मोदी युग में बढ़ा जनजातीय समुदाय का कद
भारत
के
इतिहास
में
पहली
बार
देश
के
जनजातीय
समुदाय
परिवर्तनकारी
पहलों
की
एक
ऐसी
लहर
का
अनुभव
कर
रहे
हैं,
जो
उन्हें
जीवन
के
सभी
क्षेत्रों
में
पहचान
दिला
रही
है.
साथ
ही
उनका
भी
उत्थान
कर
रही
है.
पिछले
एक
दशक
में
जनजातीय
संस्कृति
की
पहचान
में
और
उत्सव
मनाने
में
उल्लेखनीय
परिवर्तन
देखा
गया
है।
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र
मोदी
की
नीतियों
व
योजनाओं
का
प्रतिफल
है
जिसने
उन्हें
राष्ट्रीय
और
वैश्विक
मंचों
पर
जनजातीय
समुदायों
की
आवाज
बुलंद
की
है।
पहली
बार,
भारत
ने
जनजातीय
कल्याण
हेतु
अपनी
वित्तीय
प्रतिबद्धता
को
रिकॉर्ड
स्तर
तक
बढ़ाया
है.
अनुसूचित
जनजाति
से
संबंधित
विकास
कार्य
योजना
के
लिए
निर्धारित
निधि
में
पांच
गुना
वृद्धि
की
गई
है.
वर्ष
2013-14 में 24,600 करोड़ रुपये
से
कम
रहने
वाली
यह
निधि
2024-25 में अविश्वसनीय रूप
से
बढ़कर
1.23 लाख
करोड़
रुपये
हो
गई
है.
वित्त
पोषण
(फंडिंग)
में
यह
बढ़ोतरी
शिक्षा,
स्वास्थ्य
संबंधी
देखभाल,
आवास
और
अन्य
क्षेत्रों
में
विभिन्न
पहलों
को
प्रोत्साहित
कर
रही
है,
जो
जनजातीय
समुदायों
को
सशक्त
बनाने
की
एक
शक्तिशाली
प्रतिबद्धता
को
दर्शाती
है।
पीएम
मोदी
ने
15 नवंबर
को
जनजातीय
गौरव
दिवस
घोषित
करके
भगवान
बिरसा
मुंडा
को
सम्मानित
किया
है।
वे
झारखंड
के
उलिहातु
में
बिरसा
मुंडा
के
जन्मस्थान
का
दौरा
करने
वाले
पहले
प्रधानमंत्री
हैं।
रांची
में
भगवान
बिरसा
मुंडा
मेमोरियल
पार्क
और
स्वतंत्रता
सेनानी
संग्रहालय,
जिसमें
बिरसा
मुंडा
की
25 फुट
ऊंची
प्रतिमा
है
तथा
अन्य
जनजातीय
स्वतंत्रता
सेनानियों
का
सम्मान,
इस
मान्यता
को
रेखांकित
करता
है।
बिरसा
मुंडा
की
150वीं
जयंती
के
उपलक्ष्य
में,
श्री
विजयपुरम
स्थित
वनवासी
कल्याण
आश्रम
में
उनकी
एक
भव्य
प्रतिमा
स्थापित
की
जाएगी
तथा
स्थापना
से
पहले
प्रतिमा
को
विभिन्न
स्थानों
पर
ले
जाने
के
लिए
एक
“गौरव
यात्रा“
भी
निकाली
जाएगी
भारत 15 नवंबर को जनजातीय गौरव
दिवस है। यह दिन
भगवान बिरसा मुंडा की विरासत को
समर्पित है। वह एक
सम्मानित जनजातीय नेता और स्वतंत्रता
सेनानी थे। यह दिन
न केवल भगवान बिरसा
मुंडा के जन्मदिन का
सम्मान करता है, बल्कि
भारत भर के जनजातीय
समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक
विरासत और योगदान को
भी रेखांकित करता है, जिसे
अतीत में अक्सर अनदेखा
किया जाता रहा है।
लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत
के जनजातीय समुदायों के उत्थान में
हरसंभव कोशिश की है। उनके
सामाजिक विकास का ऐसा रिश्ता
जोड़ा जो अब तक
कायम है। चाहे वह
किसी जनजातीय के घर में
चाय पी रहे हों,
उनके त्योहार मना रहे हों,
या उनके पारंपरिक परिधानों
को गर्व के साथ
पहन रहे हों, हर
मौको पर पिछले तौर-तरीकों के विपरीत, प्रधानमंत्री
मोदी का जनजातीय समुदायों
के साथ जुड़ाव देखा
गया है।
मोदी इकलौते ऐसे
नेता है, जिन्होंने उनकी
कहानियों, कलाओं और नायकों को
लोगों के सामने लाया।
उनके योगदान को राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रमुखता उठाने
का प्रयास किया हैं। मतलब
साफ है सालों की
उपेक्षा के बाद, जनजातीय
लोगों के कल्याण पर
बिल्कुल नए सिरे से
मोदी ने द्वारा किए
जा रहे प्रयास का
ही परिणाम है कि न
केवल अंतरालों को पाट रहा
है, बल्कि उनकी विरासत का
उत्सव मना रहा है.
