Sunday, 23 February 2025

149 साल बाद महाशिवरात्रि पर बना महासंयोग, मिलेगा स्वर्ग का आर्शीवाद

149 साल बाद महाशिवरात्रि पर बना महासंयोग, मिलेगा स्वर्ग का आर्शीवाद  

इस सृष्टि के संहारकर्ता देवों के देव महादेव हैं, जिन्हें भोलेनाथ, शिवशंभू, भगवान शिव नामों से जाना जाता है। कहते है उन्हें खुश कर स्वर्ग जैसा आर्शीवाद पाने का दिन महाशिवरात्रि है। या यूं कहे महाशिवरात्रि भगवान शिव की आराधना का सबसे महत्वपूर्ण दिन है. हर साल यह पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दश तिथि को मनाया जाता है. दरअसल, चतुर्दशी तिथि भगवान शिव को समर्पित है और इस दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है। कहते है महाशिवरात्रि के दिन जो लोग भगवान शिव का पूजन करते हैं, भगवान भोलेनाथ उन पर विशेष कृपा बरसाते हैं. इस दिन महिलाएं जीवन में सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, जिसका पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है. मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ और देवी पार्वती की पूजा करने से साधक के कष्टों का निवारण होता है और उसके भाग्य में भी वृद्धि के योग बनते है. इस बार महाशिवरात्रि 26 फरवरी, बुधवार को है। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी को सुबह 11 बजकर 08 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 27 फरवरी को सुबह 8 बजकर 54 मिनट पर होगा. खास यह है कि महाशिवरात्रि पर 149 साल बाद विशिष्ट संयोग बन रहा है, इसमें शिव संग शनि देव की कृपा भी बरसेगी और धन के कारक ग्रह शुक्र का भी साथ मिलेगा. इस बार शिवरात्रि के दिन सूर्य, बुध और शनि एक साथ कुंभ राशि में स्थित रहेंगे. तकरीबन 149 साल बाद इन तीनों ग्रहों की युति और महाशिवरात्रि का योग का संयोग बन रहा है. सुख, समृद्धि और शांति के योग बन रहे हैं. आने वाले समय में सनातनी पूरे विश्व में सकारात्मक फैलाने का काम करेंगे. सर्वे भवन्तु सुखिनः का संदेश फैलाएंगे। इस दिन अमृत स्नान जैसा महासंयोग होने से महाकुंभ में स्नान से सभी कष्ट दूर होते हैं. इसके अलावा मां गंगा के साथ भगवान शिव का भी आशीर्वाद मिलता है. महाकुंभ स्नान से पाप मिट जाते हैं. कुंडली में मौजूद पितृदोष भी दूर हो जाते हैं. ऐसा संयोग 1873 में बना था, उस दिन भी बुधवार को शिवरात्रि मनाई गई थी. उस दिन भी धनिष्ठा नक्षत्र, परिघ योग, शकुनी करण और मकर राशि के चंद्रमा की मौजूदगी थी। सूर्य और शनि पिता-पुत्र हैं और सूर्य शनि की राशि कुंभ में रहेंगे. यह एक विशिष्ट संयोग है, जो लगभग एक शताब्दी में एक बार बनता है, जब अन्य ग्रह और नक्षत्र इस प्रकार के योग में विद्यमान होते हैं. ज्योतिषियों की मानें तो इस प्रबल योग में की गई साधना आध्यात्मिक और धार्मिक उन्नति प्रदान करती है. पराक्रम और प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए सूर्य-बुध के केंद्र त्रिकोण योग का बड़ा लाभ मिलता है. इस योग में विशेष प्रकार से साधना और उपासना की जानी चाहिए. इस खास दिन पर आसमान में 7 ग्रह परेड करते दिखाई देंगे. यह अद्भुत और दुर्लभ खगोलीय घटना महाकुंभ के अंतिम स्नान को और भी खास बना देगी. इस दिन बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून एक साथ दिखाई देंगे. इसकी वजह से इस दिन का संगम स्नान कई मायने में अहम रहेगा. ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव कम होंगे. विश्व में शांति, सद्भाव और खुशहाली आएगी

सुरेश गांधी 

जी हां, महादेव की आराधना के लिए महाशिवरात्रि का दिन अत्यंत शुभ माना जाता है. पूरे साल भगवान शिव से जुड़े कई व्रत और पर्व मनाए जाते हैं, लेकिन उनमें महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है. यह शिव भक्तों के लिए सबसे बड़े उत्सवों में से एक है, जिसमें श्रद्धालु भगवान शिव और माता पार्वती की विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं. इस साल महाशिवरात्रि 26 फरवरी, बुधवार को मनाया जाएगा. इस दिन भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक सुबह 1108 बजे से शत्रु नाशक, परिघ योग और शुभ चौघड़िया में प्रारंभ होगा. धार्मिक ग्रंथ निर्णयसिंधु, धर्मसिंधु, स्कंद पुराण, लिंग पुराण और नारद संहिता के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि, जो आधी रात से पहले और बाद में होती है. वहीं महाशिवरात्रि के व्रत के लिए उपयुक्त मानी जाती है. अगर यह तिथि प्रदोष काल के समय हो, तो इसे अत्यंत शुभ माना जाता है. महाशिवरात्रि के दिन महादेव का जलाभिषेक का विशेष महत्व है. इस दिन सुबह 6 बजकर 47 बजे से सुबह 9 बजकर 42 बजे तक जल चढ़ाया जा सकता है. इसके बाद मध्यान्ह काल में भी सुबह 11 बजकर 06 बजे से लेकर दोपहर 12 बजक. 35 बजे तक जल चढ़ाया जा सकता है. फिर, दोपहर 3 बजकर 25 बजे से शाम 6 बजकर 08 बजे तक भी जलाभिषेक किया जा सकता है. और आखिरी मुहूर्त रात में 8 बजकर 54 मिनट पर शुरू होगा और रात 12 बजकर 01 बजे तक रहेगा. महाशिवरात्रि पर इस साल 24 घंटे शुभ मुहूर्त रहेगा. ग्रहों की ऐसी शुभ युति भी बनेगी, जिससे कुंभ स्नान का महत्व बढ़ जाएगा। 

