आक्रोश की आग से जल-भून रहे पाकिस्तान के चार टुकड़े होंगे?
पहलगाम अटैक के बाद से पाकिस्तान वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ा हुआ है। भारत सरकार पाकिस्तान पर सख्त एक्शन लेने की तैयारी में जुटी हुई हैं. इसे लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है। पाकिस्तानी फौज सीमा पर आतंकियों की घुसपैठ कराने के लिए भारत लगातार गोले बरसा रहा है। भारतीयों पोस्टों पर हमला कर रहा है। यह अलग बात है कि भारतीय जवान न सिर्फ पाकिस्तानी गोलों का मुंहतोड़ जवाब दे रहे है, बल्कि पुंछ में बड़े हमले की फिराक में बैठे आतंकियों की मनसुबों पर पानी फेर दिया। भारतीय जवानों ने पकड़े गए आतंकियों के पास से भारी मात्रा में आरडीएक्स सहित वायरलेस सेट और कुछ कपड़े जब्त किए है। मतलब साफ है पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आने वाला है। जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक हुई, एयर स्ट्राइक भी हुई लेकिन इसका उा पर कोई फर्क नहीं। खास यह है कि पाकिस्तान यह सब तब कर रहा है, जब उसके ही घर में शहर-शहर गृह युद्ध छिड़ा है। बलूचिस्तान में बीएलए लगातार पाकिस्तानी फौज पर हमले कर रहा है. पाकिस्तानी तालिबान और अफगान सरकार से भी तनातनी चल रही है. हाल ही में बीएलए जाफर एक्सप्रेस को अगवा कर 64 लोगों की जान ले चुका है. बावजूद इसके पाकिस्तान जनरल आसिर मुनीर भड़काऊ भाषणों से अपने हक में हवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. यह अलग बात है कि इस्लामाबाद में दिया गया उनका भड़काऊ बयान ही अब उनके गले की फांस बन गया है, क्योंकि ये माना जा रहा है कि उसकी बदौलत ही आतंकवादियों ने भारत पर हमला किया. ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या आक्रोश की आग से जल-भून रहे पाकिस्तान के चार टुकड़े होंगे? क्या बगावत की ज्वाला में पाकिस्तान खुद ही हो जाएगा खाक?
सुरेश गांधी
आतंकवाद आज विश्व के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बनकर खड़ा है। यह केवल एक सुरक्षा संकट नहीं, बल्कि मानवता के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह है। भारत लंबे समय से इस संकट का शिकार रहा है और बार-बार यह स्पष्ट हो चुका है कि इसके पीछे एक संगठित, संरक्षित और पोषित तंत्र कार्य कर रहा है जिसका केंद्र है पाकिस्तान। फिरहाल, भारत ही नहीं दुनिया के कोने-कोने से ‘आतंक के खिलाफ सर्जिकल नहीं, अब सर्जरी की ज़रूरत, वाली आवाज उठने लगी है। लोगों का मानना है कि जब तक आतंक की जड़ें नहीं काटी जाएंगी, तब तक उसका फल हिंसा, अस्थिरता और भय, फिर-फिर सामने आता रहेगा। अमेरिका ने साफ कह दिया है कि बेगुनाहों का कत्ल करने जैसे जघन्य अपराध के खिलाफ भारत जो भी एक्शन लेगा, उसमें वह भारत का साथ देगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आतंकियों की ‘मिट्टी में मिलाने’ की चेतावनी तथा पीड़ितों को न्याय मिल कर रहेगा, जैसी टिप्पणियां सख्त रुख का संकेत हैं. पाकिस्तान को ऐसा सबक मिलना चाहिए कि वह फिर से ऐसी हिमाकत न कर सके, पर पाकिस्तान को नापाक मंसूबों में सफल हो जाने देने के लिए उत्तरदायी हमारे तंत्र की जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए. बदलती भू-राजनीति में नैतिकता की शक्ति तभी प्रभावी है, जब वह सैन्य सामर्थ्य से समर्थित हो। भारत