Friday, 16 May 2025

बलूचिस्तान की “आज़ादी“ में बोलती है हिंदुस्तानी “आत्मा“

बलूचिस्तान कीआज़ादीमें बोलती है हिंदुस्तानीआत्मा“ 

दक्षिण-पश्चिम एशिया में स्थित बलूचिस्तान केवल पाकिस्तान का एक प्रांत नहीं, बल्कि यह एक जिंदा कौम की भूमि है, जिसकी संस्कृति, आस्था और इतिहास के साथ आध्यात्मिक दृष्टि से भारत से गहराई से जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान ने बलूचों की धरती को जबरन कब्जाया, लेकिन उनकी आत्मा और पहचान पर कब्जा नहीं कर सका। यही नहीं, इसी बलूच भूमि पर विराजमान हैं हिंगलाज माता - सनातन की पवित्र शक्ति पीठ, जो आज भी इस बात की गवाही देती हैं कि भारत और बलूच एक सांस्कृतिक राग से जुड़े हैं। इसी संस्कृति और विरासत या यूं कहें हिंगलाज देवी मंदिर भारत और बलूचिस्तान की साझी विरासत को सहेजने के लिए बलूच लोग अपनी आज़ादी और पहचान के लिए दशकों से संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या पाकिस्तान ये भी दावा करेगा कि भारत की कुलदेवियां अब उसकी हैं? बलूच मुसलमान भी इस मंदिर कोनानी मंदिरकहते हुए इज्ज़त देते हैं. यह पाकिस्तान की कट्टरपंथी सोच पर करारा तमाचा है. बलूचिस्तान का संघर्ष दुनिया की निगाहों से भले ही ओझल हो, लेकिन भारत में हिंगलाज माता की आराधना उस सांस्कृतिक एकता की याद दिलाती है, जिसे किसी भी दीवार से अलग नहीं किया जा सकता

सुरेश गांधी 

भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच बलूचिस्तान की आजादी की मांग तेज हो गई है। भला क्यों नहीं, मौका है भारत में राष्ट्रवादी सरकार का और उसके अनुरुप अपेक्षाओं का। दावा है कि पाकिस्तान का हर साल हजारों बलूच लोगों को गायब करके मार देना अगर एक के लिए सच है. तो एक बलूची की हर दिन छिनती रोजी और कुचलते जम्हूरियत के हुकूक के बीच से उठती स्वराज की मांग भी दूसरे के लिए सच है. दिलचस्प बात ये है कि एक समय बलूचिस्तान की आजादी की पैरोकारी भी मुहम्मद अली जिन्ना ही कर रहे थे. मीर ने दावा किया कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान में पैदा हुए तनाव के बीच, बलूचिस्तान और उसके लोगों ने भारत के प्रति समर्थन जताया है। उन्होंने कहा बलूचिस्तान लोकतांत्रिक गणराज्य के लोग भारत के लोगों को अपना पूरा समर्थन देते हैं। 

चीन पाकिस्तान की मदद कर रहा है, लेकिन बलूचिस्तान और उसके लोग भारत की सरकार के साथ हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकेले नहीं हैं, आपके पास 6 करोड़ बलोच देशभक्तों का समर्थन है। खास यह है कि पाकिस्तान से आजादी के ऐलान के लिए बलूचिस्तान ने अपना नया झंडा और नया नक्शा भी जारी कर दिया है. बलूच नेता मीर यार ने बलूचिस्तान के पाकिस्तान से अलग होने का दावा किया और दुनियाभर के देशों से इस फैसले के समर्थन और अलग देश को मान्यता देने की मांग की है. बलूचों द्वारा जिस तरह से आए दिन पाकिस्तानी सेना और आर्म्ड फोर्सेज की यूनिट को निशाना बनाकर पाकिस्तान की सरकार को चेतावनी दी जा रही है, उससे साफ है कि अलग राष्ट्र की मांग रुकने वाली नहीं है.