ग्रहों और नक्षत्रों के विशेष संयोग के चलते इस बार की शिवरात्रि बेहद पुण्यदायक बताई जा रही है. प्रयागराज महाकुंभ में तो इसका महत्व और भी कई गुना बढ़ गया है. ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक, महाकुंभ में महाशिवरात्रि पर मौनी अमावस्या से भी बेहतर विशेष संयोग बन रहा है. इस बार सूर्य का चुंबकीय प्रभाव बहुत ही दिव्य है. ऐसा दैवीय संयोग सैकड़ो सालों के बाद बन रहा है. इस बार की महाशिवरात्रि पर चतुर्ग्रहीय योग बन रहा है. इसमें शिवयोग भी शामिल है. महाशिवरात्रि पर शिवयोग बेहद फलदायक और कल्याणकारी होता. इस बार सारे ग्रह एलाइंड (संरेखित) हो रहे हैं. ग्रहों की ऐसी अद्भुत युति पहले शायद ही कभी आई हो. इस बार सारे ग्रह शुभ राशियों में है. इससे दुनिया में सुख शांति होगी. ग्रहों और नक्षत्रों का खास संयोग पूरे विश्व में सकारात्मक ऊर्जा पैदा करेगा. यह समूचे विश्व में सुख-शांति और खुशहाली लाएगा और दुनिया में नए वर्क आर्डर की रचना होगी. यह चतुर्ग्रही योग है, जो राजयोग और सन्यास देता है. सारे ग्रह शुभ राशियों में हैं


ग्रहों
की वजह से गंगा यमुना की शक्ति भी कई गुना बढ़ जाती है.  महाशिवरात्रि पर शांत मन से हृदय को पवित्र करते हुए मां गंगा को प्रणाम करें. आचमन करें, स्नान करें और समर्पण भाव से आए तो अहंकार समाप्त होगा और हर तरह से पुण्य प्राप्त होगा. ग्रहों के प्रभाव से अच्छे लोग शक्तिशाली होंगे. शिवरात्रि पर बनने वाला शिवयोग चमत्कारिक और अद्भुत योग है. यह पूरे भारत और विश्व के लिए सकारात्मक रूप से चौंकाने वाला होगा. ग्रहों की शक्तियां संगम के जल को और अधिक प्रभावी ऊर्जावान करेंगी. श्रद्धालुओं का रोम रोम सकारात्मक ऊर्जा से भरेगा और ज्ञान का संचार होगा. यह समस्त पापों को नष्ट करके आत्मा परमात्मा का बोध कराएगा. बीमारियां दुर्भाग्य और दुख से भी मुक्ति मिलेगी. 

धन के दाता शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में रहेंगे, जिससे मालव्य राजयोग का निर्माण हो रहा है। इसके साथ ही मीन राशि में शुक्र की राहु के साथ युति हो रही है। इसके अलावा कुंभ राशि में सूर्य-शनि की युति हो रही है। पिता-पुत्र की युति होने से कई राशियों को लाभ मिलेगा। इसके अलावा कुंभ राशि में बुध भी विराजमान है, जिससे तीनों ग्रहों की युति से त्रिग्रही योग और सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग और शनि के अपनी मूल त्रिकोण राशि में होने से शश राजयोग का निर्माण हो रहा. 

इसके अलावा इस दिन शिव के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। भगवान सूर्य जगत की आत्मा है. हमारे नवग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं. पृथ्वी उनकी परिक्रमा कर रही है. हम सब सूर्य की परंपरा कर रहे हैं. इसी को यज्ञ पुरुष कहा गया है. ऋग्वेद में सूर्य को यज्ञ पुरुष कहा गया है. कहीं कहीं सूर्य की जो सकारात्मक गुरुत्वाकर्षण शक्ति महाकुंभ में रही है ये पूरी तरह से महाशक्तिशाली योग बना रही है. महाशिवरात्रि के बाद महाकुंभ का कोई मतलब नहीं है. इसी समय तक ग्रहों का उच्चाभिलाषी प्रभाव रहेगा और उसके बाद समाप्त हो जाएगा. ग्रहों की ताकत केवल महाशिवरात्रि तक रहेगी. वैसे भी प्रयागराज संगम की धरती है. पुण्य भूमि है. यहां गंगा स्नान से सदा ही अच्छा फल मिलता है. चुंबकीय ग्रहों का प्रभाव जिसके कारण कुंभ लगता है, वह समाप्त हो जाएगा. 26 तक ही अक्षुण्य लाभ रहेगा. इसके बाद गंगा का स्नान सामान्य फल देने वाला रह जाएगा. खगोलीय घटनाएं होती रहती हैं. 7 ग्रहों का एक लाइन में दिखाई देना बहुत शुभ है. बता दें, सभी ग्रह हमारे सौरमंडल में सूर्य के चारों तरफ घूमते रहते हैं. जब कुछ ग्रह एक सीधी लाइन में नजर आते हैं तो इसे प्लेनेट परेड या प्लेनेटरी अलाइनमेंट कहते हैं. सोलर सिस्टम में 8 ग्रह सूर्य का चक्कर लगाते हैं. पृथ्वी भी सूर्य का चक्कर लगाती है. यह ग्रह हमेशा एक-दूसरे से अलाइन होते हैं. सोलर सिस्टम में ग्रह इसके चारों ओर सर्किल शेप में चक्कर लगाते रहते हैं. ग्रह एकदृदूसरे से दूर होते हैं. इन ग्रहों का चक्कर लगाने का समय भी अलग-अलग होता है. ऐसे में जब सभी ग्रह सूरज का चक्कर लगाते हुए एक सीधी लाइन में जाते हैं तो उसे प्लेनेट परेड कहते हैं.

