‘‘महाकुंभ - 2025’’ : दिखेगा संस्कृति, अध्यात्म और परंपरा का संगम
कुम्भ का संस्कृत अर्थ है कलश। ज्योतिष शास्त्र में कुम्भ राशि का भी यही चिन्ह है। ज्योतिषियों के अनुसार जब बृहस्पति कुम्भ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। हिन्दू धर्म में कुम्भ का पर्व हर 12 वर्ष के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है। हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में संगम जहां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं। लेकिन प्रयाग का कुंभ सबसे उत्कृष्ट भव्य होता है। इस बार प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। गंगा यमुना की रेती सनातन मतावलंबियों से पहली बार कब गुलजार हुई, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, लेकिन त्रेता युग में भी कल्पवास जैसी परंपरा थी, जो आज भी कायम है। रमता जोगी बहता पानी... कभी यहां तो कभी वहां...लेकिन इन दिनों त्याग, समर्पण श्रद्धा का केन्द्र प्रयागराज में जोगिया तो पूरी तरह रम चुका है। दुनिया की सबसे बड़ी अलौकिक तंबुओं की नगरी संगम तीरे लाखों साधु-संतो, नागा सन्यासियों का जमघट होने लगा है। इसमें भारतीय संस्कृति का सार व विश्वास समाहित है। यही वजह है कि इस महाकुंभ का गवाह हर व्यक्ति बनना चाहता है। यूं तो 15 जनवरी को मकर संक्रांति के शाही स्नान से कुंभ मेले की विधिवत शुरुवात होगी, लेकिन संगम की रेती पर अभी से संत महात्माओं का मंत्रोचार की कर्णप्रिय गूंज सुनाई दे रही है। मान्यता है कि महाकुंभ के दौरान संगम में शाही स्नान करने से व्यक्ति में दिव्य ऊर्जा का संचार होता है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रस्तुत है सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी की खास पेशकश :-
सुरेश गांधी
फिरहाल, उत्तर प्रदेश प्रयागराज में गंगा के किनारे बसा शहर सांस्कृतिक जश्न का केंद्र बनने जा रहा है. या यूं कहे 12 सालों के अंतराल के बाद, भारत का सबसे बड़ा धार्मिक समागम, कुंभ मेला, फिर से आयोजित होने जा रहा है. यह जश्न पूरे 45 दिन का होगा, जो 14 जनवरी : 2025 से 26 फरवरी : 2025, दिन बुधवार को महाशिवरात्रि तक चलेगा. यह साल 2012 में हुए महाकुंभ से करीब तीन गुना बड़ा होने वाला है. उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग के मुताबिक, नदी किनारे 4,000 हेक्टेयर में हो रहे महाकुंभ में करीब 40-45 करोड़ लोगों के शामिल होने की उम्मीद है. इस आयोजन का अनुमानित बजट करीब 6,382 करोड़ रुपये है, जिसमें से 5,600 करोड़ रुपये से ज्यादा पहले ही आयोजन और संबंधित परियोजनाओं के लिए अलग रखे जा चुके हैं. जबकि 2012 में हुए कुंभ का बजट 1,152 करोड़ रुपये था, जिसमें करीब 12 करोड़ लोग शामिल हुए थे. कुंभ मेला सनातन धर्म का सबसे बड़ा और सबसे पवित्र मेला है. कुंभ मेले में लाखों श्रद्धालु आते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं. ज्योतिषियों के मुताबिक 13 जनवरी, दिन सोमवार को पौष माह की पूर्णिमा के साथ महाकुंभ का आरंभ होगा।
महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में संगम पर भारत एवं देश-विदेश से सनातन संतों का जमावड़ा लगेगा। इसके अलावा, नागा साधु एवं साधवियां भी महाकुंभ में हिस्सा लेंगे। महाकुंभ के दौरान शाही स्नान का भी बहुत महत्व माना जाता है। मेले का प्रथम लिखित प्रमाण महान बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग के लेख से मिलता है जिसमें आठवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासन में कुम्भ का वर्णन है। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने इस बात का प्रमाण इस चौपाई से दिया है :-
‘माघ मकरगत रबि
जब
होई,
तीरथपतिहिं
आव
सबक
कोई।
देव
दनुज
किन्नर
नर
श्रेनीं,
सादर
मज्जहि
सकल
त्रिबेनी।।‘
अर्थात माघ माह में मकर राशि पर भगवान सूर्य आ जाते हैं और तीर्थों के राजा प्रयाग के संगमत तट पर कल्पवास शुरू हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ संस्था यूनेस्को ने भी कुंभ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर का दर्जा दिया है। उसने माना कि कुंभ मेले से जुड़ा ज्ञान गुरु-शिष्य परंपरा के जरिए एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचता है। इसके कारण मेले के आयोजन की निरंतरता भी सुनिश्चित होती है। हर 12 साल के बाद महाकुंभ मेले का आयोजन क्यों आता है इसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएं हैं. माना जाता है कुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है. जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तब अमृत निकला. इस अमृत को पाने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध हुआ जो 12 दिव्य दिनों तक चला.