उनके युवाओं को सशक्त बना
रहा है. उनके लिए
स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक
सुलभ बना रहा है.
उन्हें आर्थिक अवसर भी प्रदान
कर रहा है. इन
महत्वपूर्ण कदमों के माध्यम से
भारत अपने जनजातीय नागरिकों
के साथ अपने संबंधों
को नया आकार दे
रहा है. लंबे समय
से उपेक्षित समुदायों में समृद्धि, सम्मान
और समानता ला रहा है.
यहां उन ऐतिहासिक पहली
बार होने वाले बदलावों
की एक बानगी प्रस्तुत
है, जो एक अपेक्षाकृत
अधिक उज्जवल व अधिक समावेशी
भविष्य का निर्माण कर
रहे हैं.
भारत के जनजातीय
समुदायों के प्रति पीएम
मोदी की प्रतिबद्धता उनकी
विरासत को बढ़ाने, उनकी
विरासत को संरक्षित करने
और उनके योगदान को
राष्ट्रीय आख्यान से एकीकृत करने
के उनके प्रयासों में
परिलक्षित होती है। ये
पहलें जनजातीय समुदायों की गहरी सांस्कृतिक
जड़ों का सम्मान करती
हैं, उन्हें सशक्त बनाती हैं तथा उनकी
बातों और कहानियों को
दुनिया के सामने लाती
हैं। भारत की प्रथम
जनजातीय राष्ट्रपति के रूप में
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का निर्वाचन जनजातीय
समुदायों के उपयुक्त प्रतिनिधित्व
की दिशा में एक
महत्वपूर्ण कदम है, जो
सरकार के उच्चतम स्तर
पर समावेशन और बाधाओं को
तोड़ने का एक शक्तिशाली
संदेश है. राष्ट्रपति के
रूप में श्रीमती द्रौपदी
मुर्मू का नेतृत्व देश
के जनजातीय समुदायों के लाखों लोगों
के लिए आशा और
अवसर का प्रतीक है.
पहली बार, बांस को
एक पेड़ के रूप
में वर्गीकृत किया गया है.
इससे जनजातीय समुदायों को मुक्त रूप
से इसकी खेती करने
की अनुमति मिल गई है.
इस बदलाव ने जनजातीय परिवारों
के लिए आय के
नए स्रोत और स्थायी अवसर
पैदा किए हैं. इस
प्रकार, जनजातीय समृद्धि के लिए बांस
को ‘हरा सोन में
बदल दिया गया है.
धरती आबा जनजातीय ग्राम
उत्कर्ष अभियान के माध्यम से,
पहली बार जनजातीय समुदायों
की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हो
रहा है. इस अभियान
में 63,000 गांव शामिल हैं
और 5 करोड़ जनजातीय लोगों
को लाभ मिल रहा
है. इसका लक्ष्य लाभों
की शत- प्रतिशत संतृप्ति
है. कुल 80,000 करोड़ रुपये के
अभूतपूर्व बजट वाली इस
पहल का उद्देश्य भारत
के जनजातीय क्षेत्रों में समग्र विकास
और सशक्तिकरण प्रदान करना है.
