जागरूकता ही ‘‘एड्स’’ से बचाव का एकमात्र उपाय
असुरक्षित
यौन
संबंध
व
अन्य
कारणों
से
जन्म
लेने
वाली
एड्स
जैसी
जानलेवा
बीमारी
से
बचाव
का
एकमात्र
उपाय
जागरूकता
ही
है.
मतलब
साफ
है
अगर
लोग
जानकारी
रखेंगे
तो
इसकी
चपेट
में
कभी
नहीं
आ
सकते
हैं.
इसलिए
इस
बीमारी
के
लक्षण,
बचाव
तथा
फैलने
के
कारणों
के
बारे
में
जानकारी
होना
आवश्यक
है.
हर
व्यक्ति
को
अपना
एचआईवी
स्टेटस
मालूम
होना
चाहिए.
गर्भवती
महिला
को
प्रथम
त्रैमासिक
में
ही
इसकी
जांच
करा
लेनी
चाहिए.
साथ
ही
यौन
संचारी
रोग
तथा
इससे
होने
वाली
समएचआईवी
एक
वायरस
होता
है
जो
शरीर
के
इम्यून
सिस्टम
को
प्रभावित
करता
है.
ये
सफेद
रक्त
कोशिकाओं
पर
हमला
करता
है.
एचआईवी
पॉज़ीटिव
होने
के
बाद
एक
मरीज़
के
लिए
मामूली
चोट
या
फिर
किसी
भी
बीमारी
से
उबरना
कठिन
हो
जाता
है.
जबकि
एड्स
इसका
एडवांस्ड
स्टेज
है.
डब्ल्यूएचओं
की
मानें
तो
भारत
में
एचआईवी
और
एड्स
के
मरीज
हर
साल
बढ़
रहे
हैं.
नेशनल
एड्स
कंट्रोल
ऑर्गेनाइजेशन
के
अनुसार,
असुरक्षित
यौन
संबंaधों
के
कारण
देश
में
पिछले
10 सालों
में
17 लाख
से
ज्यादा
लोग
एड्स
का
शिकार
हुए
हैं।
खास
यह
है
कि
एचआईवी
वायरस
के
खिलाफ
आजतक
कोई
वैक्सीन
भी
नहीं
बन
पाई
है.
विश्व
एड्स
दिवस
2024 का
थीम
है
“सही
मार्ग
अपनाएं”,
जो
एचआईवी
व
एड्स
महामारी
के
खिलाफ
लड़ाई
में
मानव
अधिकारों
की
रक्षा
और
संवर्धन
की
महत्वपूर्ण
भूमिका
पर
प्रकाश
डालता
है।
मेडिकल
क्षेत्र
में
नवाचार
और
कारगर
दवाओं
के
विकास
के
कारण
अब
ये
संक्रमण
लाइलाज
तो
नहीं
रहा
है
हालांकि
इसके
कारण
वैश्विक
स्तर
पर
अब
भी
हर
साल
लाखों
लोगों
की
मौत
हो
जाती
है।
आंकड़ों
के
मुताबिक
साल
2024 में
दुनियाभर
में
एचआईवी
से
संबंधित
बीमारियों
से
लगभग
6.30 लाख
लोगों
की
मौत
हो
गई।
साल
2004 की
तुलना
में
ये
69 फीसदी
जरूर
कम
है,
जब
2.1 मिलियन
(21 लाख)
लोगों
की
मौत
हुई
थी
सुरेश गांधी
एचआईवी एक वायरस होता
है जो शरीर के
इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता
है. ये सफेद रक्त
कोशिकाओं पर हमला करता
है. एचआईवी पॉज़ीटिव होने के बाद
एक मरीज़ के लिए
मामूली चोट या फिर
किसी छोटी सी बीमारी
से उबरना कठिन हो जाता
है क्योंकि हमारा इम्यून सिस्टम ही बीमारियों से
लड़ता है लेकिन एचआईवी
संक्रमण की वजह से
ये कमजोर होता चला जाता
है. इस संक्रमण में
शरीर में चोट लगने
या कोई बीमारी होने
पर, उसे ठीक करने
में सामान्य से 10 गुना अधिक समय
लगता है. जबकि एड्स
इस बीमारी की एडवांस्ड स्टेज
है. इसका पूरा नाम
एक्वायर्ड इम्यून डेफिशिएंसी सिंड्रोम है. ये ह्यूमन
इम्यून डेफिशिएंसी वायरस यानी एचआईवी से
होता है. एचआईवी संक्रमित
रोगी को अगर सही
समय पर और सही
तरीके से इलाज नहीं
मिलता तो एड्स का
शिकार हो जाता है.
