Monday, 17 February 2025

महाशिवरात्रि : सृष्टि के सृजन से...शुन्य से अनंत तक...!

महाशिवरात्रि : सृष्टि के सृजन से...शुन्य से अनंत तक...! 

भगवान शंकर आदि-अनादि हैं और सृष्टि के विनाश पुनः स्थापना के बीच की कड़ी हैं। भगवान शंकर को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने का महत्व है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, इस सृष्टि से पहले सत और असत नहीं थे, केवल भगवान शिव थे। जो सर्वस्व देने वाले हैं। विश्व की रक्षार्थ स्वयं विष पान करते हैं। अत्यंत कठिन यात्रा कर गंगा को सिर पर धारण करके मोक्षदायिनी गंगा को धरा पर अवतरित करते हैं। श्रद्धा, आस्था और प्रेम के बदले सब कुछ प्रदान करते हैं। शिव की शक्ति रात्रि ही है जो विश्व के समस्त प्राणियों को जीने की राह सिखाता है। बताता है सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है, इसके सिवाय कुछ भी नहीं है। अर्थात शिव और शिवत्व की दिव्यता को जान लेने का महापर्व है महाशिवरात्रि

सुरेश गांधी 

महाशिवरात्रि देवाधिदेव महादेव भगवान शिव की उपासना एवं साधना का विशिष्ट पर्व है। इस मौके पर हर तरह के शुभ और मांगलिक कार्य करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है. पुराणों एवं शास्त्रों में कहा गया है कि महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव पहली बार प्रकट हुए थे। वे एक विशाल अग्निस्तंभ (ज्योतिर्लिंग) के रूप में आए, जिसका कोई आदि और अंत नहीं था। इस दिन भगवान शिव ने तांडव कर अपनी तीसरी आंख खोली थी और इसी आंख की ज्वाला से ब्रह्मांड को नष्ट कर दिया था. भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने इसे समझने की कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे। तब शिवजी ने बताया कि वे ही इस अनंत शक्ति के स्वामी हैं। मैं ही शुभंकर, मैं ही प्रलयंकर। सृष्टि के सृजन से...शुन्य से अनंत तक... अर्थात शिव ही सत्य हैं, शिव अनंत हैं, शिव अनादि हैं, शिव भगवंत हैं, शिव ओंकार हैं, शिव ब्रह्मा हैं, शिव शक्ति हैं, शिव भक्ति हैं. महाशिवरात्रि शिव और पार्वती के वैवाहिक जीवन में प्रवेश का दिन होने के कारण प्रेम का दिन है। यह प्रेम त्याग और आनंद का पर्व है। शिव स्वयं आनंदमय हैं। कहते है मानव जब सभी प्रकार के बंधनों और सम्मोहनों से मुक्त हो जाता है तो स्वयं शिव के समान हो जाता है। समस्त भौतिक बंधनों से मुक्ति होने पर ही मनुष्य को शिवत्व प्राप्त होता है। 

वैसे भी शिव को किसी सांचे में ढालकर उसकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता। सनातन संस्कृति के संदर्भ में सदाशिव की उपासना पौराणिक काल से मानी जाती है। महाभारत के द्रोण पर्व से ज्ञात होता है कि योगेश्वर श्रीकृष्ण के परामर्श से अर्जुन ने पाशुपत अस्त्र प्रज्ञपत करने के लिए हिमालय पर जाकर शिव की आराधना की थी। भगवान शिव आदिशक्ति मां पार्वती के बिना अर्थहीन है। इसलिए उनका एक नाम अर्धनारीश्वर भी है। दरअसल, जगत का कल्याण करने वाले भगवान आशुतोष सत्यम शिव और सुंदरम के साश्वत प्रतीक माने जाते हैं। भगवान आशुतोष के कल्याणसुंदरम स्वरुप को ही शिवत्व कहा गया है। आदियोगी का यह शिवत्व स्वरुप ही मनुष्य के अस्तित्व की उर्जा के सृजनात्मक रुपांतरण का सूचक है। इस कल्याणसुंदरम स्वरुप के आध्यात्मिक रहस्यों की अनुभूति का श्रेष्ठतम पर्व है महाशिवरात्रि। वस्तुतः माशिवरात्रि की महत्ता फलीभूत तब होती है जब इस पर्व के शिव तत्व को हृदय से विस्मृत किया जाएं। शिव का अर्थ ही परोपकारी है। दरअसल शिवरात्रि को एक प्रतिकात्मक परंपरागत पर्व की भांति नहीं बल्कि त्रिगुणात्मक प्रकृति के स्वरुप से अपने अस्तित्व को जोड़ने के सुअवसर की तरह समझना चाहिए।

