Monday, 12 May 2025

भोले की नगरी में बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज

भोले की नगरी में बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज 

वैशाख पूर्णिमा पर शीतला माता मंदिर में भक्तों ने किया जलाभिषेक

सुबह श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी, शाम को हजारों दीपों से सारनाथ मंदिर में दीपों की श्रृंखला जलाई गयी

विश्व में शांति हो, के लिए सादगी से की बोधिवृक्ष के नीचे प्रार्थना

मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध की मूर्ति के समक्ष विशेष रूप से पूजा-अर्चना की गई

सुरेश गांधी

वाराणसी। आज ही के दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और आज ही के दिन उनका महापरिनिर्वाण भी हुआ था। बौद्ध धर्मावलंबियों के आस्था के केन्द्र भगवान बुद्ध की पावन उपदेश स्थली सारनाथ में भगवान बुद्ध की 2587वीं बुद्ध जयंती समारोह का भव्यता के साथ आयोजन किया. इस अवसर पर, अनुयायियों ने शांति का संदेश दिया और बुद्ध के अहिंसा, प्रेम और करुणा के संदेश का पालन किया. इस दौरान अनुयायियों ने शांति का संदेश दिया और बुद्धं शरणं गच्छामिधम्मं शरणं गच्छामिसंघम शरणम गच्छामि का मंत्रोच्चार कर बुद्ध के दिखाये गये अहिंसा, प्रेम और करुणा का संदेश दिया.

इस मौके पर विश्व के कई देशों से धर्मगुरु, लामा, श्रद्धालु और पर्यटकों ने सारनाथ मंदिर में शीश नवाया और दीप जलाएं। मंदिर प्रबंधन समिति के सदस्यों द्वारा सादगी से पवित्र बोधिवृक्ष के नीचे प्रार्थना की गई। इससे पहले सदस्यों ने मंदिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध की मूर्ति के समक्ष विशेष रूप से पूजा-अर्चना की। परिसर में धीमी सूर में बुद्धं शरण गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि... की गूंज सुनाई दे रही थी। बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने भगवान बुद्ध के दिखाये अहिंसा, धम्मदेसना के मार्ग पर चलने का संदेश देते हुए कहा कि बुद्ध ने शांति और सद्भावना का जो संदेश दिया है उसकी वर्तमान दौर में विश्व को जरूरत है. सभी को साथ लेकर चलना चाहिए मात्र जयंती मनाने और प्रार्थना करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि धम्म के उपदेशों को अपने जीवन में उतारना होगा. उनके दिखाए मार्ग पर चलने से ही विश्व में शांति की स्थापना हो सकती है. यदि जीवन में आनंद प्राप्त करना हो तो हर परिस्थिति में मुस्कुराए. लाख दु: हो फिर भी अपनी किस्मत को कोसें. निरंतर संघर्षशील रहकर बुद्ध के मार्ग पर चलें

बौद्ध भिक्षु जिनानन्द ने बताया कि बुद्ध जयंती का बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए विशेष महत्व है क्योंकि आज ही के दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था, उन्हें बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और आज ही के दिन उनका महापरिनिर्वाण भी हुआ था। उन्होंने बताया कि भगवान बुद्ध के जीवनकाल की तीनों घटनाएं आज ही के दिन हुई थी। इसलिए इसे त्रिविध जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। आज की तिथि का विशेष महत्व है। आज बुद्ध पूर्णिमा को इसे बुद्ध जयंती के रूप में भी मनाया जाता हैं। हम लोगों ने आज सादगी से पूजा-पाठ किया है। पूरे विश्व में शांति हो और लोगों का जीवन सुखमय हो, इसके लिए प्रार्थना की गई है। वैदिक ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्ध नारायण के अवतार हैं, उन्होंने 2800 साल पहले धरती पर लोगों को अहिंसा और दया का ज्ञान दिया था। बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। इसी वजह से हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।

भगवान बुद्ध ने चार आर्यसत्य बताए हैं जिसके माध्यम से मनुष्य को जीवन जीने की प्रेरणा दी है। दुख है। दुख का कारण है। दुख का निवारण है। दुख निवारण का उपाय है। महात्मा बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया और संन्यास ले लिया था। उन्होंने कहा कि हिंसा के लिए प्रेरित मन को शुद्ध स्थिति में लाना ही बुद्ध है। जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर मनुष्य और मनुष्य के भीतर भेद करने का संदेश भारत का हो सकता है, बुद्ध का हो सकता है, धरती पर इस विचार के लिए जगह नहीं हो सकती। मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर में शाम साढ़े छह बजे महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के सयुक्त सचिव भिक्षु सुमित्ता नन्द के नेतृत्व में आधा दर्जन बौद्ध भिक्षु भगवान बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष दीप जला कर विश्व शांति के लिए धर्म चक्र प्रवर्तन सूत्र पाठ किया। जो लगभग एक घण्टे तक चला। इस मौके पर भिक्षु मैत्री, भिक्षु चंदिमा मौजूद थे। वहीं दूसरी तरफ धम्म शिक्षण केन्द्र में भिक्षु चंदिमा के नेतृत्व में बौद्ध भिक्षुओं ने भगवान बुद्ध की प्रतिमा के सामने दीप जला कर बुद्ध वंदना की गई। इस दौरान भिक्षु महाकश्यप, भिक्षु करूणा, भिक्षु चितबोधि , भिक्षु प्रज्ञा शील शामिल थे।

वैशाख महीने की बुद्ध पूर्णिमा को दशाश्वमेध घाट पर मां बड़ी शीतला माता का वार्षिक श्रृंगार और जलाभिषेक सोमवार को किया गया। मान्यता है कि साल में एक दिन माता का जलाभिषेक श्रद्धालु अपने हाथों से गंगाजल और नीम के पत्तों से करते हैं। जिससे पूरे साल शीतलता बनी रहे। मंदिर के प्रधान पुजारी ने बताया की वैशाख महीने की पूर्णिमा को माता शीतला का जलाभिषेक किया जाता है और नीम के पत्ते से मां को स्नान कराया जाता है। जिससे वर्ष भर किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता है और माता का चंदन से श्रृंगार होता है। यह मनोकामना की जाती है कि साल भर मां भक्तों पर शीतलता बनाए रखें।


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