‘ट्रंप टैरिफ वॉर’ : हैंडीक्रैफ्ट इंडस्ट्री में हाहाकार, सता रहा मंदी का खौफ
डरे सहमें
निर्यातकों
से
अमेरिकी
आयातक
मांगने
लगे
हैं
डिस्काउंट,
तकरीबन
100 करोड़
के
कंसाइनमेंट
किया
होल्ड
कहा, अब
अब
नए
टैरिफ
पर
ही
होंगे
कस्टम
क्लियर
सुरेश गांधी
वाराणसी। अमेरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर
ने पूरे हैंडीक्रैफ्ट इंडस्ट्री
में खलबली मचा दी है.
उन्होंने भारत पर 26 फीसदी
टैरिफ लगाने का ऐलान कर
साड़ी, कारपेट सहित पूरे टेक्सटाइल्स,
हैंडीक्राफ्ट्स एवं फर्नीचर, रेडीमेड
गारमेंट्स कॉरपोरेट और मार्बल ग्रेनाइट
उद्योग के कारोबारियों की
नींद उड़ा दी है।
निर्यातकों की मानें तो टैरिफ की घोषणा के कुछ घंटों बाद ही अमेरिकी खरीदारों ने उनसे मोल-भाव शुरू कर दिया है। दाम घटाने के लिए या टैरिफ का 13-13 प्रतिशत भुगतान करने के लिए कह रहे हैं। कई अमेरिकी खरीदारों ने तकरीबन 100 करोड़ के कंसाइनमेंट होल्ड कर दिए हैं। खास यह है कि समुद्री मार्ग पर डेढ़ महीने पहले निकले कंटेनर जो अब पोर्ट पर पहुंचेंगे वह नए टैरिफ से ही कस्टम क्लियर किए जाएंगे। यह टैरिफ 9 अप्रैल से प्रभावी होगा और भारत से अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले हर सामान पर इसे वसूला जाएगा
कालीन निर्यातक रवि पाटौदिया ने
कहा कि उनके इंर्पोटर्स
ने तुरंत ईमेल भेज कर
रास्ते में चल रहे
कंटेनर्स पर भारी डिस्काउंट
की मांग रख दी
है। ऐसे में निर्यातको
के समक्ष दोहरा संकट खड़ा हो
गया है। बता दें,
अमेरिका द्वारा लगाए गए 26 फीसदी
आयात शुल्क के कारण भारतीय
कालीनों की कीमतें बढ़
जाएंगी, जिससे इनकी प्रतिस्पर्धात्मकता भी कम
हो जाएगी और अमेरिकी खरीदारों
के लिए ये कालीन
महंगे हो जाएंगे। इसका
सीधा प्रभाव निर्यात में गिरावट के
रूप में देखने को
मिलेगा, जिससे उद्योग पर गंभीर संकट
आ सकता है।
आंकड़ों के मुताबिक यूपी,
दिल्ली, पानीपत, जम्मू-कश्मीर, जयपुर आदि शहरों से
लगभग 11000 करोड़ का कालीन
निर्यात होता है और
इसकी बुनाई में लगभग 10 लाख
से अधिक गरीब बुनकर
मजदूर लगे हैं। खास
यह है कि इनमें
से कुल निर्यात का
60 फीसदी हिस्सा मिर्जापुर-भदोही वाराणसी का है। कारपेट
इक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल के पूर्व प्रशासनिक
सदस्य उमेश गुप्ता मुन्ना
ने इस मामले में
सरकार से हस्तक्षेप की
मांग की है।
उनका कहना है
कि अमेरिका में इक्सपोर्ट होने
वाले कालीनों पर 2.5 से 8 फीसदी ड्यूटी
है, जो नाममात्र का
है। ऐसे में अगर
ड्यूटी खत्म कर दिया
जाएं इक्सपोर्ट में 20 फीसदी का इजाफा हो
सकता है। हालांकी अमेरिका
गरीब हितैशी मुल्क है और ग्रामीण
अंचलों में बनने वाली
कारपेट बुनाई में भी गरीब
तबका ही जुड़ा है,
इसलिए हैंडनॉटेड कारपेट को रेसिप्रोकल टैरिफ
से मुक्त रखा जा सकता
है। लेकिन मशीनमेड कालीनों पर खतरा जरुर
है।
उनका कहना है
कि अमेरिका में हैंडमेड कालीन
नहीं बनता है और
उनका पसंदीदा भारतीय हैंडमेड कारपेट ही है। कालीन
निर्यातक रुपेश बरनवाल, श्याम नारायण यादव, संजय मेहरोत्रा, रियाजुल
हसनैन, योगेन्द्र राय काका, ओपी
गुप्ता, धरम गुप्ता, वेद
गुप्ता, पंकज बरनवाल, निशांत
बरनवाल आलोक बरनवाल, राजेन्द्र
मिश्रा दीपक खन्ना आदि ने सरकार
से तत्काल प्रभाव से इस मामले
में हस्तक्षेप की मांग की
है।
हर साल 11000 करोड़ का निर्यात होता है
भारत के यूपी,
महाराष्ट्र, दिल्ली, पानीपत, जम्मू-कश्मीर, जयपुर आदि शहरों से
अमेरिका को लगभग 11000 करोड़
का कालीन निर्यात होता है और
इसकी बुनाई में लगभग 10 लाख
से अधिक गरीब बुनकर
मजदूर लगे हैं। इन
इलाकों के करीब 1600 निर्यातक
हस्तशिल्प उत्पाद से जुड़े हैं.
जो अमेरिका, जापान, इंग्लैंड, टर्की समेत अन्य देशों
को हर साल 16000 करोड़
से अधिक के हस्तशिल्प
उत्पादों का निर्यात करते
है. इनमें सबसे ज्यादा निर्यात
अमेरिका को होता है.
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