संकट में
भदोही-मिर्जापुर
का
निर्यात
कारोबार,
12000 करोड़
की
कालीनें
गोदामों
में
डंप
अमेरिकी टैरिफ से हिली डालर नगरी, निर्यातकों में हड़कंप
अमेरिकी खरीदारों
ने
अभी
से
ई-मेल
कर
क्रिसमस
व
डोमेटेक्स
फेयर
में
दिए
गए
करोड़ों
के
आर्डर
को
होल्ड
पर
करवाना
शुरु
दिए
है
तीन महीने
में
50 फीसदी
निर्यात
घटा,
अब
‘नो
एंट्री’
जैसा
माहौल
सुरेश गांधी
वाराणसी. भारतीय हस्तनिर्मित कालीनों की दुनिया भर
में एक विशिष्ट पहचान
है, लेकिन इस पहचान पर
अब संकट के बादल
मंडरा रहे हैं। अमेरिका
द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50 फीसदी तक का टैरिफ
लगाए जाने की घोषणा
से उत्तर प्रदेश सहित जम्मू-कश्मीर,
पानीपत, जयपुर, दिल्ली आदि के कालीन
उद्यमियों में हड़कंप मचा
हुआ है। सबसे अधिक
प्रभाव भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी, शाहजहांपुर और आगरा के
उन लाखों कारीगरों पर पड़ा है,
जिनकी रोजी-रोटी इस
उद्योग पर टिकी है।
निर्यातकों के अनुसार, पिछले
तीन महीनों में ही अमेरिकी
बाजार में भारतीय कालीनों
के ऑर्डर 50 फीसदी तक घट चुके
हैं। ऑर्डर रद्द हो रहे
हैं, दामों पर फिर से
बातचीत हो रही है
और छोटे उद्यमी अमेरिकी
मार्केट से बाहर निकलने
को मजबूर हो रहे हैं।
सीईपीसी के पूर्व प्रशासनिक
सदस्य उमेश कुमार गुप्ता
ने बताया कि भारत से
तकरीबन 17000 करोड़ का निर्यात
होता है, जिसमें 12000 करोड़
की कालीनें केवल अमेरिका को
निर्यात होता है। अब
50 फीसदी टैरिफ लगने के बाद
यह व्यापार अव्यवहारिक हो गया है।
ग्राहक ऑर्डर रोक रहे हैं,
कुछ ने तो पहले
दिए ऑर्डर भी कैंसल कर
दिए।“
जबकि सीईपीसी के
प्रशासनिक सदस्य असलम महबूब ने
भी कुछ ऐसा ही
कहा. उन्होंने बताया कि कुल निर्यात
का 65 फीसदी हिस्सा अमेरिका को जाता है।
लेकिन अमेरिका द्वारा रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने से पूर्वांचल की
सबसे बड़ी हस्तशिल्प इंडस्ट्री
कारपेट के निर्यातकों की
नींद हराम हो गई
है। अमेरिकी खरीदारों ने अभी से
ई-मेल कर क्रिसमस
व डोमेटेक्स फेयर में दिए
गए करोड़ों के आर्डर को
होल्ड पर करवाना शुरु
दिए है। ऐसे में
निर्यातकों के गोदामों में
रखे करोड़ों के कालीन व
अन्य उत्पाद न सिर्फ डंप
होने, बल्कि लाखों बुनकरों की आजीविका पर
गंभीर खतरा मंडराने लगा
है।
बता दें, यूपी,
दिल्ली, पानीपत, जम्मू-कश्मीर, जयपुर आदि शहरों से
लगभग 12000 करोड़ का कालीन
निर्यात होता है और
इसकी बुनाई में लगभग 20 लाख
से अधिक गरीब बुनकर
मजदूर लगे हैं। उनका
कहना है कि अमेरिका
में हैंडमेड कालीन नहीं बनता है
और उनका पसंदीदा भारतीय
हैंडमेड कारपेट ही है। सीईपीसी
के प्रशासनिक सदस्य रवि पाटोदिया, चेंपो
कारपेट के निदेशक संजय
मल्होत्रा, ओपी कारपेट के
ओमप्रकाश गुप्ता व धरम प्रकाश
गुप्ता, भदोही कारपेट के डायरेक्टर पंकज
बरनवाल व रुपेश बदर्स
एंड संस के डायरेक्टर
रुपेश बरनवाल, भदोही इक्सपोर्ट के श्याम नारायण
यादव व काका ओवरसीज
ग्रूप के डायरेक्टर योगेन्द्र
राय काका राजेन्द्र मिश्रा, आलोक बरनवाल,
दीपक खन्ना का कहना है कि
अमेरिकी खरीदारों ने कहा है
कि टैरिफ लगने से उत्पाद
महंगा हो जाएगा और
फिर खरीदना मुश्किल होगा। ऐसे में टैरिफ
लगने से देश के
निर्यातकों को 12000 करोड रुपये से
अधिक का नुकसान होने
की आशंका है. रूस-यूक्रेन
युद्ध के कारण पहले
से ही प्रभावित चल
रहे हस्तशिल्प उद्योग को इस घोषणा
से गहरा झटका लगा
है.
