Tuesday, 26 August 2025

मर्दाना इमामबाड़ा विवाद : कुएं से उठा रहस्य, दस्तावेजों ने खोली नई परतें

सच और साजिश के बीच फंसी वाराणसी की धरोहर

मर्दाना इमामबाड़ा विवाद : कुएं से उठा रहस्य, दस्तावेजों ने खोली नई परतें 

57 सकेंड की वीडियों ने खोली परतें, दस्तावेजों की जांच से बढ़ी सरगर्मी

सुरेश गांधी

वाराणसी। मर्दाना इमामबाड़ा विवाद केवल एक भवन या सरकारी ज़मीन पर कब्ज़े की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस सामूहिक जिम्मेदारी का आईना है, जो प्रशासन, समाज और मीडिया तीनों पर समान रूप से है। अगर इमामबाड़ा वास्तव में नगर निगम की ज़मीन पर अवैध रूप से खड़ा है, तो उसे बेदखल करना प्रशासन का कर्तव्य है। अगर भीतर इतिहास की कोई छिपी परत है, तो उसे उजागर करना पुरातत्व और समाज, दोनों का दायित्व है। और अगर कोई दबाव डालकर सच छिपाना चाहता है, तो उसे जनता के सामने बेनक़ाब करना मीडिया का धर्म है। वाराणसी, जो सत्य और परंपरा का शहर कहलाता है, वहां असत्य की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। अब समय गया है कि प्रशासन 1978 की तरह फिर से निर्णायक कदम उठाए और इस विवाद को केवल ज़मीन का नहीं, बल्कि पारदर्शिता और न्याय का प्रतीक उदाहरण बनाए।

फिरहाल, शहर के दुर्गाकुंड स्थित मर्दाना इमामबाड़ा इन दिनों वाराणसी की सबसे चर्चित जगह बन चुका है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए 57 सेकेंड के वीडियो ने केवल इमामबाड़े की असलियत का पर्दाफाश किया, बल्कि इससे जुड़े लोगों के दबंग रवैये और मीडिया पर दबाव बनाने की कोशिश को भी सामने ला दिया। सवाल साफ है कि आखिरकार सच छिपाने का खेल किसकी शह पर चल रहा है? विवाद तूल पकड़ने के बाद प्रशासन ने इमामबाड़े की सुरक्षा बढ़ा दी है और पुलिस फोर्स तैनात कर दी है। सिटी मजिस्ट्रेट रविशंकर सिंह ने हाल मेंजनाना कुआंसमेत अन्य तथ्यों का निरीक्षण किया। इसके बाद तहसील सदर में दस्तावेजों की जांच शुरू हुई। प्रारंभिक जांच में यह भूमि नगर निगम की संपत्ति निकली है। दुर्गाकुंड पुलिस चौकी के पीछे लगभग 240 वर्ग मीटर क्षेत्र निगम के अभिलेखों में दर्ज है। नगर निगम लगातार कब्जाई गई जमीनों को मुक्त करा रहा है और सूत्रों के मुताबिक यहां भी बेदखली की प्रक्रिया तेज़ी से आगे बढ़ेगी।

बता दें, वाराणसी का हर पत्थर, हर दीवार, हर ईंट अपने भीतर इतिहास की परतें समेटे हुए है। दुर्गाकुंड स्थित मर्दाना इमामबाड़ा में झरोखे के पीछे मिला यह प्राचीन कुआं उसी सच का आईना है कि काशी की धरती पर बहुत कुछ अब भी अनकहा और अनदेखा है। सदियों पुरानी इमारतों में छिपी हुई यह कहानियां सिर्फ धार्मिक विवाद का विषय नहीं, बल्कि हमारी साझा धरोहर का हिस्सा हैं। इस खोज ने दो बातें साफ कर दी हैं, अतीत की सच्चाई को पर्दों से ढककर लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता और वैज्ञानिक एवं निष्पक्ष जांच के बिना इतिहास के ऐसे अध्याय अधूरे ही रहेंगे। मंदिर के अवशेष हों या हों, कुएं की मौजूदगी यह साबित करती है कि इमामबाड़ा केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि इतिहास की एक जीवित कड़ी है। आज ज़रूरत इस बात की है कि प्रशासन और पुरातत्व विभाग इसे राजनीति या विवाद की नजर से देखें, बल्कि इसे इतिहास, संस्कृति और विरासत की दृष्टि से गंभीरता से लें। काशी का सत्य जितना उजागर होगा, उतनी ही दृढ़ होगी उसकी पहचान और आस्था। इतिहास को छुपाने से नहीं, उजागर करने से ही पीढ़ियां सबक ले पाती हैं। काशी को उसकी सच्चाई जानने का अधिकार है।

