी
अर्पित करें। मिश्रित रंग के आसन
पर बैठ कर चन्दन
की माला से मंत्र
का जाप करें। मंत्र-
ॐ कलौं कलौं ह््रौं
कृष्णाय नमः। मंत्र जाप
के बाद भगवान् को
दही के छीटे दें।
भक्त
वत्सल-
भय नाशक, दुर्घटना नाशक, रक्षक रूप है। भगवान
श्री कृष्ण जी का ऐसा
स्वरुप जिसमें वो सखा भक्त
सुदामा के चरण पखारते
हैं या युद्ध में
रथ का पहिया हाथों
में उठाये क्रोधित कृष्ण ऐसे स्वरुप का
ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को भूरे रंग
के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें।
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, एक शंख प्रदान
करें। प्रसाद में फल अर्पित
करें। भूरे रंग के
आसन पर बैठ कर
चन्दन की माला से
मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ॐ हुं कृष्णाय
नमः। मंत्र जाप के बाद
भगवान् को पंचामृत के
छीटे दें।
योगीश्वर
कृष्ण-
परीक्षाओं में सफलता के
लिए है। भगवान श्री
कृष्ण जी का ऐसा
स्वरुप जिसमें वो एक रथ
पर अर्जुन को गीता का
उपदेश करते हैं ऐसे
स्वरुप का ध्यान करें.
भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को पीले रंग
के गोटेदार वस्त्र पर स्थापित करें।
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, पुष्पों का ढेर प्रदान
करें। प्रसाद में मीठे पदार्थ
अर्पित करें. पीले रंग के
आसन पर बैठ कर
चन्दन की माला से
मंत्र का जाप करें।
मंत्र- ॐ ह््रौं ह््रौं
ह््रौं हुं कृष्णाय नमः।
मंत्र जाप के बाद
भगवान् को दूध के
छीटे दें।
विराट
कृष्ण-
घोर विपदाओं को टालने वाला
रूप् है। भगवान श्री
कृष्ण जी का ऐसा
स्वरुप जिसमें वो युद्ध के
दौरान अर्जुन को विराट दर्शन
देते हैं। जिसे संजय
सहित वेदव्यास व देवताओं नें
देखा ऐसे स्वरुप का
ध्यान करें। भगवान के ऐसे चित्र
या मूर्ती को लाल व
पीले रंग के गोटेदार
वस्त्र पर स्थापित करें।
धूप दीप पुष्प आदि
चढ़ाकर, तुलसी दल प्रदान करें।
प्रसाद में हलवा बना
कर अर्पित करें। पीले या लाल
रंग के आसन पर
बैठ कर चन्दन की
माला से मंत्र का
जाप करें। मंत्र- ॐ तत स्वरूपाय
कृष्णाय नमः। मंत्र जाप
के बाद भगवान् को
पंचामृत के छीटे दें।
जन्माष्टमी का व्रत
जन्माष्टमी के व्रत को
सभी इच्छाएं पूर्ण करने वाला माना
जाता है। एकादशी उपवास
की ही तरह जन्माष्टमी
का भी व्रत है।
इसमें किसी भी प्रकार
के अन्न का ग्रहण
नहीं करना चाहिये। जन्माष्टमी
का पारण सूर्योदय के
पश्चात अष्टमी तिथि और रोहिणी
नक्षत्र के समाप्त होने
के बाद किया जाना
चाहिये। यदि अष्टमी तिथि
और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त तक समाप्त नहीं
होते तो पारण किसी
एक के समाप्त होने
के पश्चात किया जा सकता
है। यदि अष्टमी तिथि
और रोहिणी नक्षत्र में से कोई
भी सूर्यास्त तक समाप्त नहीं
होता तब जन्माष्टमी का
व्रत दिन के समय
नहीं तोड़ा जा सकता।
ऐसी स्थिति में व्रती को
किसी एक के समाप्त
होने के बाद ही
व्रत तोड़ना चाहिये। अतः अष्टमी तिथि
और रोहिणी नक्षत्र के अन्त समय
के आधार पर कृष्ण
जन्माष्टमी का व्रत दो
सम्पूर्ण दिनों तक प्रचलित हो
सकता है। जो श्रद्धालु-जन लगातार दो
दिनों तक व्रत करने
में समर्थ नहीं है, वो
जन्माष्टमी के अगले दिन
ही सूर्योदय के पश्चात व्रत
को तोड़ सकते हैं।
इस व्रत में ब्रह्मचर्य
का पालन करें। उपवास
के दिन प्रातःकाल स्नानादि