विश्व के राजनेताओं को जनजातीय विरासत से जुड़े उपहार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व
के राजनेताओं को जनजातीय कलाकृतियां
भेंट करके, भारत की आदिवासी
संस्कृति के प्रति वैश्विक
सराहना को बढ़ावा देने
का काम किया है।
उनके संवाद और पहचान को
प्रोत्साहित किया है। डोकरा
कला से जुड़े उत्पाद
धातु की जटिल कारीगरी
और गहरी ऐतिहासिक जड़ों
के लिए जानी जाती
हैं। ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कुक आइलैंड्स और
टोंगा के नेताओं को
डोकरा कलाकृतियां उपहारस्वरूप दी गई हैं।
झारखंड की सोहराई पेंटिंग
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को और मध्य
प्रदेश की गोंड पेंटिंग
ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़
इनासियो लूला दा सिल्वा
को उपहार में दी गई,
जो अपने जीवंत रंगों
और जटिल पैटर्न के
लिए प्रसिद्ध है। उज्बेकिस्तान और
कोमोरोस के नेताओं को
महाराष्ट्र की वारली पेंटिंग
से सम्मानित किया गया।
जीआई टैग के साथ जनजातीय विरासत को बढ़ावा
भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग के माध्यम
से जनजातीय उत्पादों की मान्यता को
गति मिली है, अब
75 से अधिक आदिवासी उत्पादों
को आधिकारिक रूप से टैग
किया गया है। जनजातीय
कारीगरों को सशक्त बनाने
का यह प्रयास सरकार
की “वोकल फॉर लोकल“
पहल के अनुरूप है,
जो पारंपरिक शिल्प को मान्यता प्राप्त
ब्रांडों में बदल रहा
है। वर्ष 2024 में कई वस्तुओं
को जीआई टैग प्राप्त
हुआ, जिसमें असम की बांस
की टोपी, जापी; ओडिशा की डोंगरिया कोंध
शॉल; अरुणाचली याक के दूध
से बना किण्वित उत्पाद,
याक चुरपी; ओडिशा में लाल बुनकर
चींटियों से बनी सिमिलिपाल
काई चटनी और बोडो
समुदाय का पारंपरिक बुना
हुआ कपड़ा, बोडो अरोनई शामिल
हैं। इसके अतिरिक्त, जनजातीय
समुदायों की विविध भाषाओं,
परंपराओं और सांस्कृतिक प्रथाओं
का दस्तावेज तैयार करने, इन्हें संग्रहित करने और इनको
बढ़ावा देने के लिए
300 से अधिक जनजातीय विरासत
संरक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं।
पहली बार, न्यूनतम समर्थन
मूल्य (एमएसपी) का ढांचा जनजातीय
समुदायों के लिए एक
सशक्त उपकरण बन गया है.
यह एमएसपी समर्थन प्राप्त करने वाले लघु
वन उपज वस्तुओं की
संख्या से स्पष्ट होता
है जो 12 वस्तुओं से बढ़कर 87 हो
गई है. इससे जनजातीय
समुदायों को स्थिर आय
के अवसर मिले हैं
और स्थायी संसाधन उपयोग को प्रोत्साहन मिला
है. पहली बार लंबे
समय से प्रतीक्षित मान्यता,
संसाधन और अवसर मुहैया
कराने से हमारे जनजातीय
भाइयों और बहनों का
जीवन हमेशा के लिए बदल
रहा है. दशकों तक
उपेक्षित रखे जाने के
बाद, अब वे भारत
के विकास में सबसे आगे
खड़े हैं और सशक्त
व सुदृढ़ बनकर अपना भविष्य
खुद संवारने को तैयार हैं.
