छठ : सूर्य ही हैं जगत की ‘‘आत्मा’’
सूर्य
ही
जगत्
की
आत्मा
है।
सूर्य
से
ही
पूरी
सृष्टि
है।
यही
वजह
है
कि
हर
कोई
सूर्य
के
सामने
शीश
नवाता
है।
सूर्य
को
अर्घ्य
देने
से
व्यक्ति
के
इस
जन्म
के
साथ
कई
जन्मों
में
किएं
गएं
पाप
नष्ट
हो
जाते
है।
छठ
महोत्सव
मात्र
एक
उत्सव
न
होकर
एक
तपस्या
है।
चार
दिनों
तक
चलने
वाले
इस
पर्व
में
व्रती
सूर्य
नारायण
के
समक्ष
उनकी
प्रसन्नता
हेतु
कठिन
व्रत
रख,
अत्यंत
कठिन
नियमों
का
पालन
करते
हुए
तपस्या
करते
हैं।
यह
सृष्टि
तप
के
प्रभाववश
ही
चल
रही
है।
वैसे
भी
उगते
सूरज
को
पूरी
दुनिया
सलाम
करती
है।
अलबत्ता
डूबते
हुए
सूरज
व
उसके
योगदान
के
वंदन-अभिनन्दन
की
परंपरा
इस्पाती
धागों
से
बुनी
भारतीय
धर्म-दर्शन
की
उजली
चादर
की
छांव
में
ही
पुष्पित
पल्लवित
हो
सकती
है।
इसकी
बड़ी
वजह
है
इस
उदात्त
दर्शन
में
शिव-शव,
जन्म-मृत्यु
व
उदय-अवसान
सबको
एक
दृष्टि
व
समान
भाव
से
स्वीकार
व
अंगीकार
करने
का
माद्दा
सहज
श्रद्धा
के
रूप
में
इसी
में
समाहित
है।
देखा
जाएं
तो
सूर्य
ही
पूरी
दुनिया
के
लिए
प्रत्यक्ष
देवता
है।
इनके
बिना
मानव
तो
दूर
जीव-जंतु
और
पेड़-पौधों
की
उत्पत्ति
ही
संभव
नहीं
है।
चाहे
वो
मर्यादा
पुरुषोत्तम
श्री
राम
रहे
हो
या
श्रीकृष्ण,
बजरंगबलि
से
लेकर
पांडवों
तक
ने
सर्य
की
आराधना
की
थी।
पांडवों
के
वनवास
काल
में
द्रोपदी
की
प्रार्थना
पर
पुत्र
अर्जुन
को
भगवान
सूर्य
ने
ही
अक्षय
पत्र
प्रदान
किया
था।
कृष्ण
के
पोते
शाम्ब
को
कुष्ठ
रोग
हुआ
था
तो
शाक्य
द्वीप
से
वैद्य
बुलाये
गये
थे
जिन्होंने
सूर्य
की
उपासना
का
मार्ग
बताया
था.
‘छठ
पूरब
के
उजाड़
को
थाम
लेने
का
पर्व
है,
छठ
चंदवा
तानने
और
उस
चंदवे
के
भीतर
परिवार
के
चिरागों
को
नेह
के
आंचल
की
छाया
देने
का
पर्व
है।
छठ
दूरदराज
में
बसे
बहंगीदार
को
गांव
के
घाट
पर
खींच
लाने
का
पर्व
है।
मतलब
साफ
है
सूर्य
की
किरणों
से
प्राप्त
होने
वाली
ऊर्जा
के
बिना
इकोसिस्टम
की
कल्पना
भी
नहीं
की
जा
सकती।
यही
वजह
है
कि
सूर्योपासना
का
पर्व
छठ
राष्ट्रीय
पर्व
जैसा
बन
गया
है।
जर्मनी,
अमेरिका,
आस्ट्रेलिया,
जापान
सहित
पूरी
दुनिया
में
छठ
मनाया
जाने
लगा
है
सुरेश गांधी
इस ग्लोबल दुनिया में छठ अर्थात सूर्योपासना की धार्मिक-सांस्कृतिक मान्यताएं एवं स्थापनाएं भी पूर्ववत हैं। सूर्योपासना का यह पर्व अपने भीतर कई किंवदंतियों को समेटे है। पौराणिक कथाओं में भी भगवान भास्कर को अर्घ देने का जिक्र मिलता है। तब से अब तक जमाना चाहे जितना बदल गया हो, छठ करने के तरीके में कोई बदलाव नहीं आया है। न मंत्र न पुरोहित, बल्कि प्रकृति के नेमत के साथ हम डूबते और उगते सूर्य के सामने समर्पण करते हैं। भला क्यों नहीं, सूर्य ही एकमात्र ऐसे जागृत देवता है साक्षात दिखते हैं। सात घोड़ों पर सवार होकर अरुणिमा फैलाता पृथ्वी पर आता है सूर्य। दिनकर, दीनानाथ, मार्तंड होता हुआ दिवाकर अवसान की ओर बढ़ जाता है, कल पुनः लौटने के लिए।
