बुलडोजर ही अबू आजमी का इलाज?
सपा
विधायक
अबू
आजमी
के
औरंगजेब
प्रेम
पर
महाराष्ट्र
ही
नहीं
यूपी-बिहार
सहित
पूरे
देश
की
सियासत
उबल
रही
है.
उनके
इस
प्रेम
पर
उनकी
विधायकी
खारिज
होने
के
बाद
अब
गिरफ्तारी
की
भी
मांग
उठ
रही
है.
फडणवीस
व
शिंदे
से
लेकर
यूपी
सीएम
योगी
आदित्यनाथ
ने
भी
अबू
आजमी
के
खिलाफ
मोर्चा
खोल
दिया
है.
खासतौर
से
बुलडोजर
बाबा
की
भृकुटी
उस
वक्त
तन
गयी
जब
अबू
आजमी
का
समर्थन
करके
अखिलेश
यादव
ने
उन्हें
ललकारा।
हालांकि
अखिलेश
यादव
को
पता
है
उमेश
पाल
हत्याकांड
पर
बाबा
को
घेरा
गया
तो
वो
मिट्टी
में
मिल
गया।
अब
जब
अखिलेश
का
औरंगजेब
प्रेम
छलका
है
तो
लोगों
के
मन
में
एक
ही
सवाल
है,
क्या
बाबा
अबू
आजमी
के
काले
साम्राज्य
पर
चलेगा
बुलडोजर?
दुसरा
बड़ा
सवाल,
क्या
यह
सच
नहीं
है,
6 अप्रैल
1669 को
औरंगजेब
ने
हिंदू मंदिरों को
तोड़ने
का
आदेश
दिया
और
फिर
2 सितंबर
1669 को
उसके
आदेश
का
पालन
किया
गया.
काशी,
मथुरा
सहित
कई
बड़े
शहरों
में
हिन्दूओं
के
ऐतिहासिक
मंदिरों
को
तोड़
दिया
गया।
काशी
के
ज्ञानवापी
की
दीवारे
तो
चीख-चीख
कर
औरंगजेब
की
क्रूरतरा
को
बयां
कर
रही
है।
ऐसे
शासक
की
प्रशंसा
क्यों?
क्या
यह
छत्रपति
शिवाजी
महाराज
की
विरासत
और
छत्रपति
संभा
जी
महाराज
के
बलिदान
का
क्रूर
मजाक
नहीं
है?
खासतौर
से
वह
औरंगजेब
जिसने
अपने
ही
भाइयों
को
मारने
और
अपने
पिता
को
कैद
कर
रखा
था।
ऐसे
अधर्मी
व्यक्ति
की
महिमामंडन
किया
जायेगा
तो
सवाल
पूछा
ही
जायेगा,
औरंगजेब
का
भारत
की
धरती
से
क्या
रिश्ता
है?
क्या
समाजवादी
पार्टी
और
कांग्रेस
औरंगजेब
के
सहारे
देश
में
नफरत
के
बीज
बो
रही
है?
स्वामी
रामभद्राचार्य
ने
अबु
आजमी
मामले
ूमें
कहा,
अब
तो
औरंगजेब
की
कब्र
पर
बुजडोजर
चलाने
की
जरुरत
है।
सुरेश गांधी
फिरहाल, औरंगजेब पर देशभर में सियासी महाभारत छिड़ गई है. महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी के औरंगजेब की तारीफ करने वाले बयान के बाद उन्हें विधानसभा से निलंबित कर दिया गया है. अब उनकी गिरफ्तारी की संभावना है. कई नेताओं ने अबू आजमी का सपोर्ट भी किया है। जवाब में भाजपा सहित उसके आनुसंगिंक संगठने भी मुखर हो गयी है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साफ शब्दों में कहा है छत्रपति शिवाजी का अपमान सहन नहीं किया जाएगा, वो अबू आजमी को “शत प्रतिशत जेल में” डालेंगे। महाराष्ट्र में सभी दलों ने अबू आजमी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। इनमें वो पार्टियां भी हैं जिनका समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन है, लेकिन अखिलेश यादव ने अबू आजमी के निलम्बन का विरोध किया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल उठाया। तो यूपी के बुलडोजर वाले बाबा ने भी पलटवार जवाब देते हुए कहा समाजवादी पार्टी औरंगजेब को अपना आदर्श मानने लगी है, जिस कमबख्त ने औरंगजेब की तारीफ की है, उसे यूपी भेज दिया जाए, यूपी सरकार उसका ढंग से इलाज कर देगी।
