मोदी के क्षेत्र में मच्छरों का आतंक,
फाइलों में दिन-रात हो रही फागिंग
गंदगी से
बजबजाते
नाले-नालियां
हैं
मच्छरों
के
पनपने
की
बड़ी
वजह
जनता परेशान
लेकिन
जिम्मेदार
नहीं
दे
रहे
ध्यान
बाजार में
बिक
रहे
रिफिल
व
क्वायल
का
कोई
असर
नहीं
सुरेश गांधी
वाराणसी। बदलते मौसम से प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में इन दिनों मच्छरों का आतंक है। शाम होते ही मच्छरों का आतंक इस कदर है कि उन पर बाजार में बिक रहे रिफिल व क्वायल का कोई असर नहीं हैं। परिणाम यह है कि लोगों की रातें मच्छरों को हकाने में ही बीत रहा है। इससे सबसे ज्यादा पीड़ित नन्हें-मुन्ने बच्चे हैं। हाल यह है कि मच्छरों के दंश से बच्चे तरह-तरह के संक्रमित बीमारियों से ग्रसित तो हैं ही माताओं की रतजगा से वे बगैर टिफिन के ही स्कूल जाने को विवश है। मच्छरों के पनपने की मुख्य वजह नाले नालियां में जमा गंदा पानी और जगह जगह फैली गंदगी है। लेकिन निगम के अफसरों की फाइलों में कर्मचारी दिन-रात फागिंग व दवा छिड़काव कर मच्छरों पर नियंत्रण के प्रयास में जुटे हैं।
अधिकारियों के मुताबिक, मच्छरों
के बढ़ने का कारण
तापमान में उतार-चढ़ाव
है, क्योंकि गर्मी अधिक नहीं होने
के कारण मच्छर तेजी
से पनप रहे हैं।
शहर तापमान और आर्द्रता में
वृद्धि के साथ मौसम
परिवर्तन के दौर से
गुजर रहा है, जिससे
मच्छरों का घनत्व बढ़
रहा है। हाल ही
में कांग्रेस ने भी इस
मुद्दे को उठाया था।
इसमें उन्होंने आरोप लगाया था
कि मच्छरों के प्रकोप को
कम करने के लिए
दवाइयों का छिड़काव भी
नहीं हो रहा। बता
दें, शहरी क्षेत्र में
बदलते मौसम में मच्छरों
का प्रकोप तेजी से बढ़ने
लगा है। शाम होते
ही मच्छरों लोगों का जीना दूभर
कर देते हैं। इससे
बीमारियों के फैलने की
आशंका बढ़ गई है।
ग्रामीण क्षेत्र में मच्छरों की
बढ़ती संख्या और डंक ने
लोगों की नाक में
दम कर दिया है।
सोते- जागते, उठते-बैठते हर
वक्त मच्छरों की भिनभिनाहट और
डंक से लोग परेशान
हैं। बावजूद इसके स्वास्थ्य विभाग
सहित अन्य जिम्मेदार विभाग
लापरवाह बने हुए हैं।
ग्रामीण क्षेत्र में फागिंग कब
हुई किसी को याद
नहीं है।
इस मौसम में
मच्छरों का प्रकोप रहता
है। ये मच्छर डेंगू
या मलेरिया नहीं फैलाते हैं,
बल्कि नालों में रुके हुए
पानी में में पनपते
हैं। जल निकासी लाइनों
में दुर्गम पानी भी इनके
पनपते का कारण है।
वहीं एडीज और एनोफेलीज
डेंगू और मलेरिया फैलाते
हैं, लेकिन अभी इनका प्रकोप
अधिक नहीं है। गर्मी
में इस प्रकार के
मच्छरों का घनत्व बढ़
जाता है, क्योंकि लोग
बिना ढंके कंटेनरों में
पानी जमा करते हैं।
शहरवासियों का कहना है
कि हम न केवल
अपने घर के पास,
बल्कि कार्यालय या शहर में
कहीं भी जा रहे
हैं तो मच्छर मंडराते
रहते हैं। अपने घरों
की खिड़कियां और दरवाजे भी
खुल रखना बंद कर
दिए हैं, लेकिन सार्वजनिक
स्थानों पर या सार्वजनिक
परिवहन में हम क्या
कर सकते हैं।
शहर की गंदगी,
नाले का गंदा पानी,
जाम नाला की समस्या
है। सफाई कर्मियों के
नियमित न आने की
वजह से गंदगी पसरी
रहती है। नालियां गंदे
पानी से उफनती नजर
आती है और वह
पानी सड़क पर बहता
रहता है। इससे मच्छरों
का प्रकोप बढ़ा है। मच्छरों
को मारने के लिए कीटनाशक
दवाओं के छिड़काव को
लेकर स्वास्थ्य विभाग व नगर प्रशासन
ने आंखें बंद कर रखी
है। मच्छर की बढ़ती संख्या
का आलम है कि
रात नहीं, दिन में भी
इसका प्रकोप जारी रहता है।
वहीं संध्या होते ही लोगों
का किसी स्थान पर
बैठना मुश्किल हो जाता है।
घर हो या दुकान,
हर जगह मच्छरों का
आतंक बढ़ गया है।
सुबह हो या शाम
मच्छरों का हमला शुरू
हो जाता है। इसके
चलते संक्रमण का खतरा, बीमारी
के भय से लोग
दिन में भी मच्छरदानी
तथा मच्छर भगाने वाले क्वायल का
प्रयोग करते हैं।
स्वच्छता अभियान को मुंह चिढ़ा रही गलियां और कालोनियां
स्वच्छ सर्वेक्षण समाप्त होने के बाद
शहर में एक बार
फिर स्वच्छता को लेकर सुस्ती
का आलम नजर आने
लगा है। शहर की
सड़कों पर गंदगी भले
ही नजर न आए
लेकिन गलियों और कालोनियों के
भीतर की सड़कों की
सफाई मोदी के स्वच्छता
अभियान को मुंह चिढ़ा
रही है। जिम्मेदार अफसरों
का कहना है कि
शहर में तापमान के
उतार-चढ़ाव के कारण
मच्छर बढ़ रहे हैं।
हमारी टीम लगातार इनके
प्रकोप को कम करने
के लिए काम कर
रही है। लोगों को
ध्यान रखना चाहिए कि
घर और घरों के
आसपास कहीं भी पानी
एकत्र न होने दें।
शहर के अलग-अलग
इलाकों में फागिंग मशीनों
का उपयोग किया जा रहा
है। खुली नालियों व
जल जमाव वाले इलाकों
में लार्वा साइकल व केमिकल का
छिड़काव भी करवाया जा
रहा है।
क्वायल सेहत के लिए हानिकारक
हाल यह है
कि मच्छरों को भगाने के
लिए जलाए जाने वाले
क्वायल व मच्छर अगरबत्ती
सहित अन्य उपाय भी
कारगर साबित नहीं हो पा
रहे हैं। लोग ज्यादा
देर क्वायल इसलिए भी नहीं जला
पा रहे हैं कि
इसका धुआं स्वास्थ्य के
लिए हानिकारक है। ग्रामीण क्षेत्र
में तो शाम ढलते
ही मच्छरों का प्रकोप इस
कदर बढ़ जाता है
कि लोगों का चैन से
बैठना भी मुहाल हो
गया है। लोगों को
मच्छरों के काटने से
होने वाले संक्रमण का
भी डर सताने लगा
है।
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