Wednesday, 13 August 2025

‘समृद्धि’ और ‘संघर्ष’ में उलझी जंग-ए-आजादी का ‘जश्न’

‘समृद्धि  और ‘संघर्ष  में उलझी जंग-ए-आजादी का ‘जश्न’ 

आज जब हम स्वतंत्रता दिवस की 79वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तिरंगे की शान में सिर ऊँचा कर रहे हैं, तब एक कड़वी सच्चाई हमारी सामूहिक अंतरात्मा को झकझोर रही है, क्या यही वह आज़ादी थी, जिसका सपना हमारे शहीदों ने देखा था? ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, भारत की जीडीपी का 18 फीसदी धन सिर्फ़ पांच परिवारों के पास केंद्रित है। अगर इसमें बाकी सौ अरबपति परिवारों की संपत्ति भी जोड़ दी जाए, तो यह प्रतिशत और भी डरावना हो जाएगा। दूसरी तरफ़, देश की आधी से अधिक आबादी रोज़ 375 रुपये से कम पर गुजर-बसर कर रही है। एक राष्ट्र का अमीर होना अच्छी बात है, लेकिन जब संसाधनों का बंटवारा असमान हो, तो यह विकास अराजकता की ओर ले जाता है। अगर सरकारी नीतियां केवल कुछ घरानों को लाभ पहुंचाएं और करोड़ों लोगों के घर में चूल्हा जलाना मुश्किल हो जाए, तो यहविकासनहीं, बल्किअसमानता का साम्राज्यहै, और यह साम्राज्य लोकतंत्र और सामाजिक स्थिरता, दोनों के लिए खतरा है 

सुरेश गांधी

भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार सिर्फ दुनिया में चर्चा का विषय है, बल्कि देश में भी आर्थिक विकास का ढोल पीटा जा रहा है, लेकिन इस शोर के बीच या यूं कहे विकास के पीछे एक गंभीर असमानता का सच छिपा है। आज केवल पांच भारतीय परिवार देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 18 फीसदी धन अपने पास रखते हैं। अगर बाकी सौ अरबपति परिवारों की संपत्ति जोड़ दी जाए, तो यह अनुपात और भी बढ़ जाएगा। ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में शीर्ष 1 फीसदी अमीरों के पास 40 फीसदी से अधिक राष्ट्रीय संपत्ति है, जबकि निचले 50 फीसदी के पास केवल 3 फीसदी. अमेरिका या यूरोप जैसे पूंजीवादी देशों में भी अमीर-गरीब का अंतर है, लेकिन भारत में यह अंतर रिकॉर्ड गति से बढ़ रहा है। खास तौर से तब जब मोदी सरकार का आर्थिक विकास मॉडल जीडीपी वृद्धि दर को लेकर दुनिया में सुर्खियां बटोर रहा है. ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या यह वृद्धि देश के करोड़ों नागरिकों के जीवन में सुधार ला रही है? क्या यही है नया भारत का विकास मॉडल, जिसमें चंद घरानों के महल और बहुसंख्यकों के झोपड़े साथ-साथ खड़े हैं? जब नीति-निर्माण और कर-रियायतें केवल कुछ कॉरपोरेट घरानों को और ताकतवर बना दें, जबकि खेतों में किसान आत्महत्या करें और शहरों में मजदूर दिहाड़ी को तरसें, तो यहविकासनहीं, आर्थिक अन्याय है।

