‘सर्वार्थ सिद्धि व इंद्र योग’ में नवरात्र, देश में आएंगी ‘खुशहाली’
गुड़ी पड़वां हो या नवरात्र दोनों पवित्र पर्व है। इस तिथि को वर्ष प्रतिपदा और युगादि भी कहा जाता है। इस दिन हिंदू नववर्ष का प्रारंभ हुआ था। ब्रह्म पुराण के अनुसार इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का सृजन किया था। इसलिए इस दिन नया संवत्सर शुंरू होता है। अतः इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं। मान्यता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। देवी दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्र का प्रारंभ वर्ष प्रतिपदा से होता है। युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के साथ युगाब्द यानी युधिष्ठिर संवत का प्रारंभ भी इसी दिन से माना जाता है। इसी दिन उज्जयिनी के सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत का प्रारम्भ किया था। भारत सरकार के राष्ट्रीय पंचांग शालिवाहन शक संवत का प्रारंभ भी वर्ष प्रतिपदा को हुआ था। ज्योतिषाचार्यो के अनुसार 30 मार्च को चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ सर्वार्थ सिद्धि योग में हो रहा है। उस दिन इंद्र योग और रेवती नक्षत्र है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग शाम को 4ः35 मिनट से अगले दिन सुबह 06ः12 मिनट तक रहेगा। इस योग में आप जो भी कार्य करेंगे। वह सफल सिद्ध होंगे। यह एक शुभ योग है। खास यह है कि इस बार मां के आगमन व प्रस्थान की सवारी हाथी है। इससे देश और देशवासियों के जीवन में शांति और समृद्धि आयेंगी। इस साल अच्छी फसल होगी और बारिश की भी कमी नहीं होगी। लोगों के धन में वृद्धि होगी। शास्त्रों में मां के इस रूप को भक्तों की समस्त इच्छाएं पूर्ण करने वाला माना जाता है
सुरेश गांधी
सनातन धर्म में चैत्र नवरात्र सबसे पवित्र पर्व है. चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है. इसी दिन से भारतीय नववर्ष प्रारंभ होता है. चैत्र नवरात्रि पर शक्ति स्वरूपा माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस साल चैत्र नवरात्र का आरंभ 30 मार्च, रविवार से हो रहा है और यह 6 अप्रैल, रविवार को समापन होगा। खास यह है कि इस बार नवरात्र 8 दिन की हैं। क्योंकि इस बार अष्टमी और नवमी तिथि एक ही दिन पड़ रहे हैं. खास यह है कि इस बार कई शुभ योग बन रहे हैं। चार दिन रवियोग तथा तीन दिन सर्वार्थसिद्धि योग का संयोग रहेगा। इस समय में घटस्थापना आपके लिए बहुत ही लाभदायक और उन्नतिकारक सिद्ध हो सकता है।
ज्योतिषाचार्यो के अनुसार 30 मार्च को चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ सर्वार्थ सिद्धि योग में हो रहा है। उस दिन इंद्र योग और रेवती नक्षत्र है। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग शाम को 4ः35 मिनट से अगले दिन सुबह 06ः12 मिनट तक रहेगा। इस योग में आप जो भी कार्य करेंगे। वह सफल सिद्ध होंगे। यह एक शुभ योग है। पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 29 मार्च को शाम 4ः27 पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 30 मार्च को दोपहर 12ः49 मिनट पर होगा, उदया तिथि में चैत्र नवरात्रि 30 मार्च को मानी जाएगी। नवरात्र पूजा का आरंभ कलश स्थापना से होता है, जिसे मां का आवाहन करना माना जाता है। यह कलश स्थापना चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शुभ मुहूर्त में किया जाता है। ऐसे शुभ संयोग में भगवती की उपासना करने से श्रद्धालुओं पर भगवान भास्कर व माता लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। अभीष्ट सिद्धि व सर्व मनोकामना शीघ्र पूर्ण करने वाला यह समय है।कलश स्थापना मुहूर्त
प्रतिपदा
तिथि
समाप्त
: 30 मार्च,
दोपहर
12ः49
बजे
कलश
स्थापना
का
शुभ
मुहूर्तः
सुबह
6ः13
बजे
से
10ः22
बजे
तक
अभिजीत
मुहूर्तः
दोपहर
12ः01
बजे
से
12ः50
बजे
तक
चैत्र नवरात्र तिथि मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा
चै त्र नवरात्रि पर
मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की
पूजा की जाती है.
ऐसा करने से व्यक्ति
की सारी मनोकामनाएं पूरी
होती हैं और जीवन
में सुख-समृद्धि का
आती है. मानसिक सुकून
मिलता है. यह पर्व
शरीर और आत्मा की
शुद्धि का पर्व है.
