Wednesday, 12 February 2025

रविदास जंयती पर सीर गोवर्धन मंदिर में रैदासियों ने टेका मत्था

रविदास जंयती पर सीर गोवर्धन मंदिर में रैदासियों ने टेका मत्था 

पूर्वांचल सहित देश-विदेश के लाखों अनुयायियों ने लगाए जयकारे

प्रशासन भी सुरक्षा को लेकर रही चौकस

सुरेश गांधी 

वाराणसी। संत शिरोमणी रविदास जंयती के मौके पर बुधवार को सीर गोवर्धन मंदिर में लाखों रैदासियों ने मत्था टेका। काशी पूर्वांचल सहित देश-विदेश के लाखों अनुयायियों मंदिर पहुंचे। इस दौरान पूरे दिन जयकारे लगते रहे। प्रशासन भी सुरक्षा को लेकर काफी सतर्क रही। गुरु चरणों का रज माथे लगाने के लिए रैदासियों में होड़ लगी रही। पूरा गोवर्धनपुर का पूरा इलाका गुरुवाणी से गूंज रहा है। इसके पहले मंदिर में संत रविदास मंदिर चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन संत निरंजन दास महाराज की अगुवाई में निशान ध्वज फहराया गया। इसके साथ ही मेला का शुभारंभ हो गया। ?

सुबह से रात तक दर्शन के लिए अनुयायियों का रेला उमड़ता रहा। वहीं, भजन कीर्तन, सत्संग और लंगर का सिलसिला भी चला। बता दें, संत रविदास के जन्मस्थल पर उनकी पांच निशानियां मौजूद हैं। उनकी हर निशानियां अलग-अलग कहानी है। ये निशानियां भक्ति आंदोलन को दर्शाती हैं। ऑल इंडिया आदिधर्म मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य भारत भूषण दास ने बताया कि संत रविदास की जन्म स्थली सीरगोवर्धन के अलावा मैदागिन, गुरु रविदास पंचायती चबूतरा कॉरिडोर चौक, कबीरचौरा, राजघाट, लहरतारा आदि इलाकों में भी उनसे जुड़े स्थल हैं। संत रविदास की निशानी देश के कई प्रांतों में मौजूद हैं।

मीराबाई संत रविदास से मिलने मैदागिन पहुंचीं थीं। गुरु ने उन्हें ज्ञान दीक्षा दी थी। तब मीराबाई ने कहा-’गुरु मिले रविदास मैं सास घर जाऊं’, फिर वह उनकी शिष्या बन गई। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के पास गुरु रविदास पंचायती चबूतरा था। संत रविदास के प्रभाव को रोकने और इस्लाम स्वीकार करने के लिए सिकंदर शाह लोदी ने अपने संदेशवाहक सदना को काशी में इसी स्थान पर भेजा था। यहां गुरु का संदेश सुनकर सदना खुद फकीर बन गया था। संत रविदास और कबीर दोनों गुरु रमानंद के शिष्य थे। वे कबीरचौरा
पर बैठकी और सत्संग करते थे। लोगों को गुरु के संदेश और धर्म पर गहन चर्चा करते थे। इसी के बाद इस क्षेत्र का नाम कबीरचौरा पड़ गया।

कबीर की जन्मस्थली लहरतारा में भी संत रविदास ने तपस्या की थी।तब यह पूरा इलाका जंगल था। संत रविदास जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी शिकारी से बचने के लिए हिरणी उनके पास आकर छिप गई थी।शिकरी गुरु के भाव से नतमस्तक हो गया। संत रविदास ने राजघाट पर धर्म परीक्षा दी थी। काशी के कर्मकांडियों ने संत रविदास के पूजा करने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने रविदास जी को चुनौती दी थी कि अगर आप पत्थर में भगवान को देखते हैं तो इसे गंगा में तैराकर दिखाए। उन्होंने राजघाट पर गंगा में पत्थर तैराकर दिखाया था।

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