श्रीकाशी विश्वनाथ का चढ़ा तिलक, डमरू और शहनाई की धुन पर झूमे श्रद्धालु
वाग्देवी का
वंदन,
गूंजी
चारों
वेदों
की
ऋचाएं
भोलेनाथ संग
गौरा
का
विवाह
उत्सव
शुरूवात
सुरेश गांधी
वाराणसी। देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी
अपने सबसे बड़े पर्व
महाशिवरात्रि की तैयारी में
जुट गयी है। इस
खास दिन पर पूरी
काशी बाबा की भक्ति
में रमा नजर आता
हैं. इससे पहले बसंत
पंचमी के दिन बाबा
विश्वनाथ के विवाह रस्म
की शुरुआत की गयी। इस
दौरान काशी की परंपराओं
का ध्यान रखते हुए बाबा
विश्वनाथ की पंचबदन रजत
मूर्ति का विशेष अलंकरण
किया गया। चारों वेदों
की ऋचाओं का पाठ किया
गया। महादेव का विधिपूर्वक अभिषेक
किया गया। इसके पश्चात
महादेव को फलाहार का
भोग अर्पित किया गया। इसके
बाद महादेव का तिलक उत्सव
संपन्न हुआ। गीत संगीत
के बीच लोगों ने
बाबा की इस अद्भुत
छवि के दर्शन किए.
परंपराओं और मान्यताओं के
अनुसार, बसंत पंचमी के
दिन हिमालय राज भगवान शंकर
को तिलक चढ़ाने के
लिए पहुंचे थे। अब भी
बाबा विश्वनाथ की नगरी में
इस परंपरा का निर्वहन कई
सौ सालों से होता आ
रहा है. बसंत पंचमी
के दिन वैदिक ब्राह्मणों
के मंत्रोच्चार के बीच बाबा
विश्वनाथ की पंच बदन
रजत प्रतिमा का विधि विधान
से पूजन कर पंचगव्य
पंच द्रव्य दूध, गंगाजल से
स्नान करवाने के बाद रजत
सिंहासन पर विराजमान कराया
गया. बाबा का विशेष
श्रृंगार भी संपन्न हुआ.
परंपरा अनुसार, शाम लगभग 5ः00
बजे बाबा की प्रतिमा
को तिलक चढ़ाया गया.
इसके बाद बाबा को
ठंडाई, पंचमेवा और मिष्ठान का
भोग लगाया गया। अब इस
रस्म अदायगी के बाद शिवरात्रि
के मौके पर बाबा
के विवाह की रस्म पूरी
होगी। होली से पहले
रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ
माता गौरा और बाल
गणेश की चल रजत
प्रतिमा रजत सिंहासन पर
सवार होकर भक्तों के
कंधे से गर्भगृह में
ले जाई जाएगी.
सरस्वति
महाभागे
विद्ये
कमललोचने।
विद्यारूपे
विशालाक्षि
विद्यां
देहि
नमोऽस्तुते।।
बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर श्री काशी विश्वनाथ धाम में मां सरस्वती की विशेष पूजा और आराधना की गई। इस अनुष्ठान में मां सरस्वती के विग्रह का विधिपूर्वक पूजन और अर्चन किया गया। इस विशेष पूजा में याजक की भूमिका मंडलायुक्त कौशल राज शर्मा ने निभाई। उनके साथ मंदिर न्यास के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण, अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी निखिलेश कुमार मिश्र, अपर पुलिस आयुक्त एस. चिन्नप्पा, डिप्टी कलेक्टर शंभू शरण, विशेष कार्याधिकारी उमेश सिंह, और नायब तहसीलदार मिनी एल. शेखर भी उपस्थित रहे। सभी अधिकारियों ने मिलकर मां सरस्वती से विद्या, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति की प्रार्थना की।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस
दिन माँ सरस्वती की
पूजा से व्यक्ति की
बुद्धि में वर्धन होता
है और ज्ञान की
प्राप्ति होती है। इस
विशेष अवसर पर श्री
काशी विश्वनाथ धाम के प्रांगण
में काशी की परंपरा
को अक्षुण्ण रखते हुए बाबा
विश्वनाथ की पंचबदन रजत
मूर्ति का अलंकरण कर
महादेव का तिलक उत्सव
भी संपन्न किया गया। इस
उत्सव के दौरान शास्त्रियों
द्वारा चारों वेदों की ऋचाओं का
पाठ किया गया और
महादेव का अभिषेक भी
विधिपूर्वक किया गया। इसके
बाद महादेव को फलाहार का
भोग अर्पित किया गया। इस
अवसर पर उपस्थित योजकों
ने माँ सरस्वती और
बाबा विश्वनाथ से आशीर्वाद प्राप्त
किया।
बसंत पंचमी का
यह पर्व भारतीय सनातन
परंपरा में ज्ञान की
महत्ता को दर्शाता है।
महाकुम्भ के पलट प्रवाह
के कारण श्री काशी
विश्वनाथ धाम में हो
रही अपार श्रद्धालुओं की
संख्या के कारण इस
समय विशिष्ट सुरक्षा प्रतिबंधों के साथ ही
दर्शन की व्यवस्था है।
अतः आज आयोजित इस
पूजा में न्यास प्रशासन
एवं पुलिस सुरक्षा के अधिकारियों तथा
कार्मिकों के द्वारा ही
संपूर्ण आयोजन संपन्न किया गया तथा
प्रतिनिधि रूप में समस्त
श्रद्धालुओं की भावना माँ
सरस्वती तथा भगवान शिव
को अर्पित की गई। श्री
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास सतत यह प्रबंध
सुनिश्चित करते रहने को
प्रतिबद्ध है जिससे सभी
श्रद्धालुओं की सुविधा एवं
सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए काशी
की विशिष्ट परंपराओं का निर्वहन भी
किया जाता रहे। आज
के पुण्य आयोजन को श्री काशी
विश्वनाथ महादेव के धाम में
मां सरस्वती ने ज्ञान बुद्धि
कला के आशीष से
समृद्ध किया।
श्रद्धालुओं
के लिए विशेष सुरक्षा
व्यवस्था
महाकुंभ
के पलट प्रवाह के
कारण श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में श्रद्धालुओं
की संख्या अत्यधिक बढ़ गई है।
इस कारण विशेष सुरक्षा
प्रतिबंधों के साथ दर्शन
की व्यवस्था की गई। सोमवार
को आयोजित इस पूजा में
न्यास प्रशासन एवं पुलिस सुरक्षा
अधिकारियों द्वारा संपूर्ण आयोजन संपन्न किया गया, जिसमें
श्रद्धालुओं की भावनाओं को
प्रतिनिधि रूप में मां
सरस्वती और भगवान शिव
को समर्पित किया गया। बसंत
पंचमी के दिन विशेष
रूप से विद्या और
कला की देवी माँ
सरस्वती की पूजा का
अत्यधिक महत्व है। यह पर्व
विद्यार्थियों, शिक्षकों और कलाकारों द्वारा
विशेष रूप से मनाया
जाता है, ताकि उनके
ज्ञान में वृद्धि हो
और उनका बौद्धिक विकास
हो सके। भारतीय संस्कृति
में यह दिन विद्या
के सम्मान और महत्ता का
प्रतीक माना जाता है।
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