नवरात्रि के पहले दिन
घटस्थापना या कलश स्थापना
की जाती है. इस
साल घटस्थापना के लिए पहला
मुहूर्त 30 मार्च 2025 की सुबह 06ः13
बजे से 10ः22 बजे
तक है. वहीं दूसरा
मुहूर्त (अभिजीत मुहूर्त) दोपहर 12ः01 बजे से
12ः50 बजे तक रहेगा.
इन मुहूर्तों में कलश स्थापना
करना विशेष फलदायक साबित होगा.
31 मार्च : नवरात्रि द्वितीया, मां ब्रह्मचारिणी पूजा
तृतीया- मां चंद्रघंटा पूजा
01 अप्रैल : नवरात्रि चतुर्थी, मां कुष्मांडा पूजा
02 अप्रैल : नवरात्रि पंचमी, मां स्कंदमाता पूजा
03 अप्रैल : नवरात्रि षष्ठी, मां कात्यायनी पूजा
04 अप्रैल : नवरात्रि सप्तमी, मां कालरात्रि पूजा
05 अप्रैल : नवरात्रि अष्टमी, मां महागौरी
06 अप्रैल : नवरात्रि नवमी, मां सिद्धिदात्री, रामनवमी
हाथी पर आयेंगी और हाथी पर ही प्रस्थान करेंगी
चैत्र नवरात्रि सप्ताह के किस दिन
से प्रारंभ और समाप्त हो
रही हैं, इससे मां
दुर्गा के आगमन व
प्रस्थान की सवारी का
पता चलता है. इस
बार चैत्र नवरात्रि रविवार से प्रारंभ हो
रही हैं और मां
दुर्गा हाथी पर सवार
होकर आएंगी. जबकि हाथी पर
ही प्रस्थान भी करेंगी। चैत्र
नवरात्रि में माता की
सवारी हाथी है. धर्म-शास्त्रों में मां दुर्गा
की हाथी की सवारी
को बेहद शुभ माना
गया है. माता की
हाथी की सवारी शांति,
स्मृति, और समृद्धि का
प्रतीक माना जाता है.
मां दुर्गा की इस सवारी
का मतलब है कि
यह देश और देशवासियों
के जीवन में शांति
और समृद्धि लाएगी. इस साल अच्छी
फसल होगी और बारिश
की भी कमी नहीं
होगी। लोगों के धन में
वृद्धि होगी। शास्त्रों में मां के
इस रूप को भक्तों
की समस्त इच्छाएं पूर्ण करने वाला माना
जाता है।
श्रीराम ने की थी पहला नवरात्र व्रत
माता दुर्गा स्वयं
शक्ति स्वरूपा हैं और नवरात्रि
में भक्त आध्यात्मिक बल,
सुख-समृद्धि की कामना के
साथ इनकी उपासना करते
हैं। नवरात्रि की शुरुआत जिनके
द्वारा हुई थी उन्होंने
भी माता से आध्यात्मिक
बल और विजय की
कामना की थी। वाल्मीकि
रामायण के अनुसार, किष्किंधा
के पास ऋष्यमूक पर्वत
पर लंका पर चढ़ाई
से पहले भगवान राम
ने माता दुर्गा की
उपासना की थी। ब्रह्मा
जी ने श्री राम
को माता दुर्गा के
स्वरूप, चंडी देवी की
पूजा करने की सलाह
दी थी। ब्रह्मा जी
की सलाह पाकर भगवान
राम ने प्रतिपदा तिथि
से नवमी तिथि तक
चंडी देवी का पाठ
किया था। बह्मा जी
ने चंडी पाठ के
साथ ही राम जी
को यह भी बताया
कि, पूजा सफल तभी
होगी जब चंडी पूजन
और हवन के बाद
108 नील कमल भी अर्पित
किये जाएंगे। ये नील कमल
अतिदुर्लभ माने जाते हैं।
राम जी को अपनी
सेना की मदद से
ये 108 नील कमल तो
मिल गये, लेकिन जब
रावण को ये बात
पता लगी तो उसने
अपनी मायावी शक्ति से एक नील
कमल गायब कर दिया।
चंडी पूजन के अंत
में भगवान राम ने जब
कमल के पुष्प चढ़ाए
तो एक कमल कम
निकला। ये देखकर वो
चिंतित हुए, लेकिन अंत
में उन्होंने कमल की जगह
अपनी एक आंख माता
चंढी पर अर्पित करने
का फैसला लिया। अपने नयन अर्पित
करने के लिए जैसे
ही उन्होंने तीर उठाया तभी
माता चंडी प्रकट हुईं।
माता चंडी उनकी भक्ति
से प्रसन्न हुईं और उन्हें
विजय का आशीर्वाद दिया।
प्रतिपदा से लेकर नवमी
तक माता चंडी को
प्रसन्न करने के लिए
श्री राम ने अन्न
जल भी ग्रहण नहीं
