Thursday, 5 June 2025

जब कुंभ की भगदड़ ‘हत्या’ थी, तो बेंगलुरु का मातम सिर्फ ‘हादसा’ कैसे?

जब कुंभ की भगदड़हत्याथी, तो बेंगलुरु का मातम सिर्फहादसाकैसे

देश में जब भी कोई भगदड़ होती है, तो मौतें केवल आंकड़ों में सिमटकर नहीं रह जातीं, वे राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन जाती हैं। ये हादसे अक्सर किसी पार्टी के लिए हमदर्दी का माध्यम बनते हैं, तो किसी के लिए हमले का औज़ार। लेकिन जब एक जैसी घटनाओं पर दो अलग-अलग मानदंड अपनाए जाते हैं, तब सवाल उठना लाजिमी है. क्या जान की कीमत सत्ताधारी दल के आधार पर तय होती है? बेंगलुरु की सड़कों पर मृतकों की चप्पलें, अस्पतालों में घायल महिलाएं और बदहवास परिजन यह पूछ रहे हैं कि इस मौत का जिम्मेदार कौन है? लेकिन अभी तक कोई मंत्री इस्तीफा देने को तैयार है, किसी प्रशासनिक अधिकारी पर कार्रवाई हुई है

सुरेश गांधी 

देखा जाए तो एक साल से भी कम समय में भारत में 5 खौफनाक भगदड़ हुई. कभी आस्था तो कभी जश्न, और मौत का आंकड़ा 190 पार हो चुका है! अब लोग जानना चाह रहे है क्या ये सिर्फ हादसे थे या किसी गहरी चूक का नतीजा? हाथरस से चिन्नास्वामी तक, हर भगदड़ छोड़ गई अपने पीछे एक डर, एक सन्नाटा और अनगिनत सवाल...हाल ही में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) की जीत का जश्न मातम में बदल गया। चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर भीड़ इतनी बेकाबू हो गई कि भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई और 35 से अधिक घायल हो गए। मरने वालों में अधिकांश महिलाएं थीं। हादसे के पीछे कारण स्पष्ट हैं, टिकट वितरण में भ्रम, पर्याप्त पुलिस बल की अनुपस्थिति, भीड़ नियंत्रण की असफलता और आपातकालीन प्रबंधन की घोर चूक। मगर इसके बाद जो हुआ वह और भी निराशाजनक था.

सरकारी मशीनरी, आयोजक और क्रिकेट प्रशासन इसे एक सामान्य दुर्घटना कहकर पल्ला झाड़ते नजर आए। याद कीजिए 2013 का महाकुंभ मेला, प्रयागराज में हुई भगदड़ में जब कई लोगों की मौत हुई थी, तब विपक्ष के नेताओं ने उस समय की सरकार कोसुनियोजित हत्याके लिए जिम्मेदार ठहराया था। राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी तक ने इस पर तीखे सवाल उठाए थे। लेकिन जब उसी देश केटेक हबबेंगलुरु में सरकारी आयोजन में भीड़ के कारण 11 लोग मारे जाते हैं, तो वही राजनीतिक आवाजें खामोश क्यों हो जाती हैं? कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तो प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “ऐसी घटनाएं तो कुंभ में भी हो चुकी हैं।क्या यह तुलना उचित है? क्या यह संवेदनशीलता दिखाने का तरीका है?

बेंगलुरु जैसी आधुनिक और तकनीकी रूप से संपन्न मानी जाने वाली नगरी में अगर भीड़ नियंत्रण की यह हालत है, तो यह केवलदुर्घटनानहीं बल्किप्रशासनिक विफलताहै। आयोजन से पहले भीड़ के अनुमान और उसके अनुरूप प्रबंध क्यों नहीं किए गए? स्टेडियम के बाहर सुरक्षा घेरे की व्यवस्था क्यों नहीं थी? एक बड़ी सार्वजनिक घोषणा के बाद पर्याप्त ट्रैफिक और आपातकालीन योजना क्यों नहीं बनी? हादसे के बाद भी सरकार और डिप्टी सीएम कार्यक्रम में व्यस्त कैसे रहे? ये सवाल बुनियादी हैं और इनका उत्तर आज नहीं दिया गया, तो कल फिर ऐसी घटनाएं दोहराई जाएंगी। इस हादसे के बाद यह स्पष्ट हो गया कि भारत में मौतों का राजनीतिककरण हो चुका है। कुंभ में कोई श्रद्धालु मरे, तो वोहत्याहै। लेकिन बेंगलुरु में कोई महिला जश्न के दौरान मरे, तो वोदुर्घटनाबन जाती है। टीवी डिबेट्स चुप हैं, इस्तीफे की मांग नहीं उठी, और मुख्यधारा मीडिया ने इसे मामूली खबर की तरह समेट दिया। क्या यह इसलिए क्योंकि इस बार सरकारअपनीहै? भीड़ में मची भगदड़ कोई नई या अनोखी घटना नहीं है, लेकिन इससे बचने के उपाय भी कोई रहस्य नहीं हैं।

