Saturday, 5 July 2025

भारतीय मीडिया : बदलता स्वरूप और भाषा का नया दौर

भारतीय मीडिया : बदलता स्वरूप और भाषा का नया दौर

21वीं सदी के तीसरे दशक में भारतीय मीडिया एक अभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। 2025 के बाद की नई पीढ़ी ने सूचना, संवाद और मनोरंजन के उपभोग के तरीकों में आमूलचूल बदलाव ला दिए हैं। इस बदलाव के केंद्र में सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफॉर्म, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मोबाइल क्रांति, और डिजिटल मीडिया की सहज उपलब्धता है। इसके प्रभाव से मीडिया का स्वरूप, प्रस्तुति और भाषा केवल तेजी से बदले हैं, बल्कि भारतीय भाषाओं की भूमिका भी अब पहले से कहीं अधिक सशक्त हो गई है। मतलब साफ है वर्ष 2025 के साथ मीडिया जगत में एक नई पीढ़ी का आगमन हुआ है। यह पीढ़ी तकनीक-प्रेमी, त्वरित जानकारी चाहने वाली और अपने अलग संचार माध्यमों को प्राथमिकता देने वाली है। इस पीढ़ी ने मीडिया के पारंपरिक स्वरूप को पूरी तरह से बदल दिया है। इसने केवल मीडिया की संरचना बल्कि इसकी भाषा, शैली, प्रस्तुति और समाज से इसके संबंधों को भी अभूतपूर्व ढंग से प्रभावित किया है 

सुरेश गांधी 

सोशल मीडिया ने पारंपरिक मीडिया की गति और दिशा दोनों को चुनौती दी है। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स ने सूचना के संप्रेषण की प्रक्रिया कोरीयल टाइमबना दिया है। अब खबरें पहले सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं और फिर मुख्यधारा के मीडिया में स्थान पाती हैं। सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति को पत्रकार बना दिया है। अब कोई भी नागरिक किसी घटना का वीडियो या फोटो अपलोड कर खबर बना सकता है। खबरों की प्रस्तुति में भी बड़ा बदलाव आया है, जहां आकर्षक हेडलाइंस, शॉर्ट वीडियो, रील्स और छोटे-छोटे ट्वीट्स का बोलबाला है। सोशल मीडिया ने मीडिया की भाषा को सरल, हिंग्लिश और संवादात्मक बना दिया है। हालांकि, इसके साथ ही ट्रोलिंग, अफवाह और फेक न्यूज की समस्याएं भी तेजी से बढ़ी हैं, जिससे मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने भारतीय मीडिया को कंटेंट की आज़ादी दी है। नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, डिज़्नी$ हॉटस्टार, और भारतीय ओटीटी जैसे एमएक्स प्लेयर ने दर्शकों को समय, भाषा और विषय की आज़ादी दी है। अब दर्शक खुद तय करता है कि क्या देखना है, कब देखना है और किस भाषा में देखना है। ओटीटी के माध्यम से क्षेत्रीय भाषाओं का पुनर्जागरण हुआ है। हिंदी, तमिल, तेलुगु, मराठी, पंजाबी और भोजपुरी में अब वेब सीरीज़ और फिल्में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। ओटीटी कंटेंट की भाषा अधिक स्वाभाविक, स्थानीय मुहावरों से युक्त और बोलचाल की शैली में होती है।

हालांकि सेंसरशिप की कमी के कारण इसमें कभी-कभी अभद्र भाषा और अश्लीलता की सीमा पार होने की शिकायतें भी देखी जाती हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने मीडिया में कंटेंट निर्माण, अनुवाद, और वितरण में क्रांतिकारी बदलाव किया है। समाचार एजेंसियां अब एआई की मदद से खेल, आर्थिक, और मौसम से संबंधित समाचार स्वतः तैयार कर रही हैं। वॉयस असिस्टेंट्स, चैटबॉट्स, और न्यूज एग्रीगेटर्स एआई के जरिए पाठकों को उनकी रुचि और भाषा के अनुसार समाचार परोस रहे हैं। या यूं कहे सोशल मीडिया ने समाचारों के संप्रेषण और उपभोग का तरीका बदल दिया है। अब समाचार तत्काल चाहिए और संक्षिप्त चाहिए। ट्विटर, इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब शॉर्ट्स जैसे प्लेटफॉर्म्स ने पारंपरिक मीडिया को तेज, आकर्षक और जनसंवादी होने के लिए मजबूर कर दिया है। सोशल मीडिया नेजनता का मीडियाका रूप ले लिया है, जहां हर व्यक्ति एक संभावित पत्रकार है। ओटीटी (ओवर दी टॉप) प्लेटफॉर्म ने मनोरंजन, समाचार और जनसंचार के तरीकों को क्रांतिकारी रूप से बदला है। अब दर्शक अपने समय के अनुसार कंटेंट देखना पसंद करते हैं। यह प्लेटफॉर्म क्षेत्रीय भाषाओं, स्थानीय कथानकों और विविध संस्कृति को व्यापक मंच दे रहे हैं। एआई ने मीडिया की भाषा, प्रस्तुति और कंटेंट निर्माण को बहुत प्रभावित किया है। ऑटोमेटेड रिपोर्टिंग, बॉट्स के माध्यम से समाचार संप्रेषण और एआई आधारित भाषा अनुकूलन ने भाषा के सरलीकरण और त्वरित संवाद को बढ़ावा दिया है।

