पुष्पों से सजी श्रद्धा की त्रिवेणी
श्रावण
के
पहले
दिन
काशी
विश्वनाथ
धाम
में
नवाचार
के
माध्यम
से
हरि-हर
परंपरा
का
अभिनव
उत्सव.
श्रावण
मास
शिवभक्ति
का
वह
उत्सव
है,
जब
समस्त
सृष्टि
शिवमय
हो
जाती
है।
जहाँ-जहाँ
जल
है,
वहाँ-वहाँ
आस्था
की
धाराएं
बहती
हैं;
और
जहाँ-जहाँ
शिव
हैं,
वहाँ
वह
श्रद्धा
लहर
बनकर
उमड़ती
है।
इस
बार
काशी
ने
श्रावण
के
पहले
ही
दिन
आस्था
की
इसी
लहर
को
पुष्पों
की
वर्षा
से
स्वागत
किया—परंपरा
के
साथ
नवाचार
का
अद्भुत
समन्वय
करते
हुए
सुरेश गांधी
वाराणसी के श्री काशी
विश्वनाथ मंदिर में इस वर्ष
श्रावण मास के स्वागत
हेतु जो अभिनव उपक्रम
किया गया, वह केवल
एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि सनातन परंपरा के आधुनिक प्रस्तुतीकरण
का आदर्श उदाहरण है। मंदिर न्यास
की कार्यपालक समिति के पदेन अध्यक्ष
मंडलायुक्त एस. राजलिंगम की
प्रेरणा से यह नवाचार
इस रूप में सामने
आया कि श्रद्धालु न
केवल भावविभोर हुए, बल्कि काशी
की परंपरा को नई दृष्टि
से देखने को भी प्रेरित
हुए। तीन चरणों में
विभाजित यह आयोजन शैव
सिद्धांतों में निहित ‘त्रैतीय’
भाव की जीवंत प्रस्तुति
था। मंदिर के तीन शिखरों—भगवान विश्वनाथ, दण्डपाणि और वैकुण्ठेश्वर—के
समक्ष पुष्प वर्षा करके आरंभ किया
गया यह क्रम केवल
स्वागत नहीं, शिखर पूजन के
माध्यम से आध्यात्मिक केंद्रों
को नमन करने की
परंपरा को पुनर्स्थापित करने
का एक प्रयास भी
था।
द्वितीय चरण में भगवान
बद्रीनारायण मंदिर तक हरि और
हर के समन्वय को
पुष्पवर्षा द्वारा व्यक्त किया गया। काशी
में जहाँ एक ओर
शैव परंपरा की गहराई है,
वहीं वैष्णव श्रद्धा का भी उत्कट
प्रवाह है। यह चरण
उस हरि-हर एकता
का सुंदर प्रदर्शन था, जो काशी
की आत्मा है। और अंतिम
चरण, जो श्रद्धा की
पूर्णता का द्योतक रहा—माँ अन्नपूर्णा को
अर्पित तीन पुष्प थाल।
शुक्रवार को मातृशक्ति की
उपासना का दिन मानते
हुए मंदिर प्रशासन ने इस नवाचार
को माँ के चरणों
में समर्पित कर सम्पूर्ण किया।
यह केवल धार्मिक भावना
नहीं थी, यह इस
बात का प्रतीक था
कि श्रद्धा जब सेवा और
सौंदर्य से मिलती है,
तो धर्म उत्सव बन
जाता है। सनातन परंपरा
में तीन का विशेष
स्थान है—त्रिदेव, त्रिदल
बेलपत्र, त्रिपुण्ड, त्रिशूल, त्रिलोक। काशी ने आज
इसे केवल एक संकल्पना
नहीं, बल्कि अनुभव के स्तर पर
प्रस्तुत किया। यह आयोजन उस
विचार को पुष्ट करता
है कि जब श्रद्धा
में नवाचार जुड़ता है, तो धर्म
न केवल प्रासंगिक बनता
है, बल्कि वर्तमान पीढ़ी के लिए आकर्षक
और आत्मीय भी।
काशी ने फिर दिखाया – परंपरा में नयापन विरोध नहीं, विस्तार है
धार्मिक आयोजन जब केवल कर्मकांड
न रहकर बोध और
बुनावट से भर जाते
हैं, तो वे समाज
को दिशा देने लगते
हैं। काशी विश्वनाथ धाम
में आज जो हुआ,
वह एक नया अध्याय
है। यह अध्याय कहता
है कि धर्म केवल
स्मृति नहीं, सृजन की शक्ति
भी है। और वह
शक्ति तब फलित होती
है जब नीति, निष्ठा
और नवाचार तीनों एक साथ हों।
श्रावण मास का यह
आरंभ बताता है कि काशी
की आत्मा केवल मंदिरों में
नहीं, नवचिंतन में भी बसती
है। यही कारण है
कि यह नगर अनादि
काल से आज तक
धर्म और दर्शन दोनों
की जीवंत प्रयोगशाला बना हुआ है।
"धर्म वही है जो कालसापेक्ष होकर भी कालातीत रहे"
काशी के वरिष्ठ
संत स्वामी विष्णु तीर्थ महाराज का यह कथन
आज की स्थिति को
सारगर्भित रूप में स्पष्ट
करता है। जब परंपरा
को समय के साथ
जोड़ा जाता है, तो
वह केवल इतिहास नहीं,
भविष्य का भी आधार
बनती है। और यही
काशी का सतत धर्म-दर्शन है।
श्रावण
का यह स्वागत केवल
पुष्प नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और नवाचार का
सुगंधित मिलन था। काशी
ने एक बार फिर
दिखाया कि यहाँ आदिकाल
से चली आ रही
साधना को भी नव
दृष्टिकोण से जोड़ा जा
सकता है, बशर्ते उसमें
श्रद्धा और समर्पण की
निर्मलता हो।
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