खास यह है कि महाशिवरात्रि पर ही 144 साल आए इस महाकुंभ का समापन आखिरी महास्नान होगा। इस अंतिम और शुभ तिथि पर सूर्य, चंद्रमा और शनि का विशेष त्रिग्रही योग को समृद्धि और सफलता के प्रतीक के रुप में देखा जा रहा है। इस दिन शिव योग और सिद्ध योग का संयोग बन रहा है. इसके अलावा महाशिवरात्रि पर अमृत सिद्धि योग का भी निर्माण हो रहा है। कहा जा रहा हैं कि इन संयोगों पर स्नान करने का महत्व बढ़ जाता हैं। इस दौरान त्रिवेणी संगम में स्नान करने से व्यक्ति को भगवान शिव की कृपा से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि की रात में ब्रह्माण्ड में ग्रह और नक्षत्रों की ऐसी स्थिति होती है जिससे एक खास ऊर्जा का प्रवाह होता है. इस रात ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के भीतर की ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाने लगती है यानी प्रकृति स्वयं मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद कर रही होती है. इसलिए  महाशिवरात्रि की रात में जागरण करने रीढ़ की हड्डी सीधी करके ध्यान मुद्रा में बैठने की बात कही गई है. महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जगत में रहते हुए मुष्य का कल्याण करने वाला व्रत है महाशिवरात्रि। इस व्रत को रखने से साधक के सभी दुखों, पीड़ाओं का अंत तो होता ही है साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है। कहने का मतलब है कि शिव की साधना से धन-धान्य, सुख-सौभाग्य,और समृद्धि की कमी कभी नहीं होती। भक्ति और भाव से स्वतः के लिए तो करना ही चाहिए सात ही जगत के कल्याण के लिए भगवान आशुतोष की आराधना करनी चाहिए। मनसा...वाचा...कर्मणा हमें शिव की आराधना करनी चाहिए। भगवान भोलेनाथ..नीलकण्ठ हैं, विश्वनाथ है। शास्त्रों में प्रदोषकाल यानि सूर्यास्त होने के बाद रात्रि होने के मध्य की अवधि, मतलब सूर्यास्त होने के बाद के 2 घंटे 24 मिनट की अवधि प्रदोष काल कहलाती है। इसी समय भगवान आशुतोष प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते है। इसी समय सर्वजनप्रिय भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही वजह है, कि प्रदोषकाल में शिव पूजा या शिवरात्रि में औघड़दानी भगवान शिव का जागरण करना विशेष कल्याणकारी कहा गया है।

महाशिवरात्रि पूजन का प्रभाव हमारे जीवन पर बड़ा ही व्यापक रूप से पड़ता है। सदाशिव प्रसन्न होकर हमें धन-धान्य, सुख-समृधि, यश तथा वृद्धि देते हैं। महाशिवरात्रि पूजन को विधिवत करने से हमें सदाशिव का सानिध्य प्राप्त होता है और उनकी महती कृपा से हमारा कल्याण होता है। शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता में बताया गया है कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। देवताओं के पूछने पर भगवान सदाशिव ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य की प्राप्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि परम कल्याणकारी व्रत है जिसके विधिपूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि वे अपने साधकों से पान फूल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। बस भाव होना चाहिए। इस व्रत को जनसाधारण स्त्री-पुरुष, बच्चा, युवा और वृद्ध सभी करते है। धनवान हो या निर्धन, श्रद्धालु अपने सामर्थ्य के अनुसार इस दिन रुद्राभिषेक, यज्ञ और पूजन करते हैं। भाव से भगवान आशुतोष को प्रसन्ना करने का हर संभव प्रयास करते हैं। महाशिवरात्रि का ये महाव्रत हमें प्रदोष निशीथ काल में ही करना चाहिए। जो व्यक्ति इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करने में असमर्थ हो, उन्हें रात्रि के प्रारम्भ में तथा अर्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन अवश्य करना चाहिए। व्रत करने वाले पुरुष को शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान नित्यकर्म से निवृत्त होकर ललाट पर भस्मका त्रिपुण्ड तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण कर शिवालय में जाना चाहिए। शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं भगवान शिव को प्रणाम करना चाहिये। तत्पश्चात उसे श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प करना चाहिये। लिंग पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव रात को तांडव नृत्य किया था. इस तांडव से सृजन और विनाश की अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाता है

सुख-शांति-वैभव और मोक्ष

महाशिवरात्रि पूजन का प्रभाव हमारे जीवन पर बड़ा ही व्यापक रूप से पड़ता है। सदाशिव प्रसन्न होकर हमें धन-धान्य, सुख-समृधि, यश तथा वृद्धि देते हैं। महाशिवरात्रि पूजन को विधिवत करने से हमें सदाशिव का सानिध्य प्राप्त होता है और उनकी महती कृपा से हमारा कल्याण होता है। शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता में बताया गया है कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। देवताओं के पूछने पर भगवान सदाशिव ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य की प्राप्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि परम कल्याणकारी व्रत है जिसके विधिपूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल की प्राप्ति होती है।