यानी एड्स एचआईवीकी लेटर
स्टेज है.
ये जरूरी नहीं
है कि एचआईवी पॉजिटिव
मरीज को एड्स हो.
सही इलाज मिलने से
एचआईवी मरीज एड्स से
बच सकता है. हमारे
शरीर को सीडी-4 कोशिकाएं
और टी-कोशिकाएं स्वस्थ
रखती हैं लेकिन ये
वायरस इन्हीं कोशिकाओं पर हमला करता
है और उनकी संख्या
को कम कर देता
है. इससे व्यक्ति बैक्टीरिया
और वायरस का जल्दी शिकार
बनता है और हल्की-फुल्की बीमारी में भी उसे
बहुत ज्यादा दिक्कतें होती हैं. विशेषज्ञ
चिकित्सकों का कहना है
कि किसी व्यक्ति के
शरीर में एड्स का
वायरस है तो वह
बिना दवाओं के करीब तीन
साल तक जीवित रह
सकता है. लेकिन यदि
किसी व्यक्ति को एचआईवी के
कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं अधिक हो रही
हैं तो इलाज के
बिना उसका एक साल
से अधिक जिंदा रहना
मुश्किल है.
एचआईवी की शुरुआत में
रोगी को ज्यादा दिदिक्कत
महसूस नहीं होती है.
उसे हल्का जुकाम या खांसी हो
सकती है. इसके अलावा
शुरुआती लक्षणों में थकान, सिरदर्द,
बुखार, त्वचा पर चकत्ते, रात
में पसीना आना और गर्दन
व कमर के लिंफ
नोड्स में सूजन आना
शामिल हैं. जबकि एड्स
एचआईवी की एडवांस्ड स्टेज
होती है. कई बार
इसके लक्षण पांच से 10 स
साल में दिखते हैं.
इसमें बुखार, दस्त, मुंह में सफेद
चकत्तेदार धब्बे उभरना, शरीर से अधिक
पसीना निकलना, बार-बार थकान
महसूस होना, अचानक वजन कम होना,
तेजगले, जांघों और बगलों की
लिम्फ नोड्स (लसिका ग्रंथियां) में सूजन और
गांठें इसके लक्षण हो
सकते हैं. एड्स का
कोई पुख्ता इलाज नहीं है
लेकिन दवाओं के सहारे इसके
असर को कम किया
जा सकता है जिससे
शरीर का इम्युन सिस्टम
मजबूत बना रहता है.
इसमें मरीज को तुरंत
एंटी रेट्रोवायरल थेरेपी दी जाती है
क्योंकि एचआइवी शरीर को बहुत
कमजोर बना देता है.
वहीं, एड्स से बचाव
ही सबसे बेहतरीन इलाज
है. इससे कोई दूसरी
बीमारी भी हो जाती
है. जो मौत का
कारण बन सकती है.
रिसर्च में कहा गया
है कि दुनियाभर में
भले ही एचआईवी के
नए मामलों में कमी आ
रही है, लेकिन संयुक्त
राष्ट्र का 2030 तक एड्स से
होने वाली मौतों के
आंकड़ों को शून्य करने
का लक्ष्य अभी काफी दूर
है. हालांकि अभी भीहर साल
दस लाख से अधिक
लोगों को नया एचआईवी
संक्रमण होता है और
एचआईवी से पीड़ित 40 मिलियन
लोगों में से एक
चौथाई को इलाज नहीं
मिल रहा है. कई
मामलों में शुरुआत में
एचआईवी के लक्षणों की
लोगों को जानकारी नहीं
होती है. जब ये
बीमारी गंभीर रूप ले लेती
है. तब इसके बारे
में पता चलता है.