मतलब साफ है स्वतंत्रता दिवस पर हमें सिर्फ तिरंगे को सलामी नहीं देनी चाहिए, बल्कि उस वादे को भी याद रखना चाहिए जो हमारे शहीदों ने किया था, एक न्यायपूर्ण, समान और सम्मानजनक भारत का निर्माण। वरना आने वाली पीढ़ियां हमसे पूछेंगी, क्या यही आज़ादी थी? बता दें, 2022 से 23 में भारत की शीर्ष 1 फीसदी आबादी का हिस्सा राष्ट्रीय आय में 22.6 फीसदी और संपत्ति में 40.1 फीसदी तक पहुंच गया है, यह इतिहास में सबसे ऊँचे स्तर पर। इसके पीछेबिलियोनैरीराजबन चुका है, जहां चंद परिवार देश की आर्थिक धुरी बन गए हैं, और बाकी सौ करोड़ से अधिक नागरिकों को सिर्फ संघर्ष ही देखने को मिलता है। भारत की जीडीपी की चमकदार रफ्तार के पीछे एक सच्चाई छुपी है, जो आर्थिक असमानता के चरम को उजागर करती है। आज सिर्फ पांच भारतीय परिवार देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 18 फीसदी धन अपने पास रखते हैं। अगर इसमें सौ और अरबपति परिवारों की संपत्ति जोड़ दी जाए, तो यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो जाएगा। 1947 में हमें राजनीतिक आज़ादी मिली थी, विदेशी शासन से मुक्ति। लेकिन आर्थिक आज़ादी आज भी अधूरी है। आज़ादी का सही अर्थ है, ऐसा भारत, जिसमें हर नागरिक को समान अवसर, सम्मानजनक जीवन और अपनी मेहनत का न्यायसंगत फल मिले।

अगर सौ करोड़ भारतीय भूख और बेरोजगारी से जूझते रहें, और चंद परिवार अरबों-खरबों में खेलें, तो यह व्यवस्था सामाजिक विस्फोट की ओर बढ़ेगी। ऐसे में सिर्फ संतुलित नीति का होना जरुरी है, बल्कि कर नीतियों में असमानता दूर हो, शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश बढ़े, श्रमिकों और किसानों के लिए न्यूनतम आय की गारंटी हो और संपत्ति के संकेंद्रण पर सख्त निगरानी हो. आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो प्रगतिशील कर प्रणाली (आय-कर और संपत्ति-कर) को मजबूत किया जाए। शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाए। रोज़गार सृजन को प्राथमिकता दी जाए ताकि जीडीपी की वृद्धि का लाभ हर वर्ग तक पहुंचे। इतिहासकार और अर्थशास्त्री बताते हैं कि भारत में असमानता का स्तर अब औपनिवेशिक ब्रिटिश राज के दौर से भी ज्यादा है। यह स्थिति ब्राज़िल और दक्षिण अफ्रीका जैसे अत्यधिक असमान देशों की बराबरी कर रही है, जबकि अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी शीर्ष 1 फीसदी की हिस्सेदारी भारत से कम है। मतलब साफ है एक राष्ट्र का अमीर होना तभी मायने रखता है जब उसकी संपन्नता का लाभ हर नागरिक तक पहुंचे। वरना यह विकास सिर्फ कुछ लोगों की तिजोरी भरने का साधन बन जाता है और लोकतंत्र के भीतरअसमानता का साम्राज्यपनपने लगता है, जो आर्थिक स्थिरता और सामाजिक शांति, दोनों के लिए खतरनाक है।

भारत में असमानता का नया रिकॉर्ड

वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैबकी रिपोर्ट के मुताबिक 2022 से 23 में भारत की शीर्ष 1 फीसदी आबादी राष्ट्रीय आय का 22.6 फीसदी और राष्ट्रीय संपत्ति का 40.1 फीसदी अपने पास रखती है, जो इतिहास में सबसे ऊँचा स्तर और दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक। वहीं, सबसे गरीब 50 फीसदी आबादी के हिस्से में राष्ट्रीय आय का मात्र 15 फीसदी और संपत्ति का 6 फीसदी हिस्सा आया। यह खाई पिछले तीन दशकों में लगातार चौड़ी होती गई है। इसका मतलब है कि शीर्ष 1 फीसदी का हिस्सा पांच गुना अधिक है, जबकि संपत्ति में विषमता और भी ज्यादा, उन्होंने कुल संपत्ति का लगभग 6.7 गुना हिस्सा संभाला है.