किया था। नौ दिनों
तक माता दुर्गा के
स्वरूप चंडी देवी की
पूजा करने के बाद
भगवान राम को रावण
पर विजय प्राप्त हुई।
ऐसा माना जाता है
कि तभी से नवरात्रि
की शुरुआत हुई, और भगवान
राम नवरात्रि के 9 दिनों तक
व्रत रखने वाले पहले
राजा और पहले मनुष्य
थे। माता
की कृपा प्राप्त करने
के लिए भक्तों द्वारा
लिये जाने वाले ये
व्रत बेहद शुभ फलदायी
माने जाते हैं। श्रद्धापूर्वक
माता की उपासना करने
से जीवन के सभी
कष्टों से मुक्ति मिलती
है।
इन राशियों पर बरसेंगी मां की कृपा
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह
को ऐश्वर्य, समृद्धि, प्रेम और भौतिक सुखों
का कारक माना जाता
है। इसका गोचर और
स्थिति सभी राशियों को
प्रभावित करती है। वर्तमान
में शुक्र मीन राशि में
स्थित हैं, लेकिन 17 मार्च
को वे अस्त हो
जाएंगे और 23 मार्च को दोबारा उदय
होंगे। शुक्र के पुनः उदय
होने से कुछ राशियों
के लिए यह समय
बेहद शुभ रहेगा, क्योंकि
इससे आर्थिक उन्नति, करियर में सफलता और
दांपत्य जीवन में सकारात्मक
बदलाव आने के संकेत
मिल रहे हैं। शुक्र
के उदय का सबसे
अधिक प्रभाव कुंभ, मकर और वृषभ
राशि के जातकों पर
पड़ेगा। सूर्य पहुंचे गुरु की राशि
में, बुधादित्य और शुक्रादित्य योग
बनने से वृषभ राशि
वालों के लिए यह
समय करियर और वित्तीय स्थिति
के लिहाज से विशेष रूप
से शुभ रहेगा। जो
लोग नई नौकरी की
तलाश में हैं, उन्हें
इस दौरान अच्छा अवसर मिल सकता
है। कार्यस्थल पर आपको अधिक
जिम्मेदारियां दी जा सकती
हैं, जिससे करियर में उन्नति के
संकेत मिलेंगे। इस दौरान किया
गया कोई भी निवेश
लाभदायक सिद्ध हो सकता है
और पुराने निवेश से अचानक धन
लाभ होने के भी
योग बन सकते हैं।
पारिवारिक जीवन में सुखद
वातावरण रहेगा और प्रेम संबंधों
में भी मजबूती आएगी।
मकर राशि के लिए
यह परिवर्तन करियर और व्यक्तिगत जीवन
दोनों में महत्वपूर्ण बदलाव
लेकर आएगा। जो लोग लंबे
समय से अपने करियर
में स्थिरता की प्रतीक्षा कर
रहे थे, उनके लिए
यह समय नए अवसर
लेकर आएगा। व्यापारियों को अपने व्यवसाय
का विस्तार करने के मौके
मिल सकते हैं, जिससे
भविष्य में आर्थिक मजबूती
प्राप्त होगी। इस दौरान विदेश
यात्रा के योग भी
बन सकते हैं, जिससे
कार्यक्षेत्र में नए आयाम
खुल सकते हैं। दांपत्य
जीवन की बात करें
तो जीवनसाथी के साथ संबंध
अधिक मधुर होंगे और
आपसी समझ बेहतर होगी।
कुंभ राशि के लोगों
को इस अवधि में
धन लाभ होने की
संभावना है। आय के
नए स्रोत खुल सकते हैं,
जिससे आर्थिक स्थिति पहले से अधिक
मजबूत होगी। कार्यक्षेत्र में भी तरक्की
के योग बनेंगे और
नौकरीपेशा लोगों को प्रमोशन या
वेतन वृद्धि मिलने की संभावना रहेगी।
व्यापारियों के लिए भी
यह समय लाभकारी साबित
हो सकता है, क्योंकि
नए अनुबंध मिलने या निवेश से
लाभ कमाने के योग बन
रहे हैं। पारिवारिक जीवन
में सुख-शांति बनी
रहेगी और पुराने विवाद
समाप्त होने की संभावना
है।
दुर्गा स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु
मातृरुपेण संस्थितः, या देवी सर्वभूतेषु
शक्तिरुपेण संस्थितः।
या देवी सर्वभूतेषु
शान्तिरुपेण संस्थितः, नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः।।
ॐ अम्बायै नमः
।।
पुनर्वसु व पुष्य नक्षत्र में महानवमी