नित्यकर्मों से निवृत्त हो
जाएं। पंचामृत व गंगा जल
से माता देवकी और
भगवान श्रीकृष्ण की सोने, चांदी,
तांबा, पीतल, मिट्टी की मूर्ति या
चित्र पालने में स्थापित करते
हैं। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति नए
वस्त्र धारण कराते हैं।
बालगोपाल की प्रतिमा को
पालने में बिठाते हैं।
उसके बाद सूर्य, सोम,
यम, काल, संधि, भूत,
पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि
को नमस्कार कर पूर्व या
उत्तर मुख बैठें। पूजन
में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और
लक्ष्मी आदि के नामों
का उच्चारण करते हैं। सोलह
उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण
का पूजन करने के
लिए जल, फल, कुश
और गंध लेकर संकल्प
करें, ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये।। इसके बाद भगवान
श्रीकृष्ण को शंख में
जल भरकर, कुश, फूल, गंध
डालकर अर्घ्य देते हैं। पंचामृत
में तुलसी डालकर व माखन मिश्री
का भोग लगाते हैं।
भगवान श्री कृष्ण जी
का षोडशोपचार विधि से पूजन
किया जाता है। भगवान
का श्रृंगार करके उन्हें झूला
झुलाया जाता है। अब
मध्याह्न के समय काले
तिलों के जल से
स्नान कर देवकी जी
के लिए ‘सूतिका गृह’
नियत करें.। फिर
इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण
करें-‘
प्रणमे
देव
जननी
त्वया
जातस्तु
वामन।
वसुदेवात
तथा
कृष्णो
नमस्तुभ्यं
नमो
नमः।
सुपुत्रार्घ्यं
प्रदत्तं
में
गृहाणेमं
नमोऽस्तु
ते।।
रात्रि समय भागवद् गीता
का पाठ तथा कृष्ण
लीला, ओम नमो भगवते
वासुदेवाय, ओमविष्णुद्दवष्णुद्दवष्णुःअद्य
शर्वरीनामसंवत्सरे सूर्ये दक्षिणायने वर्षतरैभाद्रपदमासे कृष्णपक्षे श्रीकृष्णजन्माष्टम्यां तिथौभौमवासरेअमुकनामाहं (अमुक की जगह
अपना नाम बोलें) मम
चतुर्वर्गसिद्धिद्वारा श्रीकृष्णदेव प्रीतये जन्माष्टमी व्रताङ्गत्वेन श्रीकृष्णदेवस्य यथामिलितोपचारैःपूजनंकरिष्ये।
गौतमीतंत्र में यह निर्देश
है-
उपवासः
प्रकर्तव्योन
भोक्तव्यंकदाचन।
कृष्णजन्मदिनेयस्तुभुड्क्तेसतुनराधमः।।
निवसेन्नरकेघोरेयावदाभूतसम्प्लव।
मीर-गरीब
सभी
लोग
यथाशक्ति-यथासंभव।।
का जाप अथवा
श्रीकृष्णावतार की कथा का
श्रवण, कीर्तन एवं मनन करना
चाहिए। श्रद्धालु भक्त मध्यरात्रि तक
पूर्ण उपवास रखते हैं। अर्धरात्रि
के समय शंख तथा
घंटों के नाद से
श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव को संपन्न किया
जाता है। जन्मोत्सव के
पश्चात घी की बत्ती,
कपूर आदि से आरती
करें तथा भगवान को
भोग में निवेदित खाद्य
पदार्थो को प्रसाद के
रूप में वितरित करके
अंत में स्वयं भी
उसको ग्रहण करें।
छप्पन भोग
श्रीकृष्ण आजीवन सुख तथा विलास
में रहे, इसलिए जन्माष्टमी
को इतने शानदार ढंग
से मनाया जाता है। इस
दिन अनेक प्रकार के
मिष्ठान बनाए जाते हैं।
जैसे लड्डू चकली, पायसम (खीर) इत्यादि। इसके
अतिरिक्त दूध से बने
पकवान, विशेष रूप से मक्खन
(जो श्रीकृष्ण के बाल्यकाल का
सबसे प्रिय भोजन था), श्रीकृष्ण
को अर्पित किया जाता है।
तरह-तरह के फल
भी अर्पित किए जाते हैं।
परन्तु लगभग सभी लोग
लड्डू या खीर बनाना
व श्रीकृष्ण को अर्पित करना
श्रेष्ठ समझते हैं। विभिन्न प्रकार
के पकवानों का भोजन तैयार
किया जाता है तथा
उसे श्रीकृष्ण को समर्पित किया
जाता है।
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