विश्व एड्स दिवस एचआईवी
एवं एड्स के बारे
में जागरूकता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण
है, एक ऐसी स्थिति
जो दुनिया भर में लाखों
लोगों को प्रभावित करती
है. जबकि रोकथाम, उपचार
और देखभाल में महत्वपूर्ण प्रगति
हुई है,
एचआईवी एक प्रमुख सार्वजनिक
स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है,
खासकर निम्न और मध्यम आय
वाले देशों में. यह दिन
शिक्षा के महत्व, जीवन
रक्षक दवाओं तक पहुंच सुनिश्चित
करने और एचआईवी से
पीड़ित लोगों के खिलाफ कलंक
और भेदभाव को खत्म करने
पर जोर देता है.
यह एक अनुस्मारक के
रूप में भी कार्य
करता है कि शून्य
नए संक्रमण और शून्य भेदभाव
के लक्ष्य को प्राप्त करने
के लिए सामूहिक प्रयास
की आवश्यकता है. विश्व एड्स
दिवस की शुरुआत सबसे
पहले 1988 में जेम्स डब्ल्यू.
बन्न और थॉमस नेटर
ने की थी, जो
एड्स पर वैश्विक कार्यक्रम
में विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए काम
करने वाले दो सार्वजनिक
सूचना अधिकारी थे. उन्होंने बेहतर
मीडिया कवरेज सुनिश्चित करने और एचआईवी
एड्स के बारे में
लोगों में जागरूकता बढ़ाने
के लिए इस विचार
की कल्पना की थी. 1 दिसंबर
को इसलिए चुना गया क्योंकि
यह अमेरिकी चुनावों के बाद लेकिन
छुट्टियों के मौसम से
पहले ध्यान आकर्षित करने के लिए
एक समय सीमा प्रदान
करता था.
जरुरी जानकारियां
इसके मरीजों का इलाज एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी से किया जाता है। यह वायरस को नियंत्रित करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को होने वाले नुकसान से बचाता है। ऐसे में मरीजों को दवाइयों का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। समय-समय पर जांच भी कराते रहना चाहिए। एड्स के मरीजों को इंफेक्शन का खतरा ज्यादा होता है। इसलिए उन्हें स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यह संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद करता है। मरीजों को नियमित रूप से हाथ धोने, साफ-सफाई बनाए रखने और संक्रमित चीजों से बचने की सलाह दी जाती है। एड्स के मरीजों को हेल्दी डाइट लेने की सलाह दी जाती है। हरी सब्जियां, फल, प्रोटीन और मोटा अनाज खाने से उनकी इम्युनिटी मजबूत होती है और शरीर में ताकत बनी रहती है। इस दौरान आप व्यायाम जरूर करें। अच्छी नींद से आपका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर रहेगा। एड्स के मरीजों को केवल शारीरिक समस्याओं ही नहीं होतीं, बल्कि वे मेंटली और इमोशनली भी अकेलेपन से जूझ रहे होते हैं। ऐसे में आप उनके साथ इमोशनली कदम कदम पर साथ रहें। उन्हें यह महसूस कराएं कि वे अकेले नहीं हैं। मानसिक तनाव को कम करने के लिए मरीजों के साथ बातचीत करना बेहतर हो सकता है। विशेषज्ञों ने कहा, एड्स की रोकथाम की दिशा में सफलता जरूर मिली है, लेकिन अभी भी बहुत प्रयास किया जाना बाकी है। इस प्रगति का श्रेय एंटीरेट्रोवायरल उपचारों को दिया जाता है जिसकी मदद से रोगियों में वायरल लोड को कम करने में मदद मिली है। हालांकि चिंताजनक ये है कि दुनियाभर में एचआईवी से पीड़ित लगभग 40 मिलियन (चार करोड़) लोगों में से लगभग 9.3 मिलियन (93 लाख) लोगों को अब भी कोई उपचार नहीं मिल रहा है।
