शक्ति की आराधना है मां दुर्गा की पूजा
घर-मंदिरों में नौ दिन तक प्रज्जवलित होगी आस्था की अखंड ज्योति
राशि के
अनुसार
करें
पूजन;
बरसेगी
मां
की
कृपा
इस बार
प्रतिकीर्ति
योग
में
मां
की
आराधना
होगी
हस्त नक्षत्र
में
घरों
से
मंदिरों
तक
कलश
स्थापना
होगी
सुरेश गांधी
वाराणसी। मां दुर्गा की
आराधना शक्ति की आराधना है।
इससे आत्मबल में वृद्धि के
साथ शरीर में नई
उर्जा का संचार भी
होता है। शारदीय नवरात्रि
के पहले दिन कलश
स्थापना से नवदुर्गा की
पूजा शुरू होती है.
इस साल की शारदीय
नवरात्रि का शुभारंभ 3 अक्टूबर
से हो रहा है,
जो 12 अक्टूबर तक चलेगा. देवी
भागवत और मार्कंडेय पुराण
के अनुसार, नवरात्रि के 9 दिनों में
मां दुर्गा के 9 स्वरुपों की
पूजा की जाती है
और व्रत रखा जाता
है. महा नवमी को
नवरात्रि का हवन करते
हैं और दशमी को
पारण करके व्रत को
पूरा करते हैं.
घट स्थापन के लिए सुबह से शाम तक मुहूर्त है। इस बार 890 साल बाद प्रतिकीर्ति एवं ऐंद्र योग पड़ रहा है। जबकि हस्त नक्षत्र रहे। भक्त घरों से लेकर मंदिरों तक कलश बैठाकर नौ दिनों तक पूजन-अचर्न करेंगे। इसके चलते पूजन सामग्री और पूजा पंडालों की तैयारी तेज हो गई है। वहीं, मूर्तिकार दुर्गा प्रतिमाओं को भी अंतिम रूप देने में लगे हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन यानी अश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना करते हैं और मां दुर्गा का आह्वान करते हैं, उसके बाद नवरात्रि की पूजा शुरू होती है. शारदीय नवरात्रि का पहला दिन अश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि को होता है.
पंचांग के अनुसार, अश्विन
शुक्ल प्रतिपदा तिथि 2 अक्टूबर को देर रात
12 बजकर 18 मिनट से 4 अक्टूबर
को तड़के 2 बजकर 58 मिनट तक है.
उदयातिथि के आधार अश्विन
शुक्ल प्रतिपदा तिथि 3 अक्टूबर को है. ऐसे
में नवरात्रि का पहला दिन
3 अक्टूबर गुरुवार को है. इस
दिन कलश स्थापना होगी.
सनातन धर्म में आश्विन
माह के शुक्ल पक्ष
की प्रतिपदा तिथि से लेकर
नवमी तिथि तक शारदीय
नवरात्र मनाया जाता है। इस
दौरान श्रद्धाभाव से जगत जननी
आदिशक्ति मां दुर्गा के
नौ रूपों की पूजा-भक्ति
की जाती है।
मां दुर्गा की
पूजा करने से साधक
की सभी मनोकामनाएं पूर्ण
होती हैं। वहीं 12 अक्टूबर
को दशहरा है। यह पर्व
जगत जननी आदिशक्ति मां
दुर्गा को समर्पित है।
इस दौरान मां दुर्गा के
नौ रूपों की पूजा की
जाती है। साथ ही
शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के
निमित्त व्रत रखा जाता
है। मां दुर्गा की
पूजा करने से साधक
ही हर मनोकामना पूरी
होती है। इसके साथ
ही घर में सुख
एवं समृद्धि आती है। पहले
दिन घटस्थापना पर 3 दुर्लभ एवं
शुभ योग का निर्माण
हो रहा है। इन
योग में जगत की
देवी मां दुर्गा की
पूजा करने से साधक
को अक्षय फल की प्राप्ति
होगी।
नवरात्र में मुहूर्त व
राशि के अनुसार पूजा
करने से माता रानी
की भक्तों पर कृपा बरसेगी।
जिन्हें राशि नहीं पता
वो मां की पूजा
गुड़हल से करें और
मां को खीर-पूड़ी
व हलवा का भोग
लगाएं। कुछ पूजा पंडालों
में मां विराजेंगी। ज्योतिषियों
के अनुसार प्रतिपदा पर प्रतिकीर्ति योग
890 साल लगा है, जो
पूजन की दृष्टि से
काफी फलदायी है।
कलश स्थापना शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्रि के कलश स्थापना
का शुभ मुहूर्त सुबह
में 6ः15 बजे से
7ः22 बजे तक और
अभिजीत मुहूर्त 11ः46 बजे से
दोपहर 12ः33 बजे तक
है.