गौरव दिवस भगवान बिरसा मुंडा की विरासत का सम्मान
पीएम मोदी ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस घोषित करके भगवान बिरसा मुंडा को सम्मानित किया है। वे झारखंड के उलिहातु में बिरसा मुंडा के जन्मस्थान का दौरा करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। रांची में भगवान बिरसा मुंडा मेमोरियल पार्क और स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, जिसमें बिरसा मुंडा की 25 फुट ऊंची प्रतिमा है तथा अन्य जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान, इस मान्यता को रेखांकित करता है। बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में, श्री विजयपुरम स्थित वनवासी कल्याण आश्रम में उनकी एक भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी तथा स्थापना से पहले प्रतिमा को विभिन्न स्थानों पर ले जाने के लिए एक “गौरव यात्रा“ भी निकाली जाएगी। वर्ष 2017 में अपनी शुरुआत के बाद से, आदि महोत्सव ने भारत भर में विभिन्न स्थानों पर आदिवासी उद्यमिता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया है, जिसके अब तक 37 कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं। जनजातीय कार्य मंत्रालय के तहत जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ (ट्राइफेड) द्वारा आयोजित इस महोत्सव में 1,000 से अधिक जनजातीय कारीगरों ने भाग लिया है और 300 से अधिक स्टॉल पर जनजातीय कला, कलाकृतियों, हस्तशिल्प और व्यंजनों की समृद्ध विविधता का प्रदर्शन किया गया है। जी20 शिखर सम्मेलन में, जनजातीय कारीगरों को अपने काम के लिए और भी अधिक अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।
जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान
जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को
अब राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता
मिल रही है. उनके
सम्मान में 10 म्यूजियम बनाए गए हैं.
मोदी सरकार ने बिरसा मुंडा,
रानी कमलापति और गोंड महारानी
वीर दुर्गावती जैसे जनजातीय स्वतंत्रता
सेनानियों को सम्मानित किया
है। खासी-गारो, मिजो
और कोल विद्रोह जैसे
आंदोलनों, जिन्होंने भारत के इतिहास
को स्वरुप प्रदान किया है, को
भी मान्यता दी गई है।
भोपाल में हबीबगंज रेलवे
स्टेशन का नाम बदलकर
रानी कमलापति रेलवे स्टेशन और मणिपुर स्थित
कैमाई रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर
रानी गाइदिन्ल्यू स्टेशन कर दिया गया
है। इसके अलावा, पूरे
भारत में स्वतंत्रता सेनानी
संग्रहालय विकसित किए जा रहे
हैं, जिनमें से तीन पहले
ही बनकर तैयार हो
चुके हैंः रांची में
भगवान बिरसा मुंडा जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय, जबलपुर में राजा शंकर
शाह रघुनाथ शाह संग्रहालय और
छिंदवाड़ा में बादल भोई
जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय।
जनजातीय उत्पादों के निर्यात का विस्तार
भारत के जनजातीय
उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय
हो रहे हैं। अराकू
कॉफी ने 2017 में पेरिस में
अपनी पहली ऑर्गेनिक कॉफी
शॉप खोली, जिससे वैश्विक बाजारों में इसका प्रवेश
सुनिश्चित हुआ। इसी तरह,
निर्जलीकरण प्रक्रिया से तैयार छत्तीसगढ़
के महुआ फूलों ने
फ्रांस सहित अंतरराष्ट्रीय बाजारों
में अपनी जगह बना
ली है। खासकर संयुक्त
राज्य अमेरिका में, शॉल, पेंटिंग,
लकड़ी के सामान, आभूषण
और टोकरियाँ जैसे जनजातीय उत्पाद
तेजी से लोकप्रिय हो
रहे हैं। सरकार ट्राइफेड
आउटलेट और राष्ट्रीय व
अंतरराष्ट्रीय ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म
के साथ साझेदारी के
माध्यम से इन प्रयासों
का समर्थन कर रही है।
ट्राइफेड के माध्यम से जनजातीय आजीविका को सशक्त बनाना
नवंबर 2024 तक, ट्राइफेड ने
218,500 से अधिक कारीगर परिवारों
का सशक्तिकरण किया है और
अपने खुदरा नेटवर्क, ट्राइब्स इंडिया के माध्यम से
1,00,000 से अधिक आदिवासी उत्पादों
की बिक्री की सुविधा प्रदान
की है। यह पहल
कारीगरों को व्यापक बाजारों
से जोड़कर, उनके अनूठे शिल्प
को बढ़ावा देकर और स्थायी
आय स्रोत सुनिश्चित करके आजीविका में
वृद्धि करती है।
जनजातीय शिक्षा स्तर में कई गुना वृद्धि
जनजातीय विद्यार्थियों को आखिरकार वे
सभी शैक्षिक अवसर मिल रहे
हैं जिनके वे हकदार हैं.
