Tuesday, 29 October 2024

युद्ध से कारपेट इंडस्ट्री का 75 फ़ीसदी कारोबार प्रभावित, निर्यातक भयाक्रांत

पहले रूस-यूक्रेन, फिर सूडान युद्ध और अब इरान-इजराइल युद्ध का कारपेट इंडस्ट्री पर असर, 300 करोड़ की कालीनें पोर्टो पर डंप

युद्ध से कारपेट इंडस्ट्री का 75 फ़ीसदी

कारोबार प्रभावित, निर्यातक भयाक्रांत 

जर्मनी सहित अन्य देशों के नागरिकों को ईरान द्वारा फांसी पर लटकाने सहित आम नागरिकों पर हमला करने से निर्यातकों में कारोबार ठप होने का खौफ

वजह : ताबड़तोड़ हो रहे युद्धों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में अफरातफरी का माहौल

दुनिया का सबसे बड़ा कालीन मेला डोमोटेक्स पहले ही निरस्त हो चका है, अब 14 से 17 जनवरी 2025 तक होने वाले हेमटेक्स्टिल फेयर पर टिकी निर्यातकों की निगाहें

फ्रैंकफर्ट, जर्मनी के हेमटेक्स्टिल फेयर से हो सकती है नुकसान की भरपाई : कुलदीप राज वट्टल

सुरेश गांधी

वाराणसी। पहले रूस-यूक्रेन, फिर सूडान युद्ध और अब इरान-इजराइल युद्ध का कारपेट इंडस्ट्री पर बड़ा असर देखने को मिल रहा है। युद्ध से कालीन निर्यात का का 75 फीसदी कारोबार प्रभावित हुआ है. खासकर मालवाहक जहाजों पर हमले से परिवहन करना मुश्किल तो है ही, 300 करोड़ से अधिक की कालीनें पोर्टो पर जाम है. हद तो तब हो गयी जब जर्मनी सहित अन्य देशों के नागरिकों को ईरान द्वारा फांसी पर लटकाने के साथ आम नागरिकों भी हमला शुरु कर दिया है। इससे कालीन निर्यातकों में कारोबार ठप होने का डर सताने लगा है।

बता दें, कालीन बेल्ट भदोही-मिर्जापुर, वाराणसी, आगरा, जयपुर, पानीपत, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर सहित देश से 17000 करोड़ का निर्यात होता है। जबकि कुल निर्यात का 65 फीसदी भागीदारी भदोही-मिर्जापुर वाराणसी की है. लगभग 300 कंटेनर कालीन हर साल दूसरे देशों में निर्यात होता है, लेकिन युद्ध ने इसका समीकरण बिगाड़ दिया है. और कालीन निर्यात का 75 फीसदी कारोबार प्रभावित हुआ है. युद्ध के चलते हालात सही नहीं होने के कारण ना ही नए आर्डर मिल रहे और ना ही बिकवाली या पूछताछ हो पा रहे है. मालवाहक जहाजों पर हमले से माल भेजने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. यही कारण है कि अब विदेशी हालातों के चलते 75-85 कंटेनर ही वर्तमान में निर्यात हो रहे है.

लेकिन इरान-इजराइल युद्ध के शुरु होने सूडान में रूस समर्थित विद्रोहियों के खिलाफ लड़ाई से अधिक नुकसान होने का डर निर्यातकों का सताने लगा है। जबकि विदेशों में क्रिसमस सहित अन्य पर्वो के चलते भारत से दशहरे के बाद से कालीन निर्यात में तेजी होना शुरु हो जाता है। लेकिन मौजूदा हालात के कारण ना ही सुचारु रुप से निर्यात हो पा रहा है और ना नए आर्डर मिल पा रहे है। हालांकि अन्य देशों में डिमांड है, लेकिन मालवाहक जहाजों का किराया कई गुना बढ़ने से निर्यात घाटे का सौदा साबित हो रहा है, क्योंकि विदेशी खरीदार जिस रेट पर आर्डर बुकिंग करायी है, उसी के हिसाब से भुगतान करते है।

सीईपीसी चेयरमैन के कुलदीप राज वट्टल के मुताबिक डोमोटेक्स कैंसिल होने से निर्यातकों में पहले से ही मायूसी है, भदोही इंडिया कारपेट एक्स्पों में हए कारोबार से थोड़ी कारोबार के प्रति उम्मींदे जगी थी, लेकिन इरान-इजराल युद्ध ने चिंता बढ़ा दी है। क्योंकि गल्फ कंट्री में भी भारत से काफी मात्रा में इक्सपोर्ट होता है। इससे भारत के कालीन निर्यातकों में निराशा छा गई है। यद्ध के चलते भारी मात्रा में कालीनें पोर्टो पर डंप है। उन्हें डर है मालवाहक जहाजों में हमले से नुकसान अधिक हो सकता है। हालांकि जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में 14 से 17 जनवरी 2025 तक होने वाले हेमटेक्स्टिल फेयर से निर्यातकों को काफी उम्मींदे है। स्टॉल बुकिंग के लिए सर्कुलर जारी कर दिया गया है। अगर हालात सही रहे तो निर्यातक वहां अपने स्टॉल लगा सकते है।

कालीन निर्यातक सीईपीसी के प्रशासनिक सदस्य रवि पाटौदिया ने बताया कि पिछले दो साल से चल रहे वैश्विक घमासान ने कालीन उद्योग का बड़ा नुकसान किया है। रूस-यूक्रेन से लेकर इजरायल-फिलिस्तीन के बीच युद्ध से कालीन उद्योग को साल भर में करीब 5000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। यद्ध के चलते साल भर का आर्डर मिलना तो दूर अब निरस्त होने का खतरा मंडराने लगा है। स्थिति ठीक नहीं हुई तो कालीन उद्योग को तगड़ा झटका लगना तय है। जो कालीन उद्योग के सेहत के लिए ठीक नहीं है। सीईपीसी के पूर्व कोआ मेम्बर उमेश गुप्ता का कहना है कि स्थिति नहीं सुधरी तो हमारे लिए कारोबार चलाना मुश्किल होगा.

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