ट्रंप के टैरिफ से कारपेट इंडस्ट्री में भूचाल, लगेगा 1100 करोड़ का फटका
कालीन निर्यातकों
में
तैयार
उत्पादों
के
डंप
होने
का
मंडराने
लगा
है
खतरा
इसके लागू
होने
की
तिथि
भले
ही
2 अप्रैल
है,
लेकिन
अमेरिकी
खरीदारों
ने
अभी
से
ई-मेल
कर
क्रिसमस
व
डोमेटेक्स
फेयर
में
दिए
गए
करोड़ों
के
आर्डर
को
होल्ड
पर
करवाना
शुरु
दिए
है
अमेरिका में
इक्सपोर्ट
होने
वाले
कालीनों
पर
2.5 से
8 फीसदी
ड्यूटी
है,
जो
नाममात्र
का
है।
ऐसे
में
अगर
ड्यूटी
खत्म
कर
दिया
जाएं
इक्सपोर्ट
में
20 फीसदी
का
इजाफा
हो
सकता
है
: सीईपीसी
चेयरमैन
सुरेश गांधी
वाराणसी। अमेरिका रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने पूर्वांचल की सबसे बड़ी
हस्तशिल्प इंडस्ट्री कारपेट व साडी कारोबार
के निर्यातकों की नींद हराम
हो गई है। खास
यह है कि इसके
लागू होने की तिथि
भले ही 2 अप्रैल है,
लेकिन अमेरिकी खरीदारों ने अभी से
ई-मेल कर क्रिसमस
व डोमेटेक्स फेयर में दिए
गए करोड़ों के आर्डर को
होल्ड पर करवाना शुरु
दिए है। ऐसे में
निर्यातकों के गोदामों में
रखे करोड़ों के कालीन व
अन्य उत्पाद न सिर्फ डंप
होने, बल्कि लाखों बुनकरों की आजीविका पर
गंभीर खतरा मंडराने लगा
है। बता दें, यूपी,
दिल्ली, पानीपत, जम्मू-कश्मीर, जयपुर आदि शहरों से
लगभग 11000 करोड़ का कालीन
निर्यात होता है और
इसकी बुनाई में लगभग 10 लाख
से अधिक गरीब बुनकर
मजदूर लगे हैं।
कारपेट इक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल के चेयरमैन कुलदीप
राज वट्ठल का कहना है
कि इस मामले में
उन्होंने वाणिज्य मंत्रालय को पत्र भेजकर
हस्तक्षेप की मांग की
है। उनका कहना है
कि अमेरिका में इक्सपोर्ट होने
वाले कालीनों पर 2.5 से 8 फीसदी ड्यूटी
है, जो नाममात्र का
है। ऐसे में अगर
ड्यूटी खत्म कर दिया
जाएं इक्सपोर्ट में 20 फीसदी का इजाफा हो
सकता है। हालांकी अमेरिका
गरीब हितैशी मुल्क है और ग्रामीण
अंचलों में बनने वाली
कारपेट बुनाई में भी गरीब
तबका ही जुड़ा है,
इसलिए हैंडनॉटेड कारपेट को रेसिप्रोकल टैरिफ
से मुक्त रखा जा सकता
है। लेकिन मशीनमेड कालीनों पर खतरा जरुर
है। उनका कहना है
कि अमेरिका में हैंडमेड कालीन
नहीं बनता है और
उनका पसंदीदा भारतीय हैंडमेड कारपेट ही है।
हर साल 11000 करोड़ का निर्यात होता है
भारत के यूपी,
महाराष्ट्र, दिल्ली, पानीपत, जम्मू-कश्मीर, जयपुर आदि शहरों से
अमेरिका को लगभग 11000 करोड़
का कालीन निर्यात होता है और
इसकी बुनाई में लगभग 10 लाख
से अधिक गरीब बुनकर
मजदूर लगे हैं। इन
इलाकों के करीब 1600 निर्यातक
हस्तशिल्प उत्पाद से जुड़े हैं.