जलाभिषेक का मुहूर्त

महाशिवरात्रि में रात्रि के पूजन का विधान है इसलिए 26 फरवरी को रात में महादेव का पूजन किया जाएगा.

- प्रथम पहर पूजन का समय 26 फरवरी को शाम 6 बजकर 19 मिनट से लेकर रात 9 बजकर 6 मिनट तक रहेगा. 

- दूसरा पहर के पूजन का समय 26 फरवरी को रात 9 बजकर 26 मिनट से 27 फरवरी को अर्धरात्रि 12 बजकर 34 मिनट तक रहेगा.

- तीसरे पहर के पूजनका समय 27 फरवरी को अर्धरात्रि 12 बजकर 34 मिनट से सुबह 3 बजकर 41 मिनट तक रहेगा.

- चौथे पहर के पूजन का समय 27 फरवरी को सुबह 3 बजकर 41 मिनट से सुबह 6 48 मिनट तक रहेगा.

27 फरवरी को निशित काल रात 12 बजकर 09 मिनट से लेकर 12 बजकर 59 मिनट तक रहेगा.

पूजन विधि

महाशिवरात्रि के चारों पहर के पूजन में भगवान शिव का रुद्राभिषेक होता है और उसके बाद हवन किया जाता है. महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर भगवान शंकर की प्रतिमा का पंचामृत से अभिषेक करें. इसके पश्चात आठ लोटे केसर मिश्रित जल अर्पित करें. पूरी रात दीप प्रज्वलित रखें और चंदन का तिलक लगाएं. भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, गन्ने का रस, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र एवं दक्षिणा अर्पित करें. अंत में केसर युक्त खीर का भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें. इस पावन दिन परऊं नमो भगवते रूद्राय“, “ऊं नमः शिवाय रूद्राय शम्भवाय भवानीपतये नमो नमःमंत्रों का जाप करें और शिव पुराण का पाठ अवश्य करें. महाशिवरात्रि की रात्रि में जागरण का भी विशेष महत्व है.

जरूर करें ये खास उपाय

महाशिवरात्रि की रात्रि में शिव मंदिर में जाकर विधि-विधान से पूजा अर्चना करें और शिवलिंग के पास देसी घी का दीपक जलाएं. ऐसा करने से धन से जुड़ी समस्या से छुटकारा मिलता है.

यदि आपके मंदिर में शिवलिंग नहीं है तो महाशिवरात्रि के दिन अपने घर पर छोटा सा शिवलिंग लाए और विधि-विधान से अभिषेक करके स्थापित करें. ऐसा करने से घर से दुख दरिद्रता दूर होती है.

शिवरात्रि पर भगवान शिव के साथ-साथ हनुमान चालीसा का पाठ करने से दोनों की विशेष कृपा प्राप्त होती है और भक्तों की सभी परेशानियां दूर होती हैं. 

क्या करें

महाशिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठें। स्नान करने के बाद साफ वस्त्र पहनें। मंदिर में गंगाजल का छिड़काव कर शुद्ध करें। विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करें। सात्विक चीजों का सेवन करें। अन्न और धन समेत आदि चीजों का दान करें। सच्चे मन से शिव चालीसा और मंत्रों का जप करें। महादेव का विशेष चीजों से अभिषेक करें। जीवन में खुशियों के आगमन के लिए महादेव से कामना करें।

क्या करें

महाशिवरात्रि के दिन तामसिक चीजों का सेवन करें। किसी से भी कोई वाद-विवाद करें। सुबह की पूजा करने के बाद दिन में सोएं। पूजा के दौरान शिवलिंग पर टूटे हुए चावल चढ़ाएं। किसी के बारे में गलत सोचे। महिलाओं का अपमान करें।

इन राशियों का होगा लाभ, जीवन में होंगे अच्छे बदलाव

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन कुछ विशेष राशियों पर भगवान शिव की असीम कृपा बरसने वाली है.

मेष राशि : मेष राशि के जातकों के लिए महाशिवरात्रि जरूरी बदलाव लेकर सकती है. इस अवधि में करियर और व्यवसाय में उन्नति के योग बन रहे हैं, साथ ही आय के स्रोतों में बढ़ोतरी होने की संभावना है. परिवार के स्वास्थ्य में सुधार बना रहेगा, जिससे घर में सुख-शांति बनी रहेगी.

उपाय- महाशिवरात्रि पर अधिक लाभ पाने के लिए एक विशेष उपाय किया जा सकता है. इसके अनुसार, तांबे के लोटे में गुड़ और लाल चंदन डालकर शिवलिंग का अभिषेक करें. ऐसा करने से सौभाग्य में बढ़ोतरी होने की संभावना है और भगवान शिव की कृपा मिलेगी.

कर्क राशि : कर्क राशि के जातकों के लिए विशेष लाभकारी सिद्ध हो सकती है. इस दौरान कार्यों में सफलता मिलेगी और किसी पुराने कर्ज से मुक्ति पाने का अवसर भी मिल सकता है.

उपाय- अधिक लाभ पाने के लिए महाशिवरात्रि के दिन चांदी के लोटे से भगवान शिव को दूध अर्पित करें, इससे शुभ फल मिलेगा.

कुंभ राशि : कुंभ राशि के जातकों के लिए अत्यंत शुभ रहने वाली है. इस दौरान जीवन की कोई बड़ी परेशानी समाप्त हो सकती है. साथ ही, गृह क्लेश जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलने के योग बन रहे हैं, जिससे वैवाहिक जीवन सुखद और खुशहाल रहेगा. इसके साथ ही रुपये-पैसों से जुड़ी समस्याओं का समाधान मिलने की संभावना है.