डजिटल युग में फेक न्यूज सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। इसके चलते मीडिया संस्थानों को फैक्ट-चेकिंग, त्वरित खंडन और भाषा में सटीकता बनाए रखने के लिए अधिक सचेत रहना पड़ा है। सामुदायिक रेडियो आज भी ग्रामीण और आंचलिक समाज का प्रमुख संचार माध्यम बना हुआ है। यह माध्यम स्थानीय भाषा, बोली, और संस्कृति को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभा रहा है। कहा जा सकता है आज की मीडिया भाषा अधिक सरल, सीधी, और भावनात्मक हो गई है। मोबाइल और सोशल मीडिया की वजह से संक्षिप्त भाषा का चलन बढ़ा है, वहीं डिजिटल मीडिया के लिएक्लिकबेटहेडलाइंस भी एक नई भाषा शैली के रूप में उभरी हैं। डिजिटल मीडिया ने हिंदी, तमिल, तेलुगु, बंगला, मराठी जैसी भारतीय भाषाओं को तेजी से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर स्थान दिलाया है। अब क्षेत्रीय भाषाओं में ब्लॉग, -पेपर, वेब सीरीज़ और पॉडकास्ट की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। स्मार्टफोन के व्यापक प्रसार ने भारतीय भाषाओं में सामग्री की मांग को तेजी से बढ़ाया है। आज गूगल, फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित लगभग सभी एप्स भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं। यह भाषाई लोकतंत्रीकरण का एक बड़ा उदाहरण है। मीडिया क्षेत्रीय भाषाओं, आंचलिक बोलियों और लुप्तप्राय भाषाओं को बचाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। डिजिटल आर्काइव्स, भाषा आधारित यूट्यूब चैनल, और क्षेत्रीय पॉडकास्ट इसके सशक्त माध्यम बन चुके हैं। वाट्सऐप, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर हिंग्लिश, बंग्लिश जैसी मिश्रित भाषाओं का चलन बढ़ा है। इसने पारंपरिक भाषा संरचना को तोड़ा है, लेकिन साथ ही भाषाओं में लचीलापन भी बढ़ाया है।

आज जनसंपर्क की भाषा अधिक ग्राहक-केंद्रित, संवादात्मक और दृश्यात्मक हो गई है। इसमें डिजिटल कंटेंट, वायरल वीडियो और मीम्स का स्थान बढ़ा है। डिजिटल मीडिया के लिए लेखन शैली में भी आमूल चूल परिवर्तन देखने को मिल रहा है। इसमें एसइओ आधारित हेडलाइंस, इन्फोग्राफिक्स और विजुअल्स का प्रयोग के अलावा हाइपरलिंकिंग और इंटरैक्टिव कंटेंट आदि प्रमुख है। जहां तक साहित्य का सवाल है तो मीडिया की भाषा तेजी से सरल, संवादात्मक और त्वरित हो रही है जबकि साहित्य अब भी गंभीर, गहन और कलात्मक भाषा की माँग करता है। हालांकि, डिजिटल युग में साहित्य भी पॉडकास्ट, -बुक्स और इंस्टाग्राम कविताओं के माध्यम से तेजी से मीडिया से जुड़ रहा है। डिजिटल मीडिया ने आंचलिक भाषाओं के लिए एक वैश्विक मंच तैयार किया है। अब भोजपुरी, मैथिली, अवधी, बुंदेलखंडी, मालवी जैसी भाषाओं में यूट्यूब चैनल, पॉडकास्ट और वेब सीरीज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो रही हैं। खास यह है कि भविष्य में भारतीय भाषाओं का दबदबा और बढ़ेगा। एआई और वॉयस असिस्टेंट में क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग और विस्तार होगा। मीडिया और समाज की भाषा में और अधिक पारदर्शिता और संवादात्मकता आएगी। डिजिटल माध्यम साहित्य, पत्रकारिता और जनसंपर्क में भाषाई नवाचार को बढ़ावा देगा। जानकारों की मानें तो भारतीय मीडिया आज एक बहुस्तरीय संक्रमण से गुजर रहा है, जहां तकनीक, सामाजिक अपेक्षाएं और भाषाई विविधताएं मिलकर इसे लगातार नया स्वरूप दे रही हैं। सोशल मीडिया, ओटीटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मोबाइल क्रांति ने मीडिया की भाषा और उसके संप्रेषण को और अधिक लोकतांत्रिक और बहुभाषी बना दिया है। इस बदलाव के साथ भारतीय मीडिया केवल वैश्विक हो रहा है, बल्कि भारतीय भाषाओं को संरक्षित और समृद्ध भी कर रहा है।