हाल के वर्षों में एचआईवी की रोकथाम और उपचार को लेकर कई प्रभावी दवाएं चर्चा में रही हैं। लेनाकेपाविर नामक दवा के प्रारंभिक परीक्षणों में पाया गया कि यह एचआईवी संक्रमण की रोकथाम में 100 प्रतिशत तक प्रभावी है। इस रोग के विरुद्ध लड़ाई में संभावित रूप से विशेषज्ञों ने इसे बड़ा परिवर्तनकारी बताया, हालांकि इसकी कीमत अब भी चिंता का कारण है। अमेरिकी दवा कंपनी गिलियड कुछ देशों में इस दवा के लिए प्रति व्यक्ति 40,000 डॉलर चार्ज कर रही है। हालांकि पिछले महीने गिलियड ने कम आय वाले देशों में कम कीमत पर दवा बनाने और बेचने के लिए जेनेरिक दवा निर्माताओं के साथ सौदे की घोषणा की है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, एचआईवी और एड्स गंभीर स्वास्थ्य चिंता का कारण रहे हैं। इस बीमारी को लेकर कलंक का भाव इसके इलाज की दिशा में अब भी बाधा है। एचआईवी से बचाव को लेकर सभी लोगों को निरंतर सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है। सुरक्षित यौन संबंध, एचआईवी और यौन संचारित संक्रमणों (एसटीआई) के लिए जांच, सुइयों-सिरिंजों या अन्य दवा इंजेक्शन उपकरणों को साझा न करने और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले तरीकों को अपनाकर इससे बचाव किया जा सकता है।
क्या है एड्स
एड्स का पूरा
नाम एकवायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम है। यह एचआईवी
इन्फेक्शन का आखिरी चरण
होता है। यह वायरस,
शारीरिक संबंध बनाने के दौरान एक
व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति
में फैल सकता है,
लेकिन इसके संक्रमण के
और भी दूसरे कारण
हो सकते हैं, जैसे-
संक्रमित ब्लड ट्रांस्फयूजन, किसी
और पर इस्तेमाल किए
हुए इन्जेक्शन का प्रयोग, मां
से बच्चे को जन्म के
समय, ब्रेस्टफीड करना। समय पर एचआईवी
संक्रमण का पता न
लगने की वजह से
एड्स हो सकता है।
हालांकि, इस बीमारी का
कोई इलाज नहीं है,
लेकिन दवाइयों की मदद से
इसके इन्फेक्शन को कंट्रोल किया
जा सकता है। यह
वायरस इम्यून सिस्टम के टी-सेल्स
पर हमला करता है,
जिस वजह से इम्युनिटी
कमजोर होने लगती है
और अन्य दूसरी बीमारियों
से बचाव करना मुश्किल
हो जाता है।
एचआईवी का संक्रमण कैसे फैलता है?
एचआईवी मुख्यतः संक्रमित व्यक्ति के रक्त, वीर्य
योनि द्रव और मां
के दूध के माध्यम
से फैलता है. यह असुरक्षित
यौन संबंध, संक्रमित सुईयों का उपयोग, संक्रमित
रक्त का संक्रमण, और
संक्रमित मां से बच्चे
में गर्भावस्था, प्रसव (कमसपअमतल) या स्तनपान के
दौरान फैल सकता है.
कंडोम का उपयोग करके
संक्रमण के खतरे को
कम किया जा सकता
है. सुईयों और अन्य मेडिकल
उपकरणों को साझा नहीं
करना चाहिए. नियमित एचआईवी परीक्षण करवाना चाहिए, विशेषकर गर्भवती महिलाओं को. लोगों को
एड्स के बारे में
सही जानकारी दी जानी चाहिए
ताकि वे इससे बचाव
कर सकें.कई लोग
एड्स के बारे में
गलत धारणाओं के शिकार होते
हैं, जैसे कि यह
केवल समलैंगिक पुरुषों में फैलता है,
या फिर संक्रमित व्यक्ति
के साथ हाथ मिलाने
या एक ही बर्तन
में खाने से एचआईवी
फैलता है. यह सभी
भ्रांतियाँ गलत हैं. एड्स
केवल ऊपर दिए गए
तरीकों से फैलता है.
एड्स से पीड़ित लोगों
को अक्सर समाज में भेदभाव
का सामना करना पड़ता है.
यह भेदभाव रोगियों के मानसिक और
भावनात्मक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव
डालता है. समाज को
एड्स के प्रति अपनी
सोच बदलनी चाहिए और संक्रमित लोगों
के प्रति सहानुभूति और समर्थन का
प्रदर्शन करना चाहिए.
ये चीजें देंगी एड्स से लड़ने की ताकत
फल और सब्जियां-
फल और सब्जियों में
पाया जाने वाला न्यूट्रिशन
जिसे एंटी-ऑक्सीडेंट कहते
हैं, इम्यूनिटी को दुरुस्त करता
है. ऐसी कंडीशन में
हेल्दी डाइट के लिए
रोजाना 5 से 9 सर्विंग का
लक्ष्य बना लें. अलग-अलग तरह की
फल-सब्जियां खाएं, जिससे शरीर को अलग
तरह के विटामिन और
मिनरल मिल सकें.