उपाय- कुंभ राशि के जातकों को पंचामृत से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए. ऐसा करने से शुभ फल मिलेंगे और जीवन में सकारात्मक बदलाव आएंगे.

मिथुन राशि : शश और मालव्य राजयोग के प्रभाव से मिथुन राशि के जातकों को करियर और व्यवसाय में तरक्की मिलने की संभावना है. क्योंकि शनि देव आपकी राशि से नवम भाव तो वहीं शुक्र ग्रह आपकी राशि से करियर और कारोबार के स्थान पर गमन करने जा रहे हैं. इसलिए इस समय आपको काम - कारोबार में अच्छी तरक्की मिल सकती है. साथ ही इस समय मीडिया, मार्केटिंग या कम्युनिकेशन फील्ड से आप जुड़े हुए हैं तो आपको विशेष रूप से लाभ होगा. वहीं इस समय आपको किस्मत का साथ मिलेगा. साथ ही आप देश- विदेश की यात्रा कर सकते हैं. वहीं आप किसी धार्मिक या मांगलिक कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं.

सिंह राशि : इस राशि में त्रिग्रही और बुधादित्य योग के साथ मालव्य राजयोग काफी लाभकारी सिद्ध हो सकता है। इस राशि में त्रिग्रही योग सातवें भाव में मालव्य राजयोग आठवें भाव में बन रहा है। ऐसे में इस राशि के जातकों को हर क्षेत्र में अपार सफलता हासिल हो सकती है। समाज में मान-सम्मान की बढ़ोतरी हो सकती है। सोशल मीडिया, कला, फिल्म, टेलीविज़न, मीडिया, बैंकिंग, इंश्योरेंस, रेवेन्यू आदि क्षेत्रों से जुड़े जातकों को खूब लाभ मिल सकता है। परिवार के साथ अच्छा वक्त बीतेगा। नौकरी-बिजनेस में अपार सफलता हासिल हो सकती है। कार्यस्थल में अपने काम से वरिष्ठ का ध्यान अपनी तरफ खींच सकते हैं। ऐसे में आपकी मेहनत रंग लाएंगी। ऐसे में पदोन्नति के साथ वेतन में अच्छी खासी वृद्धि देखने को मिल सकती है। जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी।

चंदन लगाने से पितरों को मिलेगा मोक्ष, बिगड़े कार्य भी बनेंगे!

भगवान भोलेनाथ के भक्त उन्हें चंदन त्रिपुंड लगाकर प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं. चंदन लगाने के लिए यह लोग भस्म, लाल चंदन, सफेद चंदन, रोली इत्यादि का प्रयोग करते हैं और पूर्ण श्रद्धा के साथ महादेव को यह चंदन अर्पित करते हैं. महादेव को चंदन लगाने के कई तरीके शास्त्रों में बताए गए हैं. विश्व प्रसिद्ध कथावाचक, मध्य प्रदेश के सीहोर निवासी पंडित प्रदीप मिश्रा के द्वारा बताया गया कि महादेव को चंदन किस तरह लगाना उत्तम होता है. उनके द्वारा बताए गए तरीके से चंदन लगाने से पितरों की शांति होती है और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है. शिव पुराण की कथा के दौरान उनके द्वारा बताया गया कि महादेव को सात जगह चंदन के टीके लगाए जाते हैं. भगवान शिव को त्रिपुंड लगाने से मानसिक शांति और नवग्रह दोषों से छुटकारा मिलता है।

इस तरह लगाएं महादेव को चंदन

सबसे पहले चंदन बाबा की शिवलिंग के उपर लगाया जाता है. दूसरा चंदन का टीका गणेश जी पर (शिवलिंग के सीधे हाथ की तरफ) लगाया जाता है. उनके द्वारा बताया गया कि तीसरा टीका सदानंद कार्तिकेय जी के उपर (शिवलिंग के उल्टे हाथ की तरफ) लगाया जाता है. चौथा टीका अशोक सुंदरी के उपर लगाया जाता है. पांचवा टीका महादेव की जलाधारी(जहां से जल प्रवाह होता है) पर लगाया जाता है. छटा टीका शिवलिंग का जल बह रहा है इसके ठीक विपरीत यानी पीछे की ओर लगाया जाता है.सातवा और अंतिम टीका महादेव के पास रखे नंदी के दोनों सिंगों पर लगाया जाता है. इस तरह महादेव को सात बार टीका लगाया जाता है. महादेव को इस तरह टीका लगाने से ही उनका पूजन पूर्ण माना जाता है. अगर इस विधि के अलावा आप महादेव को टीका लगाते हैं तो यह पूर्ण नहीं माना जाता है. इस प्रकार टीका लगाने से आपके पितरों को मोक्ष मिलता है. वे किसी भी योनि में किसी भी रूप में हों उन्हें शांति मिलती है. श्रीधाम में श्री जी के चरणों में स्थान की प्राप्ति होती है.इस तरह शिवलिंग पर सात स्थानों पर टीका लगाने से आपको वैकुंठ की प्राप्ति होती है और साथ ही सभी प्रकार के रोग और शोक दूर हो जाते हैं.