कोणार्क का सूर्य मंदिर तो इसका जीता जागता उदाहरण है। मानव हो या पशु-पक्षी अंधकार छटने और सूर्योदय की लालिमा देखने से शुरु होती दिनचर्या शाम ढलने पर ही खत्म होती है। इसी के सहारे सारे प्राणी सोते-जागते पूरी सृष्टि का नजारा देखते हैं। यह साथ होता है तो सबकुछ साफ-साफ दिखता है, नहीं होता तो कुछ भी नहीं, लेकिन यह वश में नहीं हैं। इसकी कृपा हो सकती है - धरती पर, जल और जमीन पर, लेकिन इस पर कोई कृपा नहीं की जा सकती। या यूं कहे सूर्य से ही सारी सृष्टि चल रही है। सब कुछ सूर्य पर निर्भर है। प्रकाश ही नहीं, जीवन भी देता है सूर्य। यही खासियत और अनुशासन सूर्य को देवता बनाता है। यही वजह है कि चर-अचर समेत पूरे कायनात में सबसे पूज्नीय देवताओं में से एक है भगवान सूर्य।
सूर्य अदम्य है, अथाह है, अक्षुण्य है। उसका होना पृथ्वी और चंद्र सहित सभी ग्रहों-उपग्रहों के लिए अनिवार्य हैं। वह न हो तो कोई भी ग्रह पिंड में तब्दील में हो जाये। लोकजन में भी सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाता है। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने और निरोग करने की क्षमता पायी जाती है। हमारे शरीर की हड्डियों को मजबूत करने वाला विटामिन डी सूर्य की किरणों से ही मिलता है। हमारी आंखों की रेटिना में सूर्य की किरणें पहुंचकर मस्तिष्क के सेरोटोनिन व मेलोटोनिन को बढ़ाता है. सेरोटोनिन एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो हमारे मन को प्रसन्न रखता है और हमारी भावनाओं को सकारात्मक. सूर्य से ही ऋतु चक्र चलता है। सूर्य से ही पृथ्वी, अग्नि, जल व वायु आदि पोषण पाते है। वैज्ञानिक भी बताते हैं कि सूर्य के प्रकाश से ही हम ‘तनावमुक्त’ होते है. माना जाता है कि ऋषि-मुनियों ने छठ के दिन इसका प्रभाव विशेष पाया और यहीं से छठ पर्व की शुरुआत हुई। ऐसे प्रत्यक्ष देवता की पूजा भला कौन नहीं करना चाहेगा।
इस भावबोध ने उदीयमान सूर्य
यदि तिमिर के विजेता के
रूप में पूजित है
तो वहीं अस्ताचलगामी सूर्य
हर रात के बाद
की नई अरुणिमा, नये
सूरज की नूतन आशाओं
के संदेशवाहक के रूप में
अर्चनीय है। स्वर्णिम रश्मियों
के तेजोमय आभामंडल से घिरा सुबह
का सूरज यदि तरुणाई
के प्रखर प्रतिमान के रूप में
अभिनंदनीय तो पश्चिम के
क्षितिज में विलीन होने
को उद्यत दिन भर का
थका-हारा शाम का
बूढ़ा सूरज उस पुरखे
के रूप में वंदनीय
है जिसने अपने कुल-वंश
के योग-क्षेम के
लिए अपना सब कुछ
वार दिया। स्वयं की ऊर्जा का
तिल-तिल अपनों की
शक्ति संवर्धन पर निसार दिया।
छठ धार्मिक ही नहीं बल्कि
वैज्ञानिक दृष्टि से भी काफी
महत्वपूर्ण है। षष्ठी तिथि
(छठ) एक विशेष खगौलीय
अवसर होता है। इस
समय सूर्य की पराबैगनी किरणें
पृथ्वी की सतह पर
सामान्य से अधिक मात्रा
में एकत्र हो जाती हैं।
उसके संभावित कुप्रभावों से रक्षा करने
का सामर्थ्य इस परंपरा में
रहा है।
