धारा-दर-धारा सवालों में उलझा बिजली निजीकरण
महंगे करार,
घाटे
का
बोझ
और
सब्सिडी
पर
टिका
पूरा
खेल
272वें दिन भी जारी
बिजली
कर्मियों
का
आंदोलन
संघर्ष समिति
ने
मांगा
मुख्यमंत्री
से
हस्तक्षेप
सुरेश गांधी
वाराणसी. बिजली निजीकरण की प्रक्रिया पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। 272वें दिन भी बनारस के बिजली कर्मियों ने पूरे जोश के साथ विरोध प्रदर्शन किया और संघर्ष समिति ने सरकार से पूछा कि जब निजीकरण के बाद भी निजी घरानों को सब्सिडी, आर्थिक सहयोग और मुफ्त की जमीन देनी ही है तो जनता पर यह बोझ क्यों डाला जा रहा है?
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के बैनर तले
बिजली कर्मियों का निजीकरण विरोधी
आंदोलन 272वें दिन भी
पूरे जोश और संकल्प
के साथ जारी रहा।
वाराणसी सहित सभी जिलों
में कर्मचारियों ने जमकर प्रदर्शन
किया और सरकार की
नीति पर सवाल उठाए।
सभा में वक्ताओं ने
कहा कि पूर्वांचल व
दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण
की पूरी प्रक्रिया संदेहास्पद
है। संघर्ष समिति का आरोप है
कि निजीकरण के बाद भी
सरकार निजी घरानों को
सब्सिडी और आर्थिक सहयोग
देती रहेगी, ऐसे में जनता
पर अतिरिक्त बोझ डालने का
औचित्य ही क्या है?
समिति ने भारत सरकार
के विद्युत मंत्रालय द्वारा सितंबर 2020 में जारी ड्राफ्ट
स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट का हवाला देते
हुए कहा कि धारा
2.2 (बी) के अनुसार यदि
निजी कम्पनी मुनाफे में नहीं है
तो सरकार उसे सब्सिडाइज्ड दर
पर बिजली उपलब्ध कराती रहेगी। सरकार को स्पष्ट करना
चाहिए कि यह सब्सिडी
कितने वर्षों तक और कितनी
राशि में दी जाएगी।
धारा 1.1 (ई) के मुताबिक
निजी कंपनियों को क्लीन बैलेंस
शीट दी जाएगी और
घाटे-देनदारियों का बोझ सरकार
पर ही रहेगा। धारा
1.1 (एफ) के अनुसार सरकार
5 से 7 वर्ष तक (या
उससे अधिक समय तक)
निजी कंपनियों को वित्तीय सहायता
देगी, जब तक वे
मुनाफे में न आ
जाएं।
संघर्ष समिति ने कहा कि
सरकारी निगमों के घाटे का
सबसे बड़ा कारण निजी
विद्युत उत्पादन घरों से महंगे
करार हैं, जिन पर
बिना बिजली खरीदे ही सालाना 6761 करोड़
रुपये फिक्स चार्ज चुकाना पड़ता है। ऐसे
में सवाल उठता है
कि क्या निजीकरण महंगे
करारों से मुक्ति दिलाएगा
या केवल निजी घरानों
को फायदा पहुंचाएगा? वक्ताओं ने कहा कि
यदि यही करना है
तो सरकारी क्षेत्र के निगमों को
सुधार कर मजबूत क्यों
नहीं बनाया जा रहा? आखिर
जनता के पैसे से
तैयार संपत्तियों को कौड़ियों के
मोल पर निजी हाथों
में सौंपने का क्या तुक
है?
