गांधी की दुहाई नहीं सियासतदान उनके आदर्शो को अपनाएं
बेशक,
राजनीति
में
राष्ट्रपिता
महात्मा
गांधी
का
वह
स्थान
है,
जो
धर्म
में
मर्यादा
पुरुषोत्तम
भगवान
श्री
राम
या
श्रीकृष्ण
का।
लेकिन
अफसोस
है
राजनीतिक
पार्टियां
सियासी
लाभ
के
लिए
अपनी
सुविधानुसार
गांधी
के
नाम
का
इस्तेमाल
करते
हैं।
समय-समय
पर
राजनेता
गांधी
के
सिद्धांतों
की
दुहाई
देते
हैं।
भाषणों
में
गांधी
दर्शन
का
जिक्र
भी
करते
हैं।
लेकिन
खुद
पालन
नहीं
करते।
कुछ
सियासतदान
तो
उन्हें
अपनी
जागिर
समझते
है,
लेकिन
परिवारवाद,
भ्रष्टाचार,
जातिवाद
व
तुष्टिकरण
उनके
भीतर
इस
कदर
रचा
बसा
है
कि
सत्ता
के
लिए
गदर
करने
जैसे
बयान
देने
से
भी
बाज
नहीं
आते।
मतलब
साफ
है
वर्तमान
हालात
को
देखते
हए
समाज
के
साथ-साथ
राजनीति
में
स्वच्छता
अभियान
चलाने
की
जरुरत
है।
खास
यह
है
कि
इसके
लिए
नेताओं
पर
निर्भर
रहने
के
बजाय
आम
जनमानस
को
आगे
आना
होगा।
ऐसे
नेताओं
का
बहिष्कार
करना
ही
होगा।
या
यूं
कहे
जातिवाद,
बाहुबल,
धनबल,
परिवारवाद,
तुष्टिकरण
जैसी
राजनीति
में
घुस
आई
गंदगी
को
साफ
करने
के
लिए
जागरूकता
की
झाड़ू
को
उठाना
ही
होगा
सुरेश गांधी
भारत की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी की उपलब्धियों का सम्मान करने के अलावा, हम गांधी जयंती मनाकर उनके आदर्शों को बनाए रखने का भी संकल्प लेते हैं. गांधी की शिक्षाएं अक्सर कंपनियों, समुदायों और कॉलेजों के माध्यम से आयोजित वार्तालापों और गतिविधियों का विषय होती हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहे. गांधी जयंती इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वास्तविकता, अहिंसा और शांति के महत्व पर जोर देती है. गांधी का संदेश आज भी लागू होता है क्योंकि विभिन्न प्रकार के संघर्ष उठते हैं और उनकी शिक्षाएं संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान करती हैं. इसी तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके महत्व पर जोर देने के लिए, इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी जाना जाता है. लेकिन उन्होंने भारत में जिस लोकतंत्र और राजनीति का सपना देखा था, सत्ता के खेल में वह पीछे छूटता जा रहा है। जबकि गांधी जी सत्ता ही नहीं साधन की पवित्रता पर भी जोर देते थे। पर सत्ता केंद्रित राजनीति व उसके कद्रदान उनके नाम की दुहाई तो देते है लेकिन वे झूठ व फरेब के सहारे चुनाव जीतने तक ही सिमट गए है। जबकि गांधी जी ने स्वयं कहा है, लोकतंत्र तब तक एक असंभव चीज है जब तक की सत्ता में सभी की हिस्सेदारी ना हो। यहां तक की एक अछूत एक मजदूर की भी। पर जब हमारी राजनीति लगातार परिवारवादी व धनबल, बाहुबल, तष्टिकरण व भ्रष्टाचार केंद्रित होती गई है तब उसमें आम आदमी की हिस्सेदारी सपना सा लगता है।
गांधी जयंती हर साल 2 अक्टूबर
को मनाई जाती है.
इस साल महात्मा गांधी
का 155वां जन्मदिन हैं.
यह दिन हमें महात्मा
गांधी के जीवन, उपलब्धियों
और नैतिक मूल्यों पर विचार करने
का मौका देता है,
जिनकी अहिंसक सक्रियता आज भी मनाई
जाती है. साथ ही,
इस दिन को पूरे
देश में प्रार्थना सत्र,
स्मारक सेवाओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों
के साथ मनाया जाता
है. भारत में ‘राष्ट्रपिता’
के रूप में जाने
जाने वाले महात्मा गांधी
पूरे देश में लोगों
को प्रेरित करते रहते हैं.
बता दें, मोहनदास करमचंद
गांधी ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता
के लिए भारत के
संघर्ष में एक प्रमुख
खिलाड़ी थे. उनका जन्म
2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के
पोरबंदर में हुआ था.
उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कानून
की पढ़ाई करने से
पहले दक्षिण अफ्रीका में अपना करियर
शुरू किया, जहां उन्होंने नस्लीय
अन्याय के खिलाफ अभियान
चलाया. यह तब था
जब सत्याग्रह के नाम से
जानी जाने वाली उनकी
अहिंसक प्रतिरोध अवधारणा ने आकार लेना
शुरू किया. गांधी के अहिंसक प्रतिरोध
सिद्धांत, नमक मार्च और
अंग्रेजों के साथ असहयोग
की मांग ने लाखों
लोगों को हिंसा का
सहारा लिए बिना स्वतंत्रता
की लड़ाई में शामिल
होने के लिए प्रेरित
किया. गांधी और उनके अनुयायियों
के कार्यों ने 15 अगस्त, 1947 को भारत की
स्वतंत्रता में योगदान दिया.
जनवरी 1948 में गांधी की
हत्या के बाद, भारत
सरकार ने उनके जीवन
और विरासत को याद करने
के लिए 2 अक्टूबर को गांधी जयंती,
एक राष्ट्रीय अवकाश के रूप में
नामित किया.
गांधी जी की नजर
में अहिंसा सिर्फ किसी जीवात्मा के
खिलाफ हिंसक व्यवहार का परित्याग नहीं
था, बल्कि उनकी अहिंसा के
दायरे में मन वचन
और कर्म तीनों आते
थे। उन्होंने कहा अहिंसा केवल
आचरण का स्थल नियम
नहीं है। बात-बात
में गांधी के नाम और
उनके विचारों को ताबीज की
तरह व्यवहार करने वाले आज
की राजनीति को देखिए वह
इस सोच के ठीक
उलट छोर पर खड़ी
नजर आती है। आज
के सियासतदान गांधी के विचारों का
हवाला देने में कोई
कोताही नहीं बरतते, उनके
बताएं मार्ग पर चलने व
आगे बढ़ने की बात
करते है, लेकिन विडंबना
यह है कि इससे
वह उलट व्यवहार करते
नजर आते है। सियासतदानों
के बयानों पर गौर करतें
तो अपने विरोधियों के
खिलाफ हिंसक तरीके से जुबान चलाते
है। इन नेताओं के
लिए परिवार ही राजनीति है।
कांग्रेस जैसे दल तो
बार-बार गांधी का
नाम लेते हैं, गांधी
के विचारों की बात का
हवाला देते हैं। उनकी
अहिंसा और शिष्ट का
जिक्र बार-बार करते
हैं। लेकिन जैसे ही उनके
विरोधी का संदर्भ आता
है उनकी जुबान ही
नहीं उनका व्यवहार भी
हिंसक हो जाता है।
भारत तेरे टुकड़े होंगे,
इंसा अल्लाह की नारा देने
वालों के साथ खड़े
नजर आते है। जबकि
गांधी ने स्वाधीनता आंदोलन
के दौरान कांग्रेस का नेतृत्व किया
था। इस देश के
कण-कण को विदेशी
दासता का विद्रोही बना
दिया था। समाजवादी भी
बार-बार गांधी लोहिया
जयप्रकाश का जिक्र करते
हैं लेकिन उनकी बोल भी
बिगड़ रहे हैं। वे
भूल जाते हैं कि
नेहरू के कटू आलोचक
होने के बावजूद लोहिया
ने उन पर कभी
निजी हमले नहीं किया।
अभी तो आम धारणा
यही बनती जा रही
कि ईमानदारी के बलबूते चुनाव
जीतना आसान नहीं है।
बगैर भ्रष्टाचार, परिवार व जातिवाद के
उनकी सियासी दुकान नहीं चल सकतीं।
मेरा मतलब है राजनीति
में सुधार चाहने वालों के लिए यह
समय घर बैठने या
वोट देने तक ही
नहीं होना चाहिए। राजनीति
में नैतिकता को लेकर उतरे
सवालों के बीच चुनाव
सुधारो की पूरी बातें
ही नहीं बल्कि उन
पर अमल करने की
भी जरूरत है। सबसे बड़ी
जिम्मेदारी राजनीतिक पार्टियों की ही है
कि वह ठोक बजाकर
उम्मीदवारों का चयन करें।
चिंता इस बात की
है कि जनता ही
दागियों को वोट देकर
सत्ता में लाती है।
इसलिए आमजनमानस को भी राजनीति
में स्वच्छता के लिए आगे
आना होगा।
गांधी के जीवन से
कई ऐसी अच्छी बातें
सीखी जा सकती हैं,
जो हमारे जीवन में सकारात्मक
परिवर्तनों को प्रेरित कर
सकते हैं। एक बार
गांधी जी से जब
यह पूछा गया कि
आप दुनिया को क्या संदेश
देना चाहते हैं, तो उन्होंने
कहा, “मेरा जीवन ही
मेरा संदेश है.” गांधीजी के
जीवन से एक घटना
हमें समय की महत्वपूर्णता
के बारे में गहरा