पारंपरिक मीडिया की गति पर चुनौती

पहले समाचार पत्र, टीवी और रेडियो सूचना का मुख्य स्रोत थे। सोशल मीडिया नेलाइवऔररीयल टाइमरिपोर्टिंग को बढ़ावा दिया। अब समाचार पहले ट्विटर पर ट्रेंड होते हैं, बाद में अखबारों में छपते हैं। सोशल मीडिया ने सिटिजन जर्नलिज्म को बढ़ावा दिया। अब कोई भी व्यक्ति घटना का वीडियो या फोटो पोस्ट कर सकता है, जिससे मीडिया हाउस भी सोशल मीडिया की खबरों पर निर्भर हो गए हैं। सोशल मीडिया पर खबरें छोटे-छोटे बाइट्स, आकर्षक हेडलाइंस और शॉर्ट वीडियो में प्रस्तुत की जाती हैं। रील्स, शॉर्ट्स और ट्वीट्स की दुनिया में लंबी खबरों का महत्व कम हुआ है। सोशल मीडिया पर भाषा अधिक सरल, लोकभाषा, हिंग्लिश और कभी-कभी स्लैंग तक पहुँच गई है। इसका उद्देश्य है अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच। राजनीतिक दल, कॉर्पोरेट ब्रांड और सामाजिक आंदोलनों के लिए सोशल मीडिया अब सीधा जनसंपर्क का माध्यम बन चुका है। यहां ट्रेंड्स और वायरल कंटेंट चुनावों, नीतियों और सामाजिक सोच को तेजी से प्रभावित करते हैं। सोशल मीडिया के बूम के साथ ट्रोलिंग, अफवाह, और फेक न्यूज भी बड़ी समस्या बन गई है, जिसने मीडिया की साख और जिम्मेदारी दोनों पर दबाव बढ़ाया है। मतलब साफ है सोशल मीडिया ने भारतीय मीडिया के स्वरूप, प्रस्तुति, भाषा और समाज के साथ उसके रिश्ते को पूरी तरह बदल दिया है। अब मीडिया तो सिर्फ पत्रकारों का है और ही सिर्फ खबरों का, बल्कि हर व्यक्ति की राय, सोच और वीडियो भी मीडिया का हिस्सा हैं।

ओटीटी प्लेटफॉर्म से बदलता मीडिया का स्वरूप

ओटीटी (ओवर दी ऑप) प्लेटफॉर्म्स जैसे नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, डिज़्नी$ हॉटस्टार, सोनी लिव, ज़ी5 और विशेष रूप से भारतीय प्लेटफॉर्म जैसे एमएक्स प्लेयर, ऑल्ट बालाजी आदि ने मीडिया के पारंपरिक ढांचे को पूरी तरह बदल दिया है। अब दर्शक खुद तय करते हैं कि उन्हें क्या देखना है, कब देखना है और किस भाषा में देखना है। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने दर्शकों को मीडिया उपभोग की आज़ादी दी है। अब समय, स्थान या डिवाइस की बाध्यता समाप्त हो गई है। समाचार, वेब सीरीज़, फिल्में, डॉक्यूमेंट्री सब अब दर्शकों के हाथ में है। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं के कंटेंट को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। उदाहरणःस्कैम 1992“ जैसे हिंदी वेब शो, “फैमिली मैनका तमिल तेलुगु में डब होना, “राणा नायडूजैसे हिंदी-तेलुगु मिक्स कंटेंट का आना। अब मराठी, बंगाली, तमिल, भोजपुरी, पंजाबी में ओरिजिनल वेब सीरीज़ बन रही हैं, जो पहले केवल फिल्मों तक सीमित थी। ओटीटी ने उन विषयों को मंच दिया है, जिन्हें मुख्यधारा के टीवी चैनल या सिनेमा हिचकिचाहट से दिखाते थे। जैसेः लैंगिक असमानता, एलजीबीटीक्यू $ मुद्दे, ग्रामीण जीवन, राजनीतिक व्यंग्य, जातीय विषमता आदि। ओटीटी कंटेंट में संवाद अधिक स्वाभाविक, बोलचाल की भाषा, स्थानीय मुहावरे और देसी शब्दों का प्रयोग करते हैं। यहाँ पारंपरिकशुद्ध हिंदीयासांस्कृतिक मर्यादाका दबाव कम होता है। इससे मीडिया की भाषा आम आदमी के और करीब गई है। आज ओटीटी केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है। कई समाचार एजेंसियां और डॉक्यूमेंट्री निर्माता भी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर अपनी जगह बना रहे हैं। जैसे बीबीसी, वायस और एआई जाजीरा के समाचार आधारित डॉक्यूमेंट्री ओटीटी पर खूब देखे जा रहे हैं। टीवी और सिनेमा की तरह ओटीटी पर कठोर सेंसरशिप लागू नहीं है। इसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तो बढ़ाया है, लेकिन इसके साथ भाषाई मर्यादा, अश्लीलता और अभद्र भाषा के प्रयोग पर बहस भी खड़ी कर दी है। खास यह है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म का भाषा पर खासा प्रभाव पड़ा है : आंचलिक शब्दों और मुहावरों का तेजी से प्रयोग, हिंग्लिश और मिश्रित भाषा का वर्चस्व, स्थानीय स्लैंग का सामान्यीकरण, अभद्र भाषा के प्रयोग की बढ़ती स्वीकृति (जिस पर समाज में मतभेद भी हैं), क्षेत्रीय भाषाओं का ग्लोबलाइजेशन आदि प्रमुख है। कहा जा सकता हे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने मीडिया के स्वरूप को पूरी तरह से लोकतांत्रिक बना दिया है। अब कंटेंट निर्माता के पास ज्यादा रचनात्मक आजादी है, और दर्शक के पास भाषा विषय का विस्तृत चयन। यह माध्यम भारतीय भाषाओं और विविध समाजों को वैश्विक मंच पर लाने में सबसे प्रभावी साबित हो रहा है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मीडिया