अगर बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश हो जाता है, तो देश के हिंदुओं के लिए दो बड़े और ऐतिहासिक मंदिरों के द्वार खुल जाएंग : पहला हिंगलाज माता मंदिर और दूसरा कटासराज मंदिर. जिस तरह से भारतीय सिख समुदाय के लिए करतारपुर कॉरिडोर बनाया गया और गुरुद्वारा दरबार साहिब तक पहुंच आसान हुई, ठीक उसी तरह से हिंगलाज माता मंदिर और कटासराज मंदिर के द्वार भारतीय हिंदू के लिए खुल सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र के नियमों के मुताबिक किसी भी नए देश को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने के लिए एक तय प्रक्रिया से गुजरना होता है. यह पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 44 प्रतिशत हिस्सा है. बलूच नेता मीर यार बलूच ने बुधवार को बलूचिस्तान की आजादी का ऐलान कर दिया. उन्होंने दावा किया कि बलूच लोग दशकों से हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघन और अपहरण का सामना कर रहे हैं और अब उन्होंने अपना फैसला सुना दिया है कि बलूचिस्तान अब पाकिस्तान का हिस्सा नहीं है

मीर यार ने भारत और वर्ल्ड समुदाय से बलूचिस्तान की आजादी को मान्यता देने और समर्थन की अपील की है. बलूचिस्तान में लंबे समय से पाकिस्तान सरकार के खिलाफ नाराजगी है. वहां की जनता पाकिस्तान से अलग होकर स्वतंत्र देश बनना चाहती है. इसकी बड़ी वजह दशकों से जारी हिंसा सेना की कार्रवाई और स्थानीय लोगों के शोषण को बताया जा रहा है. मीर यार बलोच का कहना है कि बलूच लोग सड़कों पर उतर चुके हैं और यह आंदोलन अब रुकने वाला नहीं है. उन्होंने भारत से नई दिल्ली में बलूच दूतावास खोलने की अनुमति और संयुक्त राष्ट्र से आर्थिक मदद पासपोर्ट, करेंसी आदि के लिए फंड की मांग भी की है. बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध प्रांत है, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।

खास यह है कि जब पाकिस्तान इस पर जबरन अपना आधिपत्य जमाया है, तब से लेकर आज तक बलूच लोग कई बार पाकिस्तान सरकार के खिलाफ बगावत कर चुके हैं। उनकी मुख्य मांगें हैं : राजनीतिक स्वायत्तता या स्वतंत्रता, प्राकृतिक संसाधनों (गैस, खनिज, तटवर्ती क्षेत्र) पर अधिकार, पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों द्वारा हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन का अंत, बलूच आंदोलन को दुनिया भर में बलूच डायस्पोरा (प्रवासी समुदाय) समर्थन देता है, विशेषकर यूरोप, अमेरिका और भारत में। 

बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग और हिंगलाज देवी की उपस्थिति एक साथ यह दर्शाती है कि राजनीतिक सीमाएं संस्कृति और आस्था को नहीं बांध सकतीं। हिंगलाज देवी इस बात की प्रतीक हैं कि भारत और बलूचिस्तान का रिश्ता केवल भूगोल का नहीं, बल्कि खून, संस्कृति और विश्वास का है।

मं          दिर आज भी बलूचों और भारतीयों के साझा इतिहास की गवाही देता है, जिसे पाकिस्तान की झूठी सरहदें मिटा नहीं सकतीं। पाकिस्तान चाहे जितना बल प्रयोग कर ले, बलूचों की आज़ादी की चाह मरेगी, भारत और हिंगलाज माता का रिश्ता। भारत में बलूच स्वतंत्रता आंदोलन को कुछ हलकों से नैतिक समर्थन भी प्राप्त है। हर साल नवरात्रि के अवसर पर कई हिन्दू तीर्थयात्री यहां दर्शन के लिए आते थे, लेकिन अब पाकिस्तान सरकार की अनुमति पर निर्भर है। राजस्थान, गुजरात और मध्य भारत में बसे हिंगलाज माता भक्त आज भी मानसिक रूप से उस तीर्थ से जुड़े हैं।

बता दें, 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय बलूचिस्तान एक स्वतंत्र रियासत था। 1948 में पाकिस्तान द्वारा बलपूर्वक धोखे से अपने कब्जे में ले लिया। तब से लेकर अब तक बलूच लोग अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। 