कुआं और संभावित अवशेषों का रहस्य

इमामबाड़े के भीतर से सैकड़ों साल पुराना कुआं मिलने की पुष्टि ने रहस्य को और गहरा कर दिया है। स्थानीय लोगों का दावा है कि यहां किसी प्राचीन मंदिर के अवशेष भी दबे हो सकते हैं। हालांकि अब तक कोई ठोस अवशेष नहीं मिले हैं, लेकिन जांच का दायरा बढ़ने पर नई ऐतिहासिक परतें खुलने की पूरी संभावना है।

गुंडागर्दी और मीडिया पर हमला

वायरल वीडियो में पत्रकारों पर इमामबाड़े से जुड़े लोगों का आक्रामक व्यवहार और धमकी साफ झलक रही है। यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या यह केवल कब्जे बचाने का हथकंडा है या किसी गहरे राज़ को छिपाने की साजिश?  

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य : 1978 की याद

वाराणसी में 1978 का कब्ज़ा हटाओ अभियान आज भी लोगों को याद है। उस समय भी शहर की कई सरकारी जमीनों और तालाबों पर अवैध कब्ज़े जमाए गए थे। प्रशासन ने कड़े कदम उठाकर केवल उन कब्जों को हटाया, बल्कि सार्वजनिक भूमि पर नगर निगम का बोर्ड भी लगाया था। स्थानीय बुज़ुर्ग बताते हैं कि उस समय भी शुरुआत में भारी विरोध हुआ था, लेकिन सख्त कार्रवाई के बाद सच सामने आया और कब्ज़े हटे। इसीलिए लोग अब इस मामले को 1978 जैसी निर्णायक कार्रवाई से जोड़कर देख रहे हैं।

अगला पड़ाव और कानूनी पहलू

एडीएम सिटी आलोक वर्मा ने इमामबाड़े से जुड़े लोगों को अपने दस्तावेज प्रस्तुत करने का अवसर दिया है। तहसील और राजस्व विभाग पुराने रिकॉर्ड खंगाल रहे हैं ताकि आगे की कार्रवाई कानूनी रूप से निर्विवाद हो।

मर्दाना इमामबाड़ा विवाद

स्थान : दुर्गाकुंड पुलिस चौकी के पीछे, वाराणसी

क्षेत्रफल : करीब 240 वर्ग मीटर

जमीन की स्थिति : नगर निगम के नाम दर्ज सरकारी भूमि

मौजूदा स्थिति : इमामबाड़े की दीवारों में सैकड़ों साल पुराना कुआं मिला

सुरक्षा : मौके पर पुलिस फोर्स तैनात

प्रशासनिक कदम : सिटी मजिस्ट्रेट का निरीक्षण, दस्तावेजों की तहसील सदर में जांच जारी

आगामी कार्रवाई : कब्जे से जमीन मुक्त कराने निगम का बोर्ड लगाने की तैयारी

प्रतिक्रिया

रामनाथ पांडेय (दुर्गाकुंड निवासी) : हमने बचपन से सुना है कि यहां कुआं और मंदिर के निशान हैं। अब जांच में कुआं मिला है तो सरकार को पूरी सच्चाई सामने लानी चाहिए।  राशिद अली (स्थानीय व्यापारी) : मीडिया पर दबाव डालना गलत है। अगर सबकुछ सही है तो दस्तावेज़ दिखाने में क्या दिक्कत है? सच सामने आना ही चाहिए। गीता देवी (गृहणी) : नगर निगम की जमीन पर कब्जा हो या मंदिर के अवशेष, हमें फर्क नहीं पड़ता। फर्क तब पड़ेगा जब सच्चाई छिपाई जाएगी। प्रशासन को साफ-साफ कार्रवाई करनी चाहिए।

सवाल जो बाकी हैं...

अब जब कुआं और सरकारी जमीन की हकीकत सामने चुकी है, तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या मर्दाना इमामबाड़ा केवल सरकारी भूमि पर खड़ा एक अवैध ढांचा है? या इसके भीतर इतिहास की कोई छिपी परत दबे होने की संभावना है? और आखिर मीडिया पर हमलावर रवैया क्यों अपनाया गया?

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