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) ने मीडिया की दुनिया में एक नई क्रांति ला दी है। अब मीडिया के कंटेंट निर्माण से लेकर प्रस्तुति, भाषा अनुकूलन, समाचार संकलन और पाठक, दर्शक के अनुरूप सामग्री चयन में एआई की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। इसमें कंटेंट जेनरेशन का स्वचालन (ऑटोमेटेड कंटेन), एआई आधारित टूल अब समाचार, रिपोर्ट, और ब्लॉग्स स्वतः उत्पन्न कर रहे हैं। जैसे खेलों के स्कोर, शेयर मार्केट अपडेट और मौसम की जानकारी कुछ ही सेकंड में एआई द्वारा बनाई जाती हैं। उदाहरण : रिटर्स और एसोसिएटेड प्रेस जैसी एजेंसियां अब एआई से आर्थिक रिपोर्ट्स और खेल समाचार बनवा रही हैं। भाषा का व्यक्तिगतकरण (पर्सनलाइज्ड लंग्वेज) : एआई पाठक की पसंद, भाषा, क्षेत्र और व्यवहार का विश्लेषण कर उनके अनुरूप भाषा शैली, टोन और विषय प्रस्तुत करता है। जैसे : गूल न्यूज, फ्लीप बोर्ड जैसे प्लेटफॉर्म एआई के जरिए यूज़र को उनकी रुचि के अनुसार समाचार दिखाते हैं। भाषाई अनुवाद और वॉयस असिस्टेंट : एआई आधारित अनुवाद टूल जैसे गूगल ट्रांसलेट, माइका्रेसाफ्ट ट्रसंलेटर अब तेजी से स्थानीय भाषाओं में कंटेंट उपलब्ध करवा रहे हैं। वॉयस असिस्टेंट (सीरी, एलेक्सा, गूगल एसिटेंट) भारतीय भाषाओं में संवाद करने लगे हैं, जिससे भाषा की पहुंच और सहज हुई है। एआई आधारित न्यूज एग्रीगेटर : एआई न्यूज एग्रीगेटर्स समाचारों को स्वचालित ढंग से स्रोत, क्षेत्र, रुचि के अनुसार अलग-अलग कैटेगरी में प्रस्तुत करते हैं। इससे पाठकों को उनकी भाषा और क्षेत्र के अनुसार प्राथमिक खबरें मिलती हैं। भाषा और फेक न्यूज की चुनौती : एआई जहां तेज़ी से खबरें बना रहा है, वहीं फेक न्यूज का भी तेजी से प्रसार एआई से हो रहा है। डीपफेक टेक्नोलॉजी ने फर्जी वीडियो, आवाज और भाषण तैयार करना आसान कर दिया है, जो मीडिया की विश्वसनीयता के लिए गंभीर चुनौती है। भाषा का सरलीकरण : एआई के चलते मीडिया की भाषा सरल, त्वरित और मशीन फ्रेंडली हो रही है। सीइओ (सर्च इंजन ऑप्टीमाइजेशन) आधारित लेखन का दबाव बढ़ा है, जिसमें भाषा का उद्देश्य अधिक से अधिक क्लिक और विजिबिलिटी पाना है। हालांकि इसके लाभ भी बहुत है। जैसे क्षेत्रीय भाषाओं में त्वरित अनुवाद, कस्टमाइज्ड न्यूज और विज्ञापन, तेज़ समाचार संकलन, सटीकता में वृद्धि आदि प्रमुख है, तो दूसरी तरफ इसके नुकसान भी है. एआई के चलते फेक न्यूज और गलत सूचना का प्रसार बढ़ा है। भाषा का अत्यधिक सरलीकरण और भावनात्मक गहराई की कमी देखी जा रही है। मशीन जनित भाषा का मानव संवेदना से दूर होता जा रहा है। मतलब साफ है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मीडिया में अवश्यंभावी क्रांति बन चुका है। इससे सूचना तेज़, सुलभ और भाषा अनुकूल बनी है, लेकिन साथ ही सतर्कता, भाषा की गुणवत्ता और सत्यता की चुनौती भी सामने आई है। भविष्य में एआई मीडिया को अधिक तकनीकी, बहुभाषी और तेज़ बनाएगा, पर मानव संवेदना का संतुलन बनाए रखना मीडिया के लिए बड़ी जिम्मेदारी होगी।