कभी बंदूक से, कभी कलम से, और कभी अपने लापता बेटों की तस्वीरें लिए सड़कों पर। पाकिस्तान की सेना द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघनों की लंबी सूची है : अपहरण, हत्या, और संसाधनों की लूट। बलूच लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार ने उनके संसाधनों का दोहन किया, उन्हें राजनीतिक हाशिए पर रखा और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन किया। आज भी बलूच विद्रोही संगठन पाकिस्तान से स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं।

मतलब साफ है यह संघर्ष केवल राजनीतिक है, बल्कि अपनी पहचान, संस्कृति और अधिकारों को बचाने का संघर्ष भी है। वैसे तो यह मंदिर आदिकाल से है. लेकिन इतिहास के ज्ञात स्रोतों के मुताबिक यह.मंदिर 2000 वर्ष पहले भी यहीं स्थित था. पाकिस्तान में बलूचिस्तान हमेशा से बफर जोन वाला हिस्सा रहा है, और बलोच सरकार के साथ हमेशा से इसका संघर्ष रहा है. वैसे  बलूचिस्तान प्रांत का जितना जुड़ाव पाकिस्तान से है, उतना ही यह हिस्सा भारतीयों के लिए भी महत्वपूर्ण रहा है. धार्मिक नजरिए से देखें तो बलूचिस्तान में ही 51 शक्तिपीठों में से एक महत्वपूर्ण शक्ति स्थल मौजूद है, जो हिंगलाज भवानी के नाम से मशहूर है. कहा जाता है हिंगोल नदी के तट पर स्थित ये शक्तिपीठ सतयुग

के समय से है जिसे देवी आदिशक्ति के कई अवतारों और स्वरूपों में से एक माना जाता है.

आंदोलन के मुख्य मुद्देः

बलूच राष्ट्रवादी संगठनों का दावा है कि पाकिस्तान ने जबरदस्ती बलूचिस्तान को मिलाया और वहां के संसाधनों का शोषण किया।

राजनीतिक और प्रशासनिक स्वायत्तता

गैस, तांबा, कोयला जैसे संसाधनों पर स्थानीय अधिकार

पाकिस्तानी सेना द्वारा मानवाधिकारों का हनन

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलूच प्रवासी इस मुद्दे को उठाते रहते हैं।

बलूच लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान किया जाए।

भारत में बलूच और हिन्दू सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखा जाए।

बलूच-हिंदू संबंधों पर और शोध तथा संवाद को बढ़ावा दिया जाए। 

51 शक्तिपीठों में से एक है माता

हिंगलाज, होती है मस्तक की पूजा

बलूचिस्तान की गुफाओं और पहाड़ियों के बीच बसी हैं हिंगलाज माता, जो 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। हिन्दू मान्यता के अनुसार, यही वह स्थान है जहां देवी सती का ब्रह्मरंध्र (मस्तक) गिरा था। यह तीर्थ भारत के करोड़ों हिन्दुओं, विशेषकर राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के लोगों की कुलदेवी भी हैं। खास यह है कि केवल हिन्दू श्रद्धालु, बल्कि स्थानीय बलूच मुसलमान भी इस मंदिर कोनानी मंदिरके नाम से श्रद्धा से पूजते हैं। यह बलूच संस्कृति की सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता का परिचायक है। हिंगलाज माता भारत और बलूचिस्तान के बीच एक ऐसे सांस्कृतिक सेतु का कार्य करती हैं, जो राजनीतिक सीमाओं से परे है। भारत में हिंगलाज माता के भक्त आज भी बलूचिस्तान के मंदिर की ओर मन से झुकते हैं। कई संतों और साधुओं ने सदियों तक इस तीर्थ की यात्रा की है। यह संबंध केवल धार्मिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और भावनात्मक भी है। बलूचिस्तान की धरती पर स्थित यह तीर्थ इस बात का प्रमाण है कि भारत और बलूच सांस्कृतिक धारा एक समय एक साथ बहती थी।

दुर्गा चालीसा में भी है हिंगलाज माता का जिक्र

हिंगलाज देवी का जिक्र दुर्गा चालीसा में भी होता है. इसमें देवी दुर्गा का एक नाम हिंगलाज भवानी बताया गया है और कहा गया है..कि उनकी महिमा का बखान नहीं किया जा सकता है.

