Saturday, 9 November 2024

रवि योग में मनेगा अक्षय नवमी, बरसेंगी विष्णु संग मां लक्ष्मी कृपा

रवि योग में मनेगा अक्षय नवमी, बरसेंगी विष्णु संग मां लक्ष्मी कृपा 

जगह-जगह होगी आवला वृक्ष की पूजा, पेड़ के नीचे भोजन करने से मिलेगा अमृत

सुरेश गांधी

वाराणसी। कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी मनाया जाता है। इस साल अक्षय नवमी 10 नवंबर को है. इस दिन आवला वृक्ष की पूजा की जाती है. आंवला नवमी या अक्षय नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा करने की परंपरा है। कहते है इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने से अमृत मिलता है. ऋग्वेद के अनुसार, इस दिन सतयुग आरम्भ हुआ था. इसलिए इस दिन व्रत, पूजा, तर्पण और दान का विविशेष महत्व है.

आंवला नवमी को ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियां छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था. इसी दिन से वृंदावन की परिक्रमा भी प्रार परिक्रमा भी प्रारंभ होती है। इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य अक्षय फल देता है यानी उसका शुभ प्रभाव कभी कम नहीं होता. अक्षय नवमी जगत के पालनकर्ता भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है. इसलिए इस शुभ अवसर पर विशेष समय पर लक्ष्मी-नारायण की पूजा करने से सभी दुख और परेशानियां दूर हो जाती हैं और अपार लक्ष्मी की प्राप्ति होती है. कहते है जो लोग इस तिथि पर आंवले की पूजा करते हैं, उन पर विष्णु जी और महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। यह पर्व प्रकृति का सम्मान करने का संदेश देता है। पेड़-पौधों से ही हमारा जीवन है और हमें इनकी पूजा करनी चाहिए यानी इनकी रक्षा करनी चाहिए।

शुभ मुहूर्त

10 नवंबर को अक्षय नवमी के दिन दुर्लभ ध्रुव योग बन रहा है, जो 11 नवंबर को देर रात 1 बजकर 42 मिनट पर समाप्त होगा. ऐसे में व्रत करने वाले जातक 10 नवंबर को सूर्योदय के बाद कभी भी पूजा कर सकते हैं. अक्षय नवमी के दिन बहुत शुभ संयोग बन रहा है. सूर्य तुला राशि में संचरण करेंगें, मंगल कर्क राशि में,बुध वृश्चिक राशि में गुरु वृष राशि में शुक्र धनु राशि में शनि कुंभ राशि में बैठकर शशयोग का निर्माण हुआ है राहु मीन राशि में केतू तुला राशि में चंद्रमा मीन राशि में संचरण करेंगें जिसे अक्षय नवमी बहुत प्रभावी बन गया है.

पौराणिक मान्यताएं

कथनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी पर देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ ही शिव जी पूजा करना चाहती थीं। देवी लक्ष्मी ने सोचा कि विष्णु जी को तुलसी प्रिय है और शिव जी को बिल्व पत्र प्रिय है। तुलसी और बिल्व पत्र के गुण एक साथ आंवले में होते हैं। ऐसा सोचने के बाद देवी लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ को ही भगवान विष्णु और शिव जी का स्वरूप मानकर इसकी पूजा की। देवी लक्ष्मी की इस पूजा से विष्णु जी और शिव जी प्रसन्न हो गए। विष्णु जी और शिव जी देवी लक्ष्मी के सामने प्रकट हुए तो महालक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे ही विष्णु जी और शिव जी को भोजन कराया। इस कथा की वजह से ही कार्तिक शुक्ल नवमी पर आंवले की पूजा करने की और इस पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने परंपरा है। एक मान्यता ये भी है कि अक्षय नवमी पर महर्षि च्यवन ने आंवले का सेवन किया था। आंवले के शुभ असर से च्यवन ऋषि फिर से जवान हो गए थे। आयुर्वेद में कई रोगों को ठीक करने के लिए आंवले का इस्तेमाल किया जाता है। आंवले का रस, चूर्ण और मुरब्बा ये सभी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद हैं। आंवले के नियमित सेवन से अपच, कब्ज, गैस जैसी दिक्कतें दूर हो जाती हैं।

पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें. इसके बाद आंवले के वृक्ष का पूजन आरंभ करें. सबसे पहले आंवले के पेड़ पर गंगाजल अर्पित करें. फिर रोली, चंदन और पुष्प अर्पित करें. फिर आंवले के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाएं. कच्चे सूत या मौली के धागे को तने पर 8 बार लपेटें. फिर पेड़ की 7 बार परिक्रमा लगाएं. परिक्रमा लगाने के बाद पेड़ की जड़ में फल मिठाई चढ़ाएं. इस दिन जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े, फल और धन का दान करना अक्षय पुण्य का कारण बनता है. मान्यता है कि इस दिन किए गए दान का फल अनंत काल तक मिलता है और इससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. खासकर गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करना अत्यधिक लाभकारी माना गया है. इस दिन गाय को आहार देना, आंवले का दान करना और घर में बने हुए भोजन को गरीबों में बांटना पुण्यकारी होता है. इस प्रकार के दान-पुण्य से व्यक्ति की समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है. अक्षय नवमी पर पितरों को भोजन, वस्त्र और कंबल का दान करना चाहिए. नदियों, झीलों, तटों या तीर्थों में स्नान करने से अक्षय पुण्य मिलता है.

अक्षय नवमी का महत्व

सनातन धर्म में अक्षय नवमी का बहुत ही महत्व बताया गया है इस दिन दान करने मनोकामना की पूर्ति होती है इस दिन गुप्त दान करना बहुत ही शुभ होता है इन्हे कुष्मांडा नवमी कहा जाता है.भगवन विष्णु ने कुष्मांडा नामक राक्षस को अत्याचार को रोका था नवमी के दिन आवले के पेड़ के निचे कुष्मांडा के अंदर कुछ द्रव्य डालकर दान करने से ग्रह दोष दूर होता है ब्राह्मण को सोना चांदी वस्त्र का दान करने से अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल मिलता है.

प्राकृतिक का पूजन है अक्षय नवमी

मूलतः जितने भी पूजा पाठ है उसमें देवी देवता के साथ प्राकृतिक पूजन का विशेष ध्यान दिया जाता है. व्रत त्यौहार में प्रकृति पुजन करने से प्रकृति के सौंदरता को बचाया जाता है.सनातन धर्म में प्रकृति पूजा का विशेष महत्व है.पेड़-पौधे, जीव-जंतुओं के लिए प्राणदायी स्त्रोत हैं. प्राकृतिक पूजन से वयोक्ति अपने जीवन को सुरक्षित रख सकते है. इसलिए हम अक्षय नवमी के दिन आवले के वृक्ष का पूजन करते है.आंवला हमारे स्वास्थ के लिए लाभकारी होता है.आंवला का उपयोग करने से शरीर का रोगप्रतिरोधक क्षमता मजबूत होता है.

 

No comments:

Post a Comment

आत्मनिर्भर, सुरक्षित और समृद्ध, स्वदेशी, युवा, किसान और सुरक्षा की गूंज

आत्मनिर्भर , सुरक्षित और समृद्ध , स्वदेशी , युवा , किसान और सुरक्षा की गूंज  लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन एक संदे...