फेक न्यूज और मीडिया की विश्वसनीयता

डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के तीव्र प्रसार के साथ फेक न्यूज (झूठी खबरें) ने मीडिया की विश्वसनीयता पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। आज की सबसे बड़ी मीडिया चुनौती यह है कि कौन सी खबर सच है और कौन सी भ्रामक। सोशल मीडिया, व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर जैसे माध्यमों पर खबरें बिना जांचे-परखे कुछ ही मिनटों में लाखों लोगों तक पहुंच जाती हैं। इस तेज़ी से प्रसार के कारण फेक न्यूज राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक उन्माद का कारण भी बन रही हैं। आज लोग पारंपरिक मीडिया, डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया में किसी पर भी पूरी तरह विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। विश्वसनीयता की कमी के कारण अब लोग खुद तथ्य की जांच करने लगे हैं या नएफैक्ट चेकर्सकी ओर रुख कर रहे हैं। फेक न्यूज अक्सर भावनात्मक भाषा, उग्र शब्दावली और सनसनीखेज हेडलाइंस का सहारा लेती है ताकि तुरंत ध्यान आकर्षित किया जा सके। भाषा के इस दुरुपयोग ने सूचना के प्रति लोगों के भरोसे को कम किया है। खास यह है कि फेक न्यूज कई प्रकार के हाते है, इसमें राजनीतिक, धार्मिक भड़काऊ, स्वास्थ्य से जुड़ी अफवाहें (जैसे कोविड-19 के दौरान), संपादित वीडियो (डीपफेक) के अलावा फर्जी आंकड़े रिपोर्ट्स भी शमिल है। हालांकि फेक न्यूज के प्रसार को रोकने के लिए अल्ट न्यूज, बूम, फैक्टली, पीआईबी फैक्ट चेक जैसे फैक्ट चेकिंग प्लेटफॉर्म सक्रिय हुए हैं। मीडिया संस्थानों ने भी अपने फैक्ट चेक डेस्क तैयार कर लिए हैं। भारत सरकार ने आईटी नियम 2021 के तहत फेक न्यूज पर कड़े कदम उठाए हैं, साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी जिम्मेदार ठहराया है। फिर भी, तकनीकी जटिलताओं के कारण फेक न्यूज पर पूरी तरह नियंत्रण अभी संभव नहीं हो पाया है। फेक न्यूज की खाससियत है कि यह किसी के भावनात्मक को उकसाता है, सनसनीखेज वाक्यांश जैसे अधूरी, तोड़ी-मरोड़ी गई बातें, संदर्भ से बाहर के वीडियो या फोटो, गलत भाषा शैली के कारण भी पहचान संभव नहीं हो पाता है। ऐसे में आज पाठक को भी सतर्क रहना होगा। हर खबर को साझा करने से पहले : स्रोत की जांच करें, फैक्ट चेकिंग साइट्स से पुष्टि करें, तटस्थ भाषा का भरोसा करें, उग्र भाषा से बचें. मतलब साफ हे फेक न्यूज ने भारतीय मीडिया की साख, भाषा और सामाजिक प्रभाव को गहराई से प्रभावित किया है। मीडिया को चाहिए कि वह भाषा में अधिक सटीकता, गंभीरता और जिम्मेदारी दिखाए ताकि जनता का विश्वास लौट सके। डिजिटल युग में विश्वसनीयता ही मीडिया की असली पूंजी है।