विद्यालयों में नामांकन 2013-14 में
34,000 से बढ़कर 2023-24 में 1.3 लाख से अधिक
हो गया है. एकलव्य
मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) का विकास इस
बदलाव की आधारशिला रहा
है. केवल एक दशक
में ही इन विद्यालयों
की संख्या लगभग चौगुनी होकर
123 से 476 हो गई है.
ये विद्यालय देश भर के
जनजातीय युवाओं को न केवल
शिक्षित कर रहे हैं,
बल्कि उनकी संभावनाओं में
भी बदलाव ला रहे हैं.
पहली बार सिकल सेल
एनीमिया उन्मूलन मिशन के माध्यम
से, भारत एक ऐसी
स्वास्थ्य समस्या से निपट रहा
है जो जनजातीय समुदायों
को प्रतिकूल रूप से प्रभावित
करता है. पहले ही,
4.6 करोड़ से अधिक लोगों
की जांच की जा
चुकी है और तीन
वर्ष के भीतर 7 करोड़
लोगों तक पहुंचाने का
लक्ष्य है. सिकल सेल
रोग को खत्म करने
का यह मिशन केवल
स्वास्थ्य से ही संबंधित
नहीं है. इसका संबंध
देश की जनजातीय आबादी
के लिए एक स्वस्थ
और अपेक्षाकृत अधिक सुदृढ़ भविष्य
के निर्माण से है. पहली
बार, जनजातीय विद्यार्थियों को व्यापक छात्रवृत्ति
सहायता मिल रही है.
इन छात्रवृत्तियों से अब प्रत्येक
वर्ष 30 लाख से अधिक
विद्यार्थियों को लाभ हो
रहा है. पिछले 10 वर्षों
में छात्रवृत्ति के रूप में
कुल 17,000 करोड़ रुपये का
वितरण हुआ है. ये
छात्रवृत्तियां वित्तीय सहायता से कहीं बढ़कर
हैं. वास्तव में वे जनजातीय
युवाओं के सशक्तिकरण का
मार्ग हैं.
बढ़ी आत्मनिर्भरता
जनजातीय उद्यमिता के विकास को
प्रोत्साहित करने के एक
ऐतिहासिक प्रयास में, 3900 वन धन विकास
केंद्र स्थापित किए गए हैं.
ये केन्द्र लगभग 12 लाख जनजातीय उद्यमियों
को संसाधन प्रदान कर रहे हैं.
ये केन्द्र जनजातीय लोगों को अपने पारंपरिक
कौशल को लाभदायक उद्यमों
में बदलने, आर्थिक आत्मनिर्भरता और नवाचार को
बढ़ावा देने में सक्षम
बना रहे हैं. पीएम-जन मन के
तहत आवास, स्वच्छ पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा
जैसी आवश्यक सेवाएं पहली बार सबसे
कमजोर जनजातीय समूहों तक पहुंच रही
हैं. 75 विशेष रूप से कमजोर
जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) और 45 लाख से अधिक
परिवारों को समर्पित 24,000 करोड़
रुपये से अधिक के
बजट के साथ, यह
पहल दूरदराज के जनजातीय समुदायों
के लिए एक जीवन
रेखा जैसी है. अनुच्छेद
370 के निरस्त होने के साथ,
जम्मू एवं कश्मीर में
अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए अब
शिक्षा और रोजगार के
अवसरों की सुलभता बढ़
गई है, जिससे उनके
उज्जवल भविष्य के द्वार खुल
गए हैं और इस
क्षेत्र में जनजातीय समूहों
के समावेशन को बढ़ावा मिला
है.
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