के लिए अब समय आ गया है कि वह अपनी सैन्य ताकत से जता दे कि वह आतंकवादियों और उनके संरक्षकों को उनके ठिकानों में घुसकर दंडित करने का सामर्थ्य रखता है। यह आवश्यक नहीं कि पहलगाम हमले का प्रत्युत्तर एक व्यापक युद्ध हो। सीमित, लक्षित और रणनीतिक सैन्य कार्रवाइयों के जरिए भारत वह कठोर संदेश दे सकता है जो सिर्फ कूटनीतिक मंचों के माध्यम से नहीं दिया जा सकता। संदेश साफ हो कि अब ‘छद्म युद्ध’ की कीमत पाकिस्तान को पहले से कहीं अधिक चुकानी पड़ेगी।
देखा जाएं तो मोदी ने पिछले कई दिनों से पाकिस्तानी फौज की नींद उड़ाई हुई है। वो नहीं जानते कि मोदी की मिसाइल कब कहां कहर बरपाएगी। मोदी की खामोशी पाकिस्तान की फौज का खौफ बन गई है। इससे पाकिस्तान के नेताओं को समझ नहीं आ रहा है कि अब क्या करें, क्या कहें, जिससे भारत के कहर से बचा जा सके। कोई एटम बम की धमकी दे रहा है, कोई पहलगाम जांच में सहयोग की पेशकश करके शान्ति का पैगाम भेज रहा है, कोई अपनी फौज को खामोश रहने को कह रहा है, कोई सिंधु नदी में पानी की जगह खून बहाने की धमकी दे रहा है। सब अपनी अपनी ढपली बजा रहे हैं। पाकिस्तान के नेता भारत की फौज की ताकत और काबलियत भी जानते हैं। लेकिन इस वक्त पाकिस्तान की हुकूमत और वहां की फौज को सबसे ज्यादा खौफ है, नरेन्द्र मोदी की खामोशी का, क्योंकि वो जानते हैं, ये खामोशी आने वाले तूफान से पहले का सन्नाटा हो सकती है। बता दें, पाकिस्तान, जो खुद को आतंक का शिकार बताता है, लेकिन सच्चाई यह है कि वही आतंक का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है।
एएसआई की छाया हो या जैश-ए-मोहम्मद के कैंप, लश्कर के सरगना हों या आतंकियों के लॉन्चिंग पैड सबके तार जुड़ते हैं पाकिस्तान से। भारत ने 2016 में उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक के ज़रिए यह स्पष्ट कर दिया कि वह आतंक का मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। किंतु अब यह स्पष्ट हो गया है कि आतंक के खिलाफ केवल सर्जिकल स्ट्राइक पर्याप्त नहीं, बल्कि एक गहरी और निर्णायक सर्जरी की आवश्यकता है। क्येंकि पाकिस्तान ने वर्षों से आतंकवादियों को न केवल आश्रय दिया है, बल्कि उन्हें प्रशिक्षण, आर्थिक सहायता और रणनीतिक समर्थन भी प्रदान किया है। जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों ने भारत के कश्मीर क्षेत्र में बार-बार आतंक का रक्तरंजित खेल खेला है। इनके पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी एएसआई की संलिप्तता जगजाहिर है। इन संगठनों को केवल सीमाओं पर रोका नहीं जा सकता। यह आतंक एक बीमारी की तरह है जिसकी जड़ें पाकिस्तान की नीतियों, शिक्षा प्रणाली, धार्मिक कट्टरता और सैन्य प्रतिष्ठान में फैली हुई हैं। ऐसे में भारत के लिए आवश्यक हो गया है कि वह आतंकवाद के इस ढांचे के विरुद्ध सर्जरी करे. यानी आतंक की जड़ों को नष्ट करे।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि आज आतंक के विरुद्ध लड़ाई केवल गोली और बंदूक से नहीं लड़ी जा सकती, बल्कि इसके लिए एक व्यापक, दीर्घकालिक और निर्णायक रणनीति की आवश्यकता है। पाकिस्तान को यह स्पष्ट संकेत देना होगा कि अब भारत केवल सीमित प्रतिक्रिया नहीं करेगा, बल्कि उसके आतंक के ढांचे की जड़ तक जाएगा। इसके लिए भारत को अपने कूटनीतिक प्रयासों को और सशक्त करना होगा ताकि पाकिस्तान को आतंक के पोषक के रूप में विश्व स्तर पर अलग-थलग किया जा सके। एफएटीए जैसे संगठनों के माध्यम से उस पर आर्थिक प्रतिबंधों का दबाव बढ़ाना होगा। भारत सिंधु जल संधि को रद्द करना भारत की बड़ी कार्रवाई का संकेत है. इससे पाकिस्तान की जल पर निर्भरता खत्म होगी। इसके अलावा भारत को पीओके में सक्रिय आतंकी शिविरों और उनकी संरचनाओं पर लगातार निगरानी और आवश्यक कार्रवाई करनी होगी, जिससे घुसपैठ को रोका जा सके।