लीन प्रोटीन- मजबूत
मांसपेशियों और अच्छे इम्यून
सिस्टम के लिए शरीर
को लीन प्रोटीन की
भी जरूरत होती है. इसके
लिए अपनी डाइट में
फ्रेश चिकन, मछली, अंडे, फलीदार सब्जियां और बादाम को
शामिल करें.
साबुत अनाज- कार्ब्स से आपकी बॉडी
को एनर्जी मिलती है. इसके लिए
आपको ब्राउन राइस या गेहूं
की रोटी खानी चाहिए.
साबुत अनाज में विटामिन-बी के अलावा
फाइबर भी होता है,
जो शरीर में फैट
बढ़ने की समस्या (लिपोडिस्ट्रॉफी)
को रोकता है. एचआईवी में
इसके बड़े साइड इफेक्ट
हो सकते हैं.
हेल्दी फैट- फैट से
शरीर को ऊर्जा मिलती
है, लेकिन इसमें बहुत ज्यादा कैलोरी
होती है. डाइट में
सिर्फ हेल्दी फैट को शामिल
करें. बादाम, वेजिटेबल ऑयल और एवोकाडो
में मौजूद हेल्दी फैट आपके लिए
बिल्कुल सही रहेगा.
कैलोरी का पर्याप्त अमाउंट-
अगर आपका वजन असामान्य
रूप से घट रहा
है तो डॉक्टर आपको
न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट की सलाह दे
सकते हैं. लेकिन कई बार वजन
बढ़ने से दिल की
बीमारियों, डायबिटीज और कैंसर का
खतरा भी बढ़ सकता
है. इसलिए सिर्फ हेल्दी खाएं और पर्याप्त
अमाउंट में ही कैलोरी
लें.
खूब पानी पिएं-
बीमारी होने पर अक्सर
लोगों को प्यास नहीं
लगती है. लेकिन एचआईवी
जैसी घातक बीमारी में
शरीर को रोजाना 8-10 कप
पानी या किसी दूसरे
लिक्विड की जरूर होती
है. ये पानी शरीर
से पोषक तत्वों को
अपना काम करने और
दवाओं को फ्लश करने
का काम करता है.
साथ ही बॉडी को
डीहाइड्रेट होने से बचाता
है और एनर्जी लेवल
भी बढ़ाता है.
शुगर और नमक- एचआईवी में दिल से जुड़ीं बीमारियों का खतरा भी काफी बढ़ जाता है. बहुत ज्यादा शुगर या नमक से आपकी सेहत को नुकसान हो सकता है. आपको अपनी डेली डाइट में शुगर की मात्रा का ध्यान रखना चाहिए. इसके अलावा, आपको रोजाना 2300 मिलीग्राम से ज्यादा नमक भी नहीं खाना चाहिए.
वाराणसी में 196 एचआईवी पॉजिटिव
वाराणसी में पिछले आठ
माह (अप्रैल से नवंबर) में
196 लोग एचआईवी पॉजिटिव हो गए हैं।
इसमें करीब 120 लोगों की उम्र 20 से
40 साल है। विभाग की
ओर से करवाई गई
जांच में संक्रमण की
पुष्टि के बाद इनका
निशुल्क उपचार किया जा रहा
है। चिंता की बात यह
है कि संक्रमित होने
वालों की संख्या बढ़ती
जा रही हैं। चार
साल में 954 लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव
आई है। उधर बीएचयू
परिसर स्थित एआरटी सेंटर में 5100 लोगों का निशुल्क उपचार
चल रहा है। वित्तीय
वर्ष 2022 में 667 पॉजिटिव, 2023 में 595 और इस साल
अप्रैल से नवंबर तक
435 लोग दवा लेने आ
रहे हें। समय-समय
पर काउंसिलिंग के साथ ही
दवाइयां भी दी जा
रही है।
चार साल में एचआईवी पॉजिटिव का आंकड़ा
2021 212
2022 243
2023 303
2024 196 (अप्रैल
से नवंबर तक)
No comments:
Post a Comment