माना जाता है
कि ये 12 दिव्य दिन पृथ्वी पर
12 साल के बराबर हैं.
ये भी मान्यता है
कि अमृत के घड़े
से छींटे उड़कर 12 स्थानों पर गिरे थे,
जिनमें से चार पृथ्वी
पर थे. इन चार
स्थानों पर ही कुंभ
मेला लगता है. अमृत
कलश की रक्षा में
सूर्य, गुरु और चन्द्रमा
के विशेष प्रयत्न रहे थे। इसी
कारण इन ग्रहों का
विशेष महत्त्व रहता है और
इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट
स्थितियों में कुंभ का
पर्व मनाने की परम्परा चली
आ रही है। यही
कारण है कि कुम्भ
पर्व विश्व में किसी भी
धार्मिक प्रयोजन हेतु भक्तों का
सबसे बड़ा सांस्कृतिक आयोजन
का संग्रहण है। वहीं ज्योतिष
शास्त्र के अनुसार, बृहस्पति
ग्रह 12 साल में 12 राशियों
का चक्कर लगाता है. कुंभ मेले
का आयोजन उसी समय होता
है जब बृहस्पति ग्रह
किसी विशेष राशि में होता
है.इस आयोजन में
लाखों-करोड़ों की संख्या में
लोग इस पावन पर्व
में उपस्थित होते हैं। हर
कोई संगम में डुबकी
लगाकर हर पाप, हर
कष्ट से मुक्त होना
चाहता है। श्रद्धालु इस
पावन जल में नहा
कर अपनी आत्मा की
शुद्धि एवं मोक्ष के
लिए प्रार्थना करते हैं।
आध्यात्मिक दृष्टि से कुंभ के
काल मे ग्रहों की
स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना
के लिए उत्कृष्ट होती
है। समुद्र मंथन की कथा
में कहा गया है
कि कुम्भ पर्व का सीधा
सम्बन्ध तारों से है। अमृत
कलश को स्वर्ग लोक
तक ले जाने में
इंद्र के पुत्र जयंत
को 12 दिन लगे। देवों
का एक दिन मनुष्यों
के 1 वर्ष के बराबर
है इसीलिए तारों के क्रम के
अनुसार हर 12वें वर्ष
कुम्भ पर्व विभिन्न तीर्थ
स्थानों पर आयोजित किया
जाता है। कुम्भ पर्व
एवं गंगा नदी आपस
में सम्बंधित हैं। यहां स्नान
करना मोक्ष प्राप्त करने के लिए
आवश्यक माना जाता है।
हर 144 वर्ष बाद यहां
महाकुंभ का आयोजन होता
है। शास्त्रों में बताया गया
है कि पृथ्वी का
एक वर्ष देवताओं का
दिन होता है, इसलिए
हर बारह वर्ष पर
एक स्थान पर पुनः कुंभ
का आयोजन होता है। देवताओं
का बारह वर्ष पृथ्वी
लोक के 144 वर्ष के बाद
आता है। ऐसी मान्यता
है कि 144 वर्ष के बाद
स्वर्ग में भी कुंभ
का आयोजन होता है इसलिए
उस वर्ष पृथ्वी पर
महाकुंभ का अयोजन होता
है। महाकुंभ के लिए निर्धारित
स्थान प्रयाग को माना गया
है।
प्रयागराज का उल्लेख भारत के धार्मिक ग्रन्थों वेद, पुराण, रामायण और महाभारत में भी मिलता है। गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का यहां संगम होता है, इसलिए हिन्दुओं के लिए इस शहर का विशेष महत्त्व है। इस साल यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि पर्यटन के दृष्टिकोण से भी ऐतिहासिक बनने जा रहा है। योगी सरकार की मंशा है कि महाकुंभ को अब तक का सबसे भव्य और दिव्य आयोजन बनाया जाए। प्रील्यूड कार्यक्रम में विभिन्न देशों के राजदूतों और उच्चायुक्तों को आमंत्रित किया गया है। भूटान, नेपाल, इंडोनेशिया, श्रीलंका, यूएसए, जापान और अन्य देशों के प्रतिनिधि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को करीब से देखेंगे। सांस्कृतिक कार्यक्रम में विभिन्न कलात्मक प्रस्तुतियां और महाकुंभ पर आधारित फिल्मों का प्रदर्शन भी होगा। खास यह है कि महाकुंभ-2025 को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए योगी सरकार हरसंभव कोशिश कर रही है। इस मेले को एक धार्मिक आयोजन से ऊपर उठाकर वैश्विक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन का केंद्र बनाया जा रहा है। महाकुंभ न केवल आध्यात्मिक अनुभव है बल्कि भारत की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं से जुड़ने का अनूठा अवसर भी है। मान्यता है कि इस मेले में स्नान करने से मोक्ष मिलता है.
महाकुंभ 2025 शाही स्नान तिथियां
पौष
पूर्णिमा
13 जनवरी
2025 के
दिन
पहला
शाही
स्नान
होगा.
मकर
संक्रांति
14 जनवरी
2025 के
दिन
दूसरा
शाही
स्नान
होगा.