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी,

महिमा अमित जात बखानी

हिंगलाज शब्द, सुहाग की रक्षा करने वाली देवी के तौर पर आया होगा.  हिंगुल शब्द का अर्थ सिंदूर से भी होता है. ऐसे में सिंदूर की लाज बचाने वाली देवी हिंगलाज भवानी हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में जब भगवान शिव की पत्नी देवी सती ने दक्ष यज्ञ में खुद को नष्ट कर लिया, तब क्रोधित शिव सती की मृत देह को लेकर तीनों लोकों का भ्रमण..करने लगे. शिव के क्रोध को शांत करने के लिए और उन्हें इस दुख से उबारने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को चक्र से काट दिया और सती के शरीर के अलग-अलग अंग जिन 51 स्थलों पर गिरे, वह शक्तिपीठ कहलाए. केश गिरने से महाकाली, नैन गिरने से नैना देवी, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शाकम्भरी आदि..शक्तिपीठ बन गए. सती माता के शव के सिर का पिछला हिस्सा (ब्रह्मरंध्र) हिंगोल नदी के तट पर चंद्रकूप पर्वत पर गिरा और यहां हिंगलाज भवानी की स्थापना हुई. संस्कृत में हिंगुला शब्द सिंदूर के लिए भी प्रयोग होता है, इस तरह माता की मान्यता सुहागिन महिलाओं में भी बहुत है.

हिंगलाज भवानी की तीर्थयात्रा

सनातन परंपरा में शक्तिपीठों को आदिशक्ति देवी दुर्गा का साक्षात स्वरूप माना जाता है. इस शक्तिपीठ के बारे में मान्यता है कि, यहां की यात्रा चार धाम की यात्रा जितनी ही फलदायी है. जिस तरह जीवन में एक बार प्रयाग के संगम में स्नान, गंगा सागर में तर्पण और चारधामों के दर्शन जरूरी हैं, उसी तरह हिंगलाज भवानी के दर्शन भी तीर्थयात्रा में शामिल हैं. बंटवारे.से पहले तक शक्तिपीठों की तीर्थयात्रा की एक परंपरा भी थी, जिसे कनफड़ योगी जरूर निभाते थे और यह उनसे होकर सामान्य लोगों के बीच भी प्रचलित थी. हालांकि कनफड़ योगी अभी भी शक्तिपीठ यात्रा परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं और शाक्त मत के अनुयायी-श्रद्धालुओं के लिए यह स्थल सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन बंटवारे के बाद हिंगलाज भवानी के तीर्थयात्रियों की संख्या में कमी आई, हालांकि अभी भी कई श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं. 

बालोची करते हैं देखभाल

स्थानीय बलोच लोग इसे बेहद चमत्कारिक स्थान मानते हैं. सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित यह गुफा मंदिर इतने बड़े क्षेत्र में है कि श्रद्धालु दंग रह जाते हैं. वैसे तो यह मंदिर आदिकाल से हलेकिन इतिहास के ज्ञात स्रोतों के मुताबिक यह मंदिर 2000 वर्ष पहले भी यहीं स्थित था. शक्तिपीठ में देवी की मौजूदगी पिंडी स्वरूप में, एक शिला पर देवी का स्वरूप उभरा हुआ है, जिसके दर्शन करने के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं.नवरात्रि के दौरान तो यहां पूरे नौ दिनों तक शक्ति की उपासना का विशेष आयोजन होता है. सिंध-कराची के हजारों सिंधी हिन्दू श्रद्धालु यहां माता के दर्शन को आते हैं. भारत से भी प्रतिवर्ष एक दल यहां दर्शन के लिए जाता है.