1989, इंग्लैंडः हिल्सबोरो फुटबॉल स्टेडियम हादसे में 96 मौतें हुईं। इसके बाद वहाँ के कानून और स्टेडियम सुरक्षा प्रोटोकॉल पूरी तरह बदल दिए गए। 2015, सऊदी अरबः हज के दौरान 2,400 से ज्यादा लोग भगदड़ में मरे. सरकार ने अंतरराष्ट्रीय जांच को अनुमति दी और व्यापक समीक्षा की। 1979, अमेरिकाः एक संगीत कार्यक्रम में 11 लोगों की मौत के बाद आयोजनों के प्रवेश नियम बदले गए। वैसे भी भारत में हर बार लाशें गिन ली जाती हैं, कुछ दिन शोक होता है, और फिर सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है। बेंगलुरु की सड़कों पर मृतकों की चप्पलें, अस्पतालों में घायल महिलाएं और बदहवास परिजन यह पूछ रहे हैं कि इस मौत का जिम्मेदार कौन है? लेकिन अभी तक कोई मंत्री इस्तीफा देने को तैयार है, किसी प्रशासनिक अधिकारी पर कार्रवाई हुई है। हम किस दिशा में जा रहे हैं? क्या हम हर मौत की वैल्यू राजनीतिक चश्मे से तय करेंगे? अगर महाकुंभ की मौतें सरकार की हत्या थीं, तो बेंगलुरु की मौतें कैसे एकअनफॉर्चुनेट इवेंटबन सकती हैं

मौत को राजनीति के तराजू पर मत तौलिए। या तो दोनों घटनाएं प्रशासनिक हत्याएं हैं, या दोनों हादसे। हमें यह तय करना होगा कि क्या हम देश को भीड़ की मौतों का अभ्यस्त समाज बनने देंगे या भविष्य के लिए इससे सबक लेंगे। जबतक जिम्मेदारों से जवाब नहीं मांगा जाएगा, तब तक ये चूकें दोहराई जाती रहेंगी कृ कभी मंदिर में, कभी स्टेडियम में, कभी किसी चुनावी रैली में।

बता दें, बेंगलुरु में 5 जून को उस वक्त एक बड़ा हादसा हो गया, जब रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु की आईपीएल जीत के जश्न में शामिल होने के लिए सड़कों पर बेहिसासाब भीड़ जुट गई. शहर के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर करीब 3 लाख लोग जमा हो गए. स्थिति बेकाबू हो गई और भगदड़ में दस से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. मामले में एफआईआर दर्ज की गई है, जिसमें किसी भी शख्स को आरोपी नहीं बनाया गया है

यह अलग बात है कि बेंगलुरु भगदड़ मामले की 6 जून को कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, जहां कर्नाटक सरकार ने कहा, ’भगदड़ के बाद घायलों को तुरंत इलाज मुहैया करवाया। 1380 पुलिसकर्मी तैनात किए गए।जबकि याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट से कहा, ’राज्य सरकार को यह बताना होगा कि आरसीबी के खिलाड़ियों को सम्मानित करने का निर्णय किसने लिया है। देश के लिए नहीं खेलने वाले खिलाड़ियों को सम्मानित करने की क्या मजबूरी थी। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम या सुरक्षा उपाय किए गए।प्रारंभिक जांच के मुताबिक भीड़ ने स्टेडियम में घुसने के लिए गेट नंबर 12, 13 और 10 तोड़ने की कोशिश की। पुलिस ने लाठीचार्ज किया। नाले पर रखा स्लैब ढह गया। हल्की बारिश के बीच भगदड़ मच गई। दोपहर लगभग 330 बजे भीड़ और बढ़ी तो सभी गेट बंद कर दिए गए। इससे पास वाले भी अंदर नहीं घुस पाए। हंगामा शुरू हो गया। गेट नंबर 10 पर स्थिति ज्यादा बिगड़ी। पुलिस ने महिलाओं-बच्चों को पीछे धकेला, कुछ महिलाएं बेहोश होकर गिर गईं।