पर्व की महत्ता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि भारत ही नहीं विदेशी जमीन पर भी छठी मइया की अपरंपार महिमा गूंज रही है। आस्था और विश्वास की ही तकाजा है कि सात समुंदर पार छठी मइया के गीत सुनाई दे रहे है। यह एक ऐसा पर्व है जो परिवार को एकजुट करने का संदेश तो देता ही है, सामूहिकता का भी परिचायक है। जर्मनी, आस्ट्रेलिया, कैलीफोर्निया, कनाडा, अमेरिका, जापान, सिंगापुर, चीन, फ्रांस, न्यूजर्सी, बंग्लादेश सहित पूरी दुनिया में आस्थावान छठ महापर्व का अनुष्ठान कर रहे हैं। कहीं सामूहिक तो कहीं घर में भी पूजा अर्चना की तैयारी है। इंग्लैंड के लीड्स टेंपल में 400 से अधिक परिवार एक साथ छठ पूजा करने की तैयारी की है। वहां एक ही जगह पर महाप्रसाद बनेगा।
इसकी पैकिंग की जाएगी, ताकि
उन लोगों तक यह प्रसाद
पहुंचा जा सके जो
इस पूजा में शामिल
नहीं हो सके हैं।
मकसद है अपने संस्कृति
और प्रथाओं से उनके बच्चे
भी जुड़े। नॉर्थ अमेरिका में भी धूमधाम
से छठ मनाया जा
रहा है। बता भारत
की किया जाएं तो
यह बिहार से होता हुआ
अब पूरे उत्तर प्रदेश,
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, गुजरात, उड़ीसा और नेपाल तक
छठ पूजा फैल चुका
है। लोग पूरी आस्था
से छठ पर्व मनाने
में जुटे है। पूरे
सोशल मीडिया में छठ की
धूम है। वैसे भी
दुनिया का कोई कोना
नहीं है जहां सूर्य
को पूजा ना गया
हो। मिस्र के राजाओं के
लिए सूर्य पूजा का सामान्य
स्रोत भारत ही था।
ऋग्वेद की ऋचाओं में
सूर्य के विषय में
जो कुछ दर्ज है,
वो कहीं और नहीं
मिलता नहीं। दूसरी सभ्यताओं में भी सूर्य
पूज्यनीय है, नाम भले
अलग-अलग हो।
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः।।
अर्थात हे सूर्यदेव! आप
ब्रह्मा, विष्णु और महेश के
ईश हैं। सौर मंडल
में आपकी ही द्युति
है, वह आपसे ही
प्रकाशित है। सर्वभक्षी, रौद्र
रूप धारण करने वाली
अग्नि आपका ही रूप
है और आपके उग्र
रूप को नमन है।
इस श्लोक द्वारा सूर्य की स्तुति करते
हुए श्रीराम उन्हें नमन कर रहे
हैं। प्रसंग है कि रावण
से युद्ध करते हुए श्रीराम
थक गए और उस
समय उस युद्ध को
देखने आए महर्षि अगस्त्य
ने श्रीराम में नव ऊर्जा
का संचार करने के लिए
उन्हें सूर्य की स्तुति, आदित्य
हृदय स्तोत्र के माध्यम से
करने की आज्ञा दी
और उसे करने के
उपरांत श्रीराम युद्ध में विजयी हुए।
सूर्य के कारण ही
सृष्टि फल-फूल रही
है। जिन पंच महाभूतों-
धरती, आकाश, वायु, अग्नि और जल से
ब्रह्मांड रचा गया है,
उन सबका संचालन सूर्य
करते हैं और अग्नि
सूर्य का ही अंश
है। इस कारण वेद
में सूर्य को पहला रुद्र
(हिरण्यगर्भ) कहा गया है।
यह हिरण्य गर्भ तीनों लोकों
(भूः, भुवः और स्वः)
में स्थित है। भूः का
अर्थ है पृथ्वी लोक,
भुवः का अर्थ है
अन्तरिक्ष लोक और स्वः
का अर्थ है स्वर्ग
लोक। सूर्य
से ही पृथ्वी पर
जीवन है, प्रकाश है।
हमारी आत्मा में जो प्रकाश
है, वह भी सूर्य
का ही प्रतिबिम्ब है।
वैदिक ऋषि सूर्य से
प्रार्थना करते हैं ‘आप
हमारी बुराइयों और पापों को