औरंगजेब की क्रूरता के बारे में, हिन्दुओं के प्रति उसकी नफरत के बारे में देश का बच्चा-बच्चा जानता है। जिस औरंजगेब ने अपने पिता को मौत तक कैद में रखा हो, दिन में सिर्फ एक मुट्ठी चने खाने को देता हो, प्यासा रखता हो, जिस औरंगजेब ने अपने भाई का कत्ल करके उसकी गर्दन पूरे राज्य में घुमाई हो, सभी भाइयों को सत्ता के लिए मौत के घाट उतारा हो, जिस औरंगजेब ने एक-एक दिन में एक लाख हिन्दुओं का कत्ल किया हो, सनातन को खत्म करने की कसम खाई हो, जिस औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज, गुरू तेगबहादुर, गुरू गोविन्द सिंह के साहिबजादों की निर्मम हत्या की हो, उन्हें शहीद किया हो, हिन्दुस्तान में रहकर कोई भी व्यक्ति उस क्रूर औरंगजेब का गुणगान कैसे कर सकता है? अबू आज़मी ने ये गुनाह किया। फिर अखिलेश यादव ने अबू आजमी का समर्थन करके आग में घी डालने का काम किया। इसीलिए योगी ने कहा कि “अब समाजवादी पार्टी के नेता न समाजवादी रह गए हैं, और न सनातनी।” उसको पार्टी से निकालो. उसको एक बार यूपी भेज दो, उपचार हम कर देंगे. क्या उसको भारत के अंदर रहने का अधिकार होना चाहिए? समाजवादी पार्टी को इस पर जवाब देना चाहिए अबू आजमी को पार्टी से क्यों नहीं निकालते?
सीएम ने कहा
कि समाजवादी पार्टी के मित्रों से
कहना चाहता हूं कि भारत
की विरासत पर आप गौरव
की अनुभूति नहीं करते, कम
से कम राम मनोहर
लोहिया की बात मान
लेते. उन्होंने कहा था कि
भारत के एकात्मकता के
तीन आधार हैं - भगवान
राम, भगवान शिव और भगवान
कृष्ण. मुख्यमंत्री ने कहा कि
डॉ. राम मनोहर लोहिया
प्रखर समाजवादी थे. आज समाजवादी
पार्टी लोहिया जी के विचारों
से कितनी दूर जा चुकी
है. आज भारत की
विरासत को कोसना समाजवादी
पार्टी का उद्देश्य हो
गया है। उद्धव ठाकरे
ने तो कहा अगर
अखिलेश को अबू आजमी
इतने पसंद है, तो
उन्हें यूपी से चुनाव
लड़वा लें। यहां जिक्र
करना जरुरी है कि महाराष्ट्र
में सपा के दो
विधायक हैं, दोनों मुस्लिम
हैं, दोनों मुस्लिम बहुल सीट से
जीतते हैं। इसलिए अबू
आजमी हों या रईस
शेख़, दोनों अपने वोट बैंक
के लिहाज से बयान देते
हैं। अखिलेश यादव भी जानते
हैं कि महाराष्ट्र में
उनकी पार्टी का कोई जनाधार
नहीं है, अबू आज़मी
अपने दम पर जीतते
हैं, महाराष्ट्र में वही समाजवादी
पार्टी के सर्वेसर्वा हैं,
अखिलेश उन्हें पद से हटा
नहीं सकते, इसलिए आज़मी का समर्थन
करना अखिलेश की मजबूरी है।
बता दें, महाराष्ट्र
में सपा नेता अबू
आजमी ने कहा कि
औरंगजेब को लेकर गलत
हिस्ट्री दिखाई जा रही है.
औरंगजेब ने बहुत सारी
मंदिरें बनवाईं हैं. आप बनारस
जाकर देखेंगे कि एक पंडित
की बच्ची से जब उनका
ही एक सिपहसलार शादी
करना चाहता था तो उन्होंने
उस सिपहसलार को दो हाथियों
के पैर में बांध
कर मार दिया और
फिर उन पंडितों ने
उनके लिए एक मस्जिद
बनवाकर दिया वहां पर.
क्या बात करते हैं.