इन जातकों की पलटेगी किस्मत

अंक ज्योतिष के अनुसार, कुछ विशेष मूलांक वाले लोग इस दिन विशेष रूप से आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। ये वे लोग होंगे जिनके जन्म के अंक के आधार पर शिव की विशेष कृपा उन पर बरसेगी। जिनका जन्म 1, 10, 19 या 28 तारीख को हुआ है, उनका मूलांक 1 होगा। इनका ग्रह स्वामी सूर्य देवता हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की विशेष कृपा इन पर बरसेगी, जिससे आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ पारिवारिक सुख और समृद्धि में वृद्धि होगी। यदि किसी कार्य में बाधा रही थी, तो शिव की कृपा से वह कार्य सफल हो सकता है। जिनका जन्म 2, 11, 20 या 29 तारीख को हुआ है, उनका मूलांक 2 होगा और इनके ग्रह स्वामी चंद्रमा हैं। चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान है, जिससे महाशिवरात्रि के दिन इन लोगों को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होगा। इनके बिगड़े हुए काम बन सकते हैं और जीवन में प्रगति के नए रास्ते खुल सकते हैं। जिनका जन्म 5, 14 या 23 तारीख को हुआ है, उनका मूलांक 5 होगा और इनके ग्रह स्वामी बुध हैं। महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ का आशीर्वाद इन पर बरसेगा, जिससे वे जीवन में उन्नति करेंगे। इसके साथ ही, इन्हें धन लाभ की भी संभावना है। जिनका जन्म 6, 14 या 24 तारीख को हुआ है, उनका मूलांक 6 होगा और इनके ग्रह स्वामी शुक्र हैं। महाशिवरात्रि पर शिव की पूजा से इन्हें विशेष लाभ प्राप्त होगा। इनके जीवन में नए और अच्छे अवसर सकते हैं और पारिवारिक जीवन भी सुखमय होगा।

पूजा में इन 15 सामग्रियों का होना बेहद आवश्यक

भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा में कई प्रकार की सामग्रियों का उपयोग किया जाता है। ये सामग्रियाँ केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि इनका अपना-अपना विशेष अर्थ भी है। इन सामग्रियों के बिना भोलेनाथ की पूजा अधूरी रह सकती है। इसलिए महाशिवरात्रि से पहले ही इन पूजा सामग्रियों को इकट्ठा कर लेना चाहिए। 

1. जल : शिवलिंग का जलाभिषेक करना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह शुद्धता और शांति का प्रतीक है।

2. दूध : दूध को शुद्धता और पोषण का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से मानसिक शांति मिलती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

3. दही : दही मिठास और समृद्धि का प्रतीक है। शिवलिंग पर दही चढ़ाने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

4. शहद : शहद को मिठास और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग पर शहद चढ़ाने से वाणी में मधुरता आती है और स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

5. घी : घी को शुद्धता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग पर घी चढ़ाने से तेज और ऊर्जा मिलती है।

6. बेलपत्र : बेलपत्र भगवान शिव जी को अत्यंत प्रिय है। इसे शांति, पवित्रता और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

7. धतूरा : धतूरा भगवान शिव जी को अर्पित किया जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने का प्रतीक है।

8. फूल : फूल सुंदरता और श्रद्धा का प्रतीक हैं। भगवान शिव को सफेद फूल जैसे कि चमेली, मोगरा और धतूरा विशेष रूप से प्रिय हैं।

9. फल : फल समृद्धि और प्रसन्नता का प्रतीक हैं। भगवान शिव जी को फल अर्पित करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

10. धूप और दीप : धूप और दीप सुगंध और प्रकाश का प्रतीक हैं। ये वातावरण को शुद्ध करते हैं और सकारात्मक ऊर्जा लाते हैं।

11. भस्म : भस्म वैराग्य का प्रतीक है। भगवान शिव जी को भस्म अर्पित करने से अहंकार दूर होता है।

12. चंदन : चंदन शीतलता और शांति का प्रतीक है। शिवलिंग पर चंदन लगाने से मानसिक शांति मिलती है।

13. अक्षत : अक्षत अखंडता और पूर्णता का प्रतीक है। भगवान शिव जी को अक्षत अर्पित करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

14. भांग : भांग भगवान शिव जी को अर्पित की जाती है। यह एकाग्रता और ध्यान का प्रतीक है।

15. वस्त्र : वस्त्र सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक हैं। भगवान शिव जी को वस्त्र अर्पित करने से आशीर्वाद मिलता है।

इन सामग्रियों के अतिरिक्त, हम अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार अन्य वस्तुएं भी अर्पित कर सकते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि, पूजा सच्चे मन और भक्ति भाव से की जाए। और यह सामग्री आपके पास उपलब्ध नहीं है तो भी चिंता की कोई बात नहीं। आप अगर सच्चे हृदय से, पवित्र मन से महाशिवरात्रि की रात्री को भगवान शिव जी और माता पार्वती जी का ध्यान करते है, पूरे भक्ति और श्रद्धा से नमः शिवायका जाप करते है, तो भी आपके ऊपर भगवान भोलेनाथ जी की अवश्य कृपा होती है। अपने भक्तों को भगवान शिव जी कभी निराश नहीं करते। 