नष्ट करें एवं मंगल
का पथ प्रशस्त करें।’
ईशावास्य उपनिषद् में सूर्यदेव की
स्तुति पुरुष रूप में की
गई है- हे पुष्टि
देने वाले, अनोखे नियम वाले, प्रजाओं
के पति सूर्यदेव, आपकी
किरणों का समूह चारों
ओर फैल रहा है,
जिस कारण आप प्रकृति
ही मालूम पड़ रहे हैं।
अपनी किरणों का माया जाल
समेटिए, जिससे मैं आपके पुरुष
रूप का दर्शन कर
पाऊं।
सर्य की बहन है छठ माता
छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। छठ को सूर्य देवता की बहन माना जाता है। छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति व धन-धान्य से संपन्न करती हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है। छठ पर्व सूर्य की ऊर्जा की महत्ता के साथ जल और जीवन के संवेदनशील रिश्ते को पुष्ट करता है। पूजा के दौरान महिलाएं अपने गीतों के माध्यम से भगवान भास्कर और छठी मइया के कृत्यों का बखान करती हैं। गीत गाने की यह परंपरा सीधे तौर पर हमारी संस्कृति और सभ्यता की पहचान है। उपनिषद् काल की यह प्रार्थना सूर्य षष्ठी पूजा में साकार हो जाती है।
गौर
करने की बात यह
है कि, सूर्योदय व
सूर्यास्त के समय सूर्य
अपनी किरणें समेट लेते हैं।
इस पूजा में पुरुष
रूप में सूर्य को
दीनानाथ एवं स्त्री रूप
में छठी मैया कह
कर सम्बोधित किया जाता है।
छठ को लेकर कई
पौराणिक कहानियां कही-बताई जाती
हैं। जैसे ये, ‘कृष्ण
के बेटे शाम्ब को
अपने शरीर-बल पर
बड़ा अभिमान था। कठोर तप
से कृशकाय ऋषि दुर्वासा कृष्ण
से मिलने पहुंचे, तो शाम्ब को
हंसी आई कि देह
है या कांटा। तो
शाम्ब को ऋषिमुख से
श्राप मिला- जा, तेरे शरीर
को कुष्ठ खाये। शाम्ब को रोग लगा,
दवा काम न आयी,
तो किसी ने सूर्याराधन
की बात बतायी। शाम्ब
रोगमुक्त हुआ और तभी
से काया को निरोगी
रखने के लिए सूर्यपूजा
मतलब छठपूजा की रीत चली।’
दूसरी कथा यह भी
है कि लंका-विजय और वनवास
के दिन बिता कर
राम जिस दिन अयोध्या
लौटे उस दिन अयोध्या
नगरी में दीये जले,
पटाखे फूटे, दीवाली हुई। वापसी के
छठवें दिन यानी कार्तिक
शुक्ल षष्ठी को रामराज की
स्थापना हुई। राम और
सीता ने उपवास किया,
सूर्य की पूजा की,
सप्तमी को विधिपूर्वक पारण
करके सबका आशीर्वाद लिया
और तभी से रामराज
स्थापना का यह पर्व
छठ अस्तित्व में आया।
लोकगीतों से है छठ की महत्ता
छठ पंडित जी की ‘पोथी‘ से नहीं, पंडिताइन के ‘अंचरा’ से जुड़ा है। कर्मकांड से नहीं, बल्कि लोकगीतों से जुड़ा है जिसमें न जाने कब से एक सुग्गा केले के घौंद पर मंडरा रहा है। छठ हर जाति-समुदाय के लोग मनाते हैं। उगते और डूबते सूरज को पानी में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है. डाला में घर में तैयार किए गए पकवान और इस मौसम में उपलब्ध फल चढ़ाए जाते हैं। कहा जा सकता है छठ प्रकृति की पूजा-आराधना है। खरना के दिन गेहूं की रोटी पर चावल की खीर का प्रसाद और इसके अगले दो दिन नदी, तालाब में खड़े होकर शाम और सुबह के वक्त सूरज की आराधना। हर काम खुद से करना। जैसे प्रसाद के लिए पकवान बनाना। पूजा के लिए नदी के घाट को बनाना। निपना और उसे सजाना। छठ-गीतों में ‘छठी मइया’ के अलावा जिसे सर्वाधिक संबोधित किया गया है, वे हैं ‘दीनानाथ’। दीनों के ये नाथ सूर्य हैं। बड़े भरोसे के नाथ, निर्बल के बल! क्योंकि उन्हें पूजने में निर्धन से निर्धन व्यक्ति को भी केवल एक अंजुरी जल की जरूरत होती है।