अंतर्राष्ट्रीय तुलना (2022 - 23)

भारत    22.6        40.1 (भारी केंद्रित)

ब्राज़िल 10 फीसदी संपत्ति अधिक (85 फीसदी)

दक्षिण अफ्रीका अत्यधिक विषमता (टॉप 10 हिस्सेदारी)

अमेरिका - अन्य अपेक्षाकृत कम असमानता 

भारत में शीर्ष 1 फीसदी की आय हिस्सेदारी दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़िल जैसे अत्यधिक असमान देशों का स्तर पार कर चुकी है, और संपत्ति की विषमता भी भयावह स्तर पर है।

पांच परिवारों का दबदबा

हुरान इंडिया मोस्ट वैलुएबुल फेमिली बिजनेस 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के शीर्ष 300 पारिवारिक व्यापारों की कुल संपत्ति 134 लाख करोड़ रुपये है, जो तुर्की और फिनलैंड की जीडीपी से अधिक है। इनमें सबसे अमीर अंबानी परिवार की संपत्ति 28.2 लाख रुपये करोड़ है, जो भारत की जीडीपी का लगभग एक बारहवां भाग है। या यूं कहे अडानी, बिड़ला, मित्तल और गोदरेज जैसे परिवार भी इस आर्थिक साम्राज्य के स्तंभ हैं। हालांकि यह सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, बल्कि आर्थिक अन्याय का प्रमाणपत्र हैं, जो बताते हैं कि विकास का लाभ किस ओर जा रहा है।

1. ‘बिलीयोनैरीज राजबनामब्रिटिश राज

यह विषमता भारत में अब सूबे के समय से भी अधिक बढ़ गयी है, अर्थातबिलियोनैरीराजअबब्रिटिशराजसे अधिक आर्थिक असमान और केन्द्रित हो गया है।

2. नीति-निर्माण के लिए दिशा

वैश्विक अध्ययन (वर्ल्ड इंक्वालिटी लैब) सुझाव देते हैं कि बेहतर आय-कर और संपत्ति-कर, साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा पोषण में सार्वजनिक निवेश इस असमानता को घटाने में कारगर हो सकते हैं।

3. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

भारत में तीन दशक में असमानता में लगातार वृद्धि हुई है, जबकि संघर्षशील देशों जैसे चीन ने तुलनात्मक रूप से बेहतर वितरण नीति अपनाया है।

4. नागरिकों और विकास का ताना-बाना

जीडीपी की वृद्धि के बावजूद अगर इसका लाभ केवल कुछ परिवारों तक सीमित रहे, तो आम नागरिकों की असंतुष्टि बढ़ती है, जो सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता ला सकता है।

ब्रिटिशराजसे भी आगेबिलीऔनैरीराज

अंतरराष्ट्रीय शोध बताते हैं कि आज भारत में आर्थिक असमानता का स्तर ब्रिटिश शासनकाल से भी ज्यादा है। ब्राज़िल और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी असमानता अधिक है, लेकिन भारत का शीर्ष 1 फीसदी आय और संपत्ति हिस्सेदारी के मामले में उनसे मुकाबला कर रहा है। दुनिया के कई देशों ने कर सुधार और कल्याणकारी योजनाओं से असमानता को नियंत्रित किया, लेकिन भारत में यह और तेज़ी से बढ़ी है।

विकास का असंतुलन

मोदी सरकार का आर्थिक मॉडल जीडीपी वृद्धि को प्राथमिकता देता है, लेकिन यह वृद्धि असमान बंटवारे के साथ हो रही है। कुछ गिने-चुने घराने तो तेजी से अमीर हो रहे हैं, जबकि सौ करोड़ से ज्यादा लोग रोज़ी-रोटी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी ज़रूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी और कुपोषण कायम है। शहरी गरीब महंगाई से जूझ रहे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य की पहुंच सीमित है। ऐसे में, अगर सरकारी नीतियां केवल चंद उद्योगपतियों को ही फल-फूलने दें और सौ करोड़ लोगों के घर का चूल्हा मुश्किल से जले, तो यह आर्थिक विकास नहीं, बल्कि असमानता की मशीन है। वाराणसी व्यापार मंडल के अध्यक्ष अजीत सिंह बग्गा ने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में विकास का मतलब सिर्फ जीडीपी की बढ़ोतरी नहीं, बल्कि नागरिकों के जीवन में समान अवसर और सम्मान होना चाहिए। अगर भारत का आर्थिक मॉडल सिर्फ पाँच परिवारों को और अमीर बना रहा है और करोड़ों लोगों को और ग़रीबी में धकेल रहा है, तो यहबिनिलयोनैरीराजहै, जो किसी भी समय सामाजिक विस्फोट और अराजकता को जन्म दे सकता है।

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