सामुदायिक रेडियो और क्षेत्रीय मीडिया

                जहां मुख्यधारा का मीडिया बड़े शहरों और राष्ट्रीय मुद्दों तक सीमित हो गया है, वहीं सामुदायिक रेडियो (काम्यूनिटी रेडियों) और क्षेत्रीय मीडिया ग्रामीण, दूरदराज और आंचलिक समाज की आवाज बना हुआ है। यह आज भी भारतीय भाषाओं और लोकसंस्कृति का सबसे जीवंत मंच है। सामुदायिक रेडियो पूरी तरह स्थानीय समाज की जरूरतों, भाषाओं, बोलियों और समस्याओं पर केंद्रित है। यह ग्रामीण और आंचलिक क्षेत्रों में सूचना, शिक्षा, और मनोरंजन का प्रभावी साधन बना हुआ है। यहां संवाद स्थानीय बोलियों, मुहावरों और आंचलिक शैली में होता है। सामुदायिक रेडियो भाषा को केवल संरक्षित करता है बल्कि उसे जन-जन तक जीवंत भी रखता है। सामुदायिक रेडियो कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, आपदा प्रबंधन जैसे मुद्दों पर स्थानीय भाषा में कार्यक्रम तैयार कर समाज में व्यवहारिक बदलाव ला रहा है। यह मीडिया लोगों सेहमारी भाषा में हमारी बातकरता है। इससे इसका भावनात्मक जुड़ाव बहुत मजबूत होता है। या यूं कहे सामुदायिक रेडियो ने आज भी मीडिया की मूल आत्माकृजन संवाद को जीवित रखा है। क्षेत्रीय मीडिया और सामुदायिक रेडियो, भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विस्तार में सबसे प्रभावशाली माध्यम हैं।

मीडिया की बदलती भाषा

मीडिया की भाषा पिछले दशक में तेज़ी से बदली है। अब यह संक्षिप्त, सरल, प्रभावी और कभी-कभी उत्तेजक हो गई है। डिजिटल युग में मीडिया की भाषा का प्राथमिक लक्ष्य हैकृकम शब्दों में अधिक असर। मुद्रित अखबारों में जहाँ विस्तृत, औपचारिक और सुसज्जित भाषा थी, वहीं डिजिटल मीडिया में फास्ट, सीधी और आकर्षक भाषा का बोलबाला है। अब हेडलाइंस में सनसनी, सवाल, और कॉल टू एक्शन (जैसेदेखें वीडियो“, “आप रह जाएंगे दंग“) ज्यादा देखे जाते हैं। यह क्लिकबेट संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक ने मीडिया की भाषा को अत्यधिक संक्षिप्त, हिंग्लिश और संवादात्मक बना दिया है। आज की मीडिया मेंआपसे सीधा संवाद, चैट स्टाइल, और सरल व्याकरण का प्रयोग तेजी से बढ़ा है। उदाहरणःक्या आपने देखा ये वीडियो?“ यादेखिए पूरी खबर यहां।अब बड़े मीडिया हाउस भी आंचलिक शब्द, मुहावरे और लोक भाषा के प्रयोग को तवज्जो दे रहे हैं। इससे मीडिया आम जनता के करीब हो सका है। यानी मीडिया की भाषा अब अधिक व्यावहारिक, आकर्षक और लोकभाषा से जुड़ी हो गई है। हालांकि, कभी-कभी इसमें भाषा की गरिमा और गंभीरता की कमी भी देखी जा रही है।

मोबाइल क्रांति और भारतीय भाषाएं

मोबाइल फोन और सस्ते इंटरनेट ने भारतीय भाषाओं को तेजी से डिजिटल दुनिया में लोकप्रिय बना दिया है। अब अधिकांश भारतीय मोबाइल यूजर अपनी क्षेत्रीय भाषा में ही पढ़ना, सुनना और देखना पसंद करते हैं। आज अधिकांश मोबाइल एप्स (जैसे फेसबुक, गूगल, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप) भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं। इससे यूजर इंटरनेट का उपयोग अपनी भाषा में आसानी से कर रहे हैं। मोबाइल के चलते हिंदी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी जैसे भाषाओं में ब्लॉग्स, वीडियो, -पेपर, शॉर्ट्स और वेब सीरीज का जबरदस्त विकास हुआ है। मोबाइल पर वॉयस सर्च का प्रचलन बढ़ने से बोलचाल की भाषा का महत्व तेजी से बढ़ा है। लोग अबटाइपकरने के बजाय बोलकर सर्च करते हैं, जिससे स्थानीय उच्चारण और भाषा शैली तकनीक में समाहित हो रही है। मोबाइल ने डिजिटल साक्षरता को ग्रामीण और अशिक्षित वर्ग तक पहुंचा दिया है। अब गांव के लोग भी अपने मोबाइल पर क्षेत्रीय खबरें, मनोरंजन और सरकारी योजनाओं की जानकारी अपनी भाषा में पा रहे हैं। मतलब साफ है मोबाइल क्रांति ने भारतीय भाषाओं को डिजिटल दुनिया का मुख्यधारा बना दिया है। अब कंटेंट क्रिएटर्स से लेकर कंपनियां तक भारतीय भाषाओं में सामग्री विकसित करने के लिए बाध्य हो गए हैं।