सूर्य प्रत्यक्ष अनुभव के देव हैं। उनके दर्शन और स्पर्श को मनुष्य अनुभूत करता है। उनसे निरंतर ऊर्जा पाता है। उनके उगने और डूबने से जीवन का क्रिया-व्यापार निर्धारित होता आया है। रात काटना मुश्किल रहता आया है, क्योंकि किसी भी विपदा का निदान सूरज उगने पर ही संभव होता दिखता रहा है। यही वजह रही है कि भारत जैसे आध्यात्मिक देश में डूबते सूरज की भी पूजा होती है। हालांकि समाज में कहावत तो यह है कि सब उगते सूरज को ही पूजते हैं, लेकिन छठ जैसे व्रत में डूबते सूरज का महात्म्य बहुत है। छठ पर्व के समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है।
गीत को मंत्र बना जड़ परम्परा
को तोडऩे वाला लोक पर्व
छठ के बारे में यह कहा जाता है और सिर्फ कहा ही नहीं जाता, स्पष्ट नजर भी आता है कि यही एक मात्र त्योहार है, जिस पर आधुनिकता हावी नहीं हो पा रही या कि आधुनिक बाजार इसे अपने तरीके से, अपने सांचे में ढाल नहीं पा रहा. पुरबिया इलाके की पहचान का छठ पर्व जिस इलाके से उभरा, उस इलाके में जात-पात का भेद गहरा रहा है। छठ पर्व ने हमेशा से सामाजिक विषमताओं को तोडऩे का काम किया है। इस पर्व के दौरान गीतों का महत्त्व भी कम नहीं है। इसके गीत शास्त्र और मंत्र, दोनों भूमिका निभाते हैं। जब छठ के गीतों को पर्व के शास्त्र और मंत्र दोनों कह रही हूं तो यह आजकल यूट्यूब पर भारी संख्या में मौजूद या हर साल सैकड़ों बन रहे गीतों से पता नहीं चलेगा, बल्कि इसके लिए छठ व्रतियों द्वारा घाट पर गाए जाने वाले गीतों को सुनना होगा। या फिर शारदा सिन्हा, बिंध्यवासिनी देवी जैसी सिरमौर कलाकारों के गाए गीतों को, जिन्होंने छठ के मूल गीतों में नवाचार कर देश-दुनिया में फैलाया। इन गीतों को जब गौर से सुनिएगा तो मालूम होगा कि हर गीत में स्त्री की ही इच्छा-आकांक्षा और स्वर हैं। चाहे गीतों में इष्टदेव सूर्य या छठी मइया से कुछ मांगने वाला गीत हो, दो तरफा संवाद वाला गीत हो या महिमा गान वाला गीत हो, पारम्परिक छठ गीतों में से अधिकांश गीत इन्हीं भावों पर आधारित हैं।
छठ के त्योहार में गीतों की भूमिका अहम होती है, इसलिए गीतों के जरिए जब छठ को समझने की कोशिश करेंगे तो लगेगा कि छठ तो एक ऐसा पर्व है, जिसे कहा तो जाता है परम्परागत लोक पर्व लेकिन यह तेजी से जड़ परंपराओं को तोडऩे वाला पर्व भी है। छठ के गीत बताते हैं कि यह त्योहार स्त्रियों का ही रहा है। अब भी स्त्रियां ही बहुतायत में इस त्योहार पर व्रत करती हैं लेकिन तेजी से पुरुष व्रतियों की संख्या भी बढ़ रही