माता हिंगलाज देती है मोक्ष का वरदान

प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक एक सनातनी हिंदू चाहे चारों धाम की यात्रा क्यों ना कर ले, काशी के गंगाजल में स्नान भी क्यो ना कर ले, अयोध्या में दर्शन कर ले. लेकिन अगर वह हिंगलाज देवी के दर्शन नहीं करता तो उसका जीवन व्यर्थ हो जाता है. स्थानीय परंपरा के मुताबिक जो स्त्रियां इस स्थान का दर्शन कर लेती हैं उन्हें हाजियानी कहते हैं. उन्हें हर धार्मिक स्थान पर सम्मान के साथ देखा जाता है. पाकिस्तान का सबसे बड़े हिंदू उत्सव हिंगलाज यात्रा मनाया जाता है। हिंगलाज माता का प्राचीन गुफा मंदिर देश के उन कुछ हिंदू स्थलों में से एक है, जहां हर साल बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। आपको बता दें कि मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में 44 लाख हिंदू रहते हैं, जो कि कुल आबादी का सिर्फ 2.14 प्रतिशत है। भक्तगण ज्वालामुखी के शिखर तक पहुंचने के लिए सैकड़ों सीढ़ियां चढ़ते हैं या चट्टानों से होते हुए यात्रा करते हैं। यहां मौजूद गड्ढे में नारियल और गुलाब की पंखुड़ियां फेंकते हैं और हिंगलाज माता के दर्शन के लिए दैवीय अनुमति मांगते हैं। यहां तीन दिवसीय मेला लगता है। मंदिर के सबसे वरिष्ठ पुजारी महाराज गोपाल बताते हैं कि लोग यहां क्यों आते हैं। वह कहते हैं, “यह हिंदू धर्म में सबसे पवित्र तीर्थस्थल है। जो कोई भी इन तीन दिनों के दौरान मंदिर में आता है और पूजा करता है, उसके सभी पाप क्षमा हो जाते हैं।

अंगारों पर चलने की परंपरा 

मान्यताओं के अनुसार एक बार यहां माता ने प्रकट होकर वरदान दिया कि जो भक्त मेरा चुल चलेगा उसकी हर मनोकामना पुरी होगी. चुल एक प्रकार का अंगारों का बाड़ा होता है जिसे मंदिर के बाहर 10 फिट लंबा बनाया जाता है और उसे धधकते हुए अंगारों से भरा जाता है. इन्हीं अंगारों पर चलकर मन्नतधारी मंदिर में पहुचते हैं. ये माता का चमत्कार ही है कि किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है और उसकी मन्नत जरूर पूरी होती है. हालांकि पिछले कुछ सालों से इस परंपरा पर रोक लगी है.इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता है. कहा जाता है कि हर रात इस स्थान पर ब्रह्मांड की सभी शक्तियां एकत्रित होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं.

श्री राम ने भी इस सिद्ध पीठ में टेक चुके है मत्था

आदिकाल से हिंगलाज भवानी के दर्शन की परंपरा रही है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम भी यात्रा के लिए इस सिद्ध पीठ पर आए थे..हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्रि ने यहां घोर तप किया था. उनके नाम पर आश्रम नाम का स्थान अब भी यहां मौजूद है. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में माता की पूजा करने को गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव, दादा मखान जैसे महान आध्यात्मिक संत चुके .ैं

खुली गुफा में है मंदिर

हिंगलाज माता का मंदिर ऊंची पहाड़ी पर बनी एक गुफा में है. यहां माता का विग्रह रूप विराजमान है. मंदिर में कोई दरवाजा नहीं. मंदिर में कोई दरवाजा नहीं. मंदिर की परिक्रमा के लिए तीर्थयात्री गुफा के एक रास्ते से दाखिल होकर दूसरी ओर निकल जाते हैं. मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है. मान्यता है कि माता हिंगलाज देवी यहां स्नान करने आती हैं. यहां के रक्षक के रूप में भगवान भोलेनाथ भीमलोचन भैरव रूप में स्थापित हैं. माता हिंगलाज मंदिर परिसर में श्रीगणेश, कालिका माता की प्रतिमा के अलावा ब्रह्मकुंड और तीरकुंड आदि प्रसिद्ध तीर्थ हैं. इस आदि शक्ति स्थल की पूजा में स्थानीय बलोच बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं.