चैत्र शुक्ल नवमी छह अप्रैल
रविवार की सुबह 9ः40
बजे तक पुनर्वसु नक्षत्र
तथा इसके बाद पूरे
दिन पुष्य नक्षत्र के युग्म संयोग
में महानवमी का पर्व मनाया
जाएगा। इसी दिन श्रद्धालु
देवी दुर्गा के नवम स्वरूप
सिद्धिदात्री की पूजा कर
विशिष्ट भोग अर्पण, दुर्गा
पाठ का समापन, हवन,
कन्या पूजन व पुष्पांजलि
करेंगे। रामनवमी का व्रत करने
के साथ, पूजन व
शोभा यात्रा भी इसी दिन
निकलेगी। पुष्य नक्षत्र का संबंध माता
लक्ष्मी से होने से
इस दिन भूमि-भवन
की खरीदारी, पूंजी निवेश, व्यवसाय या नौकरी की
शुरुआत, वाहन, रत्न व आभूषण
की खरीदी करना उत्तम रहेगा।
रंगों के अनुसार करें पूजन
चैत नवरात्र में
नौ दुर्गा के प्रिय रंगों
के अनुसार, उनकी विशेष पूजा
होगी। माता शैलपुत्री को
पीले रंग का वस्त्र,
फल, चंदन, पुष्प तो मां ब्रह्मचारिणी
को हरा रंग, देवी
चंद्रघंटा को पीला व
हरा रंग, कुष्मांडा माता
को नारंगी रंग, स्कंदमाता को
श्वेत रंग, देवी कात्यायनी
को लाल रंग, माता
कालरात्रि को नीला रंग,
महागौरी को गुलाबी रंग
तथा देवी में नौवे
स्वरूप में मां सिद्धिदात्री
को बैंगनी रंग के वस्त्र,
पुष्प, अबीर, चंदन एवं फल
का भोग अर्पित होगा।
पूजन विधि
चैत्र नवरात्रि के दिन ब्रह्म
मुहूर्त में उठकर स्नान
करें, फिर मंदिर की
सफाई करिए. इसके बाद गंगाजल
छिड़कर पूजा स्थान को
शुद्ध कर लीजिए. इस
दौरान देवी मां को
लाल चुनरी और लाल पुष्प
अर्पित करना चाहिए. वहीं,
प्रसाद के रूप में
चना और खीर का
सेवन करना चाहिए. इसके
अलावा घर के मंदिर
में धूपबत्ती और देसी घी
का दीपक जलाएं. इसके
बाद दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा
का पाठ करें और
पूजा के अंत में
माता रानी से प्रार्थना
कर अपनी गलतियों की
क्षमा मांगें. पूजा स्थल को
शुद्ध करने के लिए
गंगाजल का छिड़काव करें।
यह स्थान को शुद्ध करने
के साथ-साथ वातावरण
में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता
है। देवी माँ को
लाल चुनरी और लाल पुष्प
अर्पित करें। लाल रंग देवी
शक्ति का प्रतीक है
और इस दौरान यह
रंग शुभ माना जाता
है। पूजा में चना
और खीर का प्रसाद
अर्पित करें। यह प्रसाद मां
दुर्गा की कृपा प्राप्त
करने के लिए विशेष
रूप से लाभकारी माना
जाता है। पूजा स्थल
पर धूपबत्ती और देसी घी
का दीपक जलाएं। इससे
वातावरण में शांति और
सकारात्मकता का संचार होता
है। पूजा के दौरान
दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा
का पाठ करें। इनका
पाठ करने से मां
दुर्गा की कृपा प्राप्त
होती है और संकटों
से मुक्ति मिलती है। पूजा के
अंत में मां दुर्गा
से अपनी गलतियों की
क्षमा मांगें और उनसे आशीर्वाद
प्राप्त करें। यह प्रार्थना पूजा
का अहम हिस्सा है।
नवरात्रि के व्रत और
पूजा से शरीर और
मन की शुद्धि होती
है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता
है। मां दुर्गा की
पूजा से आपके जीवन
की सभी मनोकामनाएं पूर्ण
होती हैं और दुख-दर्द से मुक्ति
मिलती है। नवरात्रि के
दौरान व्रत और पूजा
करने से समाज में
आपकी प्रतिष्ठा और सम्मान बढ़ता
है। मां दुर्गा की
पूजा से घर में
सुख, समृद्धि और शांति का
वास होता है।
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