भारतीय भाषाओं के संरक्षण में मीडिया की भूमिका

जहां वैश्वीकरण और अंग्रेजी का वर्चस्व लगातार बढ़ रहा है, वहीं मीडिया भारतीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन का सबसे प्रभावी माध्यम बनकर सामने आया है। खासकर डिजिटल और सामुदायिक मीडिया ने अनेक लुप्तप्राय भाषाओं को फिर से जीवित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। क्षेत्रीय समाचार पत्र, रेडियो, टीवी चैनल और डिजिटल पोर्टल्स लगातार आंचलिक भाषाओं और बोलियों में सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे लोकभाषाएं पुनर्जीवित हो रही हैं। अब कई मीडिया संस्थान पुराने साहित्य, लोकगीत, कहावतें, और भाषायी इतिहास को डिजिटल रूप में संरक्षित कर रहे हैं। यह भाषाओं को आने वाली पीढ़ियों तक ले जाने में सहायक है। हिंदी, भोजपुरी, मैथिली, अवधी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मराठी जैसे भाषाओं में अगणित यूट्यूब चैनल और पॉडकास्ट सक्रिय हैं, जो भाषा को वैश्विक पहचान दे रहे हैं। शैक्षिक मीडिया प्लेटफॉर्म्स अब भारतीय भाषाओं में पाठ्य सामग्री देने लगे हैं। इससे मातृभाषा में शिक्षा को बल मिला है। ओटीटी, यूट्यूब और सोशल मीडिया के कारण अब भारतीय भाषाओं के गाने, वेब सीरीज़, और लोककथाएं विदेशों तक पहुँची हैं। इससे भारतीय भाषाएं ग्लोबल कल्चर का हिस्सा बनती जा रही हैं। या यूं कहे मीडिया ने भारतीय भाषाओं को केवल संरक्षित किया है, बल्कि उन्हें एक नए वैश्विक मंच पर स्थापित भी किया है। यह सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में मीडिया की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है।

जनसंपर्क और विज्ञापन की बदलती भाषा

डिजिटल युग में जनसंपर्क (पब्लिक रिलेशंस) और विज्ञापन की भाषा भी पूरी तरह बदल गई है। अब यह भाषा अधिक संवादात्मक, भावनात्मक और डिजिटल फ्रेंडली हो गई है। अब बड़े ब्रांड्स भी अपने विज्ञापन और सोशल मीडिया अभियानों में हिंदी, तमिल, तेलुगु, बंगाली, मराठी, पंजाबी जैसी भाषाओं का उपयोग कर रहे हैं ताकि वे आम लोगों से सीधे जुड़ सकें। अब जनसंपर्क केवल प्रेस रिलीज़ तक सीमित नहीं है। मीम्स, इंस्टाग्राम रील्स, ट्विटर ट्रेंड्स और लोकल इन्फ्लुएंसर्स के माध्यम से जनभाषा में ब्रांड मैसेजिंग का चलन बढ़ गया है। जनसंपर्क और विज्ञापन की भाषा में हिंग्लिश (हिंदी $ इंग्लिश) अब आम हो गई है। उदाहरणःनया स्टाइल, स्मार्ट प्राइस।अब विज्ञापन और जनसंपर्क अभियान पाठक, दर्शक के नाम, क्षेत्र, और भाषा के अनुसार कस्टमाइज होते हैं।रामु भाई! देखिए आपके लिए ये खास ऑफर।जनसंपर्क में अब सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) का महत्व बढ़ा है। कंपनियां अब स्थानीय भाषा में समाज से सीधे संवाद कर रही हैं। मतलब साफ है जनसंपर्क और विज्ञापन की भाषा अब सिर्फ प्रभाव डालने वाली नहीं, बल्कि दिल से जुड़ने वाली बन गई है। मोबाइल और सोशल मीडिया के कारण यह भाषा जन-जन तक तेजी से पहुंच रही है।

डिजिटल मीडिया के लिए लेखन शैली

डिजिटल मीडिया ने पारंपरिक पत्रकारिता की लेखन शैली को पूरी तरह बदल दिया है। अब लेखन का उद्देश्य है त्वरित, आकर्षक, मोबाइल फ्रेंडली और एसइओ आधारित प्रस्तुति। डिजिटल लेखन में संक्षिप्त वाक्य, बिंदुवार प्रस्तुति और कम से कम शब्दों में ज्यादा प्रभाव डालने की प्रवृत्ति है। अब लेखन में कीवर्ड, हैडिंग्स, सब हैडिंग्स, टैग्स और लिंकिंग का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि गूगल सर्च में खबर जल्दी रैंक हो सके। अब लेखन को मोबाइल स्क्रीन के लिए डिजाइन किया जाता है। छोटे पैराग्राफ, इमोजी, बुलेट्स, और वीडियो इंटिग्रेशन आम बात है। डिजिटल मीडिया में हेडलाइन सबसे महत्वपूर्ण होती है। आकर्षक, सवालिया या चौंकाने वाली हेडलाइन ज्यादा क्लिक लाती हैं। उदाहरणःआपको यकीन नहीं होगा, ऐसा क्या हुआ वाराणसी में?“ अब लेखन सिर्फ टेक्स्ट तक सीमित नहीं है। ग्राफिक्स, चार्ट्स, स्लाइड्स और छोटे वीडियो भी लेखन का हिस्सा बन गए हैं। या यूं कहे डिजिटल मीडिया की लेखन शैली अब कम शब्दों में तेज़ और प्रभावी कहानी कहने की कला बन चुकी है। इसके साथ ही ैम्व् और मोबाइल फ्रेंडली दृष्टिकोण भी अनिवार्य हो गया है।