भारत को अपने युवाओं को कट्टरपंथ से बचाने और उन्हें राष्ट्रवादी सोच से जोड़ने के लिए शिक्षा और संवाद की नीति अपनानी होगी। पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क के डिजिटल कम्युनिकेशन, फंडिंग चैनल्स और प्रचार माध्यमों को साइबर तरीकों से निष्क्रिय करना होगा। हालांकि बलोच में छिड़े गृह युद्ध से शाहबाज की सिट्टी पिट्टी गुम है। कहा जा सकता है वहां सबकुछ ऐसा ही चलता रहा तो सिंध, गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे क्षेत्र पाकिस्तान से अलग हो जाएंगे। 1947 में भारत के विभाजन के बाद अस्तित्व में आया पाकिस्तान अब खुद अपने भीतर टुकड़े-टुकड़े होता दिखाई दे रहा है। आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, जातीय और क्षेत्रीय तनावों ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें देश की एकता और अखंडता गंभीर खतरे में नजर आ रही है। बलोचिस्तान, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे क्षेत्र लंबे समय से उपेक्षा और दमन का शिकार रहे हैं। अब ये क्षेत्र धीरे-धीरे अलग पहचान की मांग को लेकर मुखर हो रहे हैं। बलोचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो कुल क्षेत्रफल का लगभग 44 फीसदी कवर करता है, लेकिन इसकी जनसंख्या मात्र 6 फीसदी है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनो, विशेष रूप से गैस, कोयला और तांबा की भरमार है, लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि इन संसाधनों का लाभ केंद्र सरकार और पंजाब प्रांत को ही अधिक मिलता है।
बलोच विद्रोह की शुरुआत 1948 में हुई थी जब पाकिस्तान ने बलोचिस्तान को जबरन अपने में मिला लिया। इसके बाद से अब तक 5 बार बड़े विद्रोह हो चुके हैं, जिनमें हजारों लोग मारे जा चुके हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्टों के अनुसार, वहाँ से जबरन गायब किए गए नागरिकों की संख्या हजारों में है। बलोच लिबरेशन आर्मी यानी बीएलए जैसे संगठन अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान की आलोचना का कारण बन रहे हैं। सिंध पाकिस्तान का दूसरा बड़ा प्रांत है, जिसकी राजधानी कराची है.
देश की आर्थिक धुरी सिंधी समुदाय लंबे समय से यह आरोप लगाता रहा है कि पंजाब प्रांत और सेना ने सत्ता और संसाधनों पर कब्जा कर रखा है। सिंधी राष्ट्रवादी दल जैसे जे एस एम क्यू एम, लगातार आत्मनिर्णय और संसाधनों के नियंत्रण की मांग करते आए हैं। 1970 और 1980 के दशकों में सिंध में भी कई बार विद्रोह के स्वर उठे, जिन्हें सैन्य बल से दबाया गया। गिलगित-बाल्टिस्तान, जिसे भारत अपना अभिन्न हिस्सा मानता है और पाकिस्तान ने इसे विवादित क्षेत्र घोषित किया है, वहाँ के नागरिकों को आज तक पाकिस्तान का पूर्ण संवैधानिक नागरिक नहीं माना गया है। उन्हें पाकिस्तान की संसद में प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है।