ये गलत हिस्ट्री दिखा
रहे हैं. औरंगजेब को
मैं एक क्रूर शासक
नहीं मानता. औरंगजेब की सेनासे ना
में कई हिंदू थे, जैसे छपति
शिवाजी की सेना में
कई मुस्लिम थे. औरंगजेब एक
क्रूर शासक नहीं था
और उसने कई मंदिरों
का निर्माण कराया था. जो लोग
ये दावा करते हैं
कि छत्रपति संभा जी महाराज
और औरंगजेब के बीच हिंदू
और मुसलमान की लड़ाई थी,
वो लोग झूठ बोल
रहे हैं. इस बयान
पर विवाद बढ़ा तो अबू
आजमी के खिलाफ एफआईआर
दर्ज हो गइ. महाराष्ट्र
के उप मुख्यमंत्री एकनाथ
शिंदे ने आजमी की
विधानसभा की सदयता को
रद्द करने की मांग
की. इसी के बाद
से अबू आसिम आजमी
के ऊपर गिरफ्तारी की
तलवार लटक रही है।
मुगल बादशाह औरंगजेब पर दिए विवादास्पद
टिप्पणी के बाद आजमी
की मुश्किलें बढ़ गई है।
राज्य के मुख्यमंत्री देवेन्द्र
फडणवीस ने सदन में
कहा था कि आज़मी
को 100 फीसदी गिरफ्तार कर जेल भेजा
जाएगा। अबू आजमी विधानसभा
से पूरे सत्र के
लिए सस्पेंड हो चुके हैं।
वह 26 मार्च तक चलने वाले
बजट सत्र में अब
भाग नहीं ले पाएंगे।
अबू आजमी के खिलाफ
बीएनएस की 59/25 न/े 299, 302, 356(1), 356(2) में केस दर्ज
हुआ है। खास यह
है कि अबू आजमी
जहां औरंगजेब मामले में उलझे हैं
तो वहीं उनके बेटे
फरहान के खिलाफ गोवा
में केस दर्ज हुआ
है।
सबूतों का खजाना, फिर
आक्रांता औरंगजेब महान?
वेद-पुराणों से लेकर इतिहास में दर्ज है काशी दुनिया के सबसे प्राचीनतम से प्राचीन शहरों में से एक है। 2,500 साल से भी अधिक पुराना इसका इतिहास है। सारनाथ में अशोक की सिंह राजधानी को पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में बुद्ध के पहले उपदेश की स्मृति के रूप में व्याख्या किया गया है। जबकि इस्लाम का इतिहास 14 सौ साल पुराना है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कथित ज्ञानवापी मस्जिद हजारों साल पुरानी कैसे हो सकती है? दस्तावेजों के मुताबिक इस्लाम की पहली मस्जिद कुवत-उल-इस्लाम मस्जिद 12वीं सदी के अंत की है, तो कथित ज्ञानवापी का निर्माण कैसे हो गया? जबकि स्कंद पुराण में कहा गया, देवस्य दक्षिणी भागे वापी तिष्ठति शोभना। तस्यात वोदकं पीत्वा पुनर्जन्म ना विद्यते। अर्थात प्राचीन विश्ववेश्वर मंदिर के दक्षिण भाग में जो वापी है, उसका पानी पीने से जन्म मरण से मुक्ति मिलती है। वह औरंगजेब जिसने सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर सिंह का सर तन से जुदा करने की धमकी के बाबत न सिर्फ उन्हें बंदी बना लिया था, बल्कि जिस स्थान पर सिर धड़ से अलग किया था, वहां आज गुरुद्वारा साहिब बनाया गया है।
उसके
क्रूरता की किस्से का
आलम यह रहा कि
उसने अपने ही पिता
शाहजहां को जेल में
डाल दिया था। सत्ता
के लिए अपने ही
भाई दारा शिकोह का
धोखे से सिर धड़
से अलग कर दिया
था। जहां तक ज्ञानवापी
का सवाल है अगर
मुगलों ने काशी विश्वनाथ
मंदिर पर आक्रमण के
दौरान तोड़ा नहीं था
तो 1585 में राजा टोडरमल
ने किस काशी विश्वनाथ
मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
दस्तावेजों के मुताबिक 1669 में
औरंगजेब के आदेश पर
मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया
गया। उसके बाद 1780 में
इंदौर की महारानी अहिल्याबाई
होल्कर ने मौजूदा मंदिर
का निर्माण कराया। आलम गिरी पुस्तक
में भी दर्ज है
कि 1669 में काशी विश्वनाथ
मंदिर तोड़कर औरंगजेब ने मस्जिद बनाई।
वाराणसी न्यायालय में 18 अप्रैल 1869 का एक दस्तावेज
पेश किया गया है,
जिसमें कहा गया है