यूट्यूब और आंचलिक भाषा

भोजपुरी, अवधी, मैथिली, मराठी, पंजाबी, तमिल जैसी भाषाओं में यूट्यूब चैनल अब लाखों दर्शकों तक पहुंच रहे हैं। देसी कॉमेडी, रीजनल न्यूज, और लोकगीत तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। अब आंचलिक भाषाओं में सैकड़ों फेसबुक पेज और व्हाट्सऐप ग्रुप्स हैं जो स्थानीय खबरें, कहानियां, व्यंग्य और सांस्कृतिक सामग्री साझा करते हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अब आंचलिक भाषाओं में मूल वेब सीरीज बनने लगी हैं। इससे उन भाषाओं को नई पहचान मिल रही है। आंचलिक भाषाओं में लोकगीत, दंतकथाएं और मुहावरे अब डिजिटल रूप में सहेजे जा रहे हैं। इससे भाषाओं का भविष्य मजबूत हो रहा है। यानी डिजिटल मीडिया ने आंचलिक भाषाओं को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित कर दिया है। अब इन भाषाओं में केवल बोलचाल हो रही है, बल्कि इंटरनेट पर उनका दबदबा भी बढ़ रहा है।

भारतीय मीडिया का भविष्य और भाषाई परिदृश्य

भारतीय मीडिया का भविष्य पूरी तरह बहुभाषी, डिजिटल, और तकनीक आधारित होने जा रहा है। भारतीय भाषाओं का प्रभाव और गहराई आने वाले वर्षों में और बढ़ेगी। भविष्य में वॉयस सर्च, वॉयस कंट्रोल, और एआई आधारित भाषाई अनुवाद के माध्यम से भारतीय भाषाएं टेक्नोलॉजी का हिस्सा बनेंगी। लोग मोबाइल से लेकर टीवी तक सब अपनी भाषा में संचालित करेंगे। भारतीय भाषाओं में स्थानीय पोर्टल, क्षेत्रीय न्यूज ऐप, और ओटीटी प्लेटफॉर्म का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है। स्थानीय पत्रकारिता और हाइपर-लोकल न्यूज का महत्व बढ़ेगा। भविष्य में भारतीय भाषाओं के लिए और अधिक की-बोर्ड, डिक्शनरी, स्पीच-टू-टेक्स्ट एप्स और ग्रामर टूल्स विकसित होंगे। मीडिया की भाषा भविष्य में और अधिक जनसामान्य, त्वरित, पारदर्शी और संवादात्मक होगी। यह लोकतंत्र को अधिक मजबूत बनाएगी। भविष्य में हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी, तेलुगु, पंजाबी जैसे भाषाओं में बना डिजिटल कंटेंट दुनिया के कोने-कोने में पहुंचेगा। यानी भारतीय मीडिया का भविष्य भारतीय भाषाओं का भविष्य है। तकनीक, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और बहुभाषी कंटेंट के माध्यम से भारत अपनी भाषाई शक्ति को केवल संरक्षित करेगा बल्कि वैश्विक स्तर पर स्थापित भी करेगा।

जनमत निर्माण का नया मंच

राजनीतिक दल, कॉर्पोरेट ब्रांड और सामाजिक आंदोलनों के लिए सोशल मीडिया अब सीधा जनसंपर्क का माध्यम बन चुका है। यहां ट्रेंड्स और वायरल कंटेंट चुनावों, नीतियों और सामाजिक सोच को तेजी से प्रभावित करते हैं। सोशल मीडिया के बूम के साथ ट्रोलिंग, अफवाह, और फेक न्यूज भी बड़ी समस्या बन गई है, जिसने मीडिया की साख और जिम्मेदारी दोनों पर दबाव बढ़ाया है। या यूं कहे सोशल मीडिया ने भारतीय मीडिया के स्वरूप, प्रस्तुति, भाषा और समाज के साथ उसके रिश्ते को पूरी तरह बदल दिया है। अब मीडिया तो सिर्फ पत्रकारों का है और ही सिर्फ खबरों का, बल्कि हर व्यक्ति की राय, सोच और वीडियो भी मीडिया का हिस्सा हैं।

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