पाकिस्तान सरकार ने इसे 2020 में अस्थायी प्रांत घोषित किया, लेकिन इससे स्थानीय लोग और नाराज़ हो गए। हालिया चुनावों में धांधली के आरोप और चीनी परियोजनाओं सीपीईसी के विरोध ने आंदोलन को और तेज किया है। यह प्रांत अफगान सीमा से सटा हुआ है, जहां पश्तूनों की बड़ी आबादी है। तहरीक-ए-लब्बैक जैसे कट्टरपंथी गुटों के प्रभाव के अलावा, पश्तून तहाफुज मूवमेंट जैसे शांतिपूर्ण आंदोलनों ने वहां सेना के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई है। ड्रोन्स हमलों, सैन्य अभियानों और गायब किए गए लोगों का मुद्दा लगातार गरमाया है। सरकार और सेना द्वारा इन आंदोलनों को दबाने की कोशिशों ने हालात को और जटिल बना दिया है। इसके अलावा पाकिस्तान की आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता जगजाहिर है। पाकिस्तान का विदेशी कर्ज 130 अरब डॉलर के पार जा चुका है। महंगाई दर 25-30 फीसदी तक पहुंच चुकी है। आईएमएफ से बार-बार बेलआउट मांगना पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को उजागर करता है। राजनीतिक स्थिरता का अभाव का सबसे बड़ा उदाहरण इमरान खान की गिरफ्तारी, शाहबाज शरीफ की असफल नीतियां और सेना का बढ़ता दखल ने आम लोगों के असंतोष को और हवा दी है। कहा जा सकता है यदि पाकिस्तान इन बगावतों की आग को समय रहते नहीं बुझाता, तो देश का नक्शा वही नहीं रहेगा जो आज हम देखते हैं।
इधर, पहलगाम हमले
के विरोध में देशभर में
गुस्से का माहौल है
और सरकार कोई भी कदम
उठाने से पहले फूलप्रूफ
रणनीति तैयार करना चाहती है,
ताकि दोषियों को ऐसी सजा
मिले कि कोई दोबारा
पहलगाम हमले जैसा दुस्साहस
न कर पाये. इसी
तैयारी के तहत सुरक्षा
मामलों की पहली कैबिनेट
बैठक में पाकिस्तान के
खिलाफ पांच कदम उठाने
की घोषणा की गयी थी,
जिनमें सिंधु जल समझौता स्थगित
करने का फैसला भी
था. उसके बाद प्रधानमंत्री
ने रक्षा मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, सीडीएस और सेना प्रमुखों
के साथ बैठक की.
सेना की तैयारियों से
संतुष्ट प्रधानमंत्री ने उसे जवाबी
कार्रवाई के तरीके, लक्ष्य
और समय तय करने
की पूरी छूट दी
है. उस बैठक के
ठीक अगले दिन कैबिनेट
कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस)
की हुई बैठक के
महत्व को समझा जा
सकता है, क्योंकि सुरक्षा
मामले में यह सरकार
की शीर्ष समिति है. प्रधानमंत्री की
अध्यक्षता में हुई सीसीएस
की इस बैठक में
गृह मंत्री और रक्षा मंत्री
के अलावा सेना के तीनों
अंगों के प्रमुख भी
शामिल हुए. बैठक में
पहलगाम हमला और देश
की सुरक्षा पर गहन चर्चा
हुई. पाकिस्तान को माकूल जवाब
देने की रणनीति पर
भी बैठक में गहन
विचार-विमर्श किया गया और
अपनी तैयारियों की समीक्षा की
गयी. इस बीच जमीनी
स्तर पर भी कई
ठोस कदम उठाये गये
हैं. अफगानिस्तान की तालिबान सरकार
ने पहलगाम हमले की पृष्ठभूमि
में पाकिस्तान को रणनीतिक मदद
देने से इनकार करते
हुए भारत के साथ
सहयोग का जो वादा
किया है, वह महत्वपूर्ण
है. हालांकि भारत द्वारा अटारी
बॉर्डर बंद कर देने
से पाकिस्तान के जरिये होने
वाला भारत-अफगान व्यापार
बुरी तरह प्रभावित हो
रहा है. इस बॉर्डर
के जरिये दोनों देशों के बीच सालाना
50 करोड़ डॉलर का व्यापार
होता रहा है. यह
सूखे मेवों का सीजन है
और अफगानिस्तान से सूखे मेवे
इसी रूट से भारत
आते रहे हैं.