जब तीनों लोक बने बाराती

मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव को प्रत्येक माह की चतुर्दशी तिथि प्रिय है, परन्तु सभी चतुर्दशी तिथियों में फाल्गुन माह की चतुर्दशी तिथि उनको अतिप्रिय है। गौरी को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों और पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीब है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकार ज्वाला उनकी पहचान है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी अपने उपाशकों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं। दक्षिण भारत का प्रसिद्ध ग्रन्थ नटराजम भगवान शिव के सम्पूर्ण आलोक को प्रस्तुत करता है। इसमें लिखा गया है कि मधुमास यानी फाल्गुन मास की चर्तुदशी को प्रपूजित भगवान शिव कुछ भी देना शेष नहीं रखते हैं। इसमें बताया गया है कित्रिपथगामिनीगंगा उनकी जटा में शरण एवं विश्राम पाती हैं और त्रिकाल यानी भूत, भविष्य एवं वर्तमान को जिनके त्रिनेत्र त्रिगुणात्मक बनाते हैं। शिव को देवाधिदेव महादेव इसलिए कहा गया है कि वे देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, किन्नर, गंधर्व पशु-पक्षी एवं समस्त वनस्पति जगत के भी स्वामी हैं। शिव की अराधना से संपूर्ण सृष्टि में अनुशासन, समन्वय और प्रेम भक्ति का संचार होने लगता है। इसीलिए, स्तुति गान है- मैं आपकी अनंत शक्ति को भला क्या समझ सकता हूं। हे शिव, आप जिस रूप में भी हों, उसी रूप को मेरा प्रणाम। शिव यानीकल्याण करने वाला शिव ही शंकर हैं। शिव केका अर्थ है कल्याण और का अर्थ है करने वाला। शिव, अद्वैत, कल्याण- ये सारे शब्द एक ही अर्थ के बोधक हैं। शिव ही ब्रह्मा हैं, ब्रह्मा ही शिव हैं। ब्रह्मा जगत के जन्मादि के कारण हैं। शिव और शक्ति का सम्मिलित स्वरुप हमारी संस्कृति के विभिन्न आयामों का प्रदर्शक है। शिव औघड़दानी है और दुसरों पर सहज कृपा करना उनका सहज स्वभाव है। अर्थात शिव सहज है, शिव सुंदर है, शिव सत्य सनातन है, शिव सत्य है, शिव परम पावन मंगल प्रदाता है, शिव कल्याणकारी है, शिव शुभकारी है, शिव अविनाशी है, शिव प्रलयकारी है, इसीलिए तो उनका शुभ मंगलमय हस्ताक्षर सत्यम् शिवम् सुन्दरम्, को सभी देव, दानव, मानव, जीव-जंतु, प्शु-पक्षी चर-अचर, आकाश-पाताल, सप्तपुरियों में शिव स्वरुप महादेव के लिंग का आत्म चिंतन कर धन्य होते हैं। यह कटु सत्य है। नमः शिवाय, यह शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। श्रीराम श्रीकृष्ण ने जब से सृष्टि की रचना हुई है तब से भगवान शिव की आराधना उनकी महिमा की गाथाओं से भंडार भरे पड़े है। स्वयं भगवान श्रीराम श्रीकृष्ण ने भी अपने कार्यो की बाधारहित इष्टसिद्धि के लिए उनकी साधना की और शिवजी के शरणागत हुए। श्रीराम ने लंका विजय के पूर्व भगवान शिव की आराधना की। राक्षसराज हिरणाकश्यप का पुत्र प्रहलाद श्री विष्ण की पूजा में तत्पर रहता था। भगवान भोलेनाथ ने ही नृसिंह का अवतार लेकर भक्त प्रहलाद की रक्षा की। भगवान शिव ने देवराज इंद्र पर कृपादृष्टि डाली तो उन्होंने अग्निदेव, देवगुरु वृहस्पति और मार्केंडेय पर भी कृपा बरसाई। कहा जा सकता है आशुतोष भगवान शिव प्रसंन होते है तो साधक को अपनी दिव्य शक्ति प्रदान करते है जिससे अविद्या के अंधकार का नाश हो जाता है और साधक को अपने इष्ट की प्राप्ति होती है। इसका तात्पर्य है कि जब तक मनुष्य शिवजी को प्रसंन कर उनकी कृपा का पात्र नहीं बन जाता तब तक उसे ईश्वरीय साक्षात्कार नहीं हो सकता।

योग से होता है शिव का साक्षात्कार

योग परंपरा में शिव की पूजा ईश्वर के रूप में नहीं की जाती बल्कि उन्हें आदि गुरु माना जाता है। वे प्रथम गुरु हैं जिनसे ज्ञान की उत्पति हुई थी। कई हजार वर्षों तक ध्यान में रहने के पश्चात एक दिन वे पूर्णतः शांत हो गए। वह दिन महाशिवरात्रि का है। उनके अन्दर कोई गति नहीं रह गई और वे पूर्णतः निश्चल हो गए। इसलिए तपस्वी महाशिवरात्रि को निश्चलता के दिन के रूप में मनातें हैं। पौराणिक कथाओं के अलावा योग परंपरा में इस दिन और इस रात को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि महाशिवरात्रि एक तपस्वी जिज्ञासु के समक्ष कई संभावनाएं प्रस्तुत करती है। आधुनिक विज्ञान कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद आज एक ऐसे बिन्दु पर पहुंचा है जहां वे यह सिद्ध कर रहे हैं कि हर चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं, वह सिर्फ ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों करोड़ों रूप में व्यक्त करती है। योगी यानी जो अस्तित्व की एकरूपता को जान चुका है। असीम, अस्तीत्व एकरुपता को जानने की सभी चेष्टाएं चेष्टाएं योग हैं। महाशिवरात्रि की रात हमें इसे अनुभव करने का एक अवसर प्रदान करती है।