संदेश देती है. जब
वे साबरमती आश्रम में निवास कर
रहे थे, तो कुछ
गांववाले उन्हें अपने पास की
गांव में एक सभा
की आमंत्रण दिया. उन्होंने सभा का समय
तय किया, और सभी को
चार बजे शाम का
समय बताया. गांधीजी ने इस आमंत्रण
को स्वीकार किया. परन्तु समय पर जाने
से पहले एक व्यक्ति
ने कहा, “बापू, मैं आपको गांव
के लिए कार से
भेज दूंगा, ताकि आपको सभा
स्थल पर पहुँचने में
कोई दिक्कत न हो ” अगले
दिन गांधीजी ने समय पर
सभा में पहुँचने के
लिए कार की प्रतीक्षा
की, लेकिन चार बजने तक
कोई नहीं पहुँचा. इसके
बजाय, गांधीजी ने एक साइकिल
उठाई और सभा स्थल
पहुँच गए. लोगों ने
जब उन्हें वहाँ देखा, तो
वे हैरानी में आ गए.
गांधीजी ने समय की
महत्वपूर्णता को दर्शाया और
समय के अद्वितीय मूल्य
को मान्यता दी. महात्मा गांधी
का मानना था कि ‘हम
जो सोचते हैं, वही बन
जाते हैं ‘ अगर हमारे मन
में किसी लक्ष्य तक
पहुँचने के बारे में
नकारात्मक भाव होता है,
तो वास्तविक जीवन में भी
वही सच होता है.
गांधीजी मानते थे कि इस
तरह की स्थितियों में
हमें नकारात्मक विचारों को मन से
हटा देना चाहिए और
केवल सकारात्मक सोच के साथ
मेहनत करते रहना चाहिए.
उनका मानना था कि अगर
व्यक्ति को खुद पर
विश्वास हो, तो वह
कुछ भी करने के
लिए सामर्थ्यशाली हो जाता है.
महात्मा गांधी को अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. मुश्किलों के आगे हार मानने की जगह वे लगातार प्रयास करते रहे. दक्षिण अफ्रीका में, जब उन्होंने पहली श्रेणी की रेलगाड़ी में सफर किया, तो उन्हें डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया इसके बावजूद, वे हार नहीं माने और अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए संघर्ष करते रहे. वे स्वतंत्रता संग्राम में भी कई बार जेल जाने के बावजूद, अंग्रेजों से भारत की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे. गांधीजी का संदेश था कि हमें कभी भी मुश्किलों से हार नहीं मानना चाहिए. जब हम किसी काम को करने का प्रयास करते हैं और हमारे परिश्रम का परिणाम नहीं मिलता है, तो हम परेशान हो जाते हैं. गुस्से में अजीब व्यवहार करने लगते हैं. हालांकि, गांधीजी ने अपने जीवन में अहिंसा का मार्ग चुना और शांति और धैर्य बनाए रखकर उन्होंने वह प्राप्त किया जो वे चाहते थे.
हमें याद रखना चाहिए कि कई बार परिस्थितियां हमारे अनुकूल, हमारे मनमुताबिक नहीं होतीं, लेकिन उस समय भी हमें धैर्य नहीं खोना चाहिए. महात्मा गांधी कहते थे, ‘जो काम करते हो, हो सकता है कि वह कम महत्ववाला हो, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि तुम उस काम को करते रहो ‘ वे हर दिन, हर पल कुछ नया सीखने की सलाह देते थे. गांधीजी ने अपने जीवन में अनुशासन को महत्वपूर्ण माना और समय पर उठने से लेकर हर दिन के कामों तक हर समय में अनुशासन बनाए रखा. वे इसके साथ ही अपने जीवन में कल के लिए बचत करने की महत्वपूर्णता को भी समझाते थे. गांधीजी कहते थे कि जो बदलाव हम दूसरों में देखना चाहते हैं, वह बदलाव हमें सबसे पहले अपने भीतर लाना होगा .गांधी जी ने देश को अंग्रजी हुकूमत से आजादी दिलाने में काफी बलिदान दिए. संघर्ष किया. अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है. इन सारी बातों को कोई कभी भी नहीं भूल सकता. सदा अहिंसा की राह पर चलते हुए आजादी की लड़ाई लड़ी. भारतवर्ष को ब्रिटिश राज से आजाद कराया.
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