जहां तक भारत
के तैयारियों का सवाल है
तो विश्व की चौथी सबसे
मजबूत सैन्य शक्ति वाला देश है,
पाकिस्तान पिछले साल नौवें स्थान
पर था, पर अब
12वें नंबर पर पहुंच
गया है. यह सूचकांक
विभिन्न देशों की पारंपरिक युद्ध
क्षमताओं के 60 से अधिक कारकों
को ध्यान में रखकर तैयार
किया जाता है. इस
सूचकांक के मुताबिक भारत
की कुल जनसंख्या लगभग
1.4 अरब है, जो दुनिया
में दूसरे स्थान पर है, जबकि
पाकिस्तान की जनसंख्या करीब
24 करोड़ है. भारत के
सक्रिय सैनिकों की संख्या करीब
14.55 लाख है, जो पाकिस्तान
के 6.54 लाख सक्रिय सैनिकों
की तुलना में कहीं अधिक
है. भारत के पास
ज्यादा रिजर्व सैनिक और अर्धसैनिक बल
भी हैं. थल सैन्य
शक्ति के अलावा भारत
की वायु और जल
सैन्य शक्ति भी पाकिस्तान से
बहुत अधिक है. फेडरेशन
ऑफ अमेरिकन साइंस्टिट्स (एफएएस) के मुताबिक, भारत
के पास जहां 180 परमाणु
हथियार हैं, वहीं पाकिस्तान
के पास 170 परमाणु हथियार हैं, पर भारत
परमाणु हथियार न्यूक्लियर डोमेन में पाकिस्तान से
बहुत आगे हैं. यही
नहीं, भारत न्यूक्यिलर ट्रायड
यानी जल, थल और
आकाश, तीनों में परमाणु हथियार
दागने की क्षमता रखता
है. ऐसी क्षमता वाला
भारत दुनिया में चौथा देश
है. यदि हम आर्थिक
आधार पर तुलना करें,
तो पाते हैं कि
भारत की अर्थव्यवस्था पाक
अर्थव्यवस्था के दस गुने
से भी अधिक मजबूत
है. मौजूदा वित्त वर्ष के लिए
दोनों देशों का बजट देखें,
तो भारत का बजट
पाकिस्तान के बजट से
करीब 11 गुना ज्यादा है.
भारत ने अपनी रक्षा
तैयारियों के लिए इस
बजट में 77.4 अरब डॉलर का
आवंटन किया है, जबकि
पाकिस्तान का रक्षा बजट
करीब 7.6 अरब डॉलर का
है यानी भारत का
सैन्य बजट पाकिस्तान से
लगभग 10 गुना अधिक है.
हाल ही में
प्रकाशित विश्व बैंक की रिपोर्ट
के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष में भारत
की विकास दर 6.3 फीसदी और पाकिस्तान की
विकास दर महज 2.6 फीसदी
रह सकती है. भारत
की जीडीपी अभी 4,000 अरब डॉलर की
है, जबकि पाकिस्तान की
जीडीपी 400 अरब डॉलर से
भी कम है यानी
भारत की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान
से करीब 10 गुना बड़ी है.
भारत के पास अप्रैल
तक 687 अरब डॉलर का
विदेशी मुद्रा भंडार था, जबकि पाकिस्तान
के पास यह भंडार
मात्र 16 अरब डॉलर ही
था. भारत की प्रतिव्यक्ति
आय 2,880 डॉलर है, पाकिस्तान
की केवल 1,590 डॉलर है. पाकिस्तान
में महंगाई से लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं,
जबकि भारत में महंगाई
की दर चार फीसदी
के आसपास है. तेजी से
चमकती हुई प्रभावी आर्थिक
छवि के कारण भारत
में विदेशी निवेश बढ़ रहा है,
पाकिस्तान में यह लगातार
घट रहा है. भारत
ने 2024-25 में रिकॉर्ड 437 अरब
डॉलर का निर्यात किया
है, जबकि पाकिस्तान का
निर्यात इसका दसवां भाग
भी नहीं है. भारत
के कुल निर्यात में
पाकिस्तान की हिस्सेदारी मात्र
0.06 फीसदी है. पिछले वर्ष
भारत ने जितना सामान
पाकिस्तान से आयात किया,
उससे करीब 31 गुना ज्यादा पाकिस्तान
को निर्यात किया. भारत पाकिस्तान को
कई चीजें निर्यात करता है, जिनमें
चीनी, फार्मास्युटिकल, दवाएं, जैविक रसायन, कॉफी, चाय, लोहा-स्टील
के सामान आदि प्रमुख है.
भारत पाकिस्तान से प्रमुख रूप
से खनिज तेल, तांबा,
फल, मेवे, नमक, सल्फर, प्लास्टर
सामग्री और कपास आयात
करता है. चूंकि पाकिस्तान
आयातित अधिकांश वस्तुएं किफायती दामों पर अन्य देशों
से भारत आ सकती
हैं. ऐसे में पाकिस्तान
से कारोबार पर रोक भारत
को प्रभावित नहीं करेगा.
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