भगदड़ें बनीं मौत का कारण

पिछले एक साल से भी कम वक्त में देश ने पांच बड़ी भगदड़ें देखीं, जिनमें 190 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ये घटनाएं धार्मिक आस्था, सार्वजनिक आयोजन और सरकारी लापरवाही का भयानक मेल साबित हुईं।

1. चिन्नास्वामी स्टेडियम : जीत का जश्न बना मातम

बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर बुधवार को त्ब्ठ की जीत का जश्न एक भयंकर हादसे में तब्दील हो गया। भीड़ बेकाबू हुई और मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई, जिनमें ज्यादातर युवा थे। 33 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए हैं।

2. नई दिल्ली रेलवे स्टेशनः प्लेटफॉर्म पर मौत की दौड़

15 फरवरी 2025, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म 14 और 15 पर जबरदस्त भीड़ के चलते भगदड़ मच गई। प्रयागराज से लौट रहे तीर्थयात्रियों में 18 लोगों की जान चली गई और 15 लोग घायल हो गए।

3. कुंभ मेले में भगदड़ः श्रद्धा पर भारी सुरक्षा चूक

29 जनवरी 2025, मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज के संगम क्षेत्र में स्नान के लिए उमड़ी लाखों की भीड़ बेकाबू हो गई। भगदड़ में 30 लोगों की मौत और 60 से अधिक घायल हुए।

4. तिरुपति और गोवा में आस्था बनी हादसे की वजह

जनवरी 2025 में तिरुमाला हिल्स, तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए मची होड़ में 6 लोगों की मौत हो गई। वहीं मई 2025 में गोवा के श्री लैराई देवी मंदिर के वार्षिक मेले में भगदड़ मचने से कम से कम 6 श्रद्धालुओं की मौत हो गई।

5. हाथरस की सबसे बड़ी त्रासदीः 121 की मौत

जुलाई 2024, उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में स्वयंभू बाबाभोले बाबाके सत्संग कार्यक्रम में मची भगदड़ ने इतिहास की सबसे दर्दनाक घटना का रूप ले लिया। इस त्रासदी में 121 लोगों की जान चली गई, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे। 11 आरोपियों की गिरफ्तारी हुई लेकिन सभी अब जमानत पर हैं।

मतलब साफ है भीड़ हर बार उमड़ती है, हादसे दोहराए जाते हैं, लेकिन सीख कोई नहीं लेता! क्या भारत को ऐसी त्रासदियों से बचाने के लिए कोई ठोस नीति बनेगी? या फिर हर साल दोहराए जाएंगे ऐसे काले पन्ने? देश में साल 2003 से लेकर अब तक 21 भगदड़ में 1436 लोगों की जानें गई हैं, जबकि हजारों लोग घायल हुए। हर हादसे के बाद प्रशासन जनता को, और जनता प्रशासन को क़सूरवार ठहराकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। पिछले हादसों के आंकड़े और बहानों से काम चला लेते हैं। कुछ दिन का रोना पीटना और फिर सब शांत! प्रशासन भुला देता है और जनता भूल जाती है।

महाकुंभ के दौरान संगम क्षेत्र में भगदड़

प्रयागराज महाकुंभ 2025 के दौरान 29 जनवरी को संगम क्षेत्र में भगदड़ मच गई, जब मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर लाखों तीर्थयात्री पवित्र स्नान के लिए जगह पाने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे। इस भगदड़ में 30 लोगों की मौत हो गई और 60 लोग घायल हो गए। 15 फरवरी को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 14 और 15 पर भगदड़ मच गई। इसमें 18 लोगों की मौत हो गई और 15 घायल हो गए, जिनमें से ज्यादातर प्रयागराज के महाकुंभ में शामिल होने जा रहे थे।

3 मई, 2025 : गोवा के शिरगाओ गांव में श्री लैराई देवी मंदिर के वार्षिक उत्सव के दौरान तड़के मची भगदड़ में छह लोगों की मौत हो गई और करीब 100 लोग घायल हो गए।

8 जनवरी, 2025 : तिरुमाला हिल्स में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में वैकुंठ द्वार दर्शनम के लिए टिकट लेने के लिए सैकड़ों श्रद्धालुओं के बीच हुई धक्का-मुक्की में कम से कम छह श्रद्धालुओं की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए।

2 जुलाई, 2024 : उत्तर प्रदेश के हाथरस में स्वयंभू भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि द्वारा आयोजितसत्संग’ (प्रार्थना सभा) में भगदड़ मचने से महिलाओं और बच्चों सहित कम से कम 121 लोगों की मौत हो गई।