है। पुरुष भी उसी तरह से नियम का पालन करते हैं, उपवास रखते हैं, पूरा पर्व करते हैं। इस तरह से देखें तो छठ संभवत: इकलौता पर्व ही सामने आएगा, जो स्त्रियों का पर्व होते हुए भी पुरुषों को आकर्षित कर रहा है। इतना कठिन पर्व होने के बावजूद पुरुष, स्त्रियों की परम्परा का अनुसरण कर रहे हैं। बहरहाल, बात गीतों पर। यह समझने की कोशिश हमेशा रही कि आखिर जिस पर्व में गीत ही उसके मंत्र होते हैं, गीत ही शास्त्र तो उन गीतों को जिस लोकमानस ने रचा होगा, उसमें क्या-क्या खास तत्व हैं? सबमें समानता क्या हैं? छठ में उसके गीत ही शास्त्र और मंत्र होते हैं, यह तो एक बात होती है, गीतों में ही यह तलाशने की कोशिश भी कर रही थी कि आखिर मूल रूप से स्त्रियों और सामूहिकता के इस लोकपर्व के गीतों में सामूहिकता और स्त्री कितनी है? रुनुकी-झुनुकी के बेटी मांगिला… या पांच पुतर अन-धन-लछमी, लछमी मंगबई जरूर… जैसे पारंपरिक गीतों में छठ पर्व के जरिए संतान के रूप में भी बेटी पाने की कामना पीढिय़ों से रही है।
छठ के गीतों से इस पर्व को समझें तो व्रती स्त्रियां सिर्फ एक संतान की मांग को छोड़ दें तो अपने लिए कुछ नहीं मांगती। उनकी हर मांग में पूरा घर शामिल रहता है। पति के निरोगी रहने की मांग करती हैं, संतानों की समृद्धि की कामना करती हैं लेकिन अपने लिए कुछ कामना नहीं। छठ के गीतों से बारीकी से गुजरने पर यह भी साफ-साफ दिखा कि यह किसी एक नजरिए से ही पूरी तरह से लोक का त्योहार नहीं है, बल्कि हर तरीके से विशुद्ध रूप से लोक का ही त्योहार है।
छठ के गीतों में एक और आश्चर्यजनक बात है कि कहीं भी मोक्ष की कामना किसी गीत का हिस्सा नहींं है। लोक की परम्परा में मोक्ष की कामना नहीं है। यह तो एक पक्ष हुआ। दूसरी कई ढेरों बातें भी छठ के गीत में हैं। इसकी एक और बड़ी खासियत यह है कि इसमें परस्पर संवाद की प्रक्रिया चलती है। पारम्परिक लोकगीत लोक और परलोक के इस सहज-सरल रिश्ते को खूबसूरती से दिखाते हैं। बाकी छठ गीतों का एक खूबसूरत पक्ष यह तो होता ही है कि इसमें प्रकृति के तत्व विराजमान रहते हैं। सूर्य, नदी, तालाब, कुआं, गन्ना, फल, सूप, दउरी, यही सब तो होता है छठ में और ये सभी चीजें या तो गांव-गिरांव की चीजें हैं, खेती-किसानी की चीजें हैं या प्रकृति की।
छठ के बारे में यह कहा जाता है और सिर्फ कहा ही नहीं जाता, स्पष्ट नजर भी आता है कि यही एक मात्र त्योहार है, जिस पर आधुनिकता हावी नहीं हो पा रही या कि आधुनिक बाजार इसे अपने तरीके से, अपने सांचे में ढाल नहीं पा रहा। ऐसा नहीं हो पा रहा तो यकीन मानिए कि इसमें सबसे बड़ी भूमिका पारम्परिक छठ गीतों की है, जो मंत्र और शास्त्र बनकर, लोकभाषा, गांव, किसान, खेती, प्रकृति को अपने में इस तरह से मजबूती से समाहित किए हुए हैं कि इसमें बनाव के नाम पर बिगाड़ की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं बचती।
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