शिव का अभिषेक

अभिषेक यानी स्नान करना या कराना। रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर जाना जाता है। अभिषेक के कई प्रकार तथा रुप होते हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। शास्त्रों में भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है।

उपवास

 शिवरात्रि पर सच्चा उपवास यही है कि हम परमात्मा शिव से बुुद्ध योग लगाकर उनके समीप रहे। उपवास का अर्थ ही है समीप रहना। जागरण का सच्चा अर्थ भी काम, क्रोध आदि पांच विकारों के वशीभूत होकर अज्ञान रूपी कुम्भकरण की निद्रा में सो जाने से स्वयं को सदा बचाए रखना है।

अनंत के साथ एकाकार होना ही शिवयोग

शिव योग का गहरा अर्थ है। शिव का मतलब केवल भगवान शिव नहीं हैं, बल्कि शिव नाम किसी नाम या रूप की सीमाओं से मुक्त है। शिव का अर्थ है अनंत, जिसे ईश्वर, सर्वशक्तिमान, सार्वभौम चेतना आदि के नाम से भी जाना जाता है। योग का अर्थ है एकीकृत होना या विलीन करना। इस तरह शिव योग का अर्थ हुआ अनंत के साथ एकाकार होना या ईश्वर के साथ एकीकृत हो जाना। लेकिन अनंत क्या है, क्या है एकीकृत होना? बाबा जी कहते हैं, यह कहना गलत होगा कि ईश्वर की अनुभूति केवल आत्मदमन से ही संभव है। निश्चित ही यह भी रास्ता है, लेकिन दूसरे रास्ते भी हैं, जिसे विलक्षण संतों ने समझा और जो आज के युग में सर्वाधिक उपयुक्त है। यह रास्ता है दुनियावी कर्तव्यों आंतरिक दायित्वों के बीच खुद में संतुलन बनाने का। किसी भी एक की सिद्धि दूसरे की कीमत पर नहीं की जा सकती। व्यवहार का यह विकास खुद भगवान शिव में दिखता है, जो कम प्रयास से अधिक लाभ सुनिश्चित करता है। गृहस्थ के पास अपने आध्यात्मिक विकास को मापने का बेहतर यंत्र होता है। पहाड़ों पर अकेले रहकर कोई भी कह सकता है कि उसने ईर्ष्या-द्वेष पर विजय पा ली। इसकी सही पहचान तभी होती है, जब विभिन्न तरह की स्थितियों में इसे मापा जाए। शिव योग स्वयं को जगाना सिखाता है, जो निश्चित रूप से अकेलापन नहीं है। शिव योग यह समझना है कि धैर्य की अनंत ऊर्जा कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर है।

महाशिवरात्रि मंत्र एवं समर्पण

महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान ओउम् हीं ईशानाय नमः का जाप करना चाहिए। द्वितीय प्रहर में दूध से स्नान करके ओउम् हीं अधोराय नमः का जाप तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र ओउम् हीं वामदेवाय नमः तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं ओउम् हीं सद्योजाताय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए। पूजा के समय ओम नमः शिवाय एवं शिवाय नमः मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। ध्यान, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पयः स्नान, दूध स्नान, घृत स्नान, गंधोदक स्नान, शर्करा स्नान, पंचामृत स्नान, शुद्धोदक स्नान, अभिषेक, वस्त्र, यज्ञोपवीत, बिल्व पत्र, नाना परिमल दव्य, धूप दीप नैवेद्य करोद्वर्तन (चंदन का लेप) ऋतुफल, तांबूल-पुंगीफल, दक्षिणा उपर्युक्त उपचार कर समर्पयामि कहकर पूजा संपन्ना करनी चाहिए। इसके पश्चात कपूर आदि से आरती पूर्ण कर प्रदक्षिणा, पुष्पांजलि, शाष्टांग प्रणाम कर महाशिवरात्रि पूजन कर्म शिवार्पण करने का विधान है। शिवरात्रि पर सच्चा उपवास यही है कि हम परमात्मा शिव से बुुद्ध योग लगाकर उनके समीप रहे। उपवास का अर्थ ही है समीप रहना। जागरण का सच्चा अर्थ भी काम, क्रोध आदि पांच विकारों के वशीभूत होकर अज्ञान रूपी कुम्भकरण की निद्रा में सो जाने से स्वयं को सदा बचाए रखना है।

 

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