शीश गंग अर्धंग पार्वती, सदा विराजत कैलासी।

नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुर सुखरासी।।

शीतल मंद सुगंध पवन बह।

बैठे हैं शिव अविनाशी।।

करत गान गन्धर्व सप्त स्वर।

राग रागिनी मधुरा-सी।।

यक्ष-रक्ष भैरव जहाँ डोलत।

बोलत हैं वन के वासी।।

कोयल शब्द सुनावत सुन्दर

भ्रमर करत हैं गुंजा-सी।।

कैलाशी काशी के वासी

अविनाशी मेरी सुध लीजो।।

महादेव की सबसे प्रिय रात्रि है महाशिवरात्रि

भगवान शिव और पार्वती की शादी बड़े ही भव्य तरीके से आयोजित हुई। पार्वती की तरफ से कई सारे उच्च कुलों के राजा-महाराजा और शाही रिश्तेदार इस शादी में शामिल हुए, लेकिन शिव की ओर से कोई रिश्तेदार नहीं था, क्योंकि वे किसी भी परिवार से ताल्लुक नहीं रखते। शिव पशुपति हैं, मतलब सभी जीवों के देवता भी हैं, तो सारे जानवर, कीड़े-मकोड़े और सारे जीव उनकी शादी में उपस्थित हुए। यहां तक कि भूत-पिशाच और विक्षिप्त लोग भी उनके विवाह में मेहमान बन कर पहुंचे। सभी देवता तो वहां मौजूद थे ही, साथ ही असुर भी वहां पहुंचे। आम तौर पर जहां देवता जाते थे, वहां असुर जाने से मना कर देते थे और जहां असुर जाते थे, वहां देवता नहीं जाते थे। उनकी आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी। मगर यह तो शिव का विवाह था, इसलिए उन्होंने अपने सारे झगड़े भुलाकर एक बार एक साथ आने का मन बनाया। यह एक शाही शादी थी, एक राजकुमारी की शादी हो रही थी, इसलिए विवाह समारोह से पहले एक अहम समारोह होना था। वर-वधू दोनों की वंशावली घोषित की जानी थी। एक राजा के लिए उसकी वंशावली सबसे अहम चीज होती है जो उसके जीवन का गौरव होता है। तो पार्वती की वंशावली का बखान खूब धूमधाम से किया गया। यह कुछ देर तक चलता रहा। आखिरकार जब उन्होंने अपने वंश के गौरव का बखान खत्म किया, तो वे उस ओर मुड़े, जिधर वर शिव बैठे हुए थे। सभी अतिथि इंतजार करने लगे कि वर की ओर से कोई उठकर शिव के वंश के गौरव के बारे में बोलेगा मगर किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा। वधू का परिवार ताज्जुब करने लगा, ‘क्या उसके खानदान में कोई ऐसा नहीं है जो खड़े होकर उसके वंश की महानता के बारे में बता सके?’ मगर वाकई कोई नहीं था। वर के माता-पिता, रिश्तेदार या परिवार से कोई वहां नहीं आया था क्योंकि उसके परिवार में कोई था ही नहीं। वह सिर्फ अपने साथियों, गणों के साथ आया था जो विकृत जीवों की तरह दिखते थे। वे इंसानी भाषा तक नहीं बोल पाते थे और अजीब सी बेसुरी आवाजें निकालते थे। वे सभी नशे में चूर और विचित्र अवस्थाओं में लग रहे थे। फिर पार्वती के पिता पर्वत राज ने शिव से अनुरोध किया, ‘कृपया अपने वंश के बारे में कुछ बताइए।शिव कहीं शून्य में देखते हुए चुपचाप बैठे रहे। वह तो दुल्हन की ओर देख रहे थे, ही शादी को लेकर उनमें कोई उत्साह नजर रहा था। वह बस अपने गणों से घिरे हुए बैठे रहे और शून्य में घूरते रहे। वधू पक्ष के लोग बार-बार उनसे यह सवाल पूछते रहे क्योंकि कोई भी अपनी बेटी की शादी ऐसे आदमी से नहीं करना चाहेगा, जिसके वंश का अता-पता हो। उन्हें जल्दी थी क्योंकि शादी के लिए शुभ मुहूर्त तेजी से निकला जा रहा था। मगर शिव मौन रहे। शिव कहीं शून्य में देखते हुए चुपचाप बैठे रहे। वह तो दुल्हन की ओर देख रहे थे, ही शादी को लेकर उनमें कोई उत्साह नजर रहा था। समाज के लोग, कुलीन राजा-महाराजा और पंडित बहुत घृणा से शिव की ओर देखने लगे और तुरंत फुसफुसाहट शुरू हो गई, ‘इसका वंश क्या है? यह बोल क्यों नहीं रहा है? हो सकता है कि इसका परिवार किसी नीची जाति का हो और इसे अपने वंश के बारे में बताने में शर्म रही हो।फिर नारद मुनि, जो उस सभा में मौजूद थे, ने यह सब तमाशा देखकर अपनी वीणा उठाई और उसकी एक ही तार खींचते रहे। वह लगातार एक ही धुन बजाते रहे, टोइंग टोइंग टोइंग। इससे खीझकर पार्वती के पिता पर्वत राज अपना आपा खो बैठे, ‘यह क्या बकवास है? हम वर की वंशावली के बारे में सुनना चाहते हैं मगर वह कुछ बोल नहीं रहा। क्या मैं अपनी बेटी की शादी ऐसे आदमी से कर दूं? और आप यह खिझाने वाला शोर क्यों कर रहे हैं? क्या यह कोई जवाब है?’ नारद ने जवाब दिया, ‘वर के माता-पिता नहीं हैं।राजा ने पूछा, ‘क्या आप यह कहना चाहते हैं कि वह अपने माता-पिता के बारे में नहीं जानता?’ ‘नहीं, इनके माता-पिता ही नहीं हैं। इनकी कोई विरासत नहीं है। इनका कोई गोत्र नहीं है। इसके पास कुछ नहीं है। इनके पास अपने खुद के अलावा कुछ नहीं है।पूरी सभा चकरा गई। पर्वत राज ने कहा, ‘हम ऐसे लोगों को जानते हैं जो अपने पिता या माता के बारे में नहीं जानते। ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति हो सकती है। मगर हर कोई किसी किसी से जन्मा है। ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी का कोई पिता या मां ही हो।नारद ने जवाब दिया, ‘क्योंकि यह स्वयंभू हैं। इन्होंने खुद की रचना की है। इनके तो पिता हैं माता। इनका कोई वंश है, परिवार। यह किसी परंपरा से ताल्लुक नहीं रखते और ही इनके पास कोई राज्य है। इनका तो कोई गोत्र है, और कोई नक्षत्र। कोई भाग्यशाली तारा इनकी रक्षा करता है। यह इन सब चीजों से परे हैं। यह एक योगी हैं और इन्होंने सारे अस्तित्व को अपना एक हिस्सा बना लिया है। इनके लिए सिर्फ एक वंश है ध्वनि। आदि, शून्य प्रकृति ने जब अस्तित्व में आई, तो अस्तित्व में आने वाली पहली चीज थी दृ ध्वनि। इनकी पहली अभिव्यक्ति एक ध्वनि के रूप में है। ये सबसे पहले एक ध्वनि के रूप में प्रकट हुए। उसके पहले ये कुछ नहीं थे। यही वजह है कि मैं यह तार खींच रहा हूं।

महाशिवरात्रि पर क्या करें भोजन?