यह व्यापार नहीं, हमारी विरासत है
भारत की कालीन
बुनाई सिर्फ एक उद्योग नहीं,
संस्कृति और परंपरा की
जीवित धरोहर है। भदोही, मिर्जापुर,
वाराणसी में हर दूसरा
घर किसी न किसी
रूप में कालीन उद्योग
से जुड़ा है। महिलाएं,
बुजुर्ग, और युवा सभी का योगदान
इसमें बराबर है। गोपीगंज के
अनीता की आंखों में
चिंता साफ दिखती है।
वह कहती हैं, हमारे
घर में चार महिलाएं
कालीन की बुनाई करती
हैं। पिछले एक महीने से
काम बंद पड़ा है।
बुनकर खाली बैठे हैं
और हमारा गुजारा मुश्किल हो गया है।
सीईपीसी ने जताई चिंता, सरकार से तुरंत हस्तक्षेप की मांग
कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) चेयरमैन कुलदीप राज वट्ठल कहते
हैं, अमेरिकी टैरिफ 50 फीसदी तक पहुंच चुका
है, जो हमारे आकलन
से बहुत अधिक है।
यह संकट सिर्फ व्यापारिक
नहीं, सामाजिक भी है। लाखों
लोगों की आजीविका खतरे
में है। सरकार को
इस मुद्दे पर तुरंत अमेरिका
से उच्चस्तरीय बातचीत करनी चाहिए और
राहत पैकेज घोषित करना चाहिए।
उम्मीद टूटी, चुनौती बढ़ी, दुश्मन देश को मिला फायदा
सीईपीसी के सीनियर प्रशासनिक
सदस्य वासिफ अंसारी व शारीक अंसारी
ने बताया कि पहले यह
उम्मीद थी कि भारत
को बांग्लादेश, वियतनाम, और चीन से
बेहतर टैरिफ मिलेगा, लेकिन अब रुस को
लेकर “भारत को निशाना
बनाया जा रहा है”
और इसका सीधा लाभ
पाकिस्तान, तुर्की और चीन जैसे
देशों को मिल रहा
है। इससे अमेरिकी बाजार
में भारत की प्रतिस्पर्धा
लगभग खत्म हो गई
है। मैम वूलेन के
डायरेक्टर व कालीन निर्यातक
रियाजुल हसनैन अंसारी का कहना है,
हम मान रहे थे
कि भारत को जी20
साझेदार होने का लाभ
मिलेगा, लेकिन टैरिफ ने हमारे सारे
गणित बिगाड़ दिए। हम अब
मजबूरी में घरेलू बाजार
पर ध्यान दे रहे हैं,
लेकिन वह भी सीमित
है।
‘डिजिटल से जोड़े सरकार’
युवा उद्यमी सुरेश
मिश्रा कहते हैं, “हमने
डिजिटली अमेरिकी ग्राहकों तक पहुंच बनाई
थी, लेकिन टैरिफ के कारण वह
दरवाज़ा भी बंद हो
गया है। सरकार को
अब निर्यात से जुड़े स्टार्टअप्स
को डिजिटल ट्रेनिंग और फाइनेंस सपोर्ट
देना होगा, तभी हम वैकल्पिक
बाजारों की ओर बढ़
पाएंगे।“
कारोबारी संगठनों की सरकार से मांग
प्रदेश के वस्त्र और
कालीन निर्यात संगठनों के अलावा एकमाध्यक्ष
रजा खान एवं कुंवर
शमीम अंसारी ने इस संकट
को ‘व्यापारिक आपदा’ मानते हुए सरकार से
मांग की है कि
: निर्यातकों को राहत देने
के लिए विशेष पैकेज
घोषित किया जाए। ब्याज
सब्सिडी योजना को फिर से
शुरू किया जाए। अमेरिका
से वार्ता कर टैरिफ को
यथासंभव कम किया जाए।
वैकल्पिक बाजारों के लिए प्रचार,
लॉजिस्टिक्स और वित्तीय मदद
दी जाए। स्टार्टअप उद्यमियों
के लिए स्किल ट्रेनिंग
और मार्केट एक्सेस योजनाएं बनाई जाएं।
अब नहीं जागे तो देर हो जाएगी
भारत का कालीन
उद्योग कभी भव्यता की
मिसाल था, मुगलों के
कालीन हों या काशी
की बुनाई, हर धागे में
कला और संस्कृति बसती
है। लेकिन आज यह धरोहर
50 फीसदी टैरिफ की गिरह में
फंसी हुई है। अगर
तत्काल नीति-निर्माताओं ने
ठोस कदम नहीं उठाए,
तो यह न केवल
व्यापारिक नुकसान होगा, बल्कि भारत की हस्तकला
विरासत को गहरी क्षति
पहुंचेगी।
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