कलश स्थापना सामग्री
मिट्टी का एक कलश,
रक्षासूत्र, गंगाजल, सात प्रकार के
अनाज, जौ, आम और
अशोक की हरी पत्तियां,
केले के पत्ते, जटावाला
नारियल, सूखा नारियल, अक्षत्,
धूप, दीप, कपूर, रुई
की बाती, गाय का घी,
रोली, चंदन, गाय का गोबर,
पान का पत्ता, सुपारी,
लौंग, इलायची, नैवेद्य, फल, गुड़हल के
फूल, फूलों की माला, पंचमेवा,
माचिस, मातरानी का ध्वज आदि.
कलश स्थापना का महत्व
कलश स्थापना करने
से नकारात्मकता दूर होती है.
इससे घर में सुख,
समृद्धि और शांति आती
है. परिवार के सदस्य निरोगी
रहते हैं. घर से
बीमारियां दूर होती हैं.
कलश को विघ्नहर्ता श्री
गणेश जी का प्रतिरुप
भी मानते हैं. उनकी कृपा
से कार्यों में आने वाली
बाधाएं दूर होती हैं
और शुभता बढ़ती है.
कलश स्थापना विधि
पहले दिन नवरात्रि
व्रत और मां दुर्गा
की पूजा का संकल्प
लें. उसके बाद गणेश
जी को प्रणाम करके
पूजा स्थान पर ईशान कोण
में एक लकड़ी की
चौकी रखें. कलश स्थापना करें.
चौकी पर लाल
या पीले रंग का
कपड़ा बिछाकर उस पर धान
या सप्त धान्य रखें.
उस पर कलश रखें.
कलश के गर्दन पर
रक्षासूत्र लपेट दें. उस
पर तिलक लगाएं. इसके
बाद कलश में गंगाजल
और पानी डालें.
इसके बाद कलश
में अक्षत्, फूल, सुपारी, सिक्का,
दूर्वा, हल्दी, चंदन आदि डाल
दें. इसके बाद आम
और अशोक के पत्ते
कलश में डालें. फिर
उस कलश के मुख
को ढक्कन से ढक दें.
फिर सूखे नारियल
पर रक्षासूत्र लपेट दें. उसे
कलश के ढक्कन को
अक्षत् से भर दें
और उस पर नारियल
को रख दें. इस
प्रकार से आपका कलश
स्थापना हो जाएगा.
कलश स्थापना के
बाद अब गणेश जी,
वरुण देव के साथ
अन्य देवी-देवताओं की
पूजा करें. मां दुर्गा की
पूजा करें. फिर उनके प्रथम
स्वरूप मां शैत्रपुत्री की
पूजा करें.
कलश के पास
पवित्र मिट्टी फैलाकर उसमें जौ डाल दें.
फिर उस पर पानी
छिड़कें. ताकि जौ के
उगने के लिए सही
नमी हो जाए. यह
जौ पूरी नवरात्रि तक
रखते हैं. यह जितना
ही हरा भरा होगा,
उतना ही आपके परिवार
में सुख और समृद्धि
बढ़ेगी. ऐसी धार्मिक मान्यता
है.
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