सभा को संबोधित
करते हुए ई. राजेन्द्र
सिंह, जिउतलाल, ई. नीरज बिंद,
कृष्णा सिंह, चन्द्रभान कुमार, रमाकांत पटेल, बंशीलाल, एस.के. सरोज,
योगेंद्र कुमार, सुशांत सिंह, गुलजार, रंजीत कुमार, नन्हे सिंह, पंकज यादव, बृजेश
यादव, राजेश सिंह और अंकुर
पाण्डेय ने कहा कि
निजीकरण की पूरी प्रक्रिया
संदेहास्पद है।
धारा 2.2 (बी) : सब्सिडी पर मुनाफे का सहारा
संघर्ष समिति का कहना है
कि ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट की धारा 2.2 (बी)
के मुताबिक अगर निजी कंपनी
मुनाफे में नहीं आती
तो सरकार उसे सब्सिडाइज्ड दर
पर बिजली देती रहेगी। सवाल
है कि यह सब्सिडी
कितने सालों तक और कितनी
राशि की होगी?
धारा 1.1 (ई) : घाटे का बोझ सरकार पर
निजी कंपनियों को
क्लीन बैलेंस शीट देने की
बात कही गई है।
यानी घाटा और देनदारियां
सरकार उठाएगी और लाभ निजी
घरानों को मिलेगा।
धारा 1.1 (एफ) : 5 - 7 साल तक आर्थिक सहयोग
निजी कंपनियों को
5 से 7 साल या उससे
अधिक समय तक सरकार
आर्थिक सहयोग देती रहेगी, जब
तक वे आत्मनिर्भर न
हो जाएं।
बिजली खरीद करारः घाटे की असली जड़
संघर्ष समिति ने कहा कि
घाटे का सबसे बड़ा
कारण महंगे पावर परचेज एग्रीमेंट
हैं। बिना बिजली खरीदे
ही 6761 करोड़ रुपये हर
साल फिक्स चार्ज के रूप में
निजी कंपनियों को चुकाए जा
रहे हैं। सवाल यह
है कि निजीकरण से
इस बोझ से मुक्ति
मिलेगी या यह बोझ
और बढ़ेगा?
एक रुपये में लीज पर 42 जिलों की जमीन
समिति ने कहा कि
42 जिलों की बहुमूल्य जमीन
को मात्र ₹1 सालाना लीज पर निजी
घरानों को देने का
प्रावधान है। वाराणसी, आगरा,
गोरखपुर, प्रयागराज और कानपुर जैसी
जगहों की जमीन कौड़ियों
के मोल सौंपना कौन
सा सुधार है?
जनता के लिए सब्सिडी क्यों नहीं, सिर्फ कंपनियों के लिए क्यों?”
बिजली निजीकरण पर उठ रहे
सवाल दरअसल आम जनता की
चिंताओं का आईना हैं।
संघर्ष समिति का तर्क है
कि अगर निजीकरण के
बाद भी कंपनियों को
सब्सिडी, घाटे का बोझ
और वित्तीय सहयोग सरकार ही देती रहेगी,
अगर महंगे बिजली खरीद करार (पावर
परचेज एग्रीमेंट) वैसे ही जारी
रहेंगे, और अगर 42 जिलों
की बहुमूल्य जमीन महज़ ₹1 सालाना
लीज पर निजी हाथों
में दी जाएगी, तो
फिर सुधार किसका और लाभ किसका?
जनता यह सवाल पूछने
को मजबूर है कि जब
सब्सिडी का हकदार उपभोक्ता
होना चाहिए, तो वह कंपनियों
तक क्यों सीमित है? क्या यह
सुधार है या केवल
मुनाफे का हस्तांतरण? सरकार
को साफ-साफ बताना
होगा कि निजीकरण से
वास्तव में जनता को
क्या फायदा होगा, और यह सब्सिडी
व सहयोग कितने वर्षों तक और कितने
अरब रुपये में जारी रहेगा।
जनता पर बोझ डालकर,
कंपनियों को राहत देनाकृकहीं
यह निजीकरण नहीं, “निजीकरण के नाम पर
रियायत” तो नहीं?
No comments:
Post a Comment