मौनी
अमावस्या
29 जनवरी
2025 के
दिन
तीसरा
शाही
स्नान
होगा.
बसंत
पंचमी
3 फरवरी
2025 के
दिन
चौथा
शाही
स्नान
होगा.
माघ
पूर्णिमा
12 फरवरी
2025 के
दिन
पांचवा
शाही
स्नान
होगा.
महाशिवरात्रि
26 फरवरी
2025 के
दिन
आखिरी
शाही
स्नान
होगा.
शाही और पवित्र स्नान
मकर संक्राति से प्रारम्भ होकर महाशिवरात्रि तक चलने वाले इस महाकुम्भ में वैसे तो हर दिन पवित्र स्नान है फिर भी कुछ दिवसों पर खास स्नान होते हैं। ऐसे मौकों पर साधु संतों की गतिविधियां तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र होती है। कुम्भ के मौके पर तेरह अखाड़ों के साधु-संत कुम्भ स्थल पर एकत्र होते हैं। प्रमुख कुम्भ स्नान के दिन अखाड़ों के साधु एक शानदार शोभायात्रा के रूप में शाही स्नान के लिए निकलती हैं। भव्य जुलूस में अखाड़ों के प्रमुख महंतों की सवारी सजे धजे हाथी, पालकी या भव्य रथ पर निकलती हैं। उनके आगे पीछे सुसज्जित ऊँट, घोड़े, हाथी और बैंड़ भी होते हैं। संगम की रेती पर निकलती इस यात्रा को देखने के लिए लोगों के हुजूम इकट्ठे हो जाते हैं।
ऐसे में इन साधुओं की जीवन शैली सबके मन में कौतूहल जगाती है विशेषकर नागा साधुओं की, जो कोई वस्त्र धारण नहीं करते तथा अपने शरीर पर राख लगाकर रहते हैं। मार्ग पर खड़े भक्तगण साधुओं पर फूलों की वर्षा करते हैं तथा पैसे आदि चढ़ाते हैं। यह यात्रा विभिन्न अखाड़ा परिसरों से प्रारम्भ होती है। विभिन्न अखाड़ों के लिए शाही स्नान का क्रम निश्चित होता है। उसी क्रम में यह संगम में स्नान करते हैं। कुंभ मेले में पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष मिलने की मान्यता है. माना जाता है कि इन नदियों का जल इस दौरान अमृत के समान पवित्र हो जाता है. माना जाता है कुंभ मेले में स्नान करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है. कुंभ मेले में स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. कुंभ मेला में लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं. प्रयागराज (इलाहाबाद) में आयोजित कुंभ मेला में शाही स्नान का विशेष महत्व माना जाता है. यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां मिलती हैं, इसलिए यह स्थान विशेष धार्मिक महत्व रखता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार,यहां स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है.कुंभ में स्नान करने के लाभ
- कुंभ में
स्नान
से
मिलता
है
पुण्य।
- मनुष्य के
पापों
का
प्रायश्चित
होता
है।
- इंसान की
जीवन
में
बाधाओं
का
अंत
होता
है।
- कुंडली के
दोष
खत्म
हो
जाते
हैं।
- वृष, सिंह,
वृश्चिक
और
कुंभ
राशि
वालों
को
विशेष
लाभ
होता
है।
- विष्णु पुराण में कुंभ के महानता में लिखा गया है कि कार्तिक मास के हजारों स्नानों का, माघ के सौ स्नानों का अथवा वैशाख मास में एक करोड़ नर्मदा स्नानों का जो फल प्राप्त होता है, वही फल कुंभ पर्व के एक स्नान से मिलता है।
इसी
प्रकार
हजारों
अश्वमेघ
यज्ञों
का
फल
या
सौ
वाजपेय
यज्ञों
का
फल
और
पूरी
धरती
की
एक
लाख
परिक्रमाएं
करने
का
जो
फल
मिलता
है,
वही
फल
कुंभ
के
केवल
एक
स्नान
का
होता
है।
- अथर्ववेद के
अनुसार
- महाकुम्भ
बारह
वर्ष
के
बाद
आता
है,
जिसे
हम
कई
बार
प्रयागादि
तीर्थों
में
देखा
करते
हैं।
कुम्भ
उस
समय
को
कहते
हैं
जब
आकाश
में
ग्रह-राशियों
का
अद्भुत
योग
देखने
को
मिलता
है।
- यजुर्वेद में
बताया
गया
है
कि
कुंभ
मनुष्य
को
इस
लोक
में
शारीरिक
सुख
देने
वाला
और
हर
जन्म
में
उत्तम
सुखों
को
देने
वाला
है।
- अथर्ववेद में
ब्रह्मा
ने
कहा
है
कि
हे
मनुष्यों!
मैं
तुम्हें
सांसारिक
सुखों
को
देने
वाले
चार
कुंभ
पर्वों
का
निर्माण
कर
चार
स्थानों
हरिद्वार,
प्रयाग,
उज्जैन
और
नासिक
में
प्रदान
करता
हूं।
No comments:
Post a Comment