जो अमेरिका, जापान, इंग्लैंड, टर्की समेत अन्य देशों
को हर साल 16000 से
करोड़ से अधिक के
हस्तशिल्प उत्पादों का निर्यात करते
है. इनमें सबसे ज्यादा निर्यात
अमेरिका को होता है.
निर्यातकों के अनुसार ट्रंप
की इस घोषणा के
तहत 25 प्रतिशत टैरिफ लग सकता है।
इससे हस्तशिल्प निर्यातकों को 1100 करोड़ से अधिक
का नुकसान होगा.
विदेशी खरीदार देंगे कम आर्डर
निर्यातकों ने बताया कि
यदि भारत से अमेरिका
निर्यात होने वाले हस्तशिल्प
उत्पाद पर टैरिफ लगता
है. तो विदेशी खरीदार
कम ऑर्डर देंगे और निर्यात घट
जाएगा. वहीं कुछ निर्यातकों
का कहना है कि
रूस-यूक्रेन युद्ध से निर्यात में
पहले से ही कमी
आई है. इसके साथ
ही जहाजों के घूमकर जाने
के कारण हस्तशिल्प उत्पाद
खरीदारों के पास समय
से नहीं पहुंच पाते
हैं. इसके कारण भी
हस्तशिल्प निर्यातकों को समस्या का
सामना करना पड़ रहा
है. सीईपीसी के पूर्व प्रशासनिक
सदस्य उमेश गुप्ता का
कहना है कि खरीदार
एक महीने से टैरिफ लगने
का इंतजार कर रहे थे,
जो भी ऑर्डर हुए
हैं, वह होल्ड पर
हैं. ट्रंप के टैरिफ बढ़ाने
के एलान से ऑर्डर
कम से कम मिलने
का अनुमान है.
अमेरिका में 20 खरीदारों के स्टोर हुए बंद
निर्यात से जुड़े कारोबारियों
का कहना है पिछले
पांच साल में मंदी
आने के कारण हस्तशिल्प
उत्पाद का आयात करने
वाले अमेरिका के 20 से अधिक स्टोर
बंद हो चुके हैं.
इससे निर्यातकों को काफी नुकसान
उठाना पड़ रहा है.
निर्यातकों के मुताबिक डोनाल्ड
ट्रंप द्वारा टैरिफ के ऐलान से हस्तशिल्प उत्पाद
के 20 से 30 प्रतिशत खरीदारों की घटने की
उम्मीद है. हस्तशिल्प उद्योग
का करीब 60 फीसदी निर्यात अमेरिका को होता है.
टैरिफ को लेकर अभी
असमंजस की स्थिति है.
ऐसे हालात में विदेशी ग्राहकों
ने ऑर्डर रोक दिए गए
हैं. उनकी ओर से
नए ऑर्डर नहीं आ रहे
हैं. इससे कारोबार प्रभावित
होगा.
अमेरिका में भारत से
सबसे ज्यादा मोबाइल फोंस, कट एंड पॉलिश्ड
जेमस्टोन, टेक्सटाइल और फार्मा प्रोडक्ट्स
का एक्सपोर्ट होता है. अगर
अमेरिका इन पर अतिरिक्त
आयात शुल्क लगता है तो
इसका असर एक्सपोर्ट पर
पड़ेगा. जानकारों का मानना है
कि यह संकट 2007-08 के
वित्तीय संकट और कोविड
महामारी के बाद सबसे
बड़ी उथल-पुथल साबित
हो सकती है। आशंका
जताई जा रही है
कि ट्रंप द्वारा संभावित यूनिवर्सल और रिसिप्रोकल टैरिफ
(वैश्विक और पारस्परिक शुल्क)
लागू करने से एक
नए ग्लोबल ट्रेड वॉर की शुरुआत
हो सकती है, जिससे
वैश्विक अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका
लग सकता है। क्योंकि
ट्रंप की नीतियां भले
ही अमेरिका की आर्थिक मजबूती
दिखाने का प्रयास कर
रही हों, लेकिन इनसे
वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बढ़ने