माता को बलोच लोग कहते हैंनानी पीर

जब पाकिस्तान का जन्म नहीं हुआ था. उस समय भारत की पश्चिमी सीमा अफगानिस्तान और ईरान से जुड़ती थी. उस समय से बलूचिस्तान के मुसलमान हिंगलाज देवी को मानते रहे हैं. यहां बलोच लोग देवी कोनानीकहते हैं औरनानी पीरकहते हुए लाल कपड़ा, अगरबत्ती, मोमबत्ती, इत्र और सिरनी चढ़ाते हैं. इस मंदिर पर आक्रांताओं ने कई हमले किए लेकिन स्थानीय हिन्दू और बलोच लोगों ने इस मंदिर को बचाया.

यात्रा का मार्ग है बेहद दुर्गम

हिंगलाज सिद्ध पीठ की यात्रा के लिए दो मार्ग हैं. एक पहाड़ों के रास्ते दूसरा मरूस्थल से होकर. हिंगलाज के लिए यात्रियों का जत्था कराची से चल कर लसबेल पहुंचता है और फिर लयारी. कराची से छह-सात मील चलकरहावनदी पड़ती है. यहीं से हिंगलाज तीर्थ की यात्रा शुरू होती है. यहीं संकल्प लेकर लौटने तक की अवधि के लिए संन्यास ग्रहण किया जाता है. इस स्थान पर छड़ी का पूजन होता है और यहीं पर रात में विश्राम करके सुबह हिगलाज भवानी की जय के साथ मरुतीर्थ की यात्रा शुरू हो जाती है. रास्ते में कई बरसाती नाले और कुएं भी मिलते हैं. इस इलाके की सबसे बड़ी नदी हिंगोल है जिसके पास ही चंद्रकूप पहाड़ है. चंद्रकूप और हिंगोल नदी के बीच करीब 15 मील का फासला है. मन्नत पूरी होने पर हिंगोल में यात्री, अपने सिर के बाल मुंडवा कर पूजा करते हैं और यज्ञोपवीत पहनते हैं. मंदिर की यात्रा के लिए यहां से पैदल या छोटी गाड़ियों से यात्रा करनी पड़ती है. क्योंकि इससे आगे कोई सड़क नहीं है. आगे आसापुरा नाम से एक जगह आती है, इससे थोड़ा आगे ही काली माता का मंदिर है. इस मंदिर में आराधना करने के बाद यात्री हिंगलाज माता के दर्शन के लिए रवाना होते हैं. पहाड़ी चढ़ाई के बाद वह उस स्थल पर पहुंचते हैं, जहां मीठे पानी के तीन कुएं हैं. इन कूपों के जल स्नान और आचमन किया जाता है. यहीं से आगे देवी हिंगला. का पवित्र स्थल है, जहां शिला रूप में देवी के दर्शन होते हैं

बलूचिस्तान की पीड़ा हर उस व्यक्ति की

पीड़ा है, जो स्वतंत्रता का मूल्य जानता है

दुनिया के नक्शे पर एक भूखंड है बलूचिस्तान, जहां धरती की छाती के नीचे अपार संपदा है, लेकिन ऊपर की हवा में घुटन और भय फैला हुआ है। वहां के पहाड़ों में बसने वाले लोगों के पास इतिहास है, पहचान है, पर नहीं है तो आज़ादी और आत्मसम्मान। और जब किसी भूमि की आत्मा कराहती है, तो दूर बैठे संवेदनशील मन भी काँप उठते हैं। भारत के करोड़ों लोगों के भीतर ऐसी ही एक संवेदना है, गूंगी नहीं, जागृत; मौन नहीं, मुखर। जी हां, बलूचिस्तान की पीड़ा केवल उसकी अपनी नहीं है। यह हर उस व्यक्ति की पीड़ा है, जो स्वतंत्रता का मूल्य जानता है, जिसने दमन को भोगा है और जिसने अपने स्वप्नों के लिए संघर्ष किया है। भारत, जो स्वयं एक दीर्घ स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी रहा है, बलूचिस्तान के लोगों के दर्द को केवल समाचारों में नहीं पढ़ता, वह उसे अनुभव करता है, दिल से, आत्मा से। जहाँ एक ओर बलूच युवाओं को उनके विचारों की कीमत ज़िंदगी से चुकानी पड़ती है, वहीं भारत के लोग अपने लोकतंत्र में मुक्त विचारों के साथ सांस लेते हैं। यह अंतर ही वह पुल है, जो भारत को बलूचिस्तान के संघर्ष से जोड़ता है। कोई औपचारिक संधि नहीं, कोई राजनैतिक दायित्व नहीं, फिर भी एक गहरा मानवीय संबंध है, जो सीमाओं से परे है।