कि औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ
मंदिर को तोड़कर मस्जिद
बनवाया है। इन सबके
बावजूद 2018 में हिंदू पक्ष
ने हाईकोर्ट में जब एएसआई
सर्वे की मांग की
तो जवाब में मुस्लिम
पक्ष द्वारा औरंगजेब को को महान
शासक बताया गया है। लेकिन
बड़ा सवाल तो यही
है जब इस्लाम 14 सौ
साल पुराना है तो ज्ञानवापी
मस्जिद हजारों साल पुरानी कैसे
हो सकती है? इस्लाम
की सबसे पुरानी और
पहली मस्जिदों में से एक
कुवत-उल-इस्लाम मस्जिद
12 वीं सदी के अंत
में निर्माण होना बताया गया
है। जबकि वर्ष 1669 से
भी पहले काशी विश्वनाथ
मंदिर होने के सबूत
है। बता दें, औरंगजेब
का शासनकाल वर्ष 1658 से 1777 तक यानी 49 साल
शासन रहा। 1697 में औरंगजेब के
आदेश पर मथुरा वृदावन
का मंदिर तोड़ा गया। औरंगजेब
के ही कहने पर
1659 में गुजरात का सोमनाथ मंदिर
को भी तोड़ा गया।
चित्तौड़गढ़ में औरंगजेब ने
63 मंदिरों को तोड़वाया था।
ऐसे एक दो नहीं
हजारों साक्ष्य है जो चीख-चीख कर कह
रहे है काशी विश्वनाथ
मंदिर को तोड़कर मस्जिद
बनायी गयी है।
कब मुगल शासकों ने मंदिर तोड़ा
मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमणो ने
काशी के मंदिरों को
कई बार नष्ट किया।
मुहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन
ऐबक को बनारस विजय
के लिए भेजा। कुतुबुद्दीन
ऐबक के हमले में
बनारस के 1000 से भी अधिक
मंदिर तोड़े गए और
मंदिर की संपत्ति 1400 ऊंटों
पर लादकर मोहम्मद गोरी को भेज
दी गई। बाद मे
कुतुबुद्दीन को सुल्तान बनाकर,
गोरी अपने देश वापिस
लौट गया। कुतुबुद्दीन ऐबक
ने बनारस मे शासन के
लिए 1197 मे एक अधिकारी
नियुक्त किया था। बनारस
मे ऐबक के शासन
ने बड़ी कड़ाई के
साथ मूर्तिपूजा हटाने की पूरी कोशिश
की। इसका नतीजा ये
हुआ की क्षतिग्रस्त मंदिर
वर्षों तक ऐसी ही
पड़े रहे क्योंकि इन्होंने
ऐसा तोड़ा और ऐसा
इनका राज चलता था
की किसी की हिम्मत
ही नहीं हुई की
इन मंदिरों को फिर से
बनाए। लेकिन 1296 आते -आते, बनारस
के मंदिर फिर से बन
गए और फिर से
काशी की शोभा बढ़ाने
लगे। बाद मे अलाउद्दीन
खिलजी के समय, बनारस
के मंदिर फिर से तोड़े
गए। फिर 14वी सदी मे
तुगलक शासकों के दौर मे
जौनपुर और बनारस मे
कई मस्जिदो का निर्माण हुआ।
कहा जाता है, ये
सभी मस्जिदे, मंदिरो के अवशेषों पर
बनाई गई थी। 14वी
सदी मे जौनपुर मे
शर्की सुल्तानो ने पहली बार,
काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाया। 15वी
सदी मे सिकंदर लोदी
के समय भी बनारस
के सभी मंदिरों को
फिर से तोड़ा गया।
वर्षों तक मंदिर खंडहर
ही बने रहे। 16वीं
सदी मे अकबर के
शासन मे उनके वित्त
मंत्री टोडरमल ने अपने गुरु
नारायण भट्ट के आग्रह
पर 1585 मे विश्वेश्वर का
मंदिर बनवाया। जिसके बारे मे कहा
जाता है की यही
काशी विश्वनाथ का मंदिर है।
टोडरमल ने विधिपूर्वक, विश्वनाथ
मंदिर की स्थापना ज्ञानवापी
क्षेत्र मे की। इसी
ज़माने मे जयपुर के
राजा मानसिंह ने बिंदुमाधव का
मंदिर बनवाया लेकिन दोनों भव्य मंदिरों को
औरंगजेब के शासनकाल मे
फिर से तोड़ दिया
गया। 1669 मे औरंगजेब ने
बनारस के सभी मंदिरों
को तोड़ने का फरमान दे
दिया था, जिसके बाद
बनारस मे चार मस्जिदो
का निर्माण हुआ जिसमें से
तीन उस वक्त के
प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़कर बनी
थी। इसमे विश्वेश्वर मंदिर
की जगह जो मस्जिद
बनी उसे ज्ञानवापी मस्जिद
कहा जाता है।
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