31 मार्च, 2023 : इंदौर शहर के एक मंदिर में रामनवमी के अवसर पर आयोजितहवनसमारोह के दौरान एक प्राचीनबावड़ीया कुएं के ऊपर बनी स्लैब के ढह जाने से कम से कम 36 लोगों की मौत हो गई।

1 जनवरी, 2022 जम्मू-कश्मीर में माता वैष्णो देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण मची भगदड़ में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और एक दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए।

29 सितंबर, 2017 मुंबई में पश्चिमी रेलवे के एलफिंस्टन रोड स्टेशन को मध्य रेलवे के परेल स्टेशन से जोड़ने वाले संकरे पुल पर मची भगदड़ में 23 लोगों की जान चली गई और 36 लोग घायल हो गए।

14 जुलाई, 2015 गोदावरी नदी के तट पर एक प्रमुख स्नान स्थल पर भगदड़ में 27 तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और 20 अन्य घायल हो गए। यहां आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी मेंपुष्करमउत्सव के उद्घाटन के दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जमा हुई थी।

3 अक्टूबर, 2014 दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में मची भगदड़ में 32 लोगों की मौत हो गई और 26 अन्य घायल हो गए।

13 अक्टूबर, 2013 मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान भगदड़ में 115 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हो गए। भगदड़ की शुरुआत इस अफ़वाह के कारण हुई कि श्रद्धालु जिस नदी के पुल को पार कर रहे थे, वह ढहने वाला है।

19 नवंबर, 2012 पटना में गंगा नदी के किनारे अदालत घाट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थायी पुल के ढह जाने से भगदड़ मच गई, जिसमें लगभग 20 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।

8 नवंबर, 2011 हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे हर-की-पौड़ी घाट पर भगदड़ मचने से कम से कम 20 लोग मारे गए।

14 जनवरी, 2011 केरल के इडुक्की जिले के पुलमेडु में घर जा रहे तीर्थयात्रियों पर एक जीप के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से मची भगदड़ में कम से कम 104 सबरीमाला श्रद्धालु मारे गए और 40 से अधिक घायल हो गए।

4 मार्च, 2010 उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ में लगभग 63 लोग मारे गए, जहां लोग स्वयंभू बाबा से मुफ्त कपड़े और भोजन लेने के लिए एकत्र हुए थे।

30 सितंबर, 2008 राजस्थान के जोधपुर शहर में चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाहों के कारण मची भगदड़ में लगभग 250 श्रद्धालु मारे गए और 60 से अधिक घायल हो गए।

3 अगस्त, 2008 हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में चट्टान गिरने की अफवाहों के कारण मची भगदड़ में 162 लोग मारे गए, 47 घायल हो गए।

25 जनवरी, 2005 महाराष्ट्र के सतारा जिले में मंधारदेवी मंदिर में वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 340 से अधिक श्रद्धालु कुचलकर मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। यह दुर्घटना तब हुई जब नारियल तोड़ रहे श्रद्धालुओं की वजह से सीढ़ियां फिसलन भरी हो गईं और लोग गिरने लगे।

27 अगस्त, 2003 महाराष्ट्र के नासिक जिले में कुंभ मेले में पवित्र स्नान के दौरान भगदड़ में 39 लोग मारे गए और लगभग 140 घायल हो गए।

बयानों पर क्यों मचते हैं बवाल

हर हादसे के बाद राजनीतिक बयानों पर बवाल खड़ा होता है। हम जानते हैं की आजकल की राजनीति समाजसेवा नहीं, बल्कि सत्तासेवा बन चुकी है। सबको अपनी कुर्सी प्यारी होती है। सरकार का काम है करना, और विपक्ष का काम है उधेड़ना। हर हादसे के बाद सत्ता और विपक्ष से आए बयान यही साबित करते हैं। लेकिन इन बयानों पर हो-हल्ला करने की बजाय, इस तरह की दुर्घटना क्यों हुई और इसमें हमारी, यानि आम जनता की कितनी बड़ी भूमिका है, अगर इसपर चर्चा की जाए तो एक बहुत बड़ा खुलासा सामने सकता है। हम, जो उन हादसों के वक्त वहां मौजूद थे! हम, जिन्होंने ग़लत अफ़वाहें फैलाईं और फिर उन अफवाहों की सच्चाई जाने बिना अगला कदम उठाया! हम, जो मौक़े की नज़ाकत को समझ नहीं पाए और अपना बोझ पुलिस और प्रशासन पर डाल दिया! लाखों की तादाद में इकट्ठे होकर नियमों और चेतावनियों को ताक पर रखकर अपनी जान जोखिम में डालने की कोशिश की! हम चाहते तो ये हादसा टल सकता था!

 

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