भारत में जब कोई बलूच शरणार्थी अपनी कहानी कहता है, तो उसकी आँखों में एक जानी-पहचानी चमक होती है। वह आज़ादी की चमक, जो गांधी के सत्याग्रह से लेकर भगत सिंह की शहादत तक फैली हुई है। भारतीय जनमानस इसे किसीविदेशी मुद्देके रूप में नहीं देखता, वह इसे उस शाश्वत संघर्ष का एक और अध्याय मानता है. अन्याय के विरुद्ध न्याय की लड़ाई। बलूचिस्तान की आज़ादी की मांग, भारत में केवल एक भू-राजनीतिक चर्चा नहीं है; यह एक अंतरात्मा की पुकार है। उस अंतरात्मा की, जो हर अत्याचार के विरुद्ध उठ खड़ी होती है। और जब तक वहाँ किसी माँ की कोख से निकला बेटा लापता होता रहेगा, जब तक वहाँ किसी स्त्री की आँखों में अपनों के लिए आँसू होंगे, तब तक भारत की संवेदना जगी रहेगी, बोलती रहेगी, और दुनिया को याद दिलाती रहेगी कि दर्द सीमाओं में नहीं बँटता. वह जहाँ भी होता है, उसे महसूस किया जा सकता है।

यही वजह है किजब वहां की ज़मीन रोती है, तो भारत का दिल धड़कता है.“ मतलब साफ है बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की लड़ाई एक ऐसा संघर्ष जो आज भी जलता हुआ शोला है। भारत में करोड़ों लोग इस संघर्ष को सिर्फ एक सीमापार आंदोलन के रूप में नहीं, बल्कि एक नैतिक और मानवीय मुद्दे के रूप में देखते हैं। उनके लिए बलूचिस्तान की आज़ादी में निहित है उनकी आस्था, स्वतंत्रता, न्याय और मानवीय गरिमा में। इसलिए जब बलूच लोग आज़ादी की बात करते हैं, तो वह स्वर भारतीयों को अपना-सा लगता है, जैसे यह वही पुकार हो जो कभी गांधी, भगत सिंह और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आवाज़ में गूंजती थी। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान द्वारा भारत में आतंकवाद को समर्थन देने के आरोपों के बीच, बलूचिस्तान की आज़ादी को लेकर भारतीय जनमानस में एक प्रकार की रणनीतिक दृष्टि भी पनपती है। कई भारतीय मानते हैं कि यदि बलूचिस्तान स्वतंत्र होता है, तो यह क्षेत्र में शक्ति-संतुलन को पुनः परिभाषित कर सकता है। लेकिन इस भावना के मूल में केवल राजनीतिक या कूटनीतिक सोच नहीं, बल्कि एक मानवीय मूल्य प्रणाली है. वह प्रणाली जो हर व्यक्ति को स्वतंत्रता, गरिमा और न्याय के साथ जीने का अधिकार देती है। भारत के करोड़ों लोग यही मानते हैं कि कोई भी समाज, कोई भी राष्ट्र तब तक सच में प्रगति नहीं कर सकता जब तक उसके पड़ोस में अत्याचार और अन्याय की आग जलती रहे। बलूचिस्तान की आज़ादी की लड़ाई लंबी और कठिन है, लेकिन उस लड़ाई को देखती करोड़ों भारतीय आंखों में एक विश्वास है कि हर अन्याय का अंत होता है, और हर संघर्ष को एक दिन उसका न्याय अवश्य मिलता है।

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