भक्त इस बात का ख्याल रखें कि भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जो इस नैवेद्य को खाता है, वह नरक के दुखों का भोग करता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालीग्राम की मूर्ति का रहना अनिवार्य है। यदि शिव की मूर्ति के पास शालीग्राम हो, तो नैवेद्य खाने का कोई दोष नहीं है। व्रत के व्यंजनों में सामान्य नमक के स्थान पर सेंधा नमक का प्रयोग करते हैं। लाल मिर्च की जगह काली मिर्च का प्रयोग करते हैं। कुछ लोग व्रत में मूंगफली का उपयोग भी नहीं करते हैं। ऐसी स्थिति में आप मूंगफली को सामग्री में से हटा सकते हैं। व्रत में यदि कुछ नमकीन खाने की इच्छा हो, तो आप सिंघाड़े या कुट्टू के आटे के पकौड़े बना सकते हैं। इस व्रत में आप आलू सिंघाड़ा, दही बड़ा भी खा सकते हैं। सूखे दही बड़े भी खाने में स्वादिष्ट लगते हैं। तो, जितने आपको सूखे दही बड़े खाने हों उतने दही बड़े सूखे रख लीजिए और जितने दही में डुबाने हों दही में डुबो लीजिये। इस दिन साबूदाना भी खाया जाता है। साबूदाना में कार्बोहाइड्रेट की प्रमुखता होती है। इसमें कुछ मात्रा में कैल्शियम विटामिन सी भी होता है। इसका उपयोग अधिकतर पापड़, खीर और खिचड़ी बनाने में होता है। व्रतधारी इसका खीर अथवा खिचड़ी बना कर उपयोग कर सकते हैं। साबूदाना दो तरह के होते हैं एक बड़े और एक सामान्य आकार के। यदि आप बड़ा साबूदाना प्रयोग कर रहे हैं तो इसे एक घंटा भिगोने की बजाय लगभग आठ घंटे भिगोये रखें। छोटे आकार के साबूदाने आपस में हल्के से चिपके चिपके रहते हैं लेकिन बड़े साबूदाने का पकवान ज्यादा स्वादिष्ट होता है। यदि आप उपवास के लिए साबूदाने की खिचड़ी बनाते हुए उसमें नमक सा स्वाद पाना चाहते हैं तो उसमें सामान्य नमक की जगह सेंधा नमक का प्रयोग करें।

शिवरात्रि ही हैकालरात्रि

रात्रि शब्द अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है। परमात्मा ही ज्ञानसागर है जो मानव मात्र को सत्यज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री-पुरुष, बालक, युवा और वृद्ध सभी इस व्रत को कर सकते हैं। इस व्रत के विधान में सवेरे स्नानादि से निवृत्त होकर उपवास रखा जाता है। शिवरात्रि शब्द का प्रयोग इसलिए करते है क्योंकि शिव बाबा का अवतरण (आना) घोर संकट के समय में हुआ है, जब 5 विकार जिनको माया (5 विकारों के समूह को माया कहते है) कहा जाता है। ये समाज मे हर जगह होते है। इन 5 विकारों से हम सबको छुड़ाने के लिए शिव बाबा धरा पर आते है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया

विज्ञान हजारों वर्षों सेशिवके अस्तित्व को समझने का प्रयास कर रहा है. जब भौतिकता का मोह समाप्त हो जाता है और ऐसी स्थिति जाती है कि इंद्रियां भी बेकार हो जाती हैं, उस स्थिति में शून्यता आकार ले लेती है और जब शून्यता भी अस्तित्वहीन हो जाती है तब वहां शिव प्रकट होते हैं. शिव शून्य से परे हैं, जब व्यक्ति भौतिक जीवन को त्यागकर सच्चे मन से ध्यान करता है तो शिव की प्राप्ति होती है. महाशिवरात्रि शिव के एक-आयामी और अलौकिक रूप को हर्षोल्लास के साथ मनाने का त्योहार है. महाशिवरात्रि के इस शुभ अवसर पर श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान शिव की उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कहते हैं कि भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान दे देते हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ कहा जाता है. फाल्गुन मास भगवान शिव की उपासना के लिए बेहद शुभ माना गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस महीने में पड़ने वाली महाशिवरात्रि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बेहद खास मानी गई है. इस दिन का हर पल अत्यंत शुभ होता है. इस दिन व्रत रखने से अविवाहित लड़कियों को मनचाहा पति मिलता है और विवाहित महिलाओं का वैधव्य दोष भी नष्ट होता है. महाशिवरात्रि पर शिवलिंग की पूजा करने से कुंडली के नौ ग्रह दोष शांत होते हैं, खासकर चंद्रमा से होने वाले दोष जैसे मानसिक अशांति, माता के सुख और स्वास्थ्य में कमी, मित्रों से संबंध, मकान-वाहन के सुख में देरी, हृदय रोग, नेत्र विकार, चर्म-कुष्ठ रोग, सर्दी-खांसी, दमा रोग, खांसी-निमोनिया संबंधी रोग ठीक होते हैं और समाज में मान-सम्मान बढ़ता है.

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