की आशंका है। यह (टैरिफ
का खतरा) अब केवल चेतावनी
भर नहीं रह गया
है, बल्कि यह एक व्यापक
व्यापार युद्ध का रूप लेता
दिख रहा है। हालांकि,
इसके प्रभाव की पूरी तस्वीर
अब भी स्पष्ट नहीं
है, खासकर जब 2 अप्रैल से
व्यापक जवाबी टैरिफ लागू होने वाले
हैं। उभरते बाजार, जो पहले से
ही सख्त वित्तीय हालात
का सामना कर रहे हैं,
इस स्थिति में और ज्यादा
प्रभावित हो सकते हैं।
बाजार में अनिश्चितता का माहौल
अमेरिका में ट्रंप टैरिफ
की वजह से बाजार
में अनिश्चितता बढ़ गई है,
जिससे निवेशकों की चिंता बढ़
रही है। मौजूदा हालात
में किसी भी नई
खबर या घटनाक्रम से
बाजार में भारी उतार-चढ़ाव देखने को
मिल सकता है। अमेरिका
के लिए चीन, कनाडा
और मैक्सिको द्वारा लगाए गए जवाबी
टैरिफ से बचना मुश्किल
होगा। इसके परिणामस्वरूप, अमेरिका
में महंगाई बढ़ेगी और फेडरल रिजर्व
सख्त रुख अपना सकता
है। बाजार के नजरिए से
देखें तो टैरिफ को
लेकर अनिश्चितता के कारण बाजार
में घबराहट देखी गई। इसके
साथ ही उभरते बाजारों
की तुलना में विकसित बाजारों
की आकर्षक स्थिति, चीन में नीतिगत
बदलावों के चलते निवेशकों
की रुचि और घरेलू
स्तर पर दिसंबर 2024 तिमाही
के कमजोर कॉर्पोरेट नतीजों ने भी बाजार
पर दबाव बनाया। रिपोर्ट
के अनुसार देश की ग्रोथ
बढ़ाने और ट्रंप टैरिफ
से उपजी अनिश्चितता से
बचाने के लिए भारत
के पास चार कवच
हैं. जिसमें पहला महंगाई का
कम होना, वित्त वर्ष 2025-2026 के लिए केंद्रीय
बजट में घोषित टैक्स
बेनिफिट और तीसरा कवच
लोअर इंट्रस्ट रेट है, चौथ
कवच है सरकारी कैपेक्स
है. उन्होंने बताया कि अब विदेश
से ऑर्डर हासिल करने वाले निर्यातकों
को उत्पादों में तब्दीली करनी
होगी। यह माल अब
किसी और देश में
भेजना पड़ेगा लेकिन वहां से उतरा
मुनाफा नहीं होगा। फेयर
में भी माल खपाना
मुश्किल होगा। टैरिफ लगने से निर्यातकों
के समक्ष गंभीर चुनौती खड़ी हो गई
है।
इंतजार कर रहे निर्यातक
कुछ दिनों में
टैरिफ का मामला सुलझने
की संभावना है। भारत सरकार
अमेरिका की बाइक, दवाएं,
ऑटो पार्ट्स, एग्रीकल्चर प्रोडक्ट पर टैरिफ घटाने
की तैयारी कर रही है।
इसके बाद अमेरिका भी
टैरिफ हटा सकता है।
इसलिए अभी इंतजार कर
रहे हैं।
माल निकालने की मची होड़
निर्यात बाजार ठंडा होने के
कारण निर्यातकों में माल निकालने
की होड़ लगी है।
इसी कारण आयोजित होने
वाले फेयर में स्टॉल
लगाने के लिए क्षमता
से दोगुना आवेदन हुए हैं। फेयर
में स्टॉल लगाने के लिए 40 हजार
वर्गमीटर स्थान आरक्षित है। विदेशी खरीदारों
को अपना माल दिखाने
और ऑर्डर लेने के लिए
फेयर एक बड़ा प्लेटफॉर्म
माना जाता है। स्टॉल
लगाने पर प्रदेश सरकार
से निर्यातकों को सब्